किसानों की कब्रगाह बना छत्तीसगढ़!
16-Aug-2015 08:23 AM 1234810

इसे कहानी कहें या त्रासदी, लेकिन है यह  सत्य है कि छत्तीसगढ़ सरकार किसानों के लिए जितनी योजनाएं शुरू कर रही है, वहां उतने ही किसानों के आत्म हत्या के मामले बढ़ रहे हैं। आलम यह है

कि छत्तीसगढ़ में पिछले 14 सालों में 14,793 किसानों ने आत्महत्या की है। ये रोंगटे खड़े कर देने वाले आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिकॉर्ड में दर्ज हैं। किसानों की खुदकुशी का यह ग्राफ  और भी भयानक हो सकता था, लेकिन एनसीआरबी ने 2011 से 2013 की अवधि में ऐसी मौतों की गणना नहीं की। खेती की बढ़ती लागत, खेती में हो रहे लगातार नुकसान के चलते किसान परेशान हैं। अब तो छत्तीसगढ़ को किसानों की कब्रगाह कहा जाने लगा है। साल 2014 में 443 किसान आत्महत्या की संख्या के साथ छत्तीसगढ़ सर्वाधिक किसान आत्महत्या वाले टॉप चार राज्यों में रहा। हालांकि, छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवालने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों को एक गलत विश्लेषण के आधार पर भटकानेवाला बताया है। अग्रवाल ने कहा कि कहा कि यह आंकड़े गलत हैं। छत्तीसगढ़ में इस प्रकार की कोई घटना नहीं हुई है।
राजनीतिक स्तर पर हर तरह के घडिय़ाली आंसू बहाने, बैंक कर्ज माफ करने की लुभावनी घोषणाओं और तमाम योजनाओं के बावजूद कर्ज, गरीबी और भुखमरी से आजिज आकर किसानों का आत्महत्या करना बदस्तूर जारी है। कृषि प्रधान देश होने का कितना भी दावा क्यों न किया जाए, गलत सरकारी नीतियों ने संपन्न किसानों के अल्पसंख्यक वर्ग के सामने छोटे और मझोले बहुसंख्यक किसानों को दरिद्रता के ऐसे मकडज़ाल में फंसा दिया है कि उससे मुक्ति पाने की छटपटाहट किसानों का अपनी जान लेने के लिए मजबूर कर देती है। और यह सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 2014 के लिए एनसीआरबी की जारी रिपोर्ट में किसानों की खुदकुशी के मामले में महाराष्ट्र, तेलंगाना और मध्यप्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 में देश में 5,650 किसानों ने आत्महत्या कि उसमें 5,176 पुरूष और 472 महिलाएं शामिल हैं। सबसे अधिक महाराष्ट्र में 2,568, उसके बाद तेलंगाना में 898्र मध्य प्रदेश में 826, छत्तीसगढ़ में 443, कर्नाटक में 321, आंध्र प्रदेश में 160 और केरल में 107 किसानों ने आत्म हत्या की है। उल्लेखनीय है कि छत्तीगढ़ में भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में वादा किया था कि वह किसानों को धान पर 300 रुपए प्रति क्विंटल बोनस देगी, मगर सरकार ने पिछली बार से धान पर बोनस देना बंद कर दिया है। भाजपा ने यह चुनावी वादा भी किया था कि वह किसानों से 2100 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य पर धान खरीदेगी, लेकिन बीते दो सालों में 50 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी बढ़ा है, जबकि उत्पादन लागत 20 प्रतिशत बढ़ी है। पिछले साल किसानों ने फसलों का मौसम आधारित बीमा करवाया था। इसका फायदा तो किसानों को नहीं मिला, उल्टे उनकी जेब से करोड़ों रूपए निकल गए और बीमा कंपनियों के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ।
मोदी सरकार की मंशा के अनुरूप इस वर्ष मनरेगा के काम पूरे प्रदेश में ठप्प हैं, लेकिन पिछले वर्ष की ही लगभग 45 लाख मजदूरों की 600 करोड़ रुपयों से अधिक की मजदूरी बकाया है। बकाया मजदूरी पिछले 6 माह से दो वर्ष तक की अवधि की है। अब पंचायतों के पदाधिकारी बदल गये हैं और काम करवाने वाले अफसर भी, इस बकाया मजदूरी के मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
जिस कृषि संकट से छत्तीसगढ़ गुजर रहा है उसका पता केवल इससे ही चलता है कि पिछले 11 सालों के भाजपाई राज में 20 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। कारण बहुत ही स्पष्ट है- मौसम की मार से फसल की बर्बादी, समर्थन मूल्य पर खरीदी न होना तथा ऋणग्रस्ता। लेकिन फसल बर्बादी का कोई मुआवजा किसानों को नहीं मिला, पर निजी बीमा कंपनियों ने हजारों करोड़ रुपयों का मुनाफा कमाया।

 

गांव में काम नहीं, बढ़ रही भूखमरी
गांव में काम न मिलने, राशन में कटौती होने तथा भूमिहीनता यह सब मिलकर भुखमरी पैदा कर रहे हैं। सरगुजा व बिलासपुर जिलों से भूख से दर्दनाक मौतों की घटनायें सामने आई हैं। जो बिजली प्रदेश सरकार 2.71 रुपये की औसत लागत से पैदा करती है, वह इसे 5.10 रुपये प्रति यूनिट की औसत दर से बेच रही है। इतना भारी मुनाफा कमाने के बाद भी बिजली कंपनियां घाटे का रोना रो रही हैं और सरकार खामोश है, तो मतलब साफ है कि घोटाला चालू आहे।  भूमि अधिग्रहण सबसे बड़ा मुद्दा बन रहा है। आंध्रप्रदेश में बन रहे पोलावरम परियोजना से 25 हजार लोगों के विस्थापित होने और समूचे सुकमा कस्बे के डूबने की आशंका है। उत्तरप्रदेश में कन्हर नदी पर बांध बनाया जा रहा है और छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के 27 गांव प्रभावित हो रहे हैं। बस्तर में डिलमिली में लौह उद्योग स्थापना का प्रयास जारी है, जिसके लिए आदिवासियों को विस्थापित किया जाएगा। इस प्रस्तावित प्लांट क्षेत्र की 4 हजार एकड़ जमीन नेताओं-अफसरों-व्यापारियों ने पानी के भाव, 5 हजार रुपये प्रति एकड़, के भाव से खरीदकर रख ली है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला

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