नटवरलाल बनी नटरॉक्सÓ
17-Sep-2015 05:58 AM 1234820

एक तरफ तो मध्यप्रदेश सरकार उद्योग को बढ़ावा देने के नाम पर इन्वेटर्स मीट का आयोजन कर निवेश के लिए जुनून की हद तक प्रयास कर रही है वही दूसरी तरफ सरकारी लालफीताशाही के कारण कई प्रोजेक्ट 5-5 वर्षों से लटक रहे हैं और सरकार की जेब को चपत लगने का खतरा उत्पन्न हो गया है। इन्हीं में से एक प्रदेश के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में खुलने वाली डिजिटल ऑटो परीक्षण परियोजना के खटाई में पडऩे के कारण मध्यप्रदेश सरकार पर तीन हजार करोड़ रुपये का वित्तीय भार पड़ सकता है। नटरॉक्स (ठ्ठड्डह्लह्म्ड्ड3) परियोजना नाम से स्थापित होने वाली इस विशाल ईकाइ में ऑटोमोबाइल्स उद्योग के उत्पादों का परीक्षण करने के लिए ऑटो ट्रेक से लेकर तमाम तरह की लैब और परीक्षण इकाईयां स्थापित की जानी थी।
दरअसल कोई भी वाहन जब बाजार में आता है तो उसका परीक्षण इसी तरह की इकाईयों मेें किया जाता है। यहां पर बने विशाल ट्रेक्स में बे्रक की दक्षता, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इन्टरफेरेन्स, स्टीयरिंग की दक्षता, आवाज, स्पीडोमीटर कैलिबरेशन, अधिकतम गति, ग्रेडेबिलिटी, ईधन खपत, एयरबैग टेस्टिंग, एन्टीलॉक ब्रेकिंग प्रणाली का परीक्षण किया जाता है। दुनिया भर के ऑटो उद्योग के लिए इस तरह की इकाईयां न केवल अनिवार्य हैं बल्कि इन्हें स्थापित करने वाले स्थान के आसपास इनसे जुड़े कई छोटे उद्योग-धंधों के पनपने की संभावना भी रहती है। संभवत: इसी वजह से मध्यप्रदेश सरकार ने अगस्त 2005 में इस परियोजना के लिए 1669 हैक्टेयर जमीन उपलब्ध कराई थी। उस समय 1718 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना में नटरॉक्स की स्थापना पर 450 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। यह भी अभिकल्पना थी कि एक बार विकसित हो जाने के बाद यह प्रोजेक्ट ऑटो उद्योग से अतिरिक्त निवेश पाने में सफल रहेगा लेकिन इस महत्वकांक्षी परियोजना को पूरा करने में हुई 5 वर्ष की देरी ने अब मध्यप्रदेश सरकार को तीन हजार करोड़ रुपये के घाटे की कगार पर खड़ा कर दिया है। परियोजना पर राज्य सरकार ने 351 करोड़ रुपये (भूमि अधिग्रहण पर) पहले ही खर्च कर दिये हैं किंतु 4143 एकड़ जमीन के कुछ हिस्से में ही काम हो पाया है बाकी हिस्सा खाली और बेकार पड़ा हुआ है। दिनों-दिन होती देरी के कारण राज्य सरकार के हाथ-पैर फूल रहे हैं क्योंकि जिन किसानों और भू मालिकों की जमीन का अधिग्रहण राज्य सरकार ने किया था वे कोर्ट की शरण में जा चुके हैं। जिला अदालत ने सरकार से गैर सिंचित भूमि के लिए 30 लाख 57 हजार और सिंचित भूमि के लिए 48 लाख 92 हजार प्रति हैक्टेयर की दर से राशि उन किसानों को देने का कहा है जिनकी जमींने अधिकृत की गई हैं। ये जमीने जिनका आकार 1412 हैक्टेयर के करीब है 10 गांवों की कृषि भूमि है जिनसे 160 परिवारों को विस्थापित भी किया गया है। 256.3 हैक्टेयर जमीन सरकारी है।
कुल मिलाकर 615.91 करोड़ रुपये 1014.55 हैक्टेयर सिंचित और 390.87 हैक्टेयर गैर सिंचित भूमि के लिए कोर्ट के आदेश के बाद देने थे। लेकिन किसानों ने इस हर्जाने की रकम से असहमति जताते हुए इंदौर में हाईकोर्ट की बैंच में अपील कर दी। इसके बाद हाईकोर्ट ने सिंचित भूमि के लिए 1 करोड़ 4 लाख और असिंचित भूमि के लिए 69 लाख 89 हजार प्रति हैक्टेयर की दर से हर्जाना देने का आदेश दिया है। इसका अर्थ यह हुआ कि मध्यप्रदेश सरकार को  1336 करोड़ 88 लाख रुपये का हर्जाना किसानों को देना होगा। यही नहीं यदि भूमि अधिग्रहण,  पुर्नवास और पुर्नस्थापन अधिनियम 2013 का पालन किया गया तो प्रोजेक्ट पाँच वर्ष तक अपूर्ण रहने की स्थिति में जमीनों को उनके वास्तविक मालिकों को लौटाना होगा। मतलब दोहरा घाटा। मध्यप्रदेश के उद्योग विभाग के सूत्रों का कहना है कि 90 प्रतिशत जमीन अनुपयोगी पड़ी हुई है। यदि इस पर काम प्रारंभ हुआ तो अगले तीन वर्ष काम पूर्ण होने में लगेंगे। इस प्रकार 5 वर्ष तो यूं ही बीत जायेंगे। उद्योग विभाग की आयुक्त वी.एल. कान्ताराव कहती हैं कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह मुकदमा हारती है तो यह एक बड़ी लायबिलिटी साबित होगी। यदि नाटरॉक्स जमीन वापस लौटा दे तो कम से कम उस जमीन पर नई औद्योगिक इकाईयां डालकर कुछ पैसा कमाया जा सकता है। खास बात यह है कि यह जमीन मध्यप्रदेश सरकार ने उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति के तहत मात्र 100 रुपये में नटरॉक्स को मुहैया कराई थी और अब इन सातों परियोजनाओं की लागत बढ़कर 3827.30 करोड़ रुपये तक पहुँच चुकी है। जहां तक केन्द्र सरकार का प्रश्न है वहां कछुआ चाल से काम हो रहा है। इंदौर का पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट के निर्माण के लिए एशिया के डेट्रोइट नाम से विख्यात है। पीथमपुर इलाके में फोर्ड मोटर्स और आयशर जैसी कंपनियों ने भी इकाईयां स्थापित की हुई हैं। इस तरह के 6 प्रोजेक्ट सारे देश में लगने थे। पीथमपुर प्रोजेक्ट वर्ष 2010 में ही पूरा होना था लेकिन 5 साल निकल चुके हैं एक कदम भी आगे नहीं बढ़े। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केन्द्रीय भारी उद्योग मंत्री अनंत गीते से इस वर्ष जून में मुलाकात करके 1669 हैक्टेयर में से 1125 एकड़ जमीन लौटाने की मांग की थी।  नटरॉक्स के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि केन्द्रिय भारी उद्योग मंत्रालय ने अतिरिक्त हर्जाने से संबंधित मामले की पड़ताल के लिए एक समिति नियुक्त की है। इस समिति ने राज्य सरकार को 1125 एकड़ अनुपयोगी जमीन लौटाने की अनुशंसा की है। यह प्रस्ताव केन्द्रीय कैबिनेट के समक्ष अनुमोदन के लिए लंबित है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस परियोजना की गति बढ़ाने का निवेदन भी किया है। परियोजना में 700 लोगों को सीधे रोजगार मिलेगा। पीथमपुर के अलावा चेन्नई, मनेसर, सिलचर, अराई, रायबरेली और अहमद नगर में भी इसी तरह के प्रोजेक्ट खुलने हैं।
सवाल यह है कि यदि सरकार को जमीन लौटानी पड़ी तो जो भी खर्च हुआ है उसकी जिम्मेदारी किसके माथे आयेगी। मध्यप्रदेश में कई औद्योगिक घरानों ने भी बड़ी क्षेत्रफल की जमीने ले रखी हैं जिन्हें अब वापस लौटाया जा रहा है। सरकार इनवेस्टर्स मीट कराती है, लाखों करोड़ रुपये के एमओयू पर दस्तखत किये जाते हैं, लेकिन ढाक के वही तीन पात। जमीन पर कहीं भी काम होता दिखाई नहीं पड़ता। यही हाल रहा तो मध्यप्रदेश देश के औद्योगिक नक्शे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल नहीं हो सकेगा। 
-कुमार शैलेष

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