पक्का आशियाना मिला नहीं, कच्चा घरौंदा भी गया
16-Aug-2015 07:50 AM 1234968

एक तरफ तो देश और मध्यप्रदेश में हर गरीब को रोटी, कपड़ा के अलावा मकान देने की मुहिम चलाई जा रही है और दूसरी तरफ सरकार द्वारा गरीबों के आवास तोड़कर उन्हें वैकल्पिक आवास तक नहीं दिये जा रहे हैं। गरीबी रेखा के नीचे गुजर कर रहे ऐसे तमाम हितग्राही पूरे प्रदेश में हैं जिन्हें इंदिरा आवास योजना, मुख्यमंत्री आवास योजना, होम स्टेड योजना, वनाधिकार योजना, मुख्यमंत्री अंत्योदय योजना आदि तमाम योजनाओं के बावजूद एक आशियाने के लिए भटकना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि मध्यप्रदेश में अभी भी 24 लाख से अधिक परिवार छत विहीन मकानों में रहते हैं। केंद्र पोषित इंदिरा आवास योजना के तहत सरकारी मदद से पक्के आशियाने की चाह रखने वाले प्रदेश के 96 हजार परिवार परेशान हैं। पहली किस्त मिलते ही इन्होंने पक्के मकान की दीवारें खड़ी कर ली, लेकिन दूसरी किस्त मिली ही नहीं। इनमें से आठ हजार तो वे लोग हैं जो सरकारी मदद के भरोसे कच्चे घरोंदे तोड़ कर पक्का मकान बना रहे थे। उनके सर पर तो छत तक नहीं बची है। दरअसल गरीब परिवारों की फजीहत योजना के क्रियान्वयन में लापरवाही के कारण हुई है, जिसके चलते केंद्र सरकार ने दूसरी किस्त रोक दी है।
उल्लेखनीय है कि इंदिरा आवास योजना के तहत सरकार गरीबों को पक्का आशियाना बनाने के लिए आर्थिक मदद देती है। वर्ष 2014-15 के लिए प्रदेश में 1 लाख 10 हजार मकान बनाने की मंजूरी दी गई। इनमें से 96 हजार परिवारों को पहली किस्त (35 हजार) भी मिल गई। मगर भवन निर्माण का काम इस स्तर पर शुरू नहीं हो सका।
इसमें कुछ लापरवाही सरकारी तंत्र की तो कुछ हितग्राहियों की भी रही। इसका सर्वाधिक खामियाजा उन 8 हजार परिवारों को उठाना पड़ रहा है, जिन्होंने सरकारी मदद की आस में कच्चे घरौंदे तोड़ पक्का मकान बनाने का काम शुरू कर दिया। बिना छत बारिश का मौसम इन्हें भारी पड़ रहा है। ये परिवार पहली किस्त से दीवारें खड़ी कर चुके हैं और इसका सरकारी एजेंसी से भौतिक सत्यापन भी करा दिया है। मगर दूसरी किस्त नहीं मिल पा रही है। इसकी वजह है समग्र रूप से प्रदेश का योजना के क्रियान्वयन में खराब प्रदर्शन। इसके चलते केंद्र सरकार ने आगे की राशि रोक ली है। इन परिवारों का कहना है कि योजना में दूसरे लोग अगर ठीक काम नहीं कर रहे तो हमारा क्या कसूर।
बताया जाता है कि प्रदेश के हर जिले में लोग इंदिरा आवास योजना के तहत पक्के मकान बनाने के लिए परेशान हैं किंतु अलीराजपुर, अशोकनगर, बालाघाट, छतरपुर, दमोह, कटनी, मुरैना, शाजापुर, सीधी, सिंगरौली आदि जिलों में एक भी मकान का सत्यापन नहीं हो पाया है। इस कारण इनका आशियाना अभी भी अधूरा पड़ा हुआ है। इस संदर्भ में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव कहते हैं कि केंद्र सरकार से इस मसले पर चर्चा की गई है। जल्द ही राशि मिल जाएगी। वह कहते हैं कि प्रदेश के हर व्यक्ति का अपना पक्का मकान हो इसके लिए प्रदेश सरकार निरंतर प्रयासरत है।
24 लाख अभी भी वंचित
प्रदेश में 24 लाख से अधिक परिवार अभी भी छत विहीन मकानों में रहते हैं। वैसे इनकी संख्या घटी है। जनगणना 2011 के अनुसार प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक करोड़ 35 लाख परिवारों में से 37 लाख 14 हजार 723 कच्चे मकानों में निवास करते थे, लेकिन केन्द्र सरकार की इंदिरा आवास योजना सहित मप्र सरकार द्वारा प्रारंभ की गई मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना में अभी तक 13 लाख परिवारों को पक्के मकान निर्मित कर दिए जा चुके हैं, लेकिन इन मकानों की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं। इसी कारण पिछले महीने एक बैठक में सीएस ने कहा था कि प्रत्येक गांव में रॉ- मटेरियल एक साथ क्रय किया जाए, जिससे मकानों के निर्माण की गुणवत्ता में सुधार आ सके। वैसे निर्माण सामग्री की दरें महंगी होने से 70 हजार या सवा लाख रुपए में मकान का निर्माण संभव नहीं है। प्रदेश में गरीबों को पक्के मकानों की दरकार सालों से रही है। छत विहीन आवासों में अभी भी प्रदेश के 24 लाख 9 हजार 854 परिवार निवास करते हैं, जबकि इसके पहले यह संख्या 37 लाख 14 हजार 723 हुआ करती थी। बीते छह सालों में 13 लाख 4 हजार 869 परिवारों को पक्के मकान बनाकर दिए जा चुके हैं, परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा तय मापदण्ड में इंदिरा आवास योजना में प्रत्येक पक्के कुटीर का निर्माण 70 हजार रुपए में कराया जाता है, जबकि मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना में यह मकान सवा लाख रुपए में। मुख्यमंत्री अंत्योदय आवास योजना में भी बहुत कम राशि 70 हजार में मकान निर्मित कर आवंटित किया जाता है। इतनी कम राशि में 15+20 फीट के मकान और उसमें टायलेट का निर्माण आज के समय में संभव नहीं है। क्योंकि इस समय रेत, गिट्टी, सीमेंट तथा ईट खरीदी की दर बहुत महंगी हो चुकी है। इसके साथ ही आवास निर्माण करवाने वाले ठेकेदार को मजदूरी के साथ ही स्वयं की मेहनत भी निकालना होता है। यदि उसे उक्त निर्माण में कोई फायदा नहीं होगा, तो ठेकेदार काम ही नहीं करेगा। इस कारण पक्के कुटीर निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे हैं। क्योंकि हितग्राही को भी इसमें 10 प्रतिशत राशि मिलाना पड़ता है। सरकार ने अभी तक इंदिरा आवास में 7 लाख 36 हजार 337 आवास, होम स्टेड योजना में एक लाख 36 हजार 190, वनाधिकार योजना में 53 हजार 360 मकान, मुख्यमंत्री अंत्योदय योजना में 50 हजार 405, मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास में 3 लाख 28 हजार 577 मकानों का निर्माण किया है।
20 हजार मकान जर्जर
एक तरफ जहां प्रदेश में आज भी 24 लाख परिवार छत विहीन मकान में रह रहे हैं वहीं, प्रदेश में बन कर तैयार करीब 9 हजार मकान जर्जर हो गए हैं। जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) स्कीम के तहत प्रदेशभर में 25 हजार मकान दो साल पहले बनकर तैयार हैं, लेकिन इनमें से करीब 5 हजार मकान का ही आवंटन हो पाया है। 20 हजार के लगभग मकान अब भी खाली हैं। शहरों के बीचों-बीच बने इन मकानों पर 780 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इस स्कीम के तहत भोपाल में सबसे अधिक 11,500 मकान बनाए गए हैं, इसमें से करीब दो हजार मकान आवंटित हो चुके हैं बाकी के साढ़े 9 हजार मकान अब भी खाली हैं। ये मकान अब जर्जर होने लगे हैं। इन मकानों की दरवाजे, खिड़कियां टूटने लगी हैं दीवारों व छतों से सीमेंट झडऩा शुरू हो गया है। इसके बाद भी मकान गरीबों को आवंटित नहीं हो पा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह हितग्राहियों द्वारा उनके हिस्से के रुपए नहीं दिया जाना है।
प्रदेश में भोपाल, जबलपुर, इंदौर और उज्जैन शहरों को जेएनएनआरयूएम योजना में शामिल किया गया था। इसके तहत इन शहरों को झुग्गी मुक्त बनाए जाने के लिए ई-डब्ल्यूएस आवास बनाए गए यह मकान 2008 से 2012 के बीच में बने थे। ये मकान सभी शहरों में बनकर तैयार हो चुके हैं। अधिकतर मकान दो साल पहले बनकर तैयार हो गए थे, इसके बावजूद भी 80 फीसदी मकानों को आवंटन नहीं हो पा रहा है। स्थिति यह है कि इन मकानों में लोग अवैध रूप से कब्जा करने लगे भोपाल सहित अन्य शहरों में हाउसिंग बोर्ड, विकास प्राधिकरणों और नगरीय निकायों द्वारा यह मकान बनाए गए हैं।

प्रदेश में इंदिरा आवास योजना के हाल
लक्ष्य :112752 (परिवार)
मंजूर : 110727
पहली किस्त मिली: 96864
दूसरी का इंतजार: 8733
(नोट : आंकड़े वर्ष 2014-15 के )
इन जिलों में सर्वाधिक ऐसे परिवार
पूर्वी निमाड़ :1594
उज्जैन: 1203
धार:1064
खरगोन : 925
बैतूल : 468
बुरहानपुर: 390
देवास: 296
इंदौर: 259
रतलाम : 240
जबलपुर : 218
श्योपुर: 212
आवंटी नहीं दे पा रहे राशि
जेएनएनयूआरएम स्कीम के तहत बने मकानों को उन लोगों को दिया जाना है, जिनकी झुग्गियों की जगह से हटाया गया है मकानों के लिए हितग्राहियों को 1 लाख 50 हजार रूपए सरकार को देना है। यह राशि आवंटी नहीं दे पा रहे हैं इस वजह से मकान खाली पड़े हैं। हालांकि इन हितग्रहियों के लिए सरकार अपनी गारंटी पर लोन मुहैया करा रही है, लेकिन की प्रक्रिया के लिए दस्तावेज न होने सहित अन्य कारणों से इन आवंटियों को लोन भ नहीं मिल रहा है इन समस्याओं के चलते इन आवासों की स्थिति खराब होती जा रही है।
केंद्र द्वारा कटौती
प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 तक हर गरीब को घर देने का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन योजना में केंद्र सरकार द्वारा कटौती कर दी गई है। इसके कारण अब प्रदेश सरकार की परेशानियां बढ़ती दिख रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों को मकान बनाने के लिए इंदिरा आवास योजना के तहत राशि दी जाती है। योजना में एक व्यक्ति को करीब 70 हजार रुपए दिए जाते हैं। यह राशि वापस नहीं करनी होती है, इस कारण अधिकारियों द्वारा इस योजना के तहत बहुत कम मकानों को मंजूरी दी जा रही है। यदि जमीनी स्तर पर देखें तो एक पंचायत में मुश्किल से सालभर में एक या दो मकान ही दिए जाते हैं। इनमें भी आरक्षण का मामला फंस जाता है। इधर मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को मकान बनाने के लिए एक लाख रुपए का ऋण दिया जा रहा है। इसमें से 50 हजार रुपए की राशि उनको किश्तों में वापस करनी होगी। इस योजना के तहत तो बड़ी संख्या में गरीबों को मकान के लिए ऋण दिया जा रहा है, लेकिन इंदिरा आवास योजना के तहत बहुत कम गरीबों को मकान आवंटित किए जा रहे हैं।
्रयह है योजना
एक मकान की कीमत 3 लाख 90 हजार रूपए
केंद्र सरकार की राशि 96,800 रुपए
राज्य सरकार की राशि 38,700 रूपए
सरकारी निर्माण एजेंसी की राशि 1,04,500 रुपए
हितग्राहियों को देना है 1,50,000 रूपए
-अरविंद नारद

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