प्रशासन की चूक : पेटलावद विस्फोट
17-Sep-2015 06:13 AM 1234992

झाबुआ जिले के पेटलावद कस्बे की रंगरेज गली के कूचे में कुछ दिन पहले तक बच्चों के हंगामे और हुड़दंग की आवाजें गूंजती थीं। मगर आज मातम है... सिसकियां हैं, उन विधवाओं की जो अब भी पति के लौटने का इंतजार कर रही हैं। कुछ बच्चे हैं, जो समझ नहीं पा
रहे कि आखिर उनके पिता अभी तक क्यों नहीं लौटे? बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ा वृद्ध सब कुछ जानते हुए गम छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहा है। जानता है कि अब बेटा कभी नहीं लौटेगा। कस्बे में शायद ही ऐसा कोई इलाका हो, जहां गमी नहीं हुई हो। लोग बैठने नहीं गए हों। बात करने पर परिजन को यह भी नहीं सूझ रहा था कि क्या और कितना बताएं। किस-किस को बताएं। एक ही वाहिश कि बच्चों का भविष्य बन जाए। जिनके पति कम उम्र में ही चले गए हैं, उन बेवाओं को रोजगार मिल जाए। इन सबके बीच कुछ परिजन की आंखों में गुस्सा है। इसलिए कि आखिर क्यों किसी की करतूत की सजा निर्दोषों को मिली?
पेटलावद में डेटोनेटर और बारूद के धमाकों से लाशें बिछने के बाद अब सरकारी अफसर जिम्मेदारी और धमाकों की उस गूंज से बचने के जतन में लगे हैं, जो रह-रहकर सुनाई दे रही है। दिखाने के लिए केवल थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है। दबाव बनने पर  एसडीएम और एसडीओपी को पेटलावद से हटाकर इंदौर बुला लिया गया। फिर भी जवाबदेही किसी की तय नहीं हो पाई कि आखिर वे अफसर कौन हैं, जिनकी लापरवाही से इतना बड़ा हादसा हो गया।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दो दिनों तक प्रभावित लोगों के आंसू पोछते रहे। उन्होंने लोगों को राहत पहुंचाने के लिए न केवल खजाना खोल दिया बल्कि नौकरी तक देने की घोषणा कर डाली। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इससे उन लोगों की पीड़ा कम होगी, जिनके अपने इस विस्फोट में असमय कालकवलित हो गए हैं।  जिलेटिन की छड़ों से इतनी बड़ी दुर्घटना भारत में संभवत: पहली बार हुई है। इस हादसे के तमाम बारीक ब्योरे तो खैर जांच पूरी होने के बाद ही जनता के सामने आ पाएंगे लेकिन जिस तरह से यह दुर्घटना घटी है, उसमें प्रशासनिक लापरवाही और ढिलाई साफ-साफ दिखाई दे रही है। जिस धमाके की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी हो और आईबी और एनआईए की टीमें विस्फोट के कुछ ही समय बाद घटनास्थल पर मुआयना करने जा पहुंची हों, उसकी बू स्थानीय प्रशासन तक इससे काफी पहले ही भला क्यों नहीं पहुंच सकी थी?
झाबुआ जिले के पेटलावद कस्बे के
बीचों-बीच इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक रखे गए, तो उसे आपराधिक लापरवाही,मिलीभगत के अलावा कुछ और नहीं कहा जा सकता। यह सच है तो इसे अविश्वसनीय ही माना जाएगा कि इसकी भनक मकान मालिक, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं लगी। वहां विस्फोटक रखे गए, क्या इस बारे में स्थानीय और जिला प्रशासन को वाकई खबर नहीं थी? क्या यह भी मालूम नहीं था कि गोदाम का मालिक विस्फोटकों से संबंधित धंधा करता है? बिना अनुमति के विस्फोटक रखे गए और प्रशासन को इसकी सूचना नहीं मिली, तो इससे उसकी अक्षमता ही जाहिर होती है। अगर अधिकारियों को विस्फोटकों की जानकारी थी और उन्होंने कानूनन जरूरी कदम नहीं उठाए, तो फिर तकरीबन 90 मौतों और 40 से अधिक लोगों के जख्मी होने के लिए वे भी समान रूप से दोषी माने जाएंगे।
रासायनिक खाद में इस्तेमाल होने वाले अमोनियम नाइट्रेट का उपयोग विस्फोटक बनाने में हो रहा है, यह शिकायत आम है। इसीलिए इसकी खुली खरीद-बिक्री पर प्रतिबंध है। पत्थर तोडऩे और कुछ खदानों में इसका उपयोग विस्फोट के लिए होता है, लेकिन इसके लिए बाकायदा लाइसेंस लेने पड़ते हैं। खबरों के मुताबिक जिस गोदाम में विस्फोटक थे, उसके ही अगले हिस्से में अमोनियम नाइट्रेट के बोरे मिले हैं। विस्फोट से उठी लपटें अमोनियम नाइट्रेट के संपर्क में आईं, जिससे धमाका और भी घातक हो गया। गोदाम के बगल में रेस्तरां था, जिसमें काफी लोग मौजूद थे। आसपास भीड़ थी। इस कारण हताहतों की सं या अत्यधिक हो गई। इस आरोप से मामला और भी संगीन हो गया है कि गोदाम का मालिक सत्ताधारी दल से जुड़ा है। क्या प्रशासन ने इस वजह से निगरानी में नरमी बरती? अथवा भ्रष्टाचार के कारण ऐसा हुआ? मुख्यमंत्री ने भरोसा दिया है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। जरूरत इस आश्वासन को पूरा करने की दिशा में शीघ्र कदम उठाने की है।
अब सफाई के तौर पर प्रशासन द्वारा बताया जा रहा है कि अपने दुकान के गोदाम में जिलेटिन की छड़ें रखने वाले व्यक्ति के पास बाकायदा इसका लाइसेंस था। हालांकि पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पेसो) का कहना है कि उसके पास ऐसा कोई लाइसेंस नहीं था। जो भी हो, सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि पेटलावद के सबसे व्यस्त इलाके में, चहल-पहल भरे बस स्टैंड और रेस्तरां के समीप स्थित इमारत में इतने बड़े पैमाने पर शक्तिशाली विस्फोटक रखने की अनुमति किसने दी थी? सबसे बड़ी बात यह है कि  कलेक्टर तक को इसकी भनक नहीं लगी। जबकि कलेक्टर हर सप्ताह टीएल बैठक करती हैं  इस दौरान विभिन्न तरह की व्यवस्थाओं-अव्यवस्थाओं और आवश्यकताओं पर चर्चा होती है, लेकिन किसी भी बैठक में अधिकारियों ने कलेक्टर अरुणा गुप्ता को इसकी जानकारी नहीं दी। लाइसेंस होना या ना होना तो दीगर सवाल है, क्योंकि लाइसेंस होने पर भी इस तरह की किसी हरकत की इजाजत नहीं थी। यह न केवल सरासर नियमों का उल्लंघन है, बल्कि लोगों की जिंदगी को अनजाने ही बारूद का बंधक बना देना भी है। इस तरह के लाइसेंसों में स्पष्ट उल्लेख होता है कि लाइसेंसधारक व्यक्ति जिलेटिन की छड़ों, डेटोनेटर जैसे विस्फोटकों को शहर की आबादी से दूर किसी सुनसान मैदान में लोहे के बक्सों में सुरक्षित रूप से रखेगा और वहां पर खतरे का समुचित संकेत चिह्न भी लगाएगा। इन घातक विस्फोटकों का गलत इस्तेमाल न हो और कहीं ये गलत हाथों में न पड़ जाएं, इसके लिए इनकी निरंतर चौकसी भी जरूरी है। जाहिर है कि यह जिम्मेदारी उस लाइसेंसधारी व्यक्ति के साथ ही स्थानीय प्रशासन और खासतौर पर पुलिस और खनिज विभाग की भी होती है। सवाल यह भी उठता है कि प्रशासन की एक गड़बड़ी से 15 हजार की आबादी वाले पेटलावद में एक सैंकड़ा लोग मौत की नींद सो जाते हैं अगर यह हादसा भोपाल में होता तो क्या स्थिति रहती। यहां तो 25-30 मंजिला इमारत बनाने की मंजूरी दी जा रही है।
यही नहीं विभिन्न प्रकार के विस्फोटकों के उपयोग को नियमित करने और उन पर निगरानी रखने के लिए देश में कई तरह के नियम और अधिनयम लागू हैं। पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन को इन अधिनयमों के अंतर्गत आग और विस्फोटों से लोगों और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मिली हुई है। कागजों पर ये सारे नियम और कानून अच्छी तरह से परिभाषित भी हैं। इसके बावजूद लापरवाही की इंतेहा और नाकारापन का आलम है कि रिहायशी क्षेत्रों में पटाखों की दुकानें संचालित होती रहती हैं और जिलेटिन छड़ों से गोदाम भरे रहते हैं। यदा-कदा उनमें आगजनी या अन्य कारणों से होने वाला धमाका कई लोगों की जान लेने का कारण बन जाता है। पेटलावद का हादसा न सिर्फ झाबुआ या मध्यप्रदेश, बल्कि पूरे भारत के लिए एक बड़ा सबक है। इस दुर्घटना की समुचित जांच के बाद अब हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे हादसे दोबारा न हों।

हादसे कितने भी बड़े,
सजा किसी को नहीं
अनूपपुर: अमरकंट में क्रेन से कुचल गए 6 लोग मरे। किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं।
खरगोन: मेनगांव थाने के ग्राम अवरकच्छ में गैस सिलेंडर फटने से हुई 9 मौते। खाद्य आपूर्ति विभाग की जांच में सेंधवा निवासी कालू मुख्य आरोपी माना गया। आरोपी जमानत पर। मामला कोर्ट में।
उज्जैन: 3 मई 2014 को बडऩगर की पटाखा फैक्टरी ने ली 17 लोगों की जान। आरोपी जमानत पर। मामला विचाराधीन।
रतनगढ़: 13 अक्टूबर 2013 को भगदड़ में 115 की मौत, 171 घायल। दतिया कलेक्टर संकेत भोंडवे व एसपी चन्द्रशेखर सोलंकी को निलंबित कर दिया गया था, जो बाद में बहाल हो गए। एसएएफ व पुलिस जवान दोषी।
नरसिंहपुर: जिले के गाडरवारा में 22 अगस्त 2013 को कचरे के पहाड़ में दफन हो गई 12 जाने। सजा किसी को नहीं।
रीवा: 4 फरवरी 2013 को राइस मिल की दीवार गिरी, 10 की मौत। आरोपी जमानत पर, केस कोर्ट में।
भोपाल: अरेरा कॉलोनी में 18 नवंबर 2012 को पानी की टंकी ढहने से सात मरे। पुलिस ने केस बंद किया।
दतिया: 4 अक्टूबर 06 को सिंध नदी के रास्ते जवारे लेकर रतनगढ़ मंदिर जा रहे 53 श्रद्धालु जलस्तर बढऩे से डूब गए थे। सजा किसी को नहीं।
देवास: 7 अप्रैल 2005 की रात इंदिरासागर बांध से छोड़े गए पानी के तेज बहाव के कारण धाराजी घाट पर 71 लोगों की मौत हो गई थी। सजा अभी तक तो नहीं।
खंडवा: ओंकारेश्वर के पुल पर 19 जुलाई 1993 को सोमवती अमावस्या पर भगदड़ मचने के बाद 20 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। सजा किसी को नहीं।
पन्ना:  4 मई 2015 को अजयगढ़ घाटी में बस पुलिया से नीचे गिरी और उसमें आग लग गई।  21 लोग जलकर मर गए। सजा अभी नहीं।
-सुनील सिंह

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