राजभवन और सरकार में बढ़ी रार
17-Aug-2015 07:52 AM 1234862

उत्तर प्रदेश में इनदिनों राजभवन और सरकार के बीच टकराव शुरू हो गया है। आलम यह है कि राज्यपाल राम नाईक ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर दिया है। हालांकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार कोशिश कर रहे थे कि सरकार और राजभवन के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण बने रहें, इसी वजह से कई बार राज्यपाल की सख्त टिप्पणी और सरकार के फैसलों पर उंगली उठाने के बाद भी सीएम ने राज्यपाल राम नाईक के बारे में सार्वजनिक रूप से कोई गलत बयानबाजी नहीं की। अखिलेश ही नहीं सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने भी कभी ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे यह संदेश जाये कि सरकार और राजभवन के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो कई बार राजभवन जाकर भी राज्यपाल की नाराजगी दूर करने की कोशिश करते दिखे। राज्य सरकार द्वारा विधान परिषद के सदस्यों के मनोनयन की लिस्ट पर जब राम नाईक ने प्रश्न चिह्न लगाया तो मुलायम सिंह यादव तक ने राज्यपाल से मिलकर अपना पक्ष रखने में देरी नहीं की। हां, इस दौरान सपा नेता और अखिलेश कैबिनेट में शामिल बड़बोले आजम खान जरूर राजभवन और राज्यपाल पर तंज कसते रहे, लेकिन राजभवन के मामलों में आजम को कभी अखिलेश सरकार का साथ नहीं मिला तो राज्यपाल ने भी आजम के किसी बयान पर टिप्पणी करने से मना कर दिया। आजम की तरह शिवपाल भी कभी-कभी दबी जुबान से राजभवन पर उंगली उठाते रहे, लेकिन वह मुखर होकर कभी नहीं बोले। मगर सपा के महासचिव रामगोपाल यादव ने सीएम की गैर-मौजूदगी में (जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की विदेश यात्रा पर गये थे) राजभवन पर तीखा हमला बोलकर सरकार और राजभवन के बीच के सौहाद्रपूर्ण वातावरण को तार-तार कर दिया। वह भी एक ऐसे मसले (अखिलेश सरकार पर महत्वपूर्ण पदों पर यादवों को वरीयता देने का आरोप) पर जिसको लेकर विपक्ष लगातार आंकड़ों के साथ सरकार को कठघरे में खड़ा करता रहा है।
राज्यपाल के बयान (सरकारी पदों पर एक जाति विशेष का वर्चस्व) पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पार्टी के महासचिव और सपा के थिंक टैंक माने जाने वाले रामगोपाल यादव ने यहां तक कह दिया था कि गवर्नर राम नाईक को महामहिम कहना लज्जाजनक लगने लगा है। सपा महासचिव ने यादव अफसरों की सूची जारी कर कहा कि यूपी में यादव अफसरों का वर्चस्व नहीं है। उन्होंने यह सूची गवर्नर के उस बयान पर जारी की जिसमें उन्होंने कहा था कि यूपी में एक जाति विशेष के वर्चस्व से वह चिंतित हैं। रामगोपाल ने कहा कि गवर्नर आए दिन राज्य सरकार के खिलाफ अमर्यादित बयान दे रहे हैं। उन्होंने केंद्र सरकार से नाईक को बर्खास्त करने की मांग की है। रामगोपाल यहीं नहीं रूके वह यहां तक कह गये कि उनकी पार्टी पीएम से अनुरोध करती है कि नाईक को गवर्नर पद से हटाकर विस चुनाव के लिए बीजेपी का सीएम उम्मीदवार घोषित कर दें। राम गोपाल ने अफसरों की सूची जारी करके कहा कि राज्यपाल को इस बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए कि यूपी में यादवों का वर्चस्व है। सपा महासचिव ने खुलेआम चेतावनी देते हुए कहा कि नाईक ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाएं, वर्ना हमारे कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर उनके खिलाफ नारेबाजी करेंगे। कोई सपाई अगर उनके खिलाफ अनुचित शब्द बोलता है तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे।

नियुक्तियों पर राम नाईक ने उठाया सवाल
राज्यपाल राम नाईक की सरकारी पदों पर एक जाति विशेष का वर्चस्व से संबंधित टिप्पणी से समाजवादी पार्टी के सब्र का पैमाना छलका तो भारतीय जनता पार्टी ने सरकार को तुरंत घेर लिया। भाजपा को यह बात बेहद खराब लगी की सपा महासचिव को राम नाईक को महामहिम कहने में लज्जा आती है। प्रो. राम गोपाल यादव के बयान पर राज्यपाल की तरफ से तो कोई बयान नहीं आया लेकिन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने करारा हमला बोलते हुए कहा कि गवर्नर ने तो समस्या पर सवाल उठाया था। उनका उद्देश्य भर्तियों में आ रही शिकायतों को लेकर था। वाजपेयी ने कहा कि सपा सरकार किसी समस्या का समाधान करने की बजाए मुद्दे से भटक रही हैं। अगर वह सच्चाई जनता के सामने रखना ही चाहती है तो सरकार केवल भर्ती आयोगों के अध्यक्षों के नाम सार्वजनिक कर दे और लोक सेवा आयोग में 40 महीने में हुई भर्तियों की सूची नाम जिला समेत घोषित कर दे तो उसकी कलई खुल जाएगी। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने पूछा है कि लोक सेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड, उच्चतर शिक्षा चयन बोर्ड, अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड, उत्तर प्रदेश सहकारी संस्थान सेवा मंडल के चेयरमैन कौन हैं। उनका नाम सरकार को सार्वजनिक करना चाहिए। वाजपेयी ने कहा कि राज्यपाल पर सवाल उठाने से पहले उन्हें गवर्नर द्वारा नामित विधान परिषद सदस्यों की सूची को याद कर लेना चाहिए। उन्होंने एमएलसी सूची में तीन एक ही जाति के लोगों के नाम को हरी झंडी दी। भाजपा अध्यक्ष ने सपा पर निशाना साधते हुए कहा, नियुक्ति से लेकर तबादला तक में भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद हावी है। अखिलेश सरकार गुंडागर्दी और जातिवाद का सहारा लेकर किसी तरह परिवार को लोकसभा में पहुंचा सकी है। भाजपा से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती भी अखिलेश सरकार पर इसी तरह के आरोप लगा चुकी हैं।
-लखनऊ से मधु आलोक निगम

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