17-Sep-2015 06:20 AM
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मध्यप्रदेश के जिलों में कुछ बड़े ही करामाती अफसर रहते हैं। इनकी प्रतिभा इतनी लाजवाब है कि ये अपनी काबीलियत के प्रताप से बार-बार कलेक्टरी पा जाते हैं। जिस जिला कलेक्टरी के लिए कई

योग्य अफसर जूते घिसते रहते हैं वह कलेक्टरी इन्हें बड़ी आसानी से मिल जाती है। बड़े भाग कलेक्टर पद पावा कहीं भी रहें किन्हीं भी हालातों में रहें लेकिन कुछ भागीरथ और गौतम ऐसे हैं जो कलेक्टरी की गंगा को अपनी मनचाही जगह उतार ही लेते हैं ताकि उनकी वैतरणी पार लगती रहे। प्रदेश के सभी 51 जिलों में ऐसे तपस्वी मिल जाएंगे जिनकी तपस्या पर रीझकर सत्ता के सत्ताधीश उन्हें कलेक्टरी से नवाज देते हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो कभी लूप लाइन पर गए ही नहीं। मुख्य धारा में बने रहना प्रमोटियों को कुछ ज्यादा ही अच्छी तरह से आता है। यही कारण है कि प्रदेश के 51 जिलों में से 23 में सीधी भर्ती से आए आईएएस और 28 में प्रमोटी कलेक्टर विराजमान हैं। प्रदेश पहले कभी ऐसा मौका नहीं आया था कि आरआर दो जिलों से ज्यादा के कलेक्टरी कर पाया हो। परन्तु ऐसा नहीं है कि आईएएस को 2-3 से अधिक बार कलेक्टरी का मौका मिले, लेकिन मध्यप्रदेश में तो कई आईएएस 4-4 बार कलेक्टरी का सुख भोग चुके हैं और पांचवीं बार भी कलेक्टर बनने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उम्मीद लगाएं भी क्यों न। जिले की कलेक्टरी की महिमा ही कुछ ऐसी है कि पद के साथ-साथ प्रसादÓ भी पर्याप्त मिलता है। ऊपर से रुतबा। कुछ जिले तो ऐसे हैं जहां की कलेक्टरी सात पीढिय़ों को तार देती है। यही कारण है कि भले ही प्रमोटियों को आईएएस अवार्ड मिल जाए लेकिन वे जिले में कलेक्टरी का मोह नहीं त्यागते। उधर कुछ अभागे कलेक्टरी के लिए तरसते रहते हैं। 1998 बैच की उर्मिला शुक्ला को ही ले लें। उर्मिला 17 वर्ष पहले आईएएस तो बन गईं पर कलेक्टरी नहीं मिली। यही हाल 7 अन्य प्रमोटी आईएएस का है। जिन पर कलेक्टरी की रहमत अभी तक नहीं बरसी। इनमें 2003 बैच के निसार अहमद और अरुण तोमर, 2004 बैच के अशोक शर्मा और अल्का श्रीवास्तव, 2005 बैच के डीबी सिंह, राजेश कुमार जैन और अशोक वर्मा का नाम प्रमुख हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो कलेक्टर बनने की ख्वाहिश मन में लिए रिटायर्ड हो गए। इनमें राजकुमारी सोलंकी और बीके सिंह जैसे प्रमोटी आईएएस का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
आखिर क्या है उन लोगों की कलेक्टरी का राज जो पुन: पुन: इस पद को पा जाते हैं। भीतरी खबर यह है कि नेताओं के चहेतों, रिश्तेदारों, सोर्स वालों से यदि कुछ बचता है तो वह योग्य और कर्मठ अफसरों को मिल जाता है। इन्हीं योग्यताओंÓ के आधार पर बार-बार कलेक्टर पद मिल जाता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दस वर्षीय कार्यकाल में एक-दो नहीं बल्कि 10 अफसर ऐसे रहे जो पुन:-पुन: कलेक्टर के पद से नवाजे गए। उज्जैन कलेक्टर कवीन्द्र कियावत, अनूपपुर, खंडवा, सीहोर के भी कलेक्टर रहे। पी. नरहरि इंदौर से पहले सिवनी, सिंगरौली और ग्वालियर के कलेक्टर रहे। शिवनारायण रूपला जबलपुर से पहले श्योपुर, रीवा और सागर कलेक्टर रह चुके हैं। रतलाम कलेक्टर पी चन्द्रशेखर बोरकर बैतूल, हरदा, झाबुआ में भी कलेक्टरी कर चुके हैं। कुछ कलेक्टरों की काबिलियत ऐसी है कि वे जिलों में वर्षों जमे रहते हैं। इन्हीं में से एक हैं छिंदवाड़ा कलेक्टर महेश चौधरी, जिन्हें पिछले 4 साल से छिंदवाड़ा में ही रहने की आदत लग गई है। उन्हें चुनाव आयोग ने उस समय के लिए हटाया था लेकिन वे फिर वहीं पहुंच गए। कुछ कलेक्टर 3 बार से लगातार कलेक्टरी प्राप्त कर रहे हैं। जयश्री कियावत दतिया, झाबुआ में रहने के बाद अब धार की कलेक्टर हैं। नीरज दुबे शहडोल, खंडवा की कलेक्टरी करने के बाद खरगौन कलेक्टर बन गए। एमके अग्रवाल मुरैना और देवास कलेक्टर रह चुके हैं और अब खंडवा में पदस्थ हैं। संजय गोयल ग्वालियर से पहले सीहोर और रतलाम में रह चुके हैं। एमबी ओझा को दतिया, राजगढ़ और विदिशा का कलेक्टर बनाया गया था। राहुल जैन छतरपुर के बाद रीवा कलेक्टर हैं। एके सिंह अशोक नगर और कटनी के बाद अब सागर में कलेक्टर हैं। संजीव सिंह नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, मंदसौर में कलेक्टर रह चुके हैं। केदार शर्मा सीधी, खरगौन और टीकमगढ़ की कलेक्टरी संभाल चुके हैं। सुदामा पांडरीनाथ खांडे पहले हरदा में रहे फिर टीकमगढ़ और अब सीहोर में कलेक्टर हैं।
कुछ गिने-चुने चेहरों को कलेक्टरी से नवाजने के कारण नए ऊर्जावान अफसरों को मौका नहीं मिल रहा है वहीं कुछ वरिष्ठ अफसर इस उपेक्षा से नाराज और कुंठाग्रस्त हैं। आलम यह है कि अभी तक 2009 बैच के सीधी भर्ती वाले अफसरों को जिले में जाने का अवसर ही नहीं मिला है। इसका अर्थ यह हुआ कि इन अफसरों के पास न तजुर्बा है न जुगाड़Ó। वहीं कुछ अफसरों को नवाजने के कारण प्रशासनिक ढांचा भी बिगड़ गया। अब आईएएस के बड़े बैच आ रहे हैं। इससे पहले आधे प्रमोटियों और आधे सीधी भर्ती वालों को कलेक्टर बनाया जाता था लेकिन अब सभी जिलों में सीधी भर्ती वाले ही कलेक्टर बनेंगे। ऐसा होने से प्रमोटियों को मायूस होना पड़ेगा।
-कुमार राजेन्द्र