शेयरों की अरब सागर में डुबकी
01-Sep-2015 06:40 AM 1234807

देेश के शेयर बाजार अरब सागर में डुबकी लगाने के बाद अब तरोताजा होने लगे हैं। साल-दो साल में ऐसे अवसर आते ही हैं। किंतु देश की 98 प्रतिशत जनता को इससे कोई मतलब नहीं क्योंकि उनका पैसा शेयर बाजार में नहीं है। चीन में अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पडऩे और वैश्विक स्तर पर मंदी की आशंका का असर दुनिया भर के शेयर बाजारों पर दिखा। चीन, ब्रिटेन, जापान, हांगकांग, दक्षिण कोरिया के शेयर बाजार जहां औंधे मुंह गिरे, वहीं अमरीकी शेयर बाजार में कारोबार की शुरूआत ही भारी गिरावट के साथ हुई। आर्थिक विकास की सुस्त रफ्तार और गिरते निर्यात के जोखिम में फंसे चीन में विनिर्माण गतिविधियों के निराशाजनक आंकड़े जारी होने से युआन के अवमूल्यन और इसके असर से वैश्विक मंदी की आशंका के कारण भारत पर भी इसका असर पड़ा और एक ही दिन में करीब सात लाख करोड़ डूब गए।

उठना और गिरना शेयर बाजार का काम है। भारतीय शेयर बाजारों का सिरमौर कहलाने वाला सेंसेक्स अगर एक ही झटके में 1600 पॉइंट से ज्यादा गिर जाए तो शेयर कारोबार में लगे लोगों और आम शेयरधारकों को चिंता होना स्वाभाविक है। लेकिन देश की कुल आबादी में ऐसे लोगों का हिस्सा बहुत छोटा है, लिहाजा शेयरों का चढऩा-उतरना सड़क चलते लोगों के लिए किसी सिरदर्दी का सबब नहीं बनता। असल सवाल यह है कि 24 अगस्त की ऐतिहासिक गिरावट का क्या भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी कोई खास मतलब है? वित्त मंत्री अरुण जेटली और आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन की ओर से इसे कुछ खास तवज्जो नहीं दी गई है। जेटली का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स मजबूत हैं, लिहाजा हमारे शेयर बाजार बहुत जल्दी ऊपर आ जाएंगे। राजन के लिए शेयर बाजार की हलचलों का असर रुपये की कीमत पर पडऩा थोड़ी चिंता का विषय जरूर है। लेकिन उनके मुताबिक, 300 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी मुद्रा भंडार रुपये के पीछे खड़ा है और इसको एक सीमा से ज्यादा नहीं गिरने दिया जाएगा। ये दोनों बयान उन विदेशी निवेशकों को इत्मीनान दिलाने के लिए दिए गए हैं, जो इधर कुछ दिनों में भारत से अपना निवेश निकालने का रुझान दिखाने लगे हैं।

वित्त मंत्री का यह कहना अर्धसत्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सारे बुनियादी पहलू बहुत मजबूत हैं। विदेशी निवेशकों का मिजाज बताने वाले प्रकाशनों में पिछले एक-दो महीनों से भारतीय कंपनियों के नतीजों और उनके ग्रोथ प्रॉस्पेक्ट्स को लेकर निराशा जताई जा रही है। सरकार को चुनावी मिजाज में बड़े-बड़े बोल बोलते रहने के बजाय अगले दो-तीन महीनों में कुछ ठोस करते दिखना चाहिए, क्योंकि अगले महीने अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ाए जाने से हालात थोड़ा और बिगड़ सकते हैं। जहां तक सवाल आम निवेशकों का है तो विद्वान सलाहकारों की सलाह को ताक पर रखकर वे कुछ दिन शेयर बाजार से दूर ही रहें तो अच्छा। छोटे निवेशक बाजार में उठापटक वाली स्थिति के चलते निवेश अथवा बेचान से बचें। बाजार की शक्तियों, दृश्य और अदृश्य दोनों को अपना-अपना काम करने दें। बाजार की उठापटक के कई कारणों को आम निवेशक समझ नहीं पाता। अक्सर बाजारों में गिरावट और दूसरी स्थिति में उठाव का एक बड़ा कारण विदेशी संस्थागत निवेशक होते हैं। यानी विदेशी निवेशकों का वह समूह जो कि संबंधित देश के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और अन्य हालातों को ध्यान में रखकर निवेश करता है। चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करने का नुस्खा भी अपना लिया है।

विदेशी मुद्रा भंडार को भी कम किया, लेकिन असर नहीं दिखा। भारतीय परिदृश्य में देखें तो हमारी अर्थव्यवस्था काफी मजबूत है। सोना और कच्चे तेल के दामों में गिरावट बनी हुई है। मुद्रास्फीति की दर भी थोक और खुदरा बाजार में नियंत्रण में है। सबसे अहम बात है कि राजनीतिक स्थिरता के साथ लोगों में उत्साह बरकरार है। हालात ये हैं कि चीन ने मास प्रोडक्शन के अपने फॉमूले के जरिए भारत को अपना माल खपाने के बाजार के रूप में तलाशा है। चीन की अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट के जरिए हम अपनी इंडस्ट्रीज को और बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

-इंद्र कुमार

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