यूपी में भी पकने लगी चुनावी खिचड़ी
01-Sep-2015 06:01 AM 1235021

पड़ोसी बिहार राज्य में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव की गर्मी से उत्तरप्रदेश की राजनीति में भी गर्माहट आने लगी है।  विधानसभा चुनाव-2012 में अतिपिछड़ी जातियां आरक्षण के मुद्दे पर

सपा के साथ चली गई थीं लेकिन अब इनका सपा से मोह भंग हो रहा है। विमुक्त जातियों का आरक्षण खत्म करने से मल्लाह, केवट, कहार, लोध, मेवाती, बंजारा, भर, औधियां, घोसी आदि जातियां पहले से ही नाराज थीं, उस पर अब गोरखपुर, संत कबीनगर में निषाद आरक्षण आन्दोलन के पटाक्षेप से निषाद-कश्यपों का भी सपा से मोह भंग होता दिख रहा है।

 

विधानसभा चुनाव-2017 में बसपा व सपा का मिथक लोकसभा चुनाव-2014 की भांति टूटने की पूरी सम्भावना है। लोकसभा चुनाव में सपा का परम्परागत यादव मतदाता व बसपा का दलित मतदाता बड़ी संख्या में भाजपा के साथ चला गया था। सपा सरकार के क्रियाकलापों से अतिपिछड़ों में काफी नाराजगी उपजी है। जिसके कारण यह वर्ग सपा से दूर जा रहा है। उत्तर प्रदेश में इस समय एआईएमआईएम, पीस पार्टी सहित कुछ अन्य मुस्लिम पार्टियां अपना पैर पसारने में मजबूती से जुटी हैं। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। सपा बसपा के वोट बैंक में भी सेंधमारी होगी। सपा को विश्वास है कि वह पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में फिर से वापसी करेगी, लेकिन यह सत्तादंभ में पैदा हुई गलतफहमी के सिवा कुछ नहीं है। क्योंकि सपा शासन की कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, सपा नेताओं की जनता से दूरी व कुछ जिलों के जाति विशेष के उम्मीदवारों को नौकरियों में भरे जाने से अन्य वर्गों में भीषण नाराजगी है। समझदार यादव वर्ग भी नाराज ही चल रहा है।

उत्तर प्रदेश के सामाजिक समीकरण में 17 अति पिछड़ी व 11 विमुक्त जनजातियों का चुनावी दृष्टि से काफी महत्व है। 17 अति पिछड़ी जातियों की उत्तर प्रदेश में जनसंख्या अन्य पिछड़े वर्ग की ग्रामीण जनसंख्या में लगभग एक तिहाई यानी 15.30 प्रतिशत व विमुक्त जातियों की संख्या 17.60 प्रतिशत से अधिक है। यदि विधान सभा चुनाव-2002, 2007 और 2012 पर नजर दौड़ाई जाए तो सत्ता का हस्तांतरण 3-4 प्रतिशत मतों के ही अन्तर से होता रहा है। विधान सभा चुनाव-2007 में बसपा को 29.65 व सपा को 25.75 प्रतिशत मत मिला था वहीं विधान सभा चुनाव-2012 में सपा को 29.13, बसपा को 25.91 व भाजपा को लगभग 15 प्रतिशत मत मिला। लोक सभा चुनाव-2014 में भाजपा को 42.3 प्रतिशत, बसपा को 19.95 व सपा को 22.6 प्रतिशत मत मिला था। विधान सभा चुनाव-2017 में सामाजिक-जातिगत समीकरण में काफी उलटफेर की सम्भावना है। अभी तक जो तस्वीर उभर कर आई है, उसमें भाजपा व  बसपा ही नम्बर-1 की पार्टी के रूप में देखी जा रही है। कानून व्यवस्था व अतिपिछड़ों (गैर यादव पिछड़ों) की उपेक्षा से माहौल सपा के खिलाफ है। ऐसे में भाजपा व बसपा इस माहौल को कैसे अपने पक्ष में कर पाती हैं, वह अभी भविष्य के गर्भ में है।

भाजपा को अच्छी तरह पता है कि उत्तर प्रदेश में जब भी उसकी सरकार बनी उसमें अति पिछड़ों, अति दलितों की मुख्य भूमिका रही। भाजपा के एक महामंत्री ने कहा कि सपा के यादवीकरण व खराब कानून व्यवस्था का लाभ हमारी पार्टी को मिलेगा। भाजपा का जातिगत सामाजिक समीकरण अन्य दलों की अपेक्षा काफी मजबूत है। दूसरी तरफ पिछड़ा वर्ग चिन्तक चौधरी लौटन राम निषाद का मानना है कि लोक सभा चुनाव के बाद भाजपा से पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्ग का ही नहीं, अन्य वर्गों का भी मोह भंग हुआ है। अतिपिछड़ा वर्ग भाजपा के छद्म सामाजिक न्याय व सामाजिक समता, समरसता के चुनावी नाटक को समझ गया है, अब वह इस बहकावे में नहीं आएगा।

उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित सात यादव कैबिनेट मंत्री हैं। वहीं गैर यादव पिछड़े वर्ग से राजेन्द्र चौधरी (जाट), राममूर्ति वर्मा (कुर्मी) को महत्वहीन विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। अत्यन्त पिछड़ों में विवादित गायत्री प्रसाद प्रजापति 17 अति पिछड़ी जातियों के अकेले ऐसा नेता हैं, जिन्हें मलाईदार विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इससे अन्य अति पिछड़े काफी नाराज हैं। मांझी/गोडिय़ा समाज के शंखलाल मांझी, लोधी/किसान समाज के मानपाल सिंह वर्मा व राममूर्ति सिंह वर्मा, पाल/गड़ेरिया समाज के विजय बहादुर पाल व मौर्य/काछी/शाक्य/कुशवाहा समाज के विनय कुमार शाक्य को राज्यमंत्री बनाकर इन वर्गों का राजनीतिक अपमान ही किया गया है। ऐसे मंत्रिमंडलीय असंतुलन से अति पिछड़ा वर्ग में सपा के प्रति काफी असंतोष है।

उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव-2017 के मद्देनजर कांग्रेस व भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें हैं। कांग्रेस की नजर भी पिछड़ा वर्ग पर है। मिस्त्री व खत्री की कैमेस्ट्री फेल हो गई है। ऐसे में किसी पिछड़े/अतिपिछड़े को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की चर्चा है। भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी के प्रति भी कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। मोदी-शाह की जोड़ी के लिए उत्तर प्रदेश की राजनीति भी खास है। कयास लगाया जा रहा है कि स्वतंत्र देव सिंह (कुर्मी), धर्मपाल सिंह (लोधी),  प्रकाश पाल (बघेल/गड़ेरिया/धनगर), केशव प्रसाद मौर्य में से किसी एक को प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर सौंप कर  भाजपा पिछड़ा वर्ग कार्ड खेल सकती है। जो भी हो उत्तर प्रदेश में 2017 के विधान सभा चुनाव में अति पिछड़े वर्ग की भी अहम भूमिका रहेगी।

भाजपा-कांग्रेस बदलेगी अध्यक्ष, सपा भी सक्रिय

उत्तर प्रदेश में 2017 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने पिछड़ा या दलित वर्ग के प्रदेश अध्यक्ष की तलाश शुरू कर दी है। दिल्ली-प्रयोग से बच रही भाजपा ने संघ की मदद से संगठन को मजबूत करने का काम तेज कर दिया है। उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी का अगस्त में ही कार्यकाल पूरा हो रहा है। लिहाजा, पार्टी आलाकमान ने नये अध्यक्ष की कवायद शुरू कर दी है। भाजपा के रणनीतिकार इस बार प्रदेश में संगठन की जिम्मेदारी पिछड़े या अनुसूचित जाति वर्ग के किसी ऐसे नेता को सौंपने पर विचार कर रही है जिसके नेतृत्व में पार्टी में इस समूह के लोगों को बड़ी संख्या में जोड़ा जा सके और जो बड़े समूह से आता हो।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले दिनों पिछड़े और दलित समुदाय का आह्वान करते हुए कहा भी था कि उन्हें सुनिश्चित करना चाहिए कि उत्तर प्रदेश की सत्ता पर भाजपा काबिज हो, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही उनकी तकलीफ समझ सकते हैं। स्पष्ट है कि भाजपा इन वर्गों के लोगों को अपने साथ जोडऩे के लिए विशेष रणनीति पर काम कर रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी इन्हीं वर्गों से जुड़े किसी नेता को सौंपे जाने की संभावना जताई जा रही है। आलाकमान का मूड और इच्छा भांपते हुए प्रदेश के कई नेता भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल भी हो गए हैं।

पार्टी की अंदरूनी रणनीतियों के जानकारों का कहना है कि ब्राह्मण और राजपूत को अध्यक्ष बनाने के बजाय अनुसूचित जाति या पिछड़े वर्ग से आने वाले ऐसे नेता जो संगठन में लंबे समय तक काम कर चुके हैं, उनकी दावेदारी पर विचार किया जा रहा है। लेकिन एक विचार यह भी बन रहा है कि दलित समुदाय के ऐसे नेता को भी मौका दिया जा सकता है जिसके साथ उनके समुदाय की बृहत्तर जनसंख्या हो। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इसका संकेत दे चुके हैं। उधर, प्रदेश में मृतप्राय कांग्रेस भी विधानसभा चुनाव के पहले पार्टी में जान डालने की कोशिशों में लगी है। कांग्रेस पार्टी आलाकमान के दो शीर्ष नेता सोनिया और राहुल उत्तर प्रदेश से ही सांसद होते हैं, इसलिए कांग्रेस के लिए जिंदा रहना उनकी प्रतिष्ठा के लिए जरूरी है। कांग्रेस भी भाजपा की तरह अपना प्रदेश अध्यक्ष बदलना चाहती है। इसके पीछे कांग्रेस का इरादा भी नए लेकिन दूरगामी प्रयोग करने के मूड में है। प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री के बजाय पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को प्रदेश का अध्यक्ष बनाने पर विचार हो रहा है। पार्टी के अंदर लम्बे समय से श्रीप्रकाश जायसवाल को बड़ी जिम्मेदारी देने की मांग हो रही है। जायसवाल कांग्रेस मुखिया सोनिया गांधी के नजदीकी माने जाते हैं। इसी वजह से यूपीए-1 में उन्हें गृह राज्यमंत्री और यूपीए-2 में कोयला मंत्री की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी। समाजवादी पार्टी भी आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। इस बार तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, लिहाजा उन्होंने कन्नौज से विधानसभा का चुनाव लडऩे का मन बनाया है। कन्नौज संसदीय क्षेत्र से अखिलेश की पत्नी डिम्पल सांसद हैं। पति-पत्नी कन्नौज पर पूरी तरह दखल बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। डिम्पल ने कहा भी कि कन्नौज मुख्यमंत्री के दिल में बसता है। यह भूमि मुख्यमंत्री के लिए कर्मभूमि रही है और रहेगी। सीएम कन्नौज से ही 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। अखिलेश यादव मार्च 2012 तक कन्नौज से ही सांसद रहे हैं। उन्होंने यह सीट मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली कर दी थी। उसके बाद हुए उपचुनाव में डिम्पल वहां से जीतीं। 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने यहां की तीनों सीटें कन्नौज सदर, तिरवा और छिबरामऊ जीत ली थीं।

पिछले कुछ दिनों से मुख्यमंत्री अखिलेश की कन्नौज-सक्रियता साफ-साफ दिख रही है। मुख्यमंत्री की पहल पर उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम ने कन्नौज में परफ्यूम पार्क लगाने के लिए जरूरी औपचारिकताएं शुरू कर दी हैं। इत्र के लिए दुनियाभर में मशहूर कन्नौज में 400 एकड़ जमीन पर परफ्यूम पार्क की स्थापना की जाएगी।

-लखनऊ से मधु आलोक निगम

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^