यौन लीला भूमि बने माओवादियों के शिविर
05-Sep-2015 05:31 AM 1234869

यौन लीला भूमि बने माओवादियों के शिविर 

अपनी लड़ाई को जनांदोलन का रूप देने के लिए नक्सलियों ने यह तय किया था कि संगठन में महिलाओं की 40 प्रतिशत भागीदारी रहेगी। इस पर अमल भी किया गया। जोशो-खरोश से महिलाएं शामिल भी हुईं पर सामाजिक लड़ाई में सहभागी बनाने के बजाय उनकी इज्जत से ही खेल शुरू हो गया। अब इस खूनी आंदोलन में शरीक महिला नक्सली संगठन छोड़ कर भाग रही हैं, या फिर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर रही हैं। समाज को बदल देने का सपना अब उनकी आंखों में नहीं पलता। माओवादियों द्वारा महिलाओं पर दुराचार की घटनाओं में एक और नया अध्याय  झारखंड में लिखा गया है जहां एक दिन दो लड़कियां रामगढ़ में अचानक प्रकट हुई, और एक निजी नर्सिंग होम के डॉक्टर के पास जाकर पेट दर्द की शिकायत की। एक लड़की की उम्र 16 साल, एक की 20 साल थी। पूछताछ करने पर पता चला कि बहमुनी कुमारी (पिता शिकारी मूर्मू, गांव-जम्बुयाबेरा, थाना-गोमिया, बोकारो, झारखंड) तथा उसके साथी, माओवादी कैडर थीं। बहमुनी कुमारी और उनकी साथी पूजा को लम्बे समय से माओवादी नेता संतोष द्वारा यौन हवस का शिकार बनाया जा रहा था। संतोष तथा सपन टुडु द्वारा लगातार बलात्कार के कारण बहमुनी गर्भवती हो गई और उसका गर्भ गिराना पड़ा।

बहमुनी ने आगे बताया कि माओवादी कैम्प यौन लीलाभूमि बन चुके हैं और लगभग 20 लड़कियां जिन्हें माओवादियों द्वारा उनके गांवों से बहला फुसलाकर लाया गया है, इस दरिन्दगी को झेलने पर मजबूर हैं। इस घटना ने एक ओर जहाँ माओवादियों के दरिन्दे चेहरे को पुन: उजागर किया वहीं दूसरी ओर हमें माओवादियों के पुराने कारनामों को भी याद दिला दी। सारांडा की लिम्बू बोडरा, जंगलमहल की शोभा मांडी, सविता उर्फ उषा मुंडा (नयागढ़ हमले की नेत्री-ओडि़सा), गीता उर्फ सोनी मूर्मू आदि (बिहार) सभी माओवादियों के हवस की शिकार बनीं। सव्यसाची पांडा ने गणपति को लिखे पत्र में भी पार्टी में इस विचलन का जिक्र किया था। इसलिए इसे दुश्मनों का प्रचार कहने से काम नहीं चलेगा। बहमुनी कुमारी और उनकी साथी पूजा को रामगढ़ से रांची (रिम्स) ले जाया गया जहाँ उनकी जाँच विस्तार से की गई। उनके शरीर पर यौन उत्पीडऩ के निशान मिले। इससे प्रमाणित हुआ कि बहमुनी और उनकी साथी सच बोल रही थी। बहमुनी और उनकी साथी ने बताया उन्हें शादी का लालच दिया गया था। जो लोगों को सामाजिक बदलाव के सपने दिखाते हैं और जो उन सपनों में यकीन करते हैं, वे इस घटना से सबक लेंगे, ऐसी उम्मीद की जाती है। आँख रहते जो अंधे हैं, उन पर यह बात लागू नहीं होती।

वैसे माओवादियों का लोकयुद्ध का सिद्धांत अब किस सड़ांध तक पहुंच चुका है, उसका अंदाजा भी पाठकों को मिल ही रहा होगा। आई जी (बोकारो) तदाशा मिश्र ने इन लड़कियों को सरकार से सहायता दिलाने का आश्वासन दिया। 20 कैद लड़कियों को भी झारखंड पुलिस मुक्त करायेगी। रामगढ़ वाली घटना (बहमुनि कुमारी तथा पूजा) पर अभी पटाक्षेप हुआ भी नहीं था कि रांची से 100 किलोमीटर उत्तर हजारीबाग से एक डरावनी घटना सामने आ गई। हमने जाना कि अनुशासन भंग करने का दण्ड बलात्कार है। हमने यह भी जाना कि माओवादी बाल दस्ते के सदस्यों के साथ नियमित रुप से यौन दुराचार किया जाता है। यह दुराचार बर्दाश्त करने को वे विवश हैं, चूंकि माओवादी क्रांतिकारी हैं। क्रांतिकारिता के तहत यह दुराचार करने का अधिकार उनको है। हजारीबाग जिले में गिरफ्तार दो महिला माओवादी, सरिता देवी तथा ललिता देवी ने पुलिस को यह जानकारी दी। साथ बाल दस्ते की तीन बच्चियाँ भी पकड़ाईं, जिन्होंने उनके खुलासे का समर्थन किया। ललिता देवी तथा सरिता देवी हजारीबाग के विष्णुगढ़ ब्लॉक की रहने वाली हैं। यौन विचलन की शिकायत माओवादियों के विरूद्ध नई नहीं है। सव्यसाची पंडा ने अपने खुलासे में विस्तार से इसका जिक्र किया था। समाज के जिन दुर्गुणों के वे आलोचक हैं, उन्हीं दुर्गुणों को वे सरेआम ओढ़े हुए हैं और उसके बाद भी जनता के समक्ष खींसे निपोड़े हुए हैं, यह आश्चर्यजनक बात है। उनकी निर्लज्जता इस घटिया दर्जे की है, कि सारे कुकर्मों के बाद भी वे दस्तावेज पारित करते हैं और क्रांति करने का दावा करते हैं। ऐसा विचित्र विरोधाभास विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलेगा। इन तीन बच्चियों का भी एक बचपन था, जिन्हें पैरों तले रौंद दिया गया। उनका गुनाह क्या था? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। गाँव में अपने माँ बाप के घर में कम से कम वे चैन से तो थी। लेकिन उनको उनके माँ बाप से अलग कर इस घिनौने जीवन में कौन ले आया? आगे उनके साथ क्या होगा? इन सवालों का भी कोई जवाब नहीं है।

-विकास दुबे

 

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