पीडि़तों को मिलेगा पुलिस का दुलार
16-Aug-2015 11:13 AM 1234772

सामुदायिक पुलिसिंग के तहत मध्य प्रदेश में पुलिस और जनता के बीच बेहतर समन्वय बनाने के मकसद से सरकार पुलिस का चेहरा बदलने की तैयारी में जुट गई है। इसके तहत राज्य योजना आयोग द्वारा निर्धारित योजना सामुदायिक पुलिसिंग एवं सोशल एम्पावरमेंट के अंतर्गत बिटनेश प्रोटेक्शन एवं विक्टिम असिस्टेंस योजना बनाई गई है। इस योजना के तहत अभी तक अपराधियों की धरपकड़ और उन्हें सजा दिलाने में व्यस्त रहने वाली पुलिस अब अपराध पीडि़तों का भी ख्याल रखेगी। इसके लिए अपराध पीडि़त कल्याण मंडल (विक्टिम वेलफेयर बार्ड) की स्थापना की जाएगी। यह मंडल अपराध से प्रभावित परिवारों को मदद करने के लिए कार्य करेगा।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में पुलिस और जनता के बीच बेहतर समन्वय बनाने के मकसद से पुलिस द्वारा जनसंवाद अभियान की शुरुआत की गई थी, जिसके बेहतर परिणाम मिले हैं। इस अभियान के तहत जनता ने सीधे पुलिस अधिकारियों से संवाद किया। अब पुलिस की छवि चमकाने के लिए अपराध पीडि़त कल्याण मंडल का गठन करने की तैयार चल रही है।  ज्ञातव्य है कि अतीत से लेकर वर्तमान तक पुलिस हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा रही है। समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी कभी सम्राट और महामंत्री, कभी राजा और सेनापति तो कभी सुल्तान और वजीर की थी। कालांतर में यह जिम्मेदारी कोतवाल के माध्यम से धीरे धीरे आ पहुंची पुलिस तक। वक्त के साथ पुलिस की जिम्मेदारियों में भी युगांतकारी बदलाव आए हैं। आज पुलिस की प्राथमिकताओं एवं कर्तव्यों में केवल अपराधों की विवेचना, अपराधों का निराकरण एवं निवारण, अपराधियों की धरपकड़ ही शामिल नहीं है, वरन बढ़ती आबादी, बेलगाम यातायात, गांवों से शहरों की ओर दौड, औद्योगिकरण एवं चौतरफा विकास के नए पहलुओं के साथ उगती समस्याओं एवं इन समस्याओं से जन्म लेते नित नए अपराधों की रोकथाम भी है ।
प्रजातांत्रिक व्यवस्था में राज्य की कल्याणकारी भूमिका की कल्पना की गई है। विकासशील राज्य के विकास का एक महत्वपूर्ण मापदंड हैं-अलग-अलग जरूरत समूहों की पहचान कर उनके आवश्यकता अनुसार योजना बनाकर कल्याण कार्यक्रमों का प्रभावी क्रियान्वयन। अपराध प्रभावित- लगभग 11 लाख जनसंख्या का समूह एक बड़ा समूह है इनके कल्याण कार्यक्रम का संचालन एक महती आवश्यकता है। अपराध से प्रभावित, पीडि़त जन के सहायता, पुनर्वास एवं मुख्यधारा में सम्मिलित होने के लिए उन्हें गंभीर मानसिक त्रासदी से उबरना होता है, जिसमें जीवन-यापन करने वाले मुखिया का खोना, जीविकोपार्जन के साधन की हानि या अपने को खोने, अपंग होने जैसे अन्य दुख, दर्द को पीछे छोड़ पुन: व्यवस्था में सम्मिलित होने के लिए राज्य का संबल उनके जीवन में बदलाव ला सकता है। उपरोक्त संदर्भों से यह स्पष्ट है कि अपराध से प्रभावित परिवारों की मदद के लिए राज्य स्तरीय अपराध पीडि़त कल्याण मंडल की परिकल्पना की गई है, जो प्रदेश शासन की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ इस वर्ग को दिलाने के लिए कार्य करेगा। इसका स्वरूप राज्य स्तरीय मंडल का होते हुए जन कल्याण की योजनाओं का लाभ त्वरित गति से पहुंचने के लिए एकल खिड़की के रूप में कार्य करने का है, जो पात्रों की पहचान कर जानकारी एकत्र करने एवं सामयिक समीक्षा से परिणाम हासिल कर सकता है। अपराध प्रभावित लोग जिस सरकारी योजना के लिए पात्र हो और उसे लाभ नहीं मिलने की स्थिति में अपनी समस्या के समाधान के लिए एक नवीन उम्मीद जागेगी। इसमें वित्तीय व्यय नगण्य होगा।
अपराध पीडि़त कल्याण योजना एक वृहद स्वरूप की है तथा सामुदायिक पुलिससिंग के सभी प्रयासों को अंगीकार करते हुए जननी स्वरूप की है। आज चारों तरफ जन भागीदारी की बात हो रही है। पुलिस के कार्यो में भी समाज की सहभागिता की नितान्त आवश्यकता है। मध्यप्रदेश से लेकर पूरे देश में यदि पुलिस-जनसंख्या अनुपात की बात करें तो जहां शहरी क्षेत्रों में एक हजार व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात बढकर 1500 व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी हो जाता है। निश्चित रूप से हजारों व्यक्तियों की सुरक्षा न तो एक व्यक्ति कर सकता है और न ही यह संभव है। लेकिन यदि समाज का सहयोग मिल जाता है तो यही पुलिस अपने नगण्य अनुपात के बावजूद एक भरोसा समाज को अवश्य दे सकती है कि हम ऐसी व्यवस्था स्थापित कर सकते हैं जहां शरीफ चैन से एवं बदमाश बैचेन रहें। जन सहयोग के लिए ही मध्य प्रदेश देश का वह पहला राज्य है जिसनें नगरसुरक्षा/ ग्रामरक्षा समितियों को कानूनी जामा पहनानें के लिए वर्ष 1999 में एक विधेयक भी पारित किया है।
नगरसुरक्षा/ ग्रामरक्षा समितियां काफी जिलों में सक्रिय होकर पुलिस के काम में हाथ बटा रही हैं और निश्चित रूपसे वर्दीवालों को बिना वर्दीवालों का सहयोग मिल रहा है। जिस दिन हर व्यक्ति अपने आप को कानून का रखवाला समझेगा, पुलिस और जनता के बीच संवाद, सहयोग एवं समरसता के रिश्ते स्थापित हो जाएंगे। उसी दिन हर समस्या का समाधान निकल आयेगा । सामुदायिक पुलिसिंग आधुनिक अवधारणा अवश्य है लेकिन आज की आवश्यकताओं का वास्तविक समाधान भी यही है। मध्यप्रदेश में पिछले एक दशक में चाहे परिवार परामर्श केन्द्र हों या नगरसुरक्षा समितियां, महिला हेल्पलाईन हो या बालमित्र थानें, नशामुक्ति शिविर हो या कंजर सुधार अभियान, ट्रेफिक वार्डन हो या विशेष पुलिस अधिकारी, पुलिस के इन सब सदप्रयासों को समाज की सराहना, सहयोग एवं सद्भावना मिली है। निश्चित रूप से वर्तमान में पुलिस और जनता को साथ साथ कदम मिलानें की जरूरत है। समुदायिक पुलिसिंग के सरोकारों को आगे बढानें की जरूरत है और इसी में पुलिस, जनता और समाज सभी का हित है।
-दिल्ली से रेणु आगाल

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