05-Jun-2015 09:03 AM
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जर्जर एक बार फिर रेलवे टे्रक पर लौट आए थे। विशेष पिछड़ा वर्ग में 5 प्रतिशत का आरक्षण विशाल गुर्जर समाज को कितना लाभांवित करेगा, कहना मुश्किल है। लेकिन यह आंदोलन दिनों-दिन

व्यापक होता जा रहा था। सवाल यह है कि गुर्जर हमेशा रेलवे टे्रक पर ही क्यों आंदोलन करते हैं? इस बार भी उन्होंने टे्रक पर झोपडिय़ां बना लीं थी और कई टे्रनें अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाईं। रेलवे को रोजाना 10 करोड़ का घाटा हो रहा था। रेलवे संपत्ति को जो नुकसान पहुंचाया गया, वह इस घाटे में इजाफा ही करेगी। यात्रियों का समय और यात्रियों को होने वाली परेशानी अलग विषय है। रेल, रोड को रोककर गुर्जरों के आंदोलन ने एक तरह से राजस्थान और आसपास के कई प्रदेशों को थाम दिया था। आंदोलन 5 प्रतिशत आरक्षण को लेकर ही थमा। राजस्थान सरकार के साथ आंदोलनकारियों की बातचीत का पहले कोई समाधान नहीं निकल पाया था। यह आंदोलन दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश में भी फैला। हाईवे पर चक्काजाम हुआ, सैकड़ों टे्रनें रद्द करनी पड़ीं। कई लोगों पर मुकदमें भी कायम किए गए। सरकार ने सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के लिए कई तरह के कानून बना डाले हैं, लेकिन गुर्जर समाज के आंदोलन के बाद जबावदारी किस पर तय की जाएगी? इससे बढ़कर बात यह है कि अब गुर्जरों के पक्ष में फैसला हुआ है तो जाट सड़क पर आ सकते हैं, एक तरफ कुंआ है तो एक तरफ खाई। राजस्थान सरकार बहुत मुश्किल में है। गुर्जर आंदोलन भाजपा के लिए भी दुखदायी है। क्योंकि जिन राज्यों में यह आंदोलन फैला है, वहां प्राय:-प्राय: भाजपा की सरकारें हैं।
इसीलिए गुर्जरों की समस्याओंं का स्थायी समाधान करना बहुत आवश्यक हो गया है। गुर्जरों का आंदोलन थोड़ा अलग था कि वे आरक्षण पाने के लिए आंदोलन नहीं कर रहे थे बल्कि उनकी मांग यह थी कि उन्हें पिछड़ी जाति की श्रेणी से हटाकर अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में डाला जाए। इस मांग के पीछे कारण यह था कि पिछड़ी जातियों में प्रतिस्पर्धा ज्यादा है और जनजातियों में आरक्षण मिलने की संभावना ज्यादा है, क्योंकि भारत में जो अनुसूचित जनजातियां हैं, वे आरक्षण का पूरा-पूरा लाभ नहीं ले पातीं। दूसरा कारण यह है कि राजस्थान में मीणा समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में आरक्षण मिला हुआ है और मीणा समुदाय ने इसका भरपूर फायदा उठाया है। इससे गुर्जरों को यह लगा कि पिछड़ी जाति श्रेणी में स्पद्र्धा और ज्यादा हो जाएगी, इसलिए अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में जाना ज्यादा सुविधाजनक है। लेकिन मीणा समुदाय इसका विरोध कर रहा था। ऐसे में, तत्कालीन सरकार ने गुर्जरों को अलग श्रेणी में पांच प्रतिशत आरक्षण दे दिया, मगर सुप्रीम कोर्ट ने उस पर भी रोक लगा दी। वैसे तो गुर्जरों की आरक्षण की मांग काफी पुरानी है परन्तु 2008 के हिंसक आंदोलन के साथ ही यह विषय राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया।
हिंसक आंदोलन में बहुत से लोगो की जान चली गयी थी तथा इससे राजस्थान की आर्थिक विकास को गहरा धका लगा था! आपसी जातीय टकराव के कारण सामाजिक समरसता पर भी फर्क पड़ा था। शुरुआती दौर में गुर्जर समाज ने अनुसूचित जनजाति में आरक्षण की मांग की थी, परन्तु मीणा-गुर्जरों की आपसी रंजिश तथा कठोर संवैधानिक प्रावधानों के कारण गुर्जर समाज ने अनुसूचित जनजाति की मांग छोडकर विशेष वर्ग में आरक्षण की मांग शुरू कर दी! वर्तमान में गुर्जर समाज प्रधानत: कृषि कार्य तथा पशुपालन में लगा हुआ है, देश की आजादी के बाद अन्य समाजों ने आर्थिक-सामाजिक बदलाव किये तथा विकास की रफ़्तार में अपने आप को आगे बनाये रखा, लेकिन स्वाभाविक रूप से रूढ़ीवादी होने के कारण गुर्जर समाज अपने आप को समय के साथ बदल नहीं पाया। आज भी गुर्जर समाज शिक्षा तथा आर्थिक मोर्चे पर बहुत पीछे रहे गया है। यह समाज आज भी सामाजिक कुप्रथाओं से जकड़ा हुआ है।
गुर्जर समाज का इतिहास
भारत में गुर्जरों का बाहुल्य मुख्यत: उतरी भारत में केंद्रित है ,राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, पंजाब तथा गुजरात में गुर्जरों की जनसंख्या अधिक है, इतिहासकारों में गुर्जरों की उत्पति तथा इनके मूलनिवास के बारे में मतभेद है, कुछ इतिहासकारों का मानना है की गुर्जर विदेशी हैं तथा इनका मूलस्थान मध्य एशिया है, अन्य मत के इतिहासकारों का मानना है की गुर्जरों को उत्पति स्थान भारत है! भारत के इतिहास में गुर्जरों का महतवपूर्ण स्थान है, भारत के बहुत से शहरों तथा स्थानों की संबंद्धता गुर्जरों से की जाती है! गुर्जर प्रतिहार राजवंश का स्थान भारत के इतिहास में महतवपूर्ण स्थान रखता है, प्रतिहारों से पूर्व कुषाण वंश को भी गुर्जर माना गया है। संक्षेप में कहा जा सकता है की गुर्जरों ने भारतीय इतिहास में महतवपूर्ण भूमिका निभायी है तथा मुस्लिमों के आक्रमण से भारत दौ सौ सालों तक रक्षा की है! यानि गुर्जर समाज ने इतिहास में मुख्य भूमिका निभाई है जो आज की तुलना में बहुत अधिक थी . उत्पति के विवाद में ने पड़ते हुए यह माना जा सकता है की गुर्जरों का इतिहास गौरवशाली रहा है!