मोदी की वर्किंग स्टाइल से डरे अफसर
16-Aug-2015 09:18 AM 1234824

केन्द्र में मोदी की सरकार को दबे छुपे शब्दों में गुज्जू सरकार कहने से लोग नहीं चूकते। कारण स्पष्ट है कि गुजरात के खोटे सिक्के भी केन्द्र में अच्छी तरह चल रहे हंै।  लेकिन बाकी राज्यों के खरे सिक्के गुज्जू नुमा नौकरशाही से तालमेल न बिठान के कारण तलवार म्यान में रख मैदान से हट चुके हैं। कभी केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आईएएस उतावले रहते थे, लेकिन जब से केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, तब से स्टेट कैडर के आईएएस अधिकारियों को दिल्ली रास नहीं आ रही? मई 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से अबतक कम से कम 56 आईएएस अधिकारी केंद्र की पदस्थापना समय से पूर्व छोड़कर अपने प्रादेशिक कैडर में वापस लौट चुके हैं। इसके उलट केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारियों की संख्या इस दौरान महज 4 रही।  जहां तक मप्र का सवाल है तो यहां से इस दौरान एक भी आईएएस दिल्ली नहीं गया है। जबकि केंद्र सरकार ने मप्र सरकार को पत्र लिखकर केंद्रीय कोटे के 30 आईएएस की मांग कई बार कर चुकी है। बताया जाता है कि वर्तमान केंद्र सरकार के अब तक के कार्यकाल में मध्यप्रदेश के नौकरशाहों की भूमिका महत्वपूर्ण नहीं हो सकी। या यूं कहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली में मप्र के आईएएस फिट नहीं बैठ रहे हैं। यही कारण है कि कभी केंद्र सरकार के विभागों में महत्वपूर्ण पदों को संभालने वाले मप्र के आईएएस अफसरों के पास महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं है।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार संभालते ही सबसे पहले नौकरशाही पर नकेल कसने की कोशिश की। इसके लिए कई तरह की गाइड लाइन बनाई। मोदी की आक्रामकता देख नौकरशाह भी सहम गए। मोदी ने केंद्र में अफसरों की कमी की पूर्ति के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अपने कोटे के 952 अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने के लिए यह गाइड लाइन जारी की। केंद्र ने कहा है कि उसके पास उपसचिव, निदेशक स्तर के आईएएस अधिकारियों की बहुत कमी है। जो आईएएस 14 साल की सेवा पूरी कर चुके हैं वे निदेशक तथा जो 9 साल की सेवा पूरी कर चुके हैं वे उपसचिव पर प्रतिनियुक्ति पर भेजे जा सकते हैं। इसके अलावा संयुक्त सचिव स्तर के आईएएस अधिकारियों की भी मांग की गई है। आईएएस की कमी के कारण जहां एक-एक अफसर पर कई विभागों की जिम्मेदारी है वहीं कई महत्वपूर्ण विभाग और कार्य बाबूओं के कंधों पर है।  क्योंकि केंद्र में पदस्थ नौकरशाह अपने राज्य की ओर रूख कर गए हैं। वहीं केंद्र की बार-बार की मांग के बावजुद भी राज्य से आईएएस दिल्ली जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। ऐसे में मोदी ने सभी प्रमुख विभागों की निगरानी के लिए सुपर पीएमओÓ (पीएमओ में पदस्थ प्रधानमंत्री के पसंदीदा अफसरों की टीम यानी प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा, अजीत कुमार डोभाल, राजीव टोपनो, संजीव सिंगला, गुलजार नटराजन, बृजेश पांडेय, मयूर माहेश्वरी और श्रीकार केशव परदेसी )का गठन कर डाला। अब लगभग हर विभाग में सुपर पीएमओÓ का हस्तक्षेप बढ़ गया है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि जहां एक साल पहले तक दिल्ली में जो नौकरशाह अपने विभागों में बिना दबाव और बिना तनाव के कार्य कर रहे थे, अब उन्हें  सुपर पीएमओÓ की निगरानी में काम करना पड़ रहा है। आलम यह है कि केंद्र में जितने अहम मंत्रालय हैं उनकी डोर सुपर पीएमओÓ ने अपने हाथ में ले रखी है। सुपर पीएमओÓ ने केंद्र सरकार में पदस्थ अफसरों की जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें मप्र के अफसरों को फिसड्डी बताया गया है।
मप्र कैडर के आईएएस अफसर हमेशा अपनी मेहनत और बेहतर कार्यप्रणाली के लिए सराहे जाते रहे हैं।  केंद्र में किसी भी पार्टी की सरकार हो या कोई भी प्रधानमंत्री हो मप्र के नौकरशाहों ने हमेशा अपना उत्कृष्ट योगदान दिया है। लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार के अब तक के कार्यकाल में मध्यप्रदेश के नौकरशाहों की भूमिका महत्वपूर्ण नहीं हो सकी। या यूं कहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली में मप्र के आईएएस फिट नहीं बैठ रहे हैं। यही कारण है कि मोदी सरकार ने अहम मंत्रालयों में सचिव व संयुक्त सचिव स्तर पर अफसरों की भूमिकाओं में जो परिवर्तन किया है, उसमें मप्र कॉडर के बिमल जुल्का, स्नेहलता कुमार, राजन कटोच व जेएस माथुर(अतिरिक्त सचिव)अपनी भूमिका बरकरार तो रख पाए हैं, लेकिन अहम महकमों में मप्र के अफसरों को जिम्मेदारी नहीं मिली। यही नहीं मप्र के 1982 बैच के आईएएस दिल्ली से वापसी की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि उनका प्रमोशन नहीं हो पा रहा है और वे कहते हैं कि हम जूनियर के अंडर में कैसे काम करेंगे। जबकि 1985 बैच के आईएएस को ज्वाइंट सेक्रेटरी बनान की तैयारी चल रही है।
पहले कम थे वापसी के मामले
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक 2013 में ऐसा करने वाले आईएएस अधिकारियों की संख्या महज 3 थी। जबकि अगस्त से दिसंबर 2012 के बीच ऐसा कदम उठाने वाले अधिकारियों की संख्या महज 1 थी। हालांकि, जनवरी से मई 2014 के बीच 13 अधिकारी वापस अपने स्टेट कैडर में लौट गए। ये वो दौर था जब लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थी जिसका परिणाम केंद्र की सत्ता में बड़े दलगत बदलाव के रूप में सामने आया। हालांकि, डीओपीटी के सूत्र इस बात से इंकार करते हैं कि इसका कारण अधिकारियों के बीच मोदी सरकार के साथ काम करने को लेकर किसी प्रकार की अरूचि है। क्योंकि मोदी सरकार का ज़ोर प्रशासनिक कामकाज में व्यापक बदलाव पर है। इसका कारण ये हो सकता है कि राज्यों में उनके कैडर में अधिकारियों को बड़ी जिम्मेदारी मिली हो।
-प. रजनीकांत

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