17-Aug-2015 08:00 AM
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व्हिसिलब्लोअर विधेयक भले ही आने वाले दिनों में पारित हो जाये किंतु इसकी मारक क्षमताÓ इतनी कम कर दी गई है कि भ्रष्ट्र लोकसेवकों और अफसरों को बच निकलने का मौका अवश्य

मिलेगा। दूसरी तरफ व्हिसिलब्लोअर के ऊपर तलवार लटकती रहेगी।
यूपीए सरकार द्वारा प्रस्तुत व्हिसिलब्लोअर विधेयक अब उतना धारदार नहीं रह गया है. नयी सरकार इसे लचीला बनाकर प्रस्तुत करने की तैयारी में है जिससे यह बेअसर साबित होगा। यह विधेयक वर्तमान में राज्यसभा के पास है और इस विधेयक के लिए संघर्षरत आंदोलनकारियों का कहना है कि वर्त्तमान सरकार ने इसमें जो बदलाव किये हैं उसके बाद इसकी उपयोगित ख़त्म हो गयी है. सूचना के अधिकार के तहत इस विधयक पर जानकारी जुटाने वालों को विधेयक के वर्तमान मसौदे में कई कमियां नजऱ आ रही हैं. उनका कहना है कि नया विधेयक आने पर व्यापमं, कामनवेल्थ, आदर्श जैसे घोटालों का पर्दाफाश करना नामुमकिन हो जायेगा। भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने वालों को सुरक्षा प्रदान करने से संबंधित व्हिसिलब्लोअर विधेयक के बदले स्वरूप के दायरे में अब मंत्री, खुफिया एजेंसियां और सशस्त्र बल भी आएंगे।
कुछ वर्ष पहले जनहित खुलासा, खुलासा कर्ता सुरक्षा विधेयक, 2010 की जांच करने वाली संसद की स्थाई समिति की कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशों को स्वीकार करते हुए सरकार ने इस विधेयक को नया स्वरूप प्रदान किया था और मंत्रिमंडल ने इसे हरी झंडी दिखाई थी ।
तब मंत्रिमंडल ने जो एक प्रमुख बदलाव शामिल किया था वह इसके दायरे में मंत्रियों, सांसदों, रक्षा सेवाओं, खुफिया एजेंसियों, बैंक अधिकारियों और सार्वजनिक उपक्रमों को इसके दायरे में लाने संबन्धी था । हालांकि मंत्रिमंडल ने न्यायपालिका को इसके दायरे में लाने की सिफारिश नामंजूर कर दी थी क्योंकि तब मंत्रिमंडक का मन्ना था कि इसे अन्य कानूनों से हासिल किया जा सकता है। इस कानून में एक ऐसी प्रणाली के गठन का प्रस्ताव था जिसके तहत सरकार को घाटा पहुंचाने से संबंधित जनसेवकों के भ्रष्टाचार और पदों के दरुपयोग के बारे में खुलासा करने वालों का उत्साहवर्धन करते हुए उन्हें आवश्यक सुरक्षा भी प्रदान की जाती।
लेकिन साथ ही यह भी प्रावधान किया गया था कि जो लोग किसी जनसेवक के भ्रष्टाचार का खुलासा करने वाले व्यक्तियों की पहचान उजागर करेंगे उन्हें दण्डित भी क्या जा सकता है । दरअसल आज शिकायतकर्ताओं को उपयुक्त सुरक्षा नहीं मिलने के कारण भ्रष्टाचार उन्मूलन में बहुत बड़ी रुकावट खड़ी हो रही है। इसलिए यह विधेयक जरूरी है। गत वर्षों में कई व्हिसिलब्लोअर को मौत के घाट उतार दिया गया इस विधेयक को अगस्त, 2010 में लोकसभा में पेश किया गया था। यदि उसी समय यह विधेयक पारित हो जाता तो कई जानें बच सकती थीं। तब संसदीय स्थाई समिति ने सुझाव दिया था कि इसके दायरे में मंत्रिपरिषद, न्यायपालिका को शामिल किया जाए। समिति ने इस बात का ठोस उपाय करने को कहा था कि शिकायतकर्ता की पहचान के साथ समझौता न हो।
इसके बाद 14 दिसंबर, 2011 को लोकपाल विधेयक संसद में पेश करने से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए तीन अहम विधेयकों को मंज़ूरी दे दी थी। इनमें न्यायपालिका जवाबदेही विधेयक, व्हिसिल ब्लोअर विधेयक और सिटीज़न्स चार्टर विधेयक शामिल थे। इनमें से कुछ में वो मुद्दे शामिल थे जिन्हें अन्ना हज़ारे लोकपाल विधेयक का हिस्सा बनाना चाहते थे। टीम अन्ना की मांग थी कि न्यायपालिका को जवाबदेह बनाने और सिटीज़न्स चार्टर को लागू करने की जि़म्मेदारी लोकपाल के पास होनी चाहिए। लेकिन सरकार और कुछ विपक्षी दलों का मत था कि इन्हें अलग विधेयक के रूप में भी पेश किया जा सकता है। मंत्रिमंडल ने जिस न्यायपालिका जवाबदेही विधेयक को मंज़ूरी दी थी उसमें एक ऐसी व्यवस्था तैयार करने का प्रावधान है जिसके अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के किसी जज के ख़िलाफ़ किसी व्यक्ति की शिकायत की जाँच की जा सके। इसमें जजों के ख़िलाफ़ सुनवाई के लिए एक पैनल तैयार करने का भी प्रावधान था और ये जजों के लिए ये दिशा निर्देश देता है कि वे अपनी
ही अदालत में कार्यरत वकीलों से नज़दीकी संबंध न रखें।
सिटीज़न्स चार्टर विधेयक में ये प्रावधान था कि हर सरकारी कामकाज का समय निर्धारित कर दिया जाए और निश्चित समयावधि में कार्य न होने पर संबंधित अधिकारियों को दंडित किया जा सके। जबकि व्हिसिलब्लोअर विधेयक सरकारी कामकाज में गड़बडिय़ों को उजागर करने वाले नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के बारे में था।जो भी व्हिसलब्लोअर की पहचान उजागर करता है, उसे तीन साल की जेल या पचास हज़ार तक जुर्माना हो सकता है। पहचान सामने आने पर संबंधित विभाग जि़म्मेदार होगा। इन मामलों में अधिकारक्षेत्र सीवीसी का होगा। लेकिन अगर कोई ग़लत शिकायत दर्ज करवाता है तो उसे भी सज़ा हो सकती है।
-दिल्ली से रेणु आगाल