पोर्नÓ पर कास्मेटिक बैन क्यों...?
17-Aug-2015 08:02 AM 1234961

केंद्र सरकार ने पहले तो 857 के करीब पोर्न साइट्स को बैन कर दिया और फिर बाद में 700 से अधिक पोर्न साइट्स पर से प्रतिबंध हटा लिया। ये सब किया गया 48 घंटे के अंतराल से। हटाने और प्रतिबंधित करने के इस नाटकीय प्रकरण ने केन्द्र सरकार को हंसी का पात्र बना दिया। शुचिता के स्वयंभू ठेकेदार बने बैठे कुछ लोग भाजपानीत सरकार को  ऊल-जलूल सलाह दे रहे हैं। इन्हीं सलाहकारोंÓ ने पहले गजेन्द्र चौहान जैसे मामुली और सी ग्रेड कलाकार को पुणे स्थित फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एफटीआईआई)का चेयरमैन बनवा दिया और अब पोर्न साइट्स पर बैन का बचकाना कारनामा भी इन्हीं महानुभावों की पहल पर किया गया। ऐसा नहीं है कि काँग्रेसनीत सरकारों ने ऐसी बाल लीलायेंÓ न दिखायी हों किंतु वे इस बात का ध्यान रखती थीं कि अपने पक्ष के व्यक्ति को ही कहीं फिट करना है तो कम से कम उसका स्तर उस पद के अनुरूप तो रहे। लेकिन भाजपाई सरकार में ताकतवर बन बैठे कुछ मोहल्ला स्तरीय बुद्धिजीवी सरकार को गुमराह कर देश में हास्य का वातावरण पैदा कर रहे हैं। पिछले दिनों एनडीए सरकार ने जिन सुपात्रोंÓ का पुनर्वास किया है वे आगे भी सरकार को इसी तरह हंसी का पात्र बनवाते रहेंगे। विज्ञान से संबंधित कई संस्थाओं में तिलकधारियों को स्थापित करके केन्द्र सरकार पहले ही अपनी पर्याप्त खिल्ली उड़वा चुकी है।
बहरहाल बात हो रही है पोर्न साइट्स पर प्रतिबंध की। पहली बात तो यह है कि पोर्न साइट्स पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने के लिए अत्याधिक उच्च स्तरीय तकनीक की आवश्यकता पड़ेगी जो महंगी होने के साथ-साथ   भारत जैसे आईटी सुपरपॉवर के लिए व्यावहारिक नहीं हैं क्योंकि इन साइट्स को रोकने से कई उपयोगी कंटेंट पर भी रोक लग सकती है। दूसरा महत्वपूर्ण बिंदू यह है कि इंटरनेट पर पोर्न साइट्स का महाकुंभ लगा हुआ है। मात्र 857 साइट्स रोकने से वह मसालाÓ रुक जायेगा यह सोचना ही बेमानी है। 20 लाख से भी अधिक साइट्स सेक्स परोस रही हैं। उनमें से कुछ को प्रतिबंधित करना सागर में से कुछ बूंद निकाल कर फेंकने के समान है।
अब सरकार कह रही है कि वह तालिबान नहीं है। जिस भाजपा के कुछ विधायकों को विधानसभा में ही इन्द्रसभाÓ का आनंद उठाते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया गया हो वही जब इस तरह के प्रतिबंध थोपने लगती है तो थोड़ा हास्यास्पद लगता है। यह भी सच है कि केन्द्र में भारतीय संस्कृतिनिष्ठÓ सरकार सत्तासीन है किंतु इस सरकार को यह पता होना चाहिए कि भारत में कभी भी यौनिकता को रोकने का प्रयास नहीं किया गया। बल्कि यौन अभिव्यक्ति भारतीय वांग्मय का एक अनिवार्य हिस्सा है। वात्सायन का कामसूत्र जिनका संसार की सभी भाषाओं में सचित्र अनुवाद हो चुका है, इसी धरती पर रचा गया है क्योंकि भारत में काम को चार पुरूषार्थों में से एक माना गया है। यह सच है कि पोर्नोग्राफी वह नहीं है जिसकी खोज भारत ने की। यह वीभत्स और कहीं कहीं पर जुगुप्सापूर्ण तथा विकृति से भरपूर है किंतु इस पर रोक लगाना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। जो समाज और जो व्यक्ति काम को सही अर्थों में ग्रहण करेगा वह स्वत: ही इस तरह की विकृतियों से दूर रहेगा। प्रतिबंध समस्या का समाधान नहीं है। समस्या को सही परिपेक्ष्य में पहचानने की आवश्यकता है। पोर्नोग्राफी केवल दृश्य तक सीमित नहीं है। बल्कि यह शब्दों और अश्लील संवादों के माध्यम से समाज के बीच बहुत हद तक स्वीकृत हो चुकी है। अनेक देसी भाषाओं में लोकगीत के नाम पर पोर्नोग्राफिक गायन किया जा रहा है, ये सीडी बाजार में धड़ल्ले से बिकती हैं और इन गानों पर भीड़ भरे स्टेज में पूरे कपड़ों में जो पोर्नोग्राफी होती है उसे कैसे रोकेंगे। बॉलीवुड में फिल्में बनती हैं जिनमें नायिकाओं के नाम रोज़, मैरी और मारलो हैं। यह क्या है? किसी पोर्नोग्राफी से कम है? क्या इसे रोकना संभव है? ढेरों गाने बन रहे हैं जिनके अर्थ कुछ और ही बोलते हैं लेकिन उन पर कोई रोक नहीं है। चिंताजनक यह है कि पोर्नोग्राफी व्यक्ति द्वारा निजी तौर पर सबसे छिपकर देखी जाती है। ज्यादातर वयस्क ही इसका अवलोकन करते हैं लेकिन यह अश्लील संवाद और गाने तो हर जगह सुलभ हैं, इन पर कैसे रोक लगेगी? यदि सरकार इस तरह की सारी सामग्री को रोकने लगे तो बहुत कुछ रोकना पड़ेगा और हर माध्यम पर लगाम लगानी पड़ेगी। इस लिए बेहतर यही है कि सरकार किसी भी क्षेत्र में होने वाली अति पर नज़र रखे। इस दृष्टि से चाइल्ड पार्नोग्राफी रोकना जायज है।
किंतु केवल इंटरनेट ही नहीं संचार के तमाम माध्यम, मोबाइल इत्यादि पर भी बहुत कुछ प्रचारित और प्रसारित हो रहा है। रोकना हो तो उसे रोकने का प्रयास किया जाय। जहां तक पोर्नसाइट्स का सवाल है तो कुछ दिन पहले एक रिपोर्ट सामने आयी थी जिसमें बताया गया था कि संसार भर में पोर्न साइट्स देखने में भारत के उत्तर प्रदेश का उन्नाव जिला सर्वोच्च है। इस तथ्य से यह ज्ञात होता है कि महानगरों में जिस अपसंस्कृति के प्रसार की आशंका जतायी जा रही है वह अर्धशहरी और ग्रामीण क्षेत्रों पर पैर पसार चुकी है। किसी माध्यम को रोकने से यह महामारी नहीं रुकेगी। यौन शिक्षा को सही तरीके से युवा वर्ग तक पहुँचाना होगा। किशोरों को सही उम्र में शरीर के विषय में जागरुक और ज्ञान सम्पन्न्न करना होगा। जब इतने माध्यमों से नग्नता उपलब्ध हो ऐसी स्थिति में रोक से ज्यादा कारगर उपाय उचित शिक्षण और ज्ञानवर्धन है। भारत तो वह देश है जहां घोटुल में सारे तरुण-तरुणियां गांव से अलग रात्रि बिताते थे किंतु वहाँ न तो कोई अवैध गर्भपात होता था, न यौन रोग पनपते थे, न अवैध संबंध स्थापित होते थे न बलात्कार होता था। इतने उन्मुक्त और कुंठाहीन समाज को विकृत करने की जो कोशिश हो रही है उस पर रोक लगाने का प्रयास अवश्य किया जाना चाहिए।

क्यों लगाई गयी थी रोक
यह संयोग की ही बात है कि पॉर्नहब और रेडट्यूब नाम की दो एडल्ट साइट्स के सर्वे सामने आने के कुछ दिन बाद ही भारत में पॉर्नोग्राफी से जुड़ी आठ सौ से ज्यादा वेबसाइटों को प्रतिबंधित करने के आदेश जारी कर दिए गए ।
इस सर्वे में कहा गया था  कि महिलाओं द्वारा पॉर्न देखे जाने के मामले में भारत की स्थिति सातवें पायदान से ऊपर चढ़कर तीसरे नंबर पर आ गई है। जब पॉर्न को बंद करने संबंधी चर्चा सोशल मीडिया पर तैर रही थी, तभी इस चर्चा में बॉलीवुड अभिनेत्री सोनम कपूर ने कूदते हुए लिखा था कि बैन करने वाली  मूर्खता को बैन किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे भारतीयों की सोच में परिवर्तन नहीं आएगा। इसके जवाब में केआरके ने लिखा, क्या सोनम कपूर रोज पॉर्न देखती हैं? पॉर्नोग्राफी के मामले में भारत के लोगों को आइसबर्ग कहा जा सकता है, जिनका 90 फीसदी हिस्सा पानी के भीतर होता है, केवल दस फीसद बाहर। आज वॉट्सएप्प का जमाना है। वॉट्सएप्प पर अश्लील वीडियो एवं अन्य साहित्य तेजी के साथ एक से दूसरी जगह जा रहा है। इसका जितना आनंद पुरुष उठा रहे हैं, उतना कुछ महिलाएं भी हालांकि, महिलाओं की संख्या कम है। पसंद सबको है, मगर, सब पर्दे में देखना चाहते हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि यदि कोई बंद कमरे में देखना चाहता है तो उसको रोक नहीं जा सकता। केंद्र सरकार ने आनन-फानन में जो फैसला किया वह सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के खिलाफ था। आज हर घर में स्मार्ट फोन हैं। बच्चों के लिए यह स्मार्ट फोन तेजधार वाले चाकू की तरह हैं। इंटरनेट पर प्रसारित होने वाली अश्लील साहित्य सामग्री को पता नहीं कि स्मार्ट फोन बच्चे के हाथ में है या समझदार व्यक्ति के हाथ में।
टैक्नॉलॉजी माहिर विज्ञापनों को इस तरह वेबसाइटों के साथ जोड़ते हैं कि  व्यक्ति को कुछ भी समझ नहीं आता। गलती से एक बार कुछ क्लिक हो गया तो हाथ-पांव फूल जाते हैं। कोई बंद कमरे में देखना चाहता है, यह उसकी अपनी निजी पसंद हो सकती है। मगर, जिस तरह वेबसाइटें चतुराई के साथ अपने विज्ञापनों को प्रसारित करती हैं, उससे कुछ ऐसे लोग भी चपेट में आ जाते हैं, जिन्होंने पहले कभी पॉर्न देखने का सपना भी न देखा हो। जैसे कि सर्वे में बताया गया है कि भारत में महिलाएं भी पॉर्न देखने लगी हैं। अब स्मार्टफोन ने सबको सुरक्षित कोना दे दिया है। हर कोई झांसे में तो आ ही जाता है। पॉर्नोग्राफी महिलाओं को लंबे समय तक पसंद नहीं आएगी, क्योंकि 90 फीसद पॉर्नोग्राफी महिला विरोधी अर्थात हिंसक होती है। कोई भी महिला लंबे समय तक देखना पसंद नहीं करेगी। मगर, पॉर्नोग्राफी वैवाहिक जीवन को बर्बाद करने में अपना पूरा योगदान दे सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग अधिक पॉर्नोग्राफी देखते हैं, वे अपने पार्टनर से कभी संतुष्ट नहीं होते, क्योंकि रील और रीयल लाइफ में बड़ा अंतर होता है। इस रिपोर्ट के अनुसार जो लोग लंबे समय तक पॉर्न देखते हैं, उनका शरीर जल्दी से शिथिल होना शुरू हो जाता है, क्योंकि ब्रेन की क्रियाएं  शरीर पर असर डालती हैं। पॉर्नोग्राफी को प्रतिबंधित करना उचित  नहीं है,पर इसे निजी दर्शन तक सीमित रखने के उपाय किये जाने चाहिए । इंटरनेट पर पॉर्नोग्राफी से जुड़ी वेबसाइट एक लटकती हुई तलवार है।
-आर के बिन्नानी

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