16-Aug-2015 09:14 AM
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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में सरकारी गैराज के कुछ मुलाजिम गाडिय़ों को यदा-कदा चमकाते हैं, धोते हैं, साफ करते हैं और फिर वे गाडिय़ां धूल खाने लगती है। हर बार जब भी मंत्रिमंडल

विस्तार की बात चलती है कुछ संभावित विधायक नई शेरवानी और लिनन के झक कपड़े सिलवाकर अपने चेहरे की रंगत और बालों से झांकते बुढ़ापे को तराशने की कोशिश करने लगते हैं। लेकिन मंत्रिमंडल है कि विस्तारित हो ही नहीं पाता। बार-बार कयासों के बावजूद न तो मंत्रियों के चेहरे बदलते हैं और न ही नए चेहरों को शामिल किया गया है। ताश के वही 52 पत्ते। वही इक्के, वहीं बेगमें, वही गुलाम!! बादशाह अवश्य बदले हैं। पिछले 12 साल मेंं तीन बार। जब दिग्विजय को सत्ता का दुरुपयोग करने का शौक था। लेकिन शिवराज अपनी ताकत का सदुपयोग भी नहीं कर पा रहे। कारण साफ है। ऑफ द रिकार्ड कहा जा रहा है कि मध्यप्रदेश में दर्जनों मुख्यमंत्री हैं। जाहिर है कुल 12 मंत्री शामिल किए जा सकते हैं। अभी की संख्या है। विजयवर्गीय के इस्तीफे के बाद मीडिया में खबरें तैर रही है कि उम्रदराजों को हटाया जाएगा, परफारमेंस ऑडिट किया जाएगा, भूचाल आ जाएगा इत्यादि किन्तु ये केवल कयास ही हैं। न तो कोई क्रांतिकारी परिवर्तन होने वाला है और न ही पिछले 12 वर्ष से सत्ता सुख भोग रहे चेहरों में कोई बदलाव संभव है। व्यापमं की आंच में झुलसे शिवराज ज्यादा जोखिम नहीं उठा सकते। 8 माह पहले जो पकड़ सत्ता पर हुआ करती थी अब वह नहीं है। प्रदेश भर में एक तरह की प्रशासनिक अराजकता का आलम है। उल्फत की नई मंजिलें तलाश ली गई हैं। मंत्री मुंहफट हैं, ऊटपटांग बयान दे रहे हैं। हर मंत्री स्वयं को सीएम से कम नहीं मानता। लेकिन जिम्मेदारी और जवाबदेही सीएम के ऊपर डालने से नहीं चूकते। एक बानगी देखिए पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर कहते हैं कि एसटीएफ सीधे सीएम को रिपोर्ट करता है। व्यापमं की कोई फाइल मेरे पास नहीं आती। कुछ समय पूर्व प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रातापानी में 7-8 घंटे गुजारे थे और मंत्रियों से वन टू वन की थी। इस गोपनीय बैठक का ब्यौरा तो उपलब्ध नहीं हुआ लेकिन जो कुछ छन कर बाहर आया। उसके मुताबिक मुख्यमंत्री एक-दो को छोड़कर सभी मंत्रियों के कामकाज से नाखुश थे। अब प्रश्न यह है कि जब वे नाखुश है तो बदल क्यों नहीं रहे हैं।
बहरहाल शिवराज सिंह चौहान 8 अगस्त को जैसे ही राज्यपाल रामनरेश यादव से मिलने राजभवन पहुंचे प्रदेशभर में बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विस्तार की अटकले तेज हो गईं। हालांकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अमित शाह से हरी झंडी मिलने के बाद मुख्यमंत्री ने इसके संकेत दे दिए थे। कैबिनेट के विस्तार के लिए जितना दबाव विधायकों का है, उतना ही दबाव मंत्रियों का भी है। कई मंत्री अपने विभागों में फेरबदल चाहते हैं। इसके अलावा कई मंत्रियों के पास तीन-तीन और इससे भी ज्यादा विभाग होने के कारण वे बेहतर परफॅारमेंस नहीं दे पा रहे हैं। इससे पूरी सरकार के गवर्नेंंस पर प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए हर कोई इस बार के मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर उत्साहित है। लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार भी बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विस्तार के नाम पर उन्हीं दर्जनभर मंत्रियों को फिर से मंत्री बनाया जाएगा, जो संघ, संगठन, सरकार और विभिन्न सर्वे एंजेंसियों की रिपोर्ट में फेल बताए जाते रहे हैं? या इस बार उम्रदराज और निष्क्रिय मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाकर युवा, ऊर्जावान और कुछ करने के आतुर उत्साही विधायकों को कैबिनेट में शामिल कर शिवराज आलोचकों को करारा जवाब देंगे। इस बार जो विधायक मंत्री बनने की कतार में हैं उनमें विंध्य से एक ठाकुर को मंत्री बनाना है जिसमें हर्ष सिंह और यशपाल सिंह सिसोदिया का नाम चर्चा में है। यहां से संजय पाठक का नाम भी चर्चा में है, लेकिन पार्टी में नया चेहरा होने के कारण शायद ही इन्हें तव्वजो मिले। (हालांकि भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान मंत्री पद नहीं बिकेगा का दावा कर रहे हैं) आदिवासी वर्ग से निर्मला भूरिया और ओमप्रकाश धुर्वे में से एक को मंत्री बनाया जा सकता है। पिछड़ा वर्ग के कोटे से पूर्व मंत्री रूस्तम सिंह, चौधरी चंद्रभान सिंह का नाम चर्चा में है। लेकिन रूस्तम सिंह को मंत्री बनाए जाने का केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर विरोध कर रहे हैं, वहीं सांसद प्रहलाद पटेल और मंत्री गौराशंकर बिसेन चौधरी चंद्रभान सिंह का विरोध कर रहे हैं। इसी तरह इंदौर से पूर्व मंत्री महेंद्र हार्डिया और सुदर्शन गुप्ता मंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं। अर्चना चिटनीस की दावेदारी सबसे मजबूत बताई जा रही है। बताया जाता है कि उनको मंत्री बनाने के लिए दिल्ली दरबार से दबाव है। हालांकि जब भी उनका नाम चलता है ऐन वक्त पर विरोधी उनका नाम दबी जुबान में व्यापमं से जोडऩे लगते हैं। बहुप्रतीक्षित के नाम पर दशरथ लोधी या रामदयाल अहिरवार जैसों को मंत्री तो नहीं बनाया जाएगा, जो या तो हार के बाद गायब हो गए या फिर नगर पंचायत अध्यक्ष बनने लायक ही रह गए।
8 दिसंबर 2003 को उमा भारती के नेतृत्व में जब मप्र में भाजपा की सरकार बनी थी, तो कैबिनेट में अधिकतर उन लोगों को शामिल किया गया था, जिन्होंने अपने क्षेत्र सहित पूरे प्रदेश से कांग्रेस को उखाडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन उसके बाद तो उनमें से अधिकांश को रिपीट करने का सिलसिला सा चल पड़ा। उमा भारती ने 2 जून 2004 को मंत्रिमंडल विस्तार किया तो अधिकांश चेहरे वही रखे, बस विभाग बदल दिया। 23 अगस्त, 2004 को जब बाबूलाल गौर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उनके मंत्रिमंडल में भी अधिकांश वही लोग थे। शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पहली कैबिनेट का विस्तार 4 दिसंबर, 2005 को किया। इस बार भी अधिकांश चेहरे वही थे, जो उमा भारती और बाबूलाल गौर के कैबिनेट में शामिल थे। फर्क इतना था कि इस बार का मुखिया कुछ कर गुजरने की सोच, समझ, संकल्प और साहस के साथ मैदान में उतरा था। लेकिन 20 दिसंबर 2008 को जब उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल के बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल का गठन किया तो इस बार भी अधिकांश चेहरे वही थे, जो पिछली कैबिनेट में थे। इनमें से अधिकांश की स्थिति अपने विधानसभा क्षेत्र में इतनी दयनीय थी कि उन्हें जिताने के लिए शिवराज को रात-दिन कड़ी मेहनत और अपनी दुहाई देनी पड़ी थी। कैबिनेट में जितने भी मंत्री थे, वे पांच साल तक एसी रूम और गाड़ी से बाहर निकले ही नहीं, जबकि शिवराज मंत्रालय से लेकर चौपाल तक सक्रिय रहे। नई सरकार के गठन के साथ ही जहां शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के विकास, जनता के लिए योजना बनाने और उनके क्रियान्वयन में लग गए वहीं मंत्री पद तोहफे में मिला समझकर फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगे। 14 दिसंबर 2013 को शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल के जंबूरी मैदान में तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन 21 दिसंबर, 2013 को जब मंत्रिमंडल का गठन किया गया कई चेहरे वही थे। बाबूलाल गौर, जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, गौरी शंकर शेजवार, नरोत्तम मिश्रा, विजय शाह, कुसुम मेहदेले, उमाशंकर गुप्ता, पारस चंद जैन, राजेंद्र शुक्ल और यशोधरा राजे आदि। पिछले 10 साल से शिवराज की छत्रछाया में मंत्री पद पर कब्जा जमाए ये मंत्री संघ, संगठन और सरकार की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं। जब 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव होने थे तो मंत्रियों की मैदानी स्थिति का सर्वे कराया गया था, जिसमें अधिकांश मंत्री फेल बताए गए थे। लेकिन उन्हें फिर से टिकट दिया गया और शिवराज ने उनकी डूबती नैया का अपने दम पर पार लगा दिया। उसके बाद मंत्रियों की कार्यप्रणाली सुधारने के लिए चिंतन शिविर, प्रशिक्षण शिविर, कार्यशाला, समीक्षा बैठक, 100 दिनी कार्य योजना, परीक्षा आदि न जाने कितने उपक्रम किए गए, लेकिन मंत्रियों सिर पर जूं तक न रेंगी और वे उसी तरह कार्य करते रहे जैसे उमा भारती और बाबूलाल गौर के शासनकाल में कर रहे थे। इन मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तो खस्ताहाल था ही विजन डाक्यूमेंट 2018 भी धूल खा रहा था।
बेस्ट परफॅार्मर ही बने मंत्री
अब जाकर संघ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र हो या फिर राज्य बेस्ट परफॉर्मेेस करने वाले मंत्रियों को ही सरकार में रखा जाए। इसको देखते हुए अमित शाह ने मप्र सरकार के मंत्रियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट तलब की थी। राजधानी में 10 मई को आयोजित भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक और सुशासन संकल्प स मेलन में शामिल होने आए अमित शाह ने सीएम हाउस में प्रदेश सरकार के मंत्रियों की जमकर क्लास ली। शाह ने मंत्रियों से सख्त लहजे में कहा कि आप लोगों की परफार्मेंस रिपोर्ट से संगठन संतुष्ट नहीं है। आप लोग न तो अपने क्षेत्र का दौरा करते हैं और न ही प्रभार वाले जिलों का। उन्होंने दरअसल, प्रदेश में तीसरी बार सरकार बनने के 10 माह बाद जब एक सर्वे संघ द्वारा किया गया था तो उस समय 13 मंत्रियों की परफार्मेंस खराब बताई गई थी। उसके बाद जब प्रदेश संगठन ने सर्वे किया था तो 15 मंत्री कसौटी पर खरे नहीं उतरे और अब तीसरी बार के सर्वे में 18 मंत्रियों की परफार्मेंस खराब बताई जा
रही है।
तो क्या इन्हें बदला जाएगा? शायद नहीं। पिछले एक दशक से मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान अकेले भाजपा का ध्वज वाहक बने हुए हंै। सरपंच का चुनाव हो या सांसद का हर कोई अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए शिवराज की ओर टकटकी लगाए रहता है। हालांकि शिवराज ने कभी भी इसका दंभ नहीं दिखाया। चुनाव छोटा हो या बड़ा वे सभी में प्रचार के लिए जाते रहे हैं। उधर, संगठनों हो या फिर सरकार हर मोर्चे पर सफल होने के लिए शिवराज की छवि पर अभिमान करते है।
आलम यह है कि प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों को तो यहां तक नहीं मालूम है कि उनके विभाग की कार्यप्रणाली क्या है। मंत्री के विभाग में कौन-कौन सी योजनाएं चल रही है इसका ध्यान तक नहीं रहता है। बिना विभागीय अधिकारी के मंत्री एक सवाल का जवाब नहीं दे पाते हैं। जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जब भी किसी सभा को संबोधित करते हैं तो वे सभी विभागों की योजनाएं, प्रोग्रेस रिपोर्ट आदि का इस तरह धारा प्रवाह वर्णन करते जैसे कोई रिकार्ड बज रहा हो। यही नहीं मंत्री अपने अधिकारियों और विभागीय कार्यों की समीक्षा करने से कतराते हंै, अगर कुछ समीक्षा करते भी हैं तो अधिकारी कुछ का कुछ समझाकर मंत्री को संतुष्ट कर लेते हैं। जबकि मुख्यमंत्री के सामने जब भी किसी मंत्री या अधिकारी ने गलत
रिपोर्ट प्रस्तुत की तो उसे फटकार सुनने को मिली है क्योंकि शिवराज को सब मालूम रहता है कि किस विभाग में क्या हो रहा है। ऐसे में
सवाल उठना लाजमी है कि आखिर जब शिवराज को ही सब कुछ करना है तो मंत्रिमंडल विस्तार क्यों?
मंत्रीमंडल विस्तार पर व्यापमं की छाया
फिलहाल तो मंत्रीमंडल विस्तार की स्थिति कब बाबा मरेंगे, कब बैल बिकेंगेÓ जैसी हो रही है। फिर भी नए मंत्री मंडल विस्तार में व्यापमं की छाया भी नजर आना तय है। सामने भले ही कुछ न आया हो, लेकिन शिवराज के पास अपने वर्तमान गणों और दावेदारी कर रहे कुछ लोगों की व्यापमं मामले में जुड़े होने संबंधी कुछ ऐसी जानकारियां हैं जिनके चलते कुछ चेहरों को बाहर करना और कुछ संभावितों को लालबत्ती से नवाजने की संभावना पर पूर्ण विराम लगाना तय है। अब जबकि मामला सीबीआई के पास पहुंच चुका है तो ऐसे कई चेहरे जो अब तक व्यापमं की कालिख से बचे हुए थे उन पर दाग लगना तय है। ऐसे में शिवराज नहीं चाहेंगे कि मंत्रीमंडल विस्तार के तुरंत बाद सीबीआई कुछ ऐसे नए चेहरे सामने ले आए कि उनके सामने सर मुड़ाते ही ओले पड़े जैसी स्थिति पैदा हो जाए।
शिवराज सुनिए...
शिवराज जी पहली बार जब आप मुख्यमंत्री बने थे तो आपके विरोधी कह सकते हैं कि आपको यह पद आपके आकाओं की खैरात और मेहरबानी के रूप में मिला था। स्वाभाविक था कि आपके आत्मबल और आत्मविश्वास का स्तर अपेक्षित नहीं था। चंद महीनों बाद जब दोबारा मुख्यमंत्री बने तो भी आपके विरोधी आपको स्वीकारने के बजाए यह कहते नजर आए कि यह शिवराज की जीत नहीं बल्कि कांग्रेस की हार है। अभी तक लोग दिग्विजय सरकार के दौरान खाए धक्कों और धोखाधड़ी को भूले नहीं हैं। लेकिन नई पारी में आप नई ऊर्जा और उत्साह से भरे नजर आए.... प्रदेश की बीमारू तस्वीर बदलने को कटिबद्ध... कुछ आत्मविश्वास और आत्मबल की झलक भी दिखी। लेकिन शिवराज जी जब आप तीसरी बार प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुए तो वह न तो किसी की खैरात थी और न ही किसी लहर का असर..... यह शुद्ध रूप से जनता द्वारा आपके समर्पण को वोट के रूप में दी गई ऐसी सौगात थी जो सब विरोधियों का मुंह बंद कर गई... लेकिन शिवराज जी यहां आकर थोड़ी निराशा होती है। आपके अंदर आत्मबल और आत्मविश्वास का जो छलकता हुआ प्याला नजर आना चाहिए था वह तीसरी पारी में नजर नहीं आया। अनुभव और आत्मविश्वास की जो चमक प्रशासनिक व्यवस्था पर और अपने साथियों पर नजर आनी थी वह नदारद है। याद रखिए यह मुख्यमंत्री पद... इस बार की पारी किसी की सौगात नहीं आपके द्वारा प्रदेश भर में अर्जित किए गए सद्भाव का नतीजा है। बहुत जरूरी है कि आप आत्मचिंतन करें और अपने आत्मविश्वास और आत्मबल का जौहर प्रशासनिक मोर्चे पर भी दिखाएं ताकि देशभर में अगले चुनाव में तस्वीर जो भी हो प्रदेशवासियों पर आपके नेतृत्व की छाप धुंधली न पड़े... आमीन।