आखिर क्या मजबूरी है, तिवारी का आवेदन लेना जरूरी है
01-Sep-2015 07:25 AM 1234964

उद्यमिता प्रशिक्षण संस्थान (सेडमैप) की बदनामी और गड़बडिय़ों के मुख्य सूत्रधार रहे पूर्व कार्यकारी संचालक रहे जितेंद्र तिवारी के रसूख के आगे उद्योग विभाग पूरी तरह नतमस्तक हो गया है। तिवारी

का सरकार पर कितना प्रभाव है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोकायुक्त पुलिस ने भी तिवारी के घर छापा डाला और उसमें करोड़ों रुपए की संपत्ति मिली। फिर भी तिवारी को लेने के लिए 26 अगस्त को ईडी का इंटरव्यू टाल दिया गया। यही नहीं मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं की तर्ज पर उद्योग विभाग के आयुक्त और सेडमैप के प्रभारी ईडी वीएल कांताराव ने ईडी के लिए होने वाले इंटरव्यू में तिवारी का आवेदन भी गवर्निंग बॉडी के समक्ष प्रस्तुत कर दिया है। खास बात यह है कि यह वही तिवारी है, जिसके ईडी रहते उसके खिलाफ सैकड़ों शिकायतें हैं और लोकायुक्त ने भी उसके खिलाफ आय से अधिक मामले में छापामार कार्रवाई कर प्रथम दृष्टया मामला दर्ज किया है। उघोग विभाग के आयुक्त कांताराव का तर्क है कि तिवारी ने लोकायुक्त की कार्रवाई को गलत बताने के लिए हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी दी है। हमारे पास कोर्ट का आदेश आया है, जिसके आधार पर उनका आवेदन गवर्निंग बॉडी के सामने रखा गया है। गवर्निंग बॉडी पहले तिवारी के आवेदन पर विचार करेगी। इसके बाद ही इंटरव्यू की तारीख तय होगी। जब अक्स ने हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि उसमें कहा कि उसमें इसका कही भी उल्लेख नहीं है कि तिवारी का आवेदन लिया जाए तो कांताराव भड़क जाते हैं और कहते हैं कि आपके पास कौन सा आदेश है वह मुझे नहीं मालुम। मेरे पास हाईकोर्ट का जो आदेश आया है उसके आधार पर उनका आवेदन गवर्निंग बॉडी के सामने प्रस्तुत किया गया है। अब हो सकता है तिवारी को साक्षात्कार के लिए भी बुलाया जाए। ऐसे में सवाल उठता है कि तिवारी की करतूतों को जानते हुए भी उद्योग विभाग मौन क्यों है? विभाग ने तिवारी के खिलाफ कोर्ट में अर्जी क्यों नहीं दी?

 

पहले तो विचार इस बात पर किया जाना चाहिए की तिवारी को लोकसेवक माने या न माने। जबरदस्ती की जेहाद इस पर छिड़ी है। जिस व्यक्ति और उसके भ्रष्टाचार को लेकर  विधानसभा में सवाल उठ चुके हैं, सेडमैप के अधिकारी अन्य विभागों में प्रतिनियुक्ति पर भेजे जाते हैं, सेडमैप के बोर्ड में प्रमुख सचिव से लेकर कई अधिकारी शामिल किए जा रहे हैं, फिर सरकार को इसमे भ्रांति क्या है कि तिवारी लोकसेवक नहीं है। पीसी एक्स 1988 में भी साफ तौर पर कहां गया है कि कोई भी व्यक्ति जो केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा मिलने वाले अनुदान से लाभ प्राप्त करता है वह लोकसेवक की श्रेणी में आता है। (ड्डठ्ठ4 श्चद्गह्म्ह्यशठ्ठ द्बठ्ठ ह्लद्धद्ग ह्यद्गह्म्1द्बष्द्ग शह्म् श्चड्ड4 शद्घ ड्ड ष्शह्म्श्चशह्म्ड्डह्लद्बशठ्ठ द्गह्यह्लड्डड्ढद्यद्बह्यद्धद्गस्र ड्ढ4 शह्म् ह्वठ्ठस्रद्गह्म् ड्ड ष्टद्गठ्ठह्लह्म्ड्डद्य, क्कह्म्श1द्बठ्ठष्द्बड्डद्य शह्म् स्ह्लड्डह्लद्ग ्रष्ह्ल, शह्म् ड्डठ्ठ ड्डह्वह्लद्धशह्म्द्बह्ल4 शह्म् ड्ड ड्ढशस्र4 श2ठ्ठद्गस्र शह्म् ष्शठ्ठह्लह्म्शद्यद्यद्गस्र शह्म् ड्डद्बस्रद्गस्र ड्ढ4 ह्लद्धद्ग त्रश1द्गह्म्ठ्ठद्वद्गठ्ठह्ल शह्म् ड्ड त्रश1द्गह्म्ठ्ठद्वद्गठ्ठह्ल ष्शद्वश्चड्डठ्ठ4 ड्डह्य स्रद्गद्घद्बठ्ठद्गस्र द्बठ्ठ ह्यद्गष्ह्लद्बशठ्ठ ६१७ शद्घ ह्लद्धद्ग ष्टशद्वश्चड्डठ्ठद्बद्गह्य ्रष्ह्ल,१९५६ ) दरअसल,तिवारी सरकार के लिए नासूर बन गए हैं।  यही कारण है कि एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि भ्रष्टाचारियों की जेल में जगह है वहीं दूसरी तरफ तिवारी जैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि सेडमैप के स्वयंभू रहे तिवारी का भ्रष्टाचार क्या उन्हें दिख नहीं रहा है। वह उद्योग विभाग के अफसरों से क्यों नहीं कह पा रहे हैं कि कोर्ट में जाओ और ठीक से जवाब दो जिससे शासन की छवि खराब हो रही है। ऐसे में दाल में कुछ काला दिखता है। आखिर ऐसी क्या वजह है कि तिवारी से अधिकारी चमक रहे हैं? तिवारी के बारे में बात करने पर जवाबदार अधिकारियों की चेहरे की चमक चली जाती है। वहीं उद्योग मंत्री को इस पूरे मामले से अलग-थलग रखा गया है। मंत्री बार-बार विभाग और मुख्य सचिवों को नोटशीट लिखती हैं कि तिवारी के बारे में हकीकत बताओं परंतु अंधा-गूंगा और बहरा विभाग कुछ भी बताने को तैयार नहीं है। वहीं मुख्य सचिव ने तल्ख अंदाज में खराब प्रदर्शन के कारण कमजोर हो रहे केस के बारे में प्रमुख सचिवों को जवाबदारी निश्चित करने को कहा है। उसमें उन्होंने उद्योग विभाग के  प्रकरणों की संख्या पर हाईकोर्ट में लापरवाही बर्तादश्त न करना की भी हिदायत दी है।

-सुनील सिंह

 

देख भाई देख...

पहले एक, फिर दो, फिर तीन.... इस तरह बढ़ते-बढ़ते इन टेन्टों की संख्या दस पार कर चुकी है। यह है हबीबगंज रेलवे स्टेशन से हबीबगंज नाके की तरफ जाने वाली मुख्य छ: लेन बीआरटीएस सड़क। सड़क पर बेतरतीब बढ़ते हुए अस्थायी टेन्ट। इन टेन्टों की संख्या धीरे-धीरे कर बढ़ती जा रही है और नाके से शुरू होकर हबीबगंज रेलवे स्टेशन तक पहुंच चुकी है लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है।

इन टेन्टों में रहने वाले परिवार के छोटे बच्चे मुख्य सड़क पर खेलते हुए आ जाते हैं जिससे हर समय किसी बड़ी दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है। वहीं सड़क किनारे ही शौच एवं स्नान की भी सारी व्यवस्था जमा ली गई है जिससे सर्वत्र गंदगी फैल रही है। पिछले दिनों भोपाल में स्मार्ट सिटी कान्क्लेव का आयोजन किया गया जिसमें देश-विदेश के विशेषज्ञों के साथ मंथन के नाम पर नगर निगम भोपाल ने लाखों रुपये खर्च कर दिये। एक तरफ भोपाल शहर को सुन्दर बनाने के लिये शासन आम लोगों से वसूले गये टैक्स के करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है दूसरी तरफ बुनियादी स्तर के जिम्मेदार अफसरों के सामने ही अतिक्रमण हो रहा है। हबीबगंज रोड पर बनी पॉश कॉलोनियों विद्या नगर, दानिश नगर, गोल्डन सिटी आदि जाने का रास्ता हबीबगंज नाके से ही जाता है। जहां से सुबह और शाम शासन में कार्यरत कई अधिकारी एवं शहर का प्रबुद्ध वर्ग का गुजरना होता है, फिर भी यह अस्थायी टेन्टों की संख्या लगातार बढ़ रही है। नाके के पास ही कई वर्षों से शराब की दुकान का संचालन होता है जिससे नाके के आसपास पहले ही असमाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है। किसी भी दिन शाम के समय हबीबगंज नाके की तरफ जाकर देखेंगे तो अव्यवस्थाओं का अम्बार देखने को मिलेगा। हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर निकलने के बाद पहले टेन्टों और उनसे उपजी हुई गन्दगी, फिर नाके पर पहुंचने से पहले रोड पर बड़े-बड़े गड्ढे जो पिछले कई वर्षों से ठीक से बनाए नहीं गए हैं सिर्फ मुरम और गिट्टी डालकर पेंच वर्क कर दिया जाता है। गणेश मंदिर के सामने से बीआरटीएस एवं मिनी बसें वापसी करती हैं, जहां शाम के वक्त रोज जाम लगता है। जिससे ट्रॉफिक की आवाजाही में भारी परेशानी होती है। क्योंकि सब देखकर भी अनदेखा करते हैं। जिम्मेदार अफसरों द्वारा समय पर त्वरित कार्रवाई कर इन टेन्टों को बढऩे से नहीं रोका गया तो गंदगी के साथ ही किसी अप्रिय घटना के होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। वैसे ही भोपाल शहर में पिछले कुछ दिनों से चोरी, नकबजनी, अपहरण एवं डकैती की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

प्रथेप नायर

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