03-Sep-2015 05:18 AM
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फिर फर्राटाÓ भरेंगी दुती चंद
मेडिकल भाषा हाइपरैंड्रोजेनिज्म में वह स्थिति है ज
ब शरीर में एंड्रोजेनिज्म हार्मोस की मात्रा बढ़ जाती है। यह हार्मोन ही इंसान में पुरुषों वाले गुण विकसित करता है। सबसे कॉमन एंड्रोजेनिज्म हार्मोन टेस्टोस्टेरोन है। दुती के शरीर में इस हार्मोन की मात्रा ज्यादा पाई गई थी। जिसके बाद आईएएएफ ने इस धाविका पर प्रतिबंध लगा दिया था। हाइपरैंड्रोजेनिज्म में शरीर से टेस्टोस्टेरोन अत्यधिक मात्रा में निकलते हैं जिससे महिलाओं में पुरुष जैसे लक्षण बढ़ जाते हैं। ऐसा हार्मोन की वजह से होता है और महिला में सामान्य से अधिक टेस्टोस्टेरोन बनता है। दुती चंद के टेस्ट में भी ऐसा ही पाया गया था। जिसके चलते पिछले साल कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स से ठीक पहले इस धाविका पर प्रतिबंध लगाया दिया गया। इसके बाद दुती ने आईएएएफ के लिंग परीक्षण से जुड़े नियम के खिलाफ कैस में अपील की थी।
दुती ने आईएएएफ के फैसले को कैस में चुनौती दी और फैसला भी इस एथलीट के पक्ष में आया। कैस ने कहा कि हार्मोन की वजह से किसी महिला में सामान्य से अधिक मात्रा में टेस्टोस्टेरान बनता है तो ऐसे में उसे पुरुष करार देना गलत है। अदालत ने कहा कि इसके कोई स्पष्ट सबूत नहीं है कि दुती ने अन्य की तुलना में टेस्टोस्टेरोन स्तर में बढ़ोतरी का फायदा उठाया। कैस ने कहा कि आईएएएफ को महिलाओं के लिए टेस्टोस्टेरोन का लेवल भी तय करना चाहिए। यदि आईएएएफ दो साल के समय के अंदर कोई वैज्ञानिक सबूत पेश नहीं करता तो हाइपरैंड्रोजेनिज्म नियम को खत्म माना जाएगा। ऐसे में आईएएएफ को अपना फैसला वापस लेना होगा। इस पर दलील देते हुए आईएएएफ ने कहा कि यह नियम अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी से बातचीत के बाद ही बनाए गए हैं।
दुनिया के सबसे तेज धावक जमैका के उसैन बोल्ट को अपना आदर्श मानने वाली दुती चंद का जन्म 3 फरवरी 1996 को ओडिशा के चक्र गोपालपुर गांव के एक गरीब जुलाहे के यहां हुआ। 19 वर्षीय दुती पहली बार तब सुर्खियों में आयी जब 2012 में इस धाविका ने राष्ट्रीय चैंपियनशिप के अंडर-18 वर्ग में महज 11.8 सेकेंड में 100 मीटर की दूरी तय कर ली। इसके बाद दुती ने पुणो में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में 200 मीटर का फासला 23.811 सेकेंड में तय कर ब्रांज मेडल जीता। इसी साल दुती ग्लोबल एथलेटिक्स की फर्राटा रेस के फाइनल्स में स्थान बनाने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनीं। 2013 में वह भारतीय एथलीट वल्र्ड यूथ चैंपियनशिप के 100 मीटर रेस के फाइनल्स में पहुंचने में सफल रही। इसी साल दुती ने रांची में आयोजित सीनियर राष्ट्रीय एथलेयिक्स चैंपियनशिप में 11.73 सेकेंड में 100 मीटर और 23.73 सेकेंड में 200 मीटर रेस जीतकर गोल्ड मेडल जीता था।
कैस से राहत मिलने के बाद इस प्रतिभावान एथलीट ने अपना अगला लक्ष्य रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने का बनाया है। दुती कहती हैं कि, यह मेरे जीवन का सबसे खुशी का पल है। कोर्ट के निर्णय आने तक मैं नहीं जानती थी कि भविष्य में क्या होने वाला है। जैसे ही मुझे कैस के निर्णय के बारे में पता चला मैंने बहुत राहत महसूस की। मुझे लगा कि अब मैं फिर अपनी पुरानी जिंदगी में लौट सकती हूं। प्रतिबंध के बाद ट्रैक से दूर रहना मेरे लिए बेहद मुश्किल दौर था। मेरा भविष्य अनिश्चित सा हो गया था लेकिन अब मुझे राहत है।Ó ओडिशा की इस बाला ने कहा कि मैं जल्द ही अपनी ट्रेङ्क्षनग शुरू कर दूंगी और मेरा अगला लक्ष्य 2016 में होने वाले रियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करना है।
भारतीय युवा स्प्रिंटर दुती चंद एक बार फिर ट्रैक पर फर्राटा भरती नजर आएंगी। स्पोर्ट्स के क्षेत्र में सबसे बड़ी अदालत कोर्ट ऑफ आर्बिटेशन फॉर स्पोर्ट्स (कैस) ने इस युवा धाविका को राहत देते हुए फिर से करियर शुरू करने की इजाजत दे दी है। कैस ने भारतीय एथलेटिक्स महासंघ और अंतरराष्ट्रीय महासंघों के एथलेटिक्स संघ (आईएएएफ) द्वारा इस एथलीट पर लगाए प्रतिबंध को दो साल के लिए टाल दिया है। इस फैसले के बाद अब यह दुती राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले सकती हैं। आईएएएफ ने दो साल पहले दुती के शरीर में हाइपरैंड्रोजेनिज्म की अधिक मात्रा में पाए जाने के चलते प्रतिबंध लगा दिया था। यह हार्मोन पुरु षों वाले गुण विकसित करता है। जिसके कारण दुती पर पुरु ष होने का आरोप लगाया गया था। प्रतिबंध के खिलाफ भारतीय धाविका ने कैश में अपील दायर की थी। जिसके बाद कैस ने आईएएफ के नियमों के खिलाफ दुती की अपील को आंशिक तौर पर सही पाया। कैस ने हाइपरैंड्रोजेनिज्म नियम को निलंबित किए जाने के बाद दुती को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने की छूट दे दी। साथ ही कहा कि यदि आईएएएफ कैस द्वारा दिए गए दो साल के समय के अंदर कोई वैज्ञानिक सबूत पेश नहीं करता तो हाइपरैंड्रोजेनिज्म नियम को खत्म माना जाएगा। हालांकि यह ऐसा पहला मामला नहीं है। इससे पहले दक्षिण अफ्रीका की एथलीट सेमेन्या पर भी ऐसे ही आरोप लग चुके हैं। बरी होने के बाद सेमेन्या ने 2012 लंदन ओलंपिक में 800 मीटर स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीतकर शानदार वापसी की।
भीड़ में छिपा नायक
कोलंबो टेस्ट के साथ ही संगाकारा के 15 साल के स्वर्णिम करियर पर विराम लग गया। यकीनन, संगाकारा आधुनिक क्रिकेट के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर्स में से एक है।उनके रिकॉर्ड और उनका सौम्य व्यक्तित्व उन्हें महान खिलाडिय़ों की जमात में शामिल करता है। संगाकारा सही अर्थो में क्रिकेट के दूत है।
कुमार चोकशानडा संगाकारा का जन्म 27 अक्टूबर 1977 को मताले में हुआ था। लेकिन क्रिकेट की दुनिया में वो पहचाने गए कुमार संगाकारा के नाम से। बचपन से ही संगाकारा की टेनिस में प्रति रुचि थी। विकेट के पीछे उनकी प्रतिभा को देखते हुए स्कूल प्रिंसिपल ने ही उन्हें क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित किया था। और देखते-देखते ही संगाकारा का बचपन कब क्रिकेट में तब्दील होग या उन्हें खुद भी पता नहीं चला। संगाकारा के पास ना तो लारा की तरह तेज गेंदबाजों पर हावी होकर खेलने की आकर्षक शैली थी ना गैरी सोबर्स जैसा आक्रमक तेवर बावजूद इसके संगाकारा ने दुनिया भर में रन बनाए।
बाएं हाथ के बेहद स्टाइलिश बल्लेबाज संगाकारा के बारे में कहा जाता है कि वो एक ऐसे दौर में खेले जहां सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, जैक कैलिस, रिकी पोंटिग और महेला जयवर्धनेसरीखे खिलाड़ी मौजूद थे। इस कारण उनकी उपलब्धि इन खिलाडिय़ों की चमक के आगे फीकी सी पड़ गई। हालांकि आकडों के आईने में देखे तो संगाकारा कहीं से भी सचिन से कमतर नहीं है लेकिन संगाकारा को क्रिकेट की दुनिया में वो सम्मान नहीं मिला जिसके हकदार थे। दरअसल,संगाकारा भीड़ में छुपे वो नायक थे जिसकी बल्लेबाजी शैली का हर कोई मुरीद था। बहुत कम लोगों को पता होगा कि मैदान पर बेहद शांत दिखने वाले संगाकारा संगकारा अच्छे वक्ता भी हैं। संगकारा ने 2011 में लॉड्र्स में एमसीसी स्पिरिट ऑफ़ क्रिकेट काउड्रे पर लेक्टर भी दिया। लगभग एक घंटे के भाषण में संगकारा ने श्रीलंका क्रिकेट के प्रशासनिक ढांचे पर सवाल उठाए थे। उनके इस भाषण की खूब प्रशंसा हुई थी और बाद में इसे श्रीलंका में स्कूल के पाठ्यक्रम में भी जोड़ा गया था। कुमार संगाकारा के अगर आकड़ों पर गौर किया जाए तो वो इस दौर के सबसे शानदार खिलाड़ी है। संगाकारा ने कुल 404 वनडे की 380 पारियों में 41 बार नाबाद रहते हुए 41.98 की शानदार औसत से 14234 रन बनाए जिसमे से उनकेनाम पर 25 शतक और 93 अर्धशतक दर्ज है। अर्धशतक के मामले में वो सचिन 96 से ही पीछे है सिर्फ यही नहीं संगाकारा सचिन के बाद वनडे में 14 हजार रन पूराकरने वाले एकलौते बल्लेबाज है। कुमार संगाकारा शतक लगाने के मामले में सचिन (49) रिकी पोटिंग(30) और सनत जयसूर्या (28) से ही पीछे है। संगाकारा ने अपनी बल्लेबाजी शैली की असली झलक टेस्ट क्रिकेट दिखाई में जहां लगभग 58 की औसत से उन्होंने 12400 रन बनाए। संगाकारा सिर्फ विकेट के आगे ही बल्कि विकेट के पीछे भी सफल रहे। वो एक ऐसे आलराउंडर रहे जिसे कोई भी कप्तान अपनी टीम में लेना चाहेगा। संगाकारा की आलोचना की जाती है कि उन्होंने ज्यादातर रन घरेलू मैदान पर ही बनाए है लेकिन 11 बार 200 या उससे ज्यादा रन बनाना भी कोई आसान काम नहीं है। इसके अलावा श्रीलंका एक छोटा सा देश है। संगाकारा ने अपने देश का नाम विश्व पटल पर नाम कायम किया है। वे अपने खेल की बदौलत दुनियाभर में लोकप्रिय रहे । संगाकारा हालांकि विश्व कप के बाद ही संन्यास लेना चाहते थे लेकिन बोर्ड की खातिर उन्हें पाकिस्तान और भारत से कुल मिलाकर चार टेस्ट और खेलने पड़े। अपने आखिरी पारी में बिना किसी दवाब के मैदान पर आए थे। भारतीय टीम ने उन्हें गार्ड आफ ऑनर दिया। पी सारा ओवल मैदान पर जज्बात उमड़ चुके थे। खुद संगाकारा अपने 15 साल के करियर को विराम दे रहे थे।
श्रीलंकाई समर्थकों के लिए ये एक गौरव की बात थी। संगाकारा ने श्रीलंका के भविष्य के लिए ऊंचे मानदंड स्थापित किए है। इसमे कोई शक नहीं है कि संगाकारा के संन्यास से श्रीलंका को झटका लगा लेकिन क्रिकेट यहीं है यहां एक से एक खिलाड़ी आते है।अपने खेल से क्रिकेट समर्थकों और क्रिकेट पंडितों को अपना मुरीद बनाते है। संगाकारा उनमे से एक रह है।
-आशीष नेमा