01-Sep-2015 06:30 AM
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have to restore the old glory of Air India. I am confident that it shall again rule the skies - in the future not far away.The Air Indians would, I am certain rise to the occasion and again work as the finest team the nation has got
ये वह पंक्तियां हैं जिसे राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया के नए चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अश्विनी लोहानी ने अपने फेसबुक पर लिखा है। आत्मविश्वास से परिपूर्ण ये पंक्तियां इस बात का संकेत है

कि अब वह दिन दूर नहीं जब 30,000 करोड़ के घाटे में डूबी एयर इंडिया को अपनी बदहाली से मुक्ति मिलेगी और महाराजाÓ फायदे की नई ऊंची उड़ान भरेंगे। दरअसल, कुप्रबंध, गलत नीतियों, प्राइवेट एयर लाईंस की बढ़ती संख्या और राजनीतिक दखंलदाजी का नतीजा है कि एयर इंडिया दिन पर दिन बदहाल होती जा रही है। इसको बदहाली से उबारने के लिए कई तरह के प्रयोग सरकार द्वारा किए गए, लेकिन कोई भी कदम कारगर नहीं हुआ। इसलिए अब मध्यप्रदेश पर्यटन को उबारने वाले इंडियन रेलवे सर्विस के 1980 बैच के अफसर अश्विनी लोहानी के लिए अगली चुनौती एयर इंडिया को उबारने की होगी। जिस चुनौती को लेने से 1988 बैच के अधिकारी आईसीपी केसरी ने इनकार कर दिया, जिसे 1960 में अपने गठन से लेकर आज तक कई चेयरमैन न सुधार पाए हों उसका दायित्व एक रेलवे के अधिकारी को सौंपना आश्चर्यजनक है। आखिर लोहानी ने यह लौह-टास्क स्वीकार क्यों किया। उन्हें तो सिंहस्थ के लिए तैनात किया गया था। सिंहस्थ बीच में छोड़कर लोहानी चल क्यों दिए। आईएएस अफसरों में इसे लेकर भी सुगबुगाहट है। हमेशा जमीन पर रहने वाले लोहानी अब एयर इंडिया में जाने का मौका नहीं गंवाना चाहते। रिटायरमेंट से पूर्व यदि उन्होंने एयर इंडिया की हालत सुधार दी तो उनके क्राउन पर एक और हीरा जटित हो जाएगा।
इस तरह बर्बाद हुई कंपनी
इंडियन एयरलाइंस 2003-04 तक फायदा देने वाली कंपनी थी, उस वित्तीय वर्ष में उसका फायदा 105 करोड़ रुपए था। लेकिन प्रफुल्ल कुमार पटेल के केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री बनते ही इसकी बर्बादी की शुरूआत हो गई। पद संभालने के चार महिने बाद 2 अगस्त 2004 पटेल ने एक मीटिंग बुलाई,जिसमें ये तय किया गया कि एयरइंडिया ने अपने फ्लीट में जिस बढोतरी का आर्डर दिया है, उसे बढ़ा दिया जाए। लिहाजा 28 की बजाए 68 एयरक्राफ्ट का आर्डर दे दिया गया, जिससे मूल्य में 50 हजार करोड़ रुपए का अंतर आ गया। इसमें से 27 विमान बोइंग 787 ड्रीमलाइनर थे, जो तब केवल परिकल्पना के स्तर पर ही थे। सबसे बुरा ये हुआ कि बढ़ी हुई कीमत के पीछे ये नहीं सोचा गया कि इतना पैसा आएगा कहां से और ये नए जहाज किस मार्ग पर चलाये जाएंगे। उड्डयन मंत्री के इस फैसले ने उस एयरलाइन की मुश्किलें निसंदेह बढ़ा दीं, जो न केवल 40 हजार करोड़ के कर्ज तले दब गया बल्कि उसका घाटा भी सात हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया। उसके बाद 2007 में इंडियन एयरलाइंस और एयरइंडिया का विलय यह कह कर किया गया कि इससे स्थिति सुधर जाएगी। जबकि विलय से पहले इंडियन एयरलाइंस शुद्ध 280 करोड रुपए के घाटे में थी और इस स्थिति में पहुंच चुकी थी कि वो फायदे में आ जाती। अपने रूट नेटवर्क के जरिए उसने अपने आपरेशन प्राफिट नब्बे फीसदी तक की स्थिति में पहुंचा दिये थे। वहीं एयरइंडिया तब 400 करोड़ के नुकसान में थी, इसका मतलब दोनों का मिलाजुला नुकसान 680 करोड़ रुपए था, लेकिन जो स्थितियां थीं, उसमें लग रहा था कि दोनों ही जल्दी ही अपने घाटे से उबर कर लाभ की स्थिति में आ जाएंगी। लेकिन कहां सरकार ये दावा कर रही थी कि विलय के बाद जो एक एयरलाइंस सामने आएगी, वो हर साल छह अरब का लाभ कमा सकेगी, वो तो कभी हुआ ही नहीं बल्कि दोनों एयरलाइंस के समेकित नुकसान 16000 करोड़ तक पहुंच गए। ऐसा हुआ एयरलाइंस के लिए वो लंबे चौड़े फ्लीट्स लेने के लिए जिसकी कोई जरूरत नहीं थी, इसके लिए कर्ज पर मोटे ऋण लिया गया। यही नहीं वर्ष 2009 तक इंडियन एयरलाइंस का काल सेंटर ओमानिया इंटरनेशनल द्वारा चलाया जाता था। वर्ष 2009 मे एक फैसले के लिए कांलसेटर को चलाने की जिम्मेदारी इंटरग्लोब टैक्नालाजीज को दे दिया गया, जिसने बाद में इंडिगो एयरलाइंस के नाम से अपनी एयरलाइन शुरू कर ली और इंडियन एयरलाइंस की मुख्य स्पर्धी कंपनी बन गई। 2011 में इंडिगो ने एयरइंडिया को पीछे छोड़कर तीसरे नंबर पर कब्जा कर लिया। घाटे का एक कारण जरूरत से ज्यादा उड्डयन कंपनियों का बाजार में प्रवेश करना है। यही नहीं निजी विमानन कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए एयर इंडिया की फ्लाइट की उड़ान का समय बदल दिया गया और अधिक भीड़ वाला समय निजी कंपनियों को आवंटित कर दिया गया। कहा तो ये भी जाता है कि राजनीतिज्ञों के स्वार्थपूर्ति के चलते इस विमानन कंपनी को इस बुरे हाल तक पहुंचा दिया गया। कौन सोच सकता था कि इसके कर्मचारियों को कई महिनों तक वेतन नहीं मिलेगा और ये वित्तीय घाटे और कर्ज में इस कदर डूब जाएगी कि इसे निकालना मुश्किल हो जाएगा। वर्तमान समय में एयर इंडिया का शुद्ध घाटा 5547.47 करोड़ रूपए है। एयर इंडिया को घाटे से उबारने की जिम्मेदारी अब अश्विनी लोहानी पर है। उनसे पहले मप्र कैडर के आईएएस आईसीपी केशरी को प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन कंपनी की बदहाली के कारण उन्होंने प्रस्ताव का खारिज कर दिया। अब लोहानी यूपी कैडर के आईएएस रोहित नंदन की जगह लेंगे।
-भोपाल से राजेंद्र