16-Aug-2015 08:04 AM
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स्पेशल इकोनॉमिक जोन (सेज) अब भारत सरकार के लिए सफेद हाथी बनता जा रहा है। एक तरफ तो बड़े उद्योग मौके की जमीने खरीद कर अपना लैंड बैंक बना रहे हैं वहीं दूसरी तरफ जिन जमीनों

का कोई मोल नहीं है उन्हें खरीदने में उद्योग जगत की कोई दिलचस्पी नहीं है। इस प्रकार स्पेशल इकोनॉमिक जोन लाभ-हानि के गणित में उलझ कर रह गया है। यही वजह है कि राज्य सरकारों का भी सेज से मोहभंग हो रहा है।
मध्यप्रदेश ने तो इंदौर में प्रस्तावित सेज को अब औद्योगिक क्षेत्र में बदलने का फैसला किया है। इसी तरह महाराष्ट्र की सरकार ने भी नई सेज परियोजनाओं पर रोक लगा दी है। कारण यह है कि रिलायंस और जेनपेक्ट जैसी कंपनियां पिछले एक साल में प्रोजेक्ट से हाथ खींचते हुए राज्य सरकारों को जमीन वापस कर चुकी हैं। बाकी बहुत सी कम्पनियां भी इन्हीं के नक्शेकदम पर हैं। ऐसे में सेज को सजाने का कोई औचित्य राज्य सरकारों को दिखाई नहीं देता। कुल मिलाकर वह हनीमून पिरियेड खत्म हो चुका है जिसमें सारे देश भर में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के बड़े-बेड़े दावे किये जा रहे थे। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार देश के विभिन्न राज्यों में प्रस्तावित 376 सेज में 45,782.64 हेक्टेयर जमीन नोटिफाई की गई है। लेकिन इसमें करीब 57 फीसदी जमीन अभी तक खाली पड़ी हुई है। इसमें सबसे सुस्त रफ्तार राजस्थान में है, जहां 90 फीसदी जमीन बिना उपयोग के पड़ी है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश को आकर्षित करने की कोशिश में लगे मध्यप्रदेश ने सेज में खुली या खुलने वाली औद्योगिक इकाइयों के लिए कई नियम बदल दिए हैं। नगरीय निकाय द्वारा लगाए जाने वाले टैक्स से इन्हें राहत देने के लिए सरकार सेज को इंडस्ट्रियल टाउनशिप घोषित करने की तैयारी शुरू कर दी। इससे यह क्षेत्र एकेवीएन (औद्योगिक केंद्र विकास निगम) के दायरे में आ जाएंगे और नगरीय व अन्य स्थानीय निकाय के टैक्स सिस्टम से बाहर हो जाएंगे। वहीं महाराष्ट्र सरकार ने भी पिछले महीने नई सेज की नई परियोजनाओं को मंजूरी देने से इंकार कर दिया है। राज्य सरकार ने यह फैसला सेज की सुस्त रफ्तार के चलते लिया है। महाराष्ट्र में प्रस्तावित 6579 हेक्टेयर जमीन में से करीब आधी जमीन को अभी भी निवेशकों की तलाश है।
कंपनियों का भी मोहभंग
देश में औद्योगिक विकास के केंद्र के रूप में स्थापित किए गए स्पेशल इकोनोमिक जोन से डेवलपर कंपनियों का भी मोह भंग हो रहा है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) को गुडग़ांव के निकट 1383 एकड़ जमीन सेज डेवलप करने के लिए मिली थी। जिसे कंपनी ने पिछले साल वापस कर दिया। मध्यप्रदेश में भी एक विश्वविद्यालय के लिए ली गई जमीन वापस करने की तैयारी है। वहीं राजस्थान में जेनपेक्ट के अलावा राजस्थान सरकार हैंडीक्राफ्ट के लिए प्रस्तावित सेज की जमीन को डिनोटिफाइ कर चुकी है।
सेज में जाने का अब नहीं फायदा
गुजरात के ऑटो पार्ट कारोबारी दिनशॉभाई पटेल के अनुसार सेज को लेकर सरकार ही उत्साहित नहीं है। तो इंडस्ट्री के उत्साहित होने का सवाल ही नहीं उठता। वे बताते हैं कि आज के समय में सेज के भीतर उद्योग लगाने से बेहतर किसी सरकारी या निजी औद्योगिक क्षेत्र में उद्योग बसाना पड़ता है। आज फोकस मार्केट स्कीम और फोकस एक्सपोर्ट जैसी स्कीम सेज में मौजूद उद्योगों को हासिल नहीं है, जबकि सेज के बाहर मौजूद उद्योगों को इसका फायदा मिलता है।
बिना राहत सेज का विकास मुश्किल
सेज परियाजना से जुड़े अधिकारियों के अनुसार सरकारी नियमों में अनिश्चितता सेज की सुस्त रफ्तार का सबसे प्रमुख कारण मिला है। सेज परियोजना से जुड़े पूर्व आईएएस अधिकारी चिन्मय प्रकाश ने बताया कि स्पेशल इकोनोमिक जोन में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए पहले 10 से 15 वर्षों तक विशेष राहत देने की जरूरत थी। लेकिन सरकार पहले चार पांच साल में ही एसईजेड को लेकर निराश हो गई। जहां निवेशकों को एक स्थिर नीति की जरूरत थी। वहीं पिछले दस साल से सरकार सेज के लिए कोई ठोस नियम तक नहीं बना सकती है। पहले 2011 में विशेष रियायतें वापस लेने और उसके बाद मिनिमम एल्टरनेट टैक्स (मैट) तथा डिवीडैंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स (डी.डी.टी.) के लागू होने के बाद से सेज के लिए स्थिति लगातार खराब होती गई है। जिसकी वजह से जिन सेज को विभिन्न स्वीकृतियां मिल गई थीं, उनमें भी खास काम नहीं हो सका जबकि जिनका काम जारी था, वह भी ठप्प हो गया। देश में सेज को लेकर सबसे अधिक जमीन गुजरात में नोटिफाइ की गई। यहां 12,382.83 हेक्टेयर जमीन सेज के लिए अधिग्रहित की गई। लेकिन यहां सिर्फ 6,818 हेक्टेयर जमीन पर ही उद्योगिक एवं दूसरी गतिविधियों के लिए निवेशकों ने रुचि दिखाई। यहां 4795 हेक्टेयर जमीन खाली पड़ी है। इसके बाद आंध्रप्रदेश का नंबर आता है जहां पर 11187 हेक्टेयर जमीन सेज के लिए नोटिफाइ की गई। लेकिन 2213 हेक्टेयर जमीन पर ही औद्योगिक प्रक्रियाएं शुरू हुई। वहीं तेलंगाना और राजस्थान ऐसे राज्य हैं जहां सेज की जमीनों का इस्तेमाल अभी तक हुआ ही नहीं। राजस्थान की बात करें तो यहां पर 773.30 हेक्टेयर जमीनें सेज के अंतर्गत हैं। लेकिन इनमें से 636.51 हेक्टेयर जमीनों पर कोई भी उद्योग स्थापित नहीं है।
-आरके बिन्नानी