एसडीएम बनने वाले आधे से ज्यादा यादव
05-Aug-2015 08:07 AM 1234855

उत्तरप्रदेश में विधानसभा से संसद तक यादवों को प्रमुखता देने के बाद अब प्रशासन का यादवीकरणÓ अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के इशारे पर किया जा रहा है, लेकिन इससे व्यापमं जैसे घोटाले की बू आ रही है। यूपीपीसीएस द्वारा आयोजित पिछली तीन परीक्षाओं में असफल रहे छात्रों का आरोप है कि  इन परीक्षाओं के बाद एसडीएम बनने वाले छात्रों में से आधे एक ही जाति के हैं। असफल अभ्यार्थियों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया है कि एसडीएम बनने वाले 86 लोगों में से 56 यादव हैं। साथ ही, पिछले तीन वर्षों में यूपीपीएससी की परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने वालों में भी 50 फीसदी इसी जाति के हैं।
याचिकाकर्ताओं ने यूपीपीएससी के चेयरपर्सन डॉ. अनिल यादव पर अपनी ही जाति के छात्रों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है। याचिका के मुताबिक 2011 में सिलेक्ट हुए 389 पीसीएस ऑफिसर्स में से 72 उनकी ही जाति के हैं। ओबीसी कोटे में पास होने वाले 111 छात्रों में से 45 इसी जाति के हैं। यूपीपीएससी की परीक्षाओं में इस तरह की अनियमितता डॉ. अनिल यादव के चेयरपर्सन बनने के बाद ही शुरू हुई। उनके कार्यकाल में 2011, 12 और 13 में परीक्षाएं कराई गईं।
पिछड़ी जाति के दलित इंजीनियर!
उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में भी फर्जी जाति प्रमाण-पत्र पर नियुक्ति पाने का गोरखधंधा लंबे अर्से से चल रहा है। सिंचाई विभाग खास तौर पर ऐसी नियुक्तियों का केंद्र बना हुआ है। इस विभाग में सामान्य कर्मचारियों से लेकर इंजीनियर तक फर्जी जाति प्रमाण-पत्र पर नौकरी पाए हुए हैं। सिंचाई विभाग में सोनभद्र स्थित रॉबर्ट्सगंज में तैनात सहायक अभियंता अरविंद कुमार मूल रूप से पिछड़ी जाति के हैं, लेकिन अनुसूचित जाति के प्रमाण-पत्र पर नौकरी कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि इस सहायक अभियंता के कई रिश्तेदार भी अनुसूचित जाति का बनकर सिंचाई विभाग में नौकरी कर रहे हैं। अरविंद कुमार मूल रूप से मल्लाह (पिछड़ी जाति) हैं, लेकिन जाति प्रमाण-पत्र मझवार (अनुसूचित जाति) का बनवा रखा है। अरविंद कुमार की नियुक्ति अनुसूचित जाति प्रमाण-पत्र पर हुई और दलित होने के आधार पर ही उनकी तरक्की भी हो गई, जबकि फर्जी जाति प्रमाण-पत्र की जानकारी विभाग के सारे आला अधिकारियों को हो गई थी। विडंबना यह है कि अरविंद कुमार का फर्जीवाड़ा पकड़े जाने पर उन्हें अनुसूचित जाति की श्रेणी से बाहर किए जाने का आदेश भी जारी हो गया था, लेकिन उस आदेश को दबा दिया गया। फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी के मामले में उन पर क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
बदले गए नियम और फैसले
याचिकाकर्ताओं में से एक अवधेश पांडेय ने बताया कि सामान्यत: पीसीएस परीक्षाएं दो-तीन वर्षों के अंतराल पर आयोजित कराई जाती थीं, लेकिन अपनी जाति के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए डॉ. यादव इन्हें हर साल आयोजित करवाने लगे। याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में यूपीपीएससी द्वारा आयोजित एक दर्जन से ज्यादा परीक्षाओं के परिणाम सबूत के तौर पर पेश किए, जो एक जाति विशेष को लाभ पहुंचाने की ओर इशारा करते हैं। उनका आरोप है कि यह मामला मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले से भी बड़ा हो सकता है और इसकी सीबीआई जांच कराई जानी चाहिए। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि अपनी जाति के अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाने के लिए यूपीपीएससी के नियम भी बदले गए। अब लिखित परीक्षा में कुछ विषयों में शून्य अंक लाने वाले छात्रों को भी आगे बढ़ा दिया जाता है। मेरिट की लिस्ट लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के नंबरों को मिलाकर तैयार की जाती है। ऐसे में लिखित परीक्षा में बहुत कम अंक हासिल करने वालों को इंटरव्यू में ज्यादा नंबर दे दिए जाते हैं, लेकिन लिखित में ज्यादा नंबर लाने वाले छात्रों को इंटरव्यू में ज्यादा नंबर नहीं मिल पाते। एक याचिकाकर्ता विशाल कुमार ने यूपीपीएससी की उस प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया, जिसके तहत एग्जाम की आंसर शीट सार्वजनिक किया जाना बंद कर दिया गया। ऐसे में छात्रों को पता ही नहीं चलता था कि वे कहां गलत थे। हाई कोर्ट में मामला पहुंचने पर इसका भी तोड़ निकाल लिया गया। यूपीपीएससी की परीक्षा में कई ऐसे सवाल मिले, जिनके एक से ज्यादा सही जवाब थे, लेकिन पेपर जांचने वाले अपने मन से किसी भी एक जवाब को सही मान लेते थे। यह मामला अभी लंबित है।
-लखनऊ से मधु आलोक निगम

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