छत्तीसगढ़ में चना घोटाला
03-Apr-2013 10:29 AM 1234858

एक वेबसाइट पर छत्तीसगढ़ के चना घोटाले के तार पोंटी चड्ढा से जुडऩे के कारण प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया है। चना घोटाला तो पहले ही उजागर हो चुका था जब यह पता चला था कि लगभग 71 करोड़ रुपए का चना फर्जी कंपनियों द्वारा प्रदान किया जा रहा था, लेकिन इसकी आपूर्ति केवल कागजों पर हुई और बाद में लीपापोती कर दी गई, लेकिन अब यह बात सामने आई है कि जिन कंपनियों को छत्तीसगढ़ सरकार ने 71 करोड़ रुपए का चना सप्लाई करने का आर्डर दिया था वह सारी की सारी फर्जी थीं और इसमें पोंटी चड्ढा का हाथ था। पोंटी चड्ढा तो दिल्ली के निकट उसके फार्म हाउस में गोलीबारी में मारा जा चुके हैं, लेकिन उसका भूत भारत के कई प्रांतों का पीछा नहीं छोड़ रहा है। इसमें छत्तीसगढ़ भी शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ के खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले ने विधानसभा में जवाब दिया था कि राज्य सरकार ने राज्य में एक साल के भीतर 71 करोड़ का चना आदिवासी क्षेत्रों में वितरित किया है। लेकिन इस बारे में जब उन बिक्रीकर्ताओं की पड़ताल शुरू की, जिनसे चना खरीदकर सरकार ने आदिवासियों को वितरित किया है तो जो हकीकत सामने आई वह चौंकानेवाली थी। मसलन, छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को बांटने के लिये चने की आपूर्ति दो कंपनियों से ली गई। इसमें पहली कंपनी है मेसर्स प्राईम विजन शुगर लिमिटेड, 574 मगरवाड़ा, उन्नाव, उत्तर प्रदेश और दूसरी कंपनी है मेसर्स डिवाईन क्राप्स एंड एलाईड प्रोडक्ट्स प्राईवेट लिमिटेड, अस्तबल कैम्प, थाना गंज, रामपुर, उत्तर प्रदेश। इस चना खरीदारी के लिए जो दर निर्धारित की गई उसके मुताबिक पहली कंपनी से 44.22 रुपये प्रति किलोग्राम की दर तथा दूसरी कंपनी से 48.47 रुपये प्रति किलो की दर से चना खरीदारी की गई। लेकिन जब इन स्थानों की पड़ताल शुरू की तो पता चला कि ये पते फर्जी हैं। मेसर्स प्राईम विजन शुगर लिमिटेड, 574 मगरवारा, उन्नाव, उत्तर प्रदेश नाम से कोई कंपनी उस पते पर नहीं है। वहां नीलगिरी फूड प्रोडक्ट्स प्राईवेट लिमिटेड का कार्यालय है। रामपुर की दूसरी कंपनी मेसर्स डिवाईन क्राप्स एंड एलाईड प्रोडक्ट्स प्राईवेट लिमिटेड के दस्तावेज बताते हैं कि इस कंपनी की होल्डिंग कंपनी पीबीएस फूड्स प्राईवेट लिमिटेड है, जो पोंटी चड्ढा और उसके रिश्तेदारों की कंपनी है। पोंटी और उसके रिश्तेदारों ने इन दो कंपनियों के अलावा वेब इंडस्ट्रीज प्राईवेट लिमिटेड जैसी दर्जनों कंपनियां बनाई और इन कंपनियों ने भ्रष्ट अफसरों और नेताओं की मिलीभगत से 11 चीनी मिलों की खरीदी में भी जम कर चांदी काटी। इस चना खरीदारी में पोंटी की कंपनियों को तब ठेका दिया गया जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर उसकी कंपनियों की सीबीआई जांच चल रही है। इसके अलावा पोंटी चड्ढा और उसकी सहयोगी सुनीता की कंपनियों पीबीएस फूड्स प्राइवेट लिमिटेड (जिसे छत्तीसगढ़ में ठेका मिला), डी ग्रेट वेल्यू, हेल्थ केयर एनर्जी फूड प्राइवेट लिमिटेड, क्रिस्टी फ्रीड ग्राम इंडस्ट्रीज, त्रिकाल फूड्स एंड प्राइवेट लिमिटेड को उत्तर प्रदेश के बाल विकास पुष्टाहार में करोड़ों के भ्रष्टाचार के मामले में जिम्मेवार पाया गया है, और इनकी जांच भी चल रही है। ऐसे में छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने आखिर किस आधार पर उसकी कंपनियों को चना आपूर्ति के ठेके दे दिये जिनके नाम पते तक फर्जी थे?
उधर वन विभाग में भी एक घोटाले का पता चला है विधानसभा में बताया गया है कि अफसरों की लापरवाही के कारण लगभग साढ़े चौसठ करोड़ रुपए का चूना सरकार को लगा है। वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा 2 के अनुसार वन क्षेत्रों में गैर वनीकरण के कार्यों के लिये क्षतिपूर्ति राशि जमा की जाती है। यह क्षतिपूर्ति राशि 29,725 रुपये प्रति हेक्टेयर असिंचित वृक्षारोपण के लिये और 1,04,500 प्रति हेक्टेयर सिंचित वृक्षारोपण के लिये तय की गई है। इसमें हर साल 10 प्रतिशत वृद्धि का प्रावधान है। नवंबर 2012 की वन महकमें की रिपोर्ट बताती है कि 32 में से 13 वन मंडलों में 2002-03 से 2009-10 में 3,085.351 हेक्टेयर वन क्षेत्रों को गैर वनीकरण के कार्यों के लिये परिवर्तित किया गया है। इसमें से 7,230.860 हेक्टेयर वन क्षेत्रों के लिये 32.72 करोड़ रुपये का राशि क्षतिपूर्ति के लिये जमा की गई। वन क्षेत्रों के गैर वनीकरण के लिये परिवर्तन व क्षतिपूर्ति राशि की जांच से यह पता चलता है कि क्षतिपूर्ति राशि 29,725 रुपये व 1,04,400 की दर से वर्ष 2002-03 में जो राशि जमा की गई है, वह वास्तव में 2001-02 के हिसाब से थी और उसमें जाने किन प्रलोभन और दबाव में 10 प्रतिशत की रकम को जोड़ा ही नहीं गया, जिसके कारण वन विभाग को 5.07 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। करोड़ों रुपये की चपत लगाने के ये मामले 10 वनमंडलों- रायपुर, रायपुर पश्चिम, धमतरी, जगदलपुर, कोंडागांव दक्षिण, कटघोरा, कोरबा, कोरिया, मरवाही और रायगढ़ के ही 43 प्रकरणों में सामने आये। वन विभाग के अफसर अपनी गलती को छुपाने के लिये यह थोथी दलील दे रहे हैं कि यह क्षतिपूर्ति राशि भारत सरकार के मार्च 2002 के आदेशानुसार तय की गई है। लेकिन केंद्र सरकार के जिस आदेश का हवाला देकर वन अफसर गोल माल कर रहे हैं, वह आदेश 2001-02 के लिये था। जबकि छत्तीसगढ़ में क्षतिपूर्ति राशि 2002-03 के लिये ली गई थी।
रायपुर से संजय शुक्ला के साथ टीपी सिंह

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