09-Sep-2015 05:49 AM
1234884
स्कूल हो तो स्कूल चले हम!
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर में एक तहसील है आष्टा। इस तहसील में है कसाईपुरा। कसाईपुरा इसलिए कहते हैं कि यहां कभी कसाइयों की बस्ती थी। समय के साथ नाम तो वही रहा लेकिन लोगों के कामकाज बदल गए। जीवनस्तर में परिवर्तन आ गया। शिक्षा और तालीम के प्रति रुझान बढ़ गया। किंतु सरकारी रवैया वैसा ही रहा। इसी कसाईपुरा में कुछ समय पहले कन्याओं के लिए सर्वशिक्षा अभियान के तहत प्राथमिक स्कूल खोला गया था। स्कूल को नाम दिया गया कसाईपुरा कन्या शासकीय विद्यालय। एक पिछड़े इलाके में शिक्षा का दीप जला था। अभिभावकों में उम्मीद की किरण जागी थी। घर के कामकाज में जीवन व्यर्थ गवाने वाली बेटियों को संबल मिला था।
चलो अब पढ़ सकेंगे और अपने दुर्भाग्य से मुक्ति पा सकेंगे। शिक्षा विभाग के कर्मठÓ अधिकारियों ने भी देरी नहीं की। आनन-फानन में कागजों पर स्कूल स्वीकृत हो गया। संकुल प्राचार्य ने बीपी पठारिया ने भी शिक्षक की नियुक्ति कर दी। लेकिन तब तक सब कुछ कागजों पर ही था। क्योंकि स्कूल की इमारत ही नहीं थी। मजबूरी में तरस खाकर और बच्चों के भविष्य की चिंता में डूबे अभिभावकों ने संकुल प्राचार्य और अन्य अधिकारियों को कहा कि वे पास ही स्थित मदरसे के एक हिस्से में स्कूल खोल लें। जब तक इमारत तैयार न हो जाए। उसके बाद इमारत में स्कूल को स्थानांतरित कर दिया जाएगा। यह सुझाव अधिकारियों को भा गया। व्यवस्थाएं जमाई गई और स्कूल भी खुल गया और छात्राओं का दाखिला भी हो गया। लेकिन कुंभकर्णी नींद सोए शिक्षा विभाग के आला अफसरों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। किसी ने यह जहमत नहीं उठाई कि स्कूल की इमारत बनवा दी जाए। सारी स्वीकृतियों के बावजूद स्कूल खैरात में मिली इमारत में चलता रहा। तीन माह बीते, चार माह बीते, आठ माह बीते, सर्दी, गर्मी बरसात निकल गए लेकिन चिन्हित जमीन पर मवेशियों के अलावा कभी कोई दिखाई नहीं दिया। स्कूल की इमारत तो दूर नींव तक नहीं पड़ी। इधर जिस व्यक्ति का मदरसे पर मालिकाना हक था वह समझ चुका था कि दशक बीत जाएंगे लेकिन स्कूल की इमारत नहीं बनेगी। उसे यह भी भान था कि ज्यादा समय होने पर उसकी जर्जर जीर्ण-शीर्ण मदरसे की इमारत हड़प ली जाएगी। यदि स्कूल बनता दिखता तो शायद वह सब्र भी कर लेता। लेकिन वहां तो झाड़ झंखाड़ उगे हुए थे। लिहाजा उन्होंने स्कूल के अधिकारियों के हाथ जोड़ लिए और कहा आप अपनी व्यवस्था अलग जमा ले। बच्चों का भविष्य खतरें में था। लेकिन अधिकारियों के चेहरे पर शिकन नहीं थी। वे बास्केटबाल की तरह जिम्मेदारी एक-दूसरे के पाले में उछाल रहे थे। मजबूरी में अभिभावकों ने हालात से समझौता किया और आसपास के स्कूलों में बच्चों को दाखिला दिलवाया। कुछ बच्चों की पढ़ाई भी छूट गई।
यह सब हुआ स्वतंत्रता के 68 वर्ष बीतने पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के गृह जिले में। न तो अधिकारियों को फिक्र थी और न ही उन्हें अब फिक्र है। सर्वशिक्षा अभियान के जवाबदार डिप्टी प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर विनय रहंगडाले से फोन पर बात की तो उन्होंने रूखा सा जवाब देते हुए कहा कि मैंने 15-20 दिन पहले ज्वाइन किया है मुझे कोई आइडिया नहीं है। वहीं संकुल प्राचार्य नारायण सिंह ठाकुर को फोन लगाया तो वह बताते हंै कि उक्त विद्यालय उनके संकुुल में नहीं है, लेकिन उन्हें यह पता है कि कसाईपुरा में एक प्राथमिक कन्या विद्यालय स्वीकृत हुआ था। उधर ब्लॉक प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर आष्टा मंडलोई कहते हैं कि स्कूल दो साल पहले संचालित हुआ था। एक वर्ष मदरसे की इमारत में चला। बाद में बच्चों को पास के स्कूल में शिफ्ट कर दिया गया। कसाईपुरा वार्ड 8 में कागजों पर स्थित इस स्कूल की सच्ची कहानी का हर पात्र किसी कसाई से कम नहीं है। कलेक्टर को फोन लगाने पर स्कूल के बारे में पूरी बात सुनने के बाद संवाददाता से यह कह दिया कि मुझे कुछ सनाई नहीं दे रहा है। मैं बाद में बात करता हूं। परंतु जवाबदार कलेक्टर न तो मुख्यमंत्री से डरते हैं और न ही मुख्समंत्री के जिल से और फिर लौटकर स्कूल के बारे में फोन करके जानकारी भी नहीं देते हैं। अरे पत्रकार तो जिला प्रशासन के संज्ञान में जानकारी ला रहा था कोई हौवा बनकर कलेक्टर को खा थोड़ी जाता। पता नहीं इन अफसरों के दिमाग को क्या हो गया है। प्रभारी मंत्री रामपाल सिंह की जानकारी में आने के बाद उन्होंने अपने जिले के भ्रमण के दौरान कलेक्टर साहब को आदेशित करते हुए कहा था कि इस स्कूल की जानकारी मुझे दो। जानकारी तो एक घंटे बाद ही प्रभारी मंत्री को दे दी गई कि कागजों में तो स्कूल और स्टाफ और बच्चे दिख रहे हैं परंतु मौके पर कुछ भी नहीं है। आखिर बच्चों को तो इधर-उधर शिफ्ट कर दिया गया ऐसा प्राचार्य और ब्लॉक कोआर्डिनेटर कहते हैं पर वास्तव में जो स्कूल कई सालों से स्वीकृत है उसकी तनख्वाह और खर्चे कौन पी गया। क्या प्रभारी मंत्री रामपाल सिंह जो मुख्यमंत्री के करीबी माने जाते हैं वह कलेक्टर से लेेकर सबको सबक सिखा पाएंगे और आदरणीय मामा जी शिवराज सिंह चौहान की भांजियां उस स्कूल में जा पाएंगी। प्रदेश में बेटी बचाओं, बेटी को आगे बढ़ाओं, बेटी है तो कल है तमाम ये नारे बेटियों की स्कूल के साथ कागजों में धराशाई हो गए अब तो मामा जी आपको ही कुछ करना होगा।
-नवीन रघुवंशी