त्रिदेवों पर तीसरा नेत्र क्यों खोल रखा है नरेन्द्रÓ ने?
17-Sep-2015 06:52 AM 1234839

राजधानी दिल्ली के राजपथ पर सितम्बर की उमस भरी सुबह रेंगते ट्रैफिक के बीच अपनी वातानुकूलित गाड़ी में शास्त्री भवन की ओर बढ़ रहे एक आला ब्यूरोक्रेट कार में मद्धिम आवाज में गजल सुन रहे थे-किसी रंजिश को हवा दो, कि मैं जिन्दा हूँ अभी... और रंजिश की खबर आ भी गई। कभी राजनाथ सिंह तथा नरेन्द्र की आँखों के तारेÓ रहे गृह सचिव एलसी गोयल और अतिरिक्त सचिव अनंत कुमार सिंह को सरकार ने रुखसत कर दिया। मीडिया में खबर चली कि यह गोयल द्वारा राजनाथ सिंह की नाफरमानी का पुरस्कार हो सकता है लेकिन देर रात तक सत्ता के गलियारों में सच्चाई सामने आ चुकी थी। एक दूसरे को धराशायी करने के जुनून में एलसी गोयल तथा अनंत कुमार ङ्क्षसह छ: माह से जो कब्रें खोद रहे थे उनमें वे स्वयं ही दफन हो गये।
दिल्ली की केन्द्रीय सत्ता में गृह, रक्षा और विदेश सचिवों को त्रिदेव कहा जाता है। आम तौर पर तीनों का कार्यकाल दो वर्ष फिक्स रखा जाता है, लेकिन नरेन्द्र मोदी के सत्तासीन होने के बाद से इन त्रिदेवों पर तीसरा नेत्र क्यों खुला हुआ है यह समझ से परे है। सुजाता सिंह या अनिल गोस्वामी की बात अलग है वे तो यूपीए द्वारा नियुक्त किये गये थे इस लिए उन्हें जाना ही था। लेकिन गोयल जैसे काबिल अफसरों की विदाई ब्यूरोक्रेसी के गले नहीं उतर रही है। जहां तक अनंत कुमार सिंह का प्रश्न है सभी यह जानते हैं कि वे उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनके निज सचिव हुआ करते थे इस लिए राजनाथ से उनकी निकटता का पुरस्कार उन्हें मिला था। किन्तु इस निकटता का फायदा उन्होंने गोयल की लगातार शिकायतें करते हुए उठाया। गोयल से उनकी पटती नहीं थी। देर-सबेर यह भनक प्रधानमंत्री कार्यालय में भी पहुँच गई। उसके बाद दोनों का जाना तय हो गया था, किसी सम्मानजनक विदाई का अवसर तलाशा जा रहा था। सरकार को यह चिन्ता भी थी कि गत फरवरी में अनिल गोस्वामी को हटाकर केरल काडर के 1979 बैच के आइएस अफसर एलसी गोयल को केन्द्रीय सचिव आनन-फानन में बनाया गया था। अब उतने ही आनन फानन में हटाने से विवाद हो सकता है। अनिल गोस्वामी ने तो खुले रूप में सारधा घोटाले के आरोपी मतंग सिंह का समर्थन करके मोदी की नाराजगी मोल ले ली थी लेकिन गोयल की टसल अनंत कुमार सिंह से होने के कारण उन्हें हटना पड़ा ऐसा संदेश केन्द्र सरकार नहीं देना चाहती थी इसलिए मीडिया में जब खबर आयी तो मुख्य कारण बताया गया राजनाथ सिंह को महत्वपूर्ण फैसलों से अवगत न कराना। मीडिया ने छ: कारण गिनाये जिनमें से एक नागा शांति समझौते पर राजनाथ सिंह को अंधेरे में रखा जाना भी था। दाउद इब्राहिम की फोटो लीक होना एक अन्य कारण बताया गया। ये भी कहा गया कि तीस्ता सीतलवाड़ के मामले में गोयल ने स्थिति को ठीक से नहीं सम्हाला। ईरान को वीजा प्राथमिकता सूची में से हटाने का फैसला भी गोयल ने बिना राजनाथ सिंह को बताये किये था ऐसा कहा जा रहा है। गृह मंत्रालय में कुछ आला अफसरों की जिम्मेदारी में फेर बदल भी गोयल ने बिना राजनाथ सिंह को बताये कर दी थी। इनमें से क्या सच है और क्या गलत कहना मुश्किल है। कारण यह है कि जब भी किसी नौकरशाह को हटाया जाता है तो उसे  लेकर अफवाहें चलने लगती हैं। जितने मुंह उतनी बातें-ईरान प्रकरण को ही लें तो ईरान को वीजा प्राथमिकता की सूची में से हटाने का सूचना प्रधानमंत्री कार्यालय ने ईरान के राष्ट्रपति को उफा में जुलाई में दे दी थी। इसके बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने गृह सचिव को पत्र लिखकर इस बारे में कार्यवाही करने का कहा था। यह सत्ता के गलियारों से लेकर ब्यूरोक्रेसी तक सभी को मालूम था इसलिए इसमें छिपाने जैसा कुछ भी नहीं। इसी तरह अन्य मामले भी इतने गंभीर नहीं हैं कि उनके आधार पर गोयल जैसे योग्य अफसर को हटा दिया जाए।  बहरहाल कुछ ही घंटों में सेवा निवृत्त होने वाले पूर्व वित्त सचिव राजीव महर्षि को नया गृह सचिव बनाकर मोदी सरकार क्या संदेश देना चाहती है यह समझ से परे है। गोयल की ही जगह किसी को लाना था तो कम से कम ऐसे को लाया जाता जिसके पैर कब्र में न लटके हों। महर्षि कितने दिन टिकेंगे? ब्यूरोक्रेसी को एक जगह टिक कर काम न करने देने की योजना से सुप्रीम कोर्ट पहले ही असहमति जता चुका है। कोर्ट का कहना है कि किसी भी नौकरशाह का न्यूनतम कार्यकाल तय होना चाहिए। गोयल ग्रामीण विकास सचिव के रूप में अच्छा काम कर रहे थे। लेकिन बाद में उन्हें गृह सचिव बना दिया गया। वहां रहते हुए उन्होंने अच्छा काम किया लेकिन राजनाथ सिंह से पटरी न बैठ पाने के कारण जब उन्होंने सेवा निवृत्त होना चाहा तो उन्हें इण्डियन ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइजेशन का चेयरमैन बनाया गया। ऐसा कब तक चलता रहेगा। मोदी सरकार के आने के बाद से ये प्रचलन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। इससे ब्यूरोक्रेसी का हौंसला टूटता है। मोदी सरकार की गाज कई आला अफसरों पर गिरी है। गोयल के बाद 1980 बैच की गुजरात कैडर की आइएस अधिकारी विजय लक्ष्मी जोशी ने भी स्वच्छ भारत मिशन के अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया है। जोशी के रिटायरमेंट के तीन साल बचे हुए हैं। इस तरह योग्य अफसर एक के बाद एक रुखसत होते रहेंगे तो सवाल उठना लाजमी है। मात्र छ: माह के भीतर गृह सचिव का बदलना सरकार के लिए परेशानी भरा कदम कहा जा सकता है।
15 माह में बदले 8 सचिव
तथ्य स्वयं अपना प्रमाण होते हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने अभी-अभी अपने कार्यकाल के 15 महीने पूरे किए हैं और इस संक्षिप्त-सी अवधि में इसने तीन गृह सचिवों, तीन वित्त सचिवों तथा दो विदेश सचिवों का कार्यकाल देख लिया है। पूर्व यूपीए सरकार से विरासत में मिले गृहसचिव अनिल गोस्वामी को इस वर्ष के प्रारंभ में लंबी छुट्टी पर जाना पड़ा लेकिन जिस तरीके से उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया, वह न केवल अकस्मात  बल्कि विवादित भी था। उनके बाद 1979 बैच के भारतीय प्रशासकीय सेवा अधिकारी एलसी गोयल को गृह मंत्रालय की नैय्या का खिवैय्या बनने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जोकि इससे पूर्व ग्रामीण विकास मंत्रालय का पद्भार संभाले हुए थे। गोयल ने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति लेने की इच्छा व्यक्त की तो उनका निवेदन सरकार द्वारा तत्काल स्वीकार कर लिया गया। उनकी कुर्सी पर बैठने वाले राजीव महॢष को उसी दिन रिटायर होना था लेकिन उन्हें दो वर्ष का सेवा विस्तार देकर गृह सचिव बना दिया गया। महर्षि के लिए तो यह जिम्मेदारी नार्थ ब्लाक के एक सिरे से केवल दूसरे तक ही सफर करने के तुल्य थी, क्योंकि वित्त और गृह मंत्रालय दोनों के मुख्यालय नार्थ ब्लाक में ही स्थित हैं। सड़क के दूसरी ओर साऊथ ब्लाक और वहां भी सचिव स्तर पर कोई कम नाटकीय बदलाव नहीं हुए। इस वर्ष के गणतंत्र दिवस समारोह में जब अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा मुख्य अतिथि थे, उसी दौरान विदेश मामलों के मंत्रालय में पुराने अफसरों को बदल दिया गया। सुजाता सिंह को विदेश सचिव पद से चलता कर दिया गया और एस. जयशंकर के लिए रास्ता तैयार कर दिया गया। जयशंकर को अमरीका में भारतीय राजदूत का पद छोड़ कर यहां आना पड़ा। नए विदेश सचिव ने जितनी काबिलियत से सरकार के विदेशी मामलों को हैंडल किया, उसके बीच सुजाता सिंह की विवादपूर्ण विदायगी की चर्चा धीरे-धीरे दम तोड़ गई। फिर भी वर्तमान सरकार नौकरशाहों की नियुक्ति के मामले को जिस प्रकार हैंडल कर रही है, वह एक चिन्ता का विषय है। नवसृजित स्किल डिवैल्पमैंटÓ मंत्रालय का नेतृत्व करने के लिए गत वर्ष राजस्थान से लाए गए सुनील अरोड़ा को जिस प्रकार यहां से हटाकर सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव के रूप में तैनात किया गया है, उससे नौकरशाहों की भौंहें काफी तनी हुई हैं। स्वाभाविक ही यह सवाल पैदा होता है कि आखिर कौन-सी इतनी बड़ी हस्ती है जिसके लिए स्थान बनाने हेतु अरोड़ा का स्थानांतरण किया गया है। यह कोई अन्य नहीं, बल्कि रोहित नंदन हैं, जो गत 4 वर्षों दौरान अनेक विवादों में घिरे होने के बावजूद एयर इंडिया के प्रमुख बने रहे हैं।
फिर से नार्थ ब्लाक की ओर लौटते हैं, जहां वित्त मंत्रालय ने भी कुछ अन्य हाई प्रोफाइल लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया है। जब मोदी सरकार का गठन हुआ, उस समय अरविन्द मायाराम वित्त सचिव थे लेकिन वह ज्यादा समय तक टिके नहीं रह पाए। कुछ ही दिनों के अंदर उनकी फिर से बदली कर दी गई, जिससे न केवल वह बल्कि अन्य सभी भी काफी हत्प्रभ हुए। अक्तूबर 2014 के अंत में वित्त मंत्रालय का नेतृत्व करने के लिए राजस्थान से राजीव महर्षि को लाया गया लेकिन ऐसा करते हुए इस तथ्य की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया  कि उनके रिटायरमैंट में एक वर्ष से भी कम समय रह गया है। दूसरे शब्दों में यह कहना होगा कि उनकी नए वित्त सचिव के रूप में तैनाती स्पष्ट तौर पर यह सोच कर की गई थी कि वह व्यावहारिक रूप में केवल बजट को ही हैंडल कर सकेंगे। परन्तु कौन जानता था कि महर्षि के लिए मोदी सरकार ने क्या-क्या योजनाएं बनाई हैं? उनको दो साल का सेवा विस्तार देकर गृह मंत्रालय के सचिव के रूप में भेज दिया गया और इस तरह नए वित्त सचिव के लिए जगह तैयार हो गई, यानी कि 15 माह की अवधि में तीसरा वित्त सचिव। खर्च विभाग की अध्यक्षता करने वाले आर.पी. वत्तल अब नए वित्त सचिव होंगे क्योंकि वित्त मंत्रालय में वह सभी अन्य सचिवों से वरिष्ठ हैं। जब भी कोई नई सरकार गठित होती है, तो उसको सदैव कुंछ जीवत पदों पर अपनी पसंद के सिविल अधिकारियों की टीम तैनात करने का अधिकार होता है। उदाहरण के तौर पर मोदी सरकार ने मई 2014 में सत्ता में आने के बाद तत्कालीन कैबिनेट सचिव अजीत सेठ की सेवाएं बहाल रखने का फैसला लिया लेकिन इस वर्ष जून में ऊर्जा सचिव प्रदीप कुमार सिन्हा को अजीत सेठ के स्थान पर नियुक्त कर दिया और उन्हें 2 वर्ष का कार्य विस्तार भी उपलब्ध हो गया। जो कुछ गृह मंत्रालय या वित्त मंत्रालय में हुआ है, उससे इस संबंध में कई सवाल पैदा हो गए हैं कि क्या सरकार कुंजीवत विभागों में सचिवों के पद पर स्थायित्व तथा टीम सृजन के महत्व में विश्वास रखती है? अगस्त माह में प्रवर्तन निदेशालय के राजन एस. कटोच का कार्यकाल समाप्त कर उनकी जगह करनैल सिंह को लाया गया। नई सरकार के गठन के जल्दी ही बाद शक्तिकांत दास को तरक्की देकर जून 2014 में राजस्व विभाग का प्रमुख बना दिया गया। उसके बाद अक्तूबर-नवम्बर में तीन कुंजीवत फैसले लिए गए-मायाराम के स्थान पर वित्त सचिव के रूप में महॢष को लाना, वित्तीय सेवाओं के विभाग में हंसमुख आधिया को सचिव के रूप में तैनात करना तथा अपनिवेश विभाग के इंचार्ज के रूप में आराधना जौहरी की नियुक्ति करना। आरपी वत्तल की खर्च सचिव के रूप में नियुक्ति होते ही वित्त मंत्रालय का नेतृत्व एक नई टीम ने संभाल लिया।
एक वर्ष से भी कम समय में यह टीम खंडित हो गई लगती है। महर्षि पहले ही  वित्त मंत्रालय की ओर प्रस्थान कर चुके हैं, जबकि वत्तल आगामी फरवरी में रिटायर हो रहे हैं और इसके 6 माह बाद ही जोशी की रिटायरमैंट की आयु हो जाएगी। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले एक वर्ष में वित्त मंत्रालय के कुंजीवत विभागों का कार्यभार नए चेहरे संभाल लेंगे। यानी कि अगले वर्ष में भी बदलाव की गति इसी तरह जारी रहेगी।
-दिल्ली से नवीम रघुवंशी

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