12-Sep-2015 05:29 AM
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विचार वर्कशॉप
छोटे कद के प्रधानमंत्री शास्त्री के राजनीतिक संकल्प का उचित ढंग से आभार नहीं व्यक्त किया गया है। पंजाब प्रांत में पाकिस्तान के खिलाफ दूसरा मोर्चा खोलने के उनके फैसले ने दुश्मन को हतप्रभ कर दिया था, क्योंकि उसने सोचा था कि भारत जम्मू-कश्मीर में रक्षात्मक संघर्ष करता रह जाएगा। इसलिए भारत के लिए 1965 की प्रमुख सामरिक सीख यही थी कि जम्मू-कश्मीर पर किसी भी तरह का हमला भारत के खिलाफ हमला माना जाएगा और भारत अपनी इच्छा के अनुरूप, सही समय और उपयुक्त स्थान पर इसका उत्तर देगा। भारत के हमलावर रुख ने शास्त्री सिद्धांत के रूप में जन्म लिया। दूसरी तरफ, भारत का उच्चतर राष्ट्रीय सुरक्षा प्रबंधन काफी हद तक अपर्याप्त रहा।
-सी.उदयभास्कर
भी-कभी मातृभाषा के विद्यालयों, शिक्षकों के स्तर को घटिया सिद्ध करके का एक अभियान-सा कुछ अखबार व मीडिया का एक वर्ग चलाता रहता है। मीडिया को जैसे रात को सपना आता है कि हिन्दी माध्यम के विद्यालयों की खबर ली जाए और वे खबर देने लगते हैं। यह कार्पोरेट प्रायोजित होता है जो ऊपर से समझ में आता नहीं है। अब ऐसा भी नहीं कि मातृभाषा के किसी या कुछ शिक्षकों को प्रदेश के राज्यपाल मुख्यमंत्री के नाम तक न मालूम हों। वैसे अगर ऐसा है तो अपवाद है- एकाध जज, एकाध मंत्री, एकाध नेता, एकाध अधिकारी, एकाध मुख्यमंत्री भी तो अपवाद होते हैं जो अपनी टिप्पणी, अपने आचरण, अपने व्यवहार के लिए चर्चित हो जाते हैं। 
-प्रभाकर चौबे
पिछले चार दशक से अमरीकी अर्थ व्यवस्था के दुनिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के कारण अमरीकी अर्थव्यवस्था तथा वहां की सरकार के मौद्रिक व वित्तीय नीतिगत उपायो से दुनिया के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होती रही हैं। अब संयुक्त राज्य अमरीका के साथ ही चीन का नाम भी जुड़ गया है जो दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। चीन हाल ही में दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकर्ता देश के रूप में उभरा है तथा विदेशी व्यापार में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है। इसलिए अब चीनी अर्थव्यवस्था में उतार चढ़ाव एवं वहां की वित्तीय नीतियों अन्य देश भी प्रभावित होने लगे हैं । 
-डॉ. हनुमंत यादव
कोई भी तिरंगा बुनते हुए और जन गण मनÓ गाते हुए जन्म नहीं लेता। हम सब कभी उस चरण में पहुंचते हैं, अपने-अपने अस्त-व्यस्त तरीकों से। यह समझने की कोशिश करते हुए कि इस अद्भुत राष्ट्र ने इतनी सदियों तक खुद को एकजुट कैसे रखा। भारतीय होने का मतलब कोई खास भाषा बोलने की योग्यता नहीं है, फिर चाहे हम में से कुछ लोग ऐसा सोचते हैं। यह उन देवाताओं के बारे में नहीं है, जिनकी हम पूजा करते हैं या उन परंपराओं की भी नहीं हैं, जो हमें विरासत में मिली है। इसका संबंध हमारी रगों में बहती गहरी देशभक्ति के उत्साह से भी नहीं है। लोगों में भारतीय होने के अर्थ की परवाह कम होती जा रही है।
-प्रीतिश नंदी
मान लिया जाता है कि हिंदू धर्म में होने मात्र से कोई पुरुष पत्नी के जीवित रहते एक ही ब्याह करता है, एक या दो ही बच्चे पैदा करता है। सिख, जैन, बौद्ध धर्मावलंबियों को हिंदू जीवन-संस्कृति के इस सर्व-सामान्यÓ का सहज भागीदार माना जाता है, जबकि मुस्लिमों को शादी, तलाक या उत्तराधिकार आदि के मामलों में शरीअत आधारित विधि-निषेध पर आचरण करने वाला मानकर एक विचलन ठहराया जाता है। विचलन की पुष्टि में चार शादियों और तीन तलाक के चलन के किस्से सुनाए जाते हैं। इस किस्से के साझीदार कहते मिल जाएंगे कि मुस्लिम आबादी की बढ़वार उनके आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन की निशानी है।
-चंदन श्रीवास्तव
हम कांग्रेस ने कियाÓ या भाजपा ने कियाÓ जैसी बातों में आसानी से आ जाते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि हम सब मिलकर एक राष्ट्र हैं। इसमें भाजपा बिलÓ या कांग्रेस बिलÓ जैसी बात नहीं है। भारत के लिए अच्छा बिल या भारत के लिए खराब बिल जरूर हो सकता है। विवादों पर पहले सफाई न देने के लिए हमें भाजपा को फटकार लगानी चाहिए और कांग्रेस की भी आलोचना करनी चाहिए कि उसने काम के ऊपर राजनीति को तरजीह दी। मेरे नेता हमेशा सही हैं, विपक्ष के हमेशा गलतÓ यह स्थायी मुद्रा बहुत घातक है। ट्विटर पर हो या संसद में धु्रवीकरण हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा। हमें मिल-जुलकर समस्याओं के समाधान खोजने हैं।
-चेतन भगत
आजादी के बाद से लेकर 1998 तक कार्यपालिका की नियुक्ति में अहम भूमिका रही है। उसी व्यवस्था ने इंदिरा के निर्वाचन को भी अवैध ठहराया था और आम आदमी को मुकदमे लडऩे में इतनी अधिक फीस नहीं देनी होती थी। अब गरीब अपना शरीर भी बेच दे तो भी बड़े वकीलों की फीस नहीं दे सकता। एनजेएस 6 लोगों की होगी जिसका नेतृत्व भारत के मुख्य न्यायाधीश करेंगे। इसमें दो जज, कानून मंत्री और दो प्रबुद्ध नागरिक होंगे। कुछ लोग कह रहे हैं कि इससे नियुक्ति में राजनीतिक प्रभाव बढ़ जाएगा। दुनिया के किसी लोकतंत्र में जज की नियुक्ति जज के हाथ में नहीं है। यह अनोखी व्यवस्था भारत में ही है।
-उदित राज
आज आरक्षण को एक बुनियादी अधिकार के तौर पर देखा जाने लगा है, न कि इस रूप में कि यह सामाजिक और आर्थिक रूप से विपन्न ऐसे तबकों को मुख्यधारा में लाने की व्यवस्था है जो जाति विशेष का होने के कारण शोषण और उपेक्षा का शिकार हुए। आरक्षण की मांग इसके बावजूद बढ़ती जा रही है कि सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित हो रही है। भले ही गुजरात में पटेल समुदाय की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत के आसपास हो, लेकिन वह सामाजिक-आर्थिक और साथ ही राजनीतिक रूप से भी सक्षम है। ऐसा तबका अतार्किक बातें करने वाले 22 साल के हार्दिक पटेल के नेतृत्व में आरक्षण की मांग के लिए इतना आक्रामक क्यों हो गया?
-संजय गुप्त