17-Aug-2015 08:09 AM
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गौरव चौधरी एमबीए हैं। उन्होंने दिल्ली स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम भी किया है लेकिन उनका मन ऑफिस से अधिक गांवों में रमता था। इसलिए एक दिन वे नौकरी छोड़ और चल दिए

अपने गांव की ओर। पिछले कुछ सालों से वे उत्तरप्रदेश के पीलीभीत के समीप एक गांव में एग्रो-फार्मिंग और डेयरी बिजनेस कर रहे हैं।
खेतों में समय गुजारना, किसानों के बीच काम करना, उन्हें खेती की नई विधियां बताना और उपज बढ़ाने को लेकर नए उपाय करने में उन्हें ऐसा मजा आ रहा है, जो शायद कभी नौकरी में नहीं मिला। दरअसल, खेती अब सिर्फ किसानों या गांव की गरीब आबादी का पेशा नहीं है। वैश्वीरकरण और युवा पीढ़ी की कुछ अलग हटकर करने की इच्छा ने कृषि को भी एक आकर्षक कॅरियर बना दिया है। एफएमसीजी, ऑटोमोबाइल, रिटेल, रिसर्च, एडवर्टाइजिंग आदि सेक्टर्स में अनेक संभावनाएं पैदा हुई हैं, क्योंकि कई बड़ी कंपनियां आज ग्रामीण क्षेत्रों में ऑपरेट कर रही हैं। इन कॉरपोरेट कंपनियों को अब ग्रामीण इलाकों में अधिक संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। इस तरह जैसे-जैसे भारत विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने के लिए आगे बढ़ रहा है, रूरल मैनेजर्स यानी रूरल मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स की डिमांड भी बढ़ रही है।
जॉब प्रोफाइल : भारत की अर्थव्यवस्था में आज भी कृषि की बहुत बड़ी भूमिका है। यहां का करीब 65 प्रतिशत क्षेत्र ग्रामीण इलाकों के अंतर्गत आता है। ऐसे में रूरल मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के ऊपर ग्रामीण इलाकों में विकास कार्य को गति देने की बड़ी जिम्मेदारी होती है। रूरल मैनेजमेंट से जुड़े प्रोफेशनल्स का काम ग्रामीण इलाकों में कंपनी की तरक्की के ग्राफ को ऊपर ले जाने का भी होता है। उन पर फर्म के प्रबंधन तथा रख-रखाव की जिम्मेदारी होती है। इसके अलावा प्लानिंग, बजट, मार्केट, निरीक्षण और एम्प्लॉयीज को बहाल करने का कार्य भी होता है। बदलते दौर में रूरल मैनेजर की जॉब प्रोफाइल भी तेजी से बदल रही है। ये टैकसेवी प्रोफेशनल्स आधुनिक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से विकास का खाका खींच रहे हैं।
पर्सनल स्किल्स : रूरल मैनेजमेंट में कॅरियर बनाने वालों को ग्रामीण जीवन, प्राकृतिक संसाधनों (जमीन, मिट्टी, पानी, वन संपदा, पशुपालन, डेयरी, मछली पालन आदि), प्रोडक्शन सिस्टम, ग्रामीण इलाकों के रोजगार, कृषि के लिए जरूरी पर्यावरण आदि की समझ और जानकारी होनी चाहिए।
इसी के आधार पर आप गांव के विकास के लिए बनाए जाने वाली योजनाओं पर अमल कर पाते हैं। इनके अलावा, आपका व्यक्तित्व दोस्ताना और मिलनसार होना चाहिए। भीड़ और दबाव को नियंत्रित करने का हुनर आना चाहिए। साथ ही, इस फील्ड में आगे बढऩे के लिए लीडरशिप स्किल्स भी जरूरी हैं।
क्वॉलिफिकेशन और कोर्स : देश के कई प्रमुख बिजनेस स्कूलों में रूरल मैनेजमेंट में पीजी डिप्लोमा या एमबीए कोर्स उपलब्ध हैं। इनमें प्रवेश के लिए किसी भी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होना जरूरी है। हालांकि संस्थानों में दाखिला प्रवेश परीक्षा के आधार पर ही हो पाता है। एंट्रेंस एग्जाम के बाद स्टूडेंट्स को ग्रूप डिस्कशन और पर्सनल इंटरव्यू के दौर से गुजरना होता है। ह्यूमेनिटीज में ग्रेजुएट्स के लिए रूरल मैनेजमेंट एक बेहतर ऑप्शन है। रेगुलर के अलावा इग्नू से रूरल डेवलपमेंट कोर्स किया जा सकता है।
कैसे मिलेगी एंट्री? : इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आणंद में रूरल मैनेजमेंट के दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में प्रवेश के लिए लिखित परीक्षा होती है। जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर में रूरल मैनेजमेंट के पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम में एंट्री आईआरएमए/ एक्सएटी टेस्ट स्कोर, जीडी और इंटरव्यू के आधार पर होती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, जयपुर में एडमिशन के लिए मैट, एक्सएटी आदि स्कोर जरूरी है।
ग्रामीण क्षेत्र में अवसर : आपके पास रूरल मैनेजमेंट में डिग्री है, तो अवसरों की कमी नहीं है। रूरल मैनेजमेंट से जुड़े विद्यार्थियों को अमूल, टाटा टेली सर्विस, मदर डेयरी जैसी कंपनियां हाथों-हाथ लेती हैं। आप एनजीओ, सरकारी विकास एजेंसियों, नाबार्ड, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, एलआईसी आदि इंश्योरेंस कंपनियों के अलावा कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों या आईटीसी ई-चौपाल, एससीएस ग्रूप जैसी रूरल कंसल्टेंसीज और रिसर्च एजेंसीज में काम कर सकते हैं। इनके अलावा एक्शन फॉर रूरल डेवलपमेंट, आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम, इंटरनेशनल एनजीओ, डीआरडीए, एसआईआरडी आदि भी रूरल मैनेजमेंट ग्रेजुएट्स को हायर करते हैं।
सैलरी पैकेज : बिजनेस इंस्टीट्यूट के विद्यार्थियों की सैलरी उनके बैकग्राउंड पर निर्भर करती है। आम तौर पर रूरल मैनेजमेंट स्टूडेंट्स को शुरूआती दौर में चार से आठ लाख रुपए सालाना पैकेज मिल जाता है।
-राजेश बोरकर