03-Apr-2013 10:22 AM
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बिहार को विशेष राज्य देने की मांग अचानक नहीं उठी है। नई दिल्ली में जिस तरह नीतिश ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया वह कांग्रेस को नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी को चिंतित करने के लिए किया गया था। इस बहाने नीतिश भाजपा को यह जताना चाह रहे थे कि उनके मित्रों की संख्या कम नहीं है। जिस तरह दिल्ली सरकार ने नीतिश की इस रैली के लिए विशेष व्यवस्थाएंÓ की वह अंदरूनी राजनीति की तरफ इशारा कर रही है। समझा जाता है कि दिल्ली सरकार के बहुत से बिहारी कर्मचारियों को इस रैली में जाने के लिए विशेष अघोषित छूट मिली हुई थी। केंद्रीय कर्मचारियों को भी ढील दी गई। उन लोगों को भी नजरअंदाज किया गया जो सरकारी होते हुए नीतिश के प्रबंधन में जी-जान से जुटे हुए थे कुल मिलाकर नीतिश को दिल्ली में हाथों-हाथ लिया गया। इतनी रहमत तो मुलायम और माया पर भी नहीं दिखाई जाती। बल्कि उन्हें सीबीआई के मार्फत सीधा कर दिया जाता है। नीतिश ने एक बयान भी दिया था कि कांग्रेस को सरकार बचाना आता है। नीतिश के इस बयान से यह तो साफ है कि यदि कांग्रेस सरकार बचाना चाहेगी तो वे इसमें बाधक नहीं बनेंगे। हालांकि बाद में उन्होंने यह भी कहा कि जल्द लोकसभा चुनाव हो जाने चाहिए। इन दो भिन्न बयानों से यह तो साफ हो गया है कि नीतिश फिलहाल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसका अस्तित्व कागजों पर ही है से मधुर संबंध बनाए रखेेंगे, कांग्रेस से भी अपने रिश्ते तल्ख नहीं करना चाहते ताकि भविष्य की संभावनाएं बनी रहे, लेकिन नीतिश की कांग्रेस से निकटता का सबसे बड़ा मुद्दा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना है। यदि नीतिश इसमें कामयाब रहते हैं तो आगामी समय में बिहार में उनकी पकड़ और मजबूत होने वाली है। जो काम लालू यादव न कर सके वह काम नीतिश करेंगे। ऐसी खुशफहमी बिहार की जनता ने भी पाल रखी है। इसीलिए दिल्ली में नीतिश की यह रैली बिहार केंद्रित थी।
पिछड़ेपन से जूझ रहे बिहार के विकास के लिए विशेष दर्जे की मांग नयी नहीं है। खुद नीतिश कुमार काफी समय से यह मांग कर रहे हैं, लेकिन अक्सर जवाब यही मिला है कि विशेष राज्य के दर्जे के लिए निर्धारित मानदंडों पर बिहार खरा नहीं उतरता। इसमें दो राय नहीं कि विशेष राज्य का दर्जा राज्यों के लिए त्वरित विकास में मददगार होता है क्योंकि कर छूट आदि के आकर्षण में वे उद्योगों की पसंद बन जाते हैं, लेकिन इसके लिए निर्धारित और स्पष्ट मानदंड हैं। देश में एक-दो नहीं, बल्कि 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है। इसके बावजूद अगर बिहार उससे वंचित है तो उसका कारण उन मानदंडों पर खरा न उतरना ही हो सकता है। बेशक ऐसे कोई भी मानदंड स्थायी नहीं होते। होने भी नहीं चाहिए, परिस्थितियों के अनुरूप इनकी समीक्षा कर इनमें परिवर्तन किये ही जाने चाहिए। वर्षों से विशेष राज्य के दर्जे की बिहार की मांग को नजरअंदाज करने वाली संप्रग सरकार ने इस दिशा में कुल जमा इतना -सा सकारात्मक संकेत दिया है कि मानदंडों में परिवर्तन पर विचार किया जा सकता है।
जाहिर है, आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बिहार के मतदाता नीतिश सरकार के कामकाज के आधार पर भी वोट करेंगे। इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि नीतिश ने बदहाल बिहार को विकास की राह पर वापस लाने में तो सफलता पायी है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि पिछले कुछ महीनों से बिहार की जर्जर कानून व्यवस्था और कई वर्गों के असंतोष भी समाचार माध्यमों की सुर्खियां बन रहे हैं। खुद नीतिश कुमार से खफा कुछ नेता जद-यू को अलविदा कह चुके हैं। निश्चय ही यह वहां सब कुछ ठीक होने का संकेत तो नहीं है। ऐसे में चुनाव मैदान में उतरने के लिए कोई भावनात्मक मुद्दा और नारा चाहिए ही। अत: बिहारी गौरव और विशेष राज्य का दर्जा जद-यू और नीतिश कुमार के लिए वैसा ही मुद्दा और नारा है। यह मुद्दा और नारा आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कितना कारगर साबित होगा, वह तो तभी पता चलेगा, लेकिन दिल्ली की अधिकार रैली में नीतिश ने जो राजनीतिक दांव चला है, उस पर अब सभी की नजरें लगी रहेंगी। उन्होंने लगभग चेतावनी के अंदाज में कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा तो केंद्र सरकार को देना ही पड़ेगा, अब नहीं तो वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद यानी जद-यू की राजनीतिक दिशा अब यही मुद्दा तय करेगा। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अब इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है। कांग्रेस बिहार में अपने बल पर चुनाव लडऩे की हालत में नहीं है और लालू-पासवान से उसकी दूरियां बढ़ती ही जा रही हैं। ऐसे में वह बिहार को विशेष दर्जा दे कर जद-यू की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा सकती है। वैसे जो लोग नीतिश कुमार की राजनीति को समझते हैं, उनके लिए यह समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि वह अगले लोकसभा चुनाव तक तो अपने सभी विकल्प खुले रखना चाहेेंगे। बिहार में अपनी सरकार बनाये रखने के लिए भाजपा का साथ नीतिश की मजबूरी है तो लोकसभा चुनाव के बाद भी खंडित जनादेश की स्थिति में भी वह प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस के बजाय भाजपा की पहली पसंद हो सकते हैं। यही कारण है कि नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात के विकास मॉडल के जवाब में नीतिश भी इस रैली में बिहार के विकास मॉडल का गुणगान करना नहीं भूले।
इंद्रकुमार बिन्नानी