निकाय चुनाव में भाजपा जीती, वसुंधरा हारी
09-Sep-2015 05:37 AM 1234788

निकाय चुनाव में भाजपा जीती, वसुंधरा हारी

ललीतगेट में फंसी राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा ने स्थानीय निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है। लेकिन झालावाड़ और धौलपुर में कांग्रेस को मिली जीत सीएम वसुंधरा राजे के लिए परेशानी का कारण हो सकती है। झालावाड़ में दो और धौलपुर की तीन स्थानीय निकायों बदी, धौलपुर और राजाखेड़ा में कांग्रेस को जीत मिली है। वसुंधरा झालावाड़ से ही विधायक हैं। वहीं धौलपुर के पूर्व शाही परिवार से भी उनका नाता है। झालावाड़-बारन लोकसभा सीट से वसुंधरा के बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं। बारन जिले के स्थानीय निकायों में भी कांग्रेस को जीत मिली है। इससे जीत के बाद भी वसुंधरा बैकफुट पर हैं।

राजस्थान के हालिया शहरी निकाय चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए थोड़ी खुशी और थोड़ा गम वाली रही। सत्तारूढ़ भाजपा ने निकाय के 129 सीटों मे से कुल 43 पर कब्जा जमाया जबकि कांग्रेस के हाथ कुल 16 सीटें ही लगीं, वहीं अन्य के हाथ कुल 12 सीटें लगीं और 57 में त्रिशंकु स्थिति है यानि किसी भी पक्ष को बहुमत नहीं वैसे नतीजे वसुंधरा के लिए ठीक नहीं रहे।  आंकड़ों के लिहाज से तो वसुंधरा और पार्टी ने बढ़त हासिल कर ली है परंतु सियासी समीकरणों और गणित के हिसाब से उसे सोचने को मजबूर कर दिया है। निकाय चुनाव नतीजों पर सत्ताधारी दल का प्रभाव रहता है और उसका पलड़ा भाड़ी  होता है। ऐसे में वसुंधरा के लिए स्थिति और भी जटिल हो गयी थी और हर कोई जीत की अपेक्षा कर  रहा था, परंतु नतीजे संतोष करने भर के रहे। ललितगेट  के साये में हुए इस चुनाव मे वसुंधरा के लिए करो या मरो जैसी स्थिति थी। पूरे प्रकरण ने वसुंधरा राजे को आलाकमान के सामने रक्षात्मक होने पर मजबूर कर दिया है। वैसी भी पार्टी आलाकमान

वसुंधरा से खुश नहीं है , नाराजगी की अपनी वजह भी है।

वसुंधरा ने विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को घुटने के बल ला खड़ा किया था, और बार बार पार्टी छोडऩे की धमकी तक दे रही थीं । वो भी सिर्फ इस लिए ताकि तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष गुलाब चंद कटारिया प्रदेश यात्रा पर ना जा पाएँ  जिससे उनकी पार्टी पर पकड़ कमजोर ना पड़े। पार्टी उस समय जैसे तैसे वसुंधरा को मना पाई थी और मजबूरन गुलाब कटारिया को यात्रा रोकनी पड़ी थी। विधानसभा चुनाव और लोकसभा में मिली अप्रत्याशित सफलता से तो जैसे वसुंधरा को पर लग गए और उन्होने केन्द्रीय कैबिनेट में बलात्कार के आरोपी निहाल चंद को मंत्री बनाने की मांग कर दी सरकार को मजबूरन उनकी जिद माननी पड़ी, जिससे पार्टी को भारी फजीहत आज तक झेलनी पड़ रही है। परंतु प्रदेश भाजपा में असंतोष के स्वर उभरने और ललित गेट प्रकरण ने भाजपा को वसुंधरा पर नकेल कसने को मजबूर कर दिया। ऊपर से संघ नेतृत्व भी वसुंधरा से खासा नाराज चल रहा था। अंतोगत्वा पार्टी ने खाली संगठन महामंत्री पद पर अविनाश राय खन्ना को भेज कर वसुंधरा की नकेल कस दी।  ऐसे में वसुंधरा को इस  निकाय चुनाव  मे अपने को साबित करने का वक्त था परंतु वह अपेक्षाकृत नतीजे नहीं दिला सकीं और पार्टी  को मामूली बढ़त से संतोष करना पड़ा। पार्टी को भी वसुंधरा को उनके हाल पर छोडऩा पड़ा ताकि नतीजे ही वसुंधरा के गुमान को तोड़ सके। वर्तमान स्थिति ने वसुंधरा राजे को आत्ममंथन को मजबूर कर दिया है । मजबूरन ही सही वह  प्रदेश नेतृत्व की ओर रुख करने पर मजबूर हुई हैं। क्योंकि इस हार की वजह भीतरघात और पार्टी नेताओ की मुख्यमंत्री से नाराजगी मानी जा रही है। आने वाले दिन वसुंधरा के लिए और कठिन होंगे।

लोकसभा चुनाव 2014 में राजस्थान में एक भी सीट न जीत पाने वाली कांग्रेस ने 40 स्थानीय निकायों पर न सिर्फ जीत दर्ज की, बल्कि 17 जगहों पर बीजेपी को जबर्दस्त टक्कर दी। कांग्रेस ने 1146 वॉर्डों में जीत हासिल की। सात सीटें निर्दलीयों के खाते में गईं। कांग्रेस की राजस्थान सचिन पायलट ने इन नतीजों को बीजेपी सरकार के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि पब्लिक ने बीजेपी में भरोसा नहीं जताया। पायलट ने कहा, बीजेपी और कांग्रेस के बीच अब सिर्फ एक प्रतिशत का रह गया है। लोकसभा चुनाव 2014 में यह फर्क 26 प्रतिशत था। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री वसुंधरा के गढ़ में जीत हासिल की है। वोटर समझ चुके हैं और वे कांग्रेस की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं।

चुनाव परिणाम से उत्साही भाजपा के अशोक परनामी ने कहा कि मतदाताओं ने कांग्रेस को नकार कर भाजपा में विश्वास जताया है। उन्होंने दावा किया कि वर्ष 2010 के मुकाबले में वर्ष 2015 में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है। भाजपा को 37.16 प्रतिशत जबकि कांग्रेस को 33.77 प्रतिशत वोट मिले हैं। परनामी ने कहा कि भाजपा निरंतर एक जीत का इतिहास बना रही है। विधानसभा, लोकसभा, निगम, पंचायत के चुनावों में भाजपा का परचम लहराया। प्रदेश में सात नगर निगम हैं। इनमें से छह में पहले चुनाव हो चुके हैं। एक अजमेर में हाल ही में चुनाव हुआ है और सातों की सातों निगमों में भाजपा ने जीत हासिल की। वह कहते हैं कि प्रदेश से कांग्रेस को उखाड़कर दम लेंगे।

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने तो निकाय चुनाव में फिर से परचम लहराकर अपनी वैतरणी पार कर ली किंतु राजस्थान में ललितगेट प्रकरण में परेशानी का सामना कर रही वसुंधरा राजे का जायका स्थानीय निकाय के चुनावी परिणामों ने बिगाड़ दिया। हालांकि भाजपा जीत गई है किंतु यह जीत न तो अभूतपूर्व है और न ही उल्लेखनीय। इतनी सीटें तो सत्ताधारी पार्टी वैसे भी जीत जाती है। इसी कारण भाजपा चिंतित है।

-आरके बिन्नानी

 

 

 

 

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