अरेरा क्लब ने भी खदेड़ा तिवारी को
16-Aug-2015 08:17 AM 1234782

कभी अपने रसूख से अच्छे-अच्छों को पानी भरवाने वाले सेडमैप के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र तिवारी की स्थिति अब ऐसी हो गई है कि वे न घर(सेडमैप)के रहे न घाट (दोस्त भी नहीं दे रहे भाव)के। यही नहीं अब तो उन्हें अरेरा क्लब से भी खदेड़ा जा चुका है। अरेरा क्लब वर्किंग प्रेसिडेंट ने क्लब के गेट पर बाकायदा नोटिस चस्पा कर इसकी सूचना दी है। अरेरा क्लब में तिवारी का मेम्बरशिप नंबर एमएस जी-1220 था। लेकिन जिस तरह तिवारी के यहां लोकायुक्त के छापे में अवैध कमाई उजागर हुई है उससे क्लब के अन्य सदस्य भी चाहते थे कि तिवारी यहां न आए।
दरअसल, अरेरा क्लब के गठन के साथ यह नियम बनाए गए थे कि इस क्लब का सदस्य क्लास वन ऑफिसर ही होगा। साथ ही यह प्रावधान भी रखा गया था कि अगर किसी सदस्य के खिलाफ सरकार अनुशासनात्मक कार्रवाई करती है तो उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। इसी नियम के तहत तिवारी की सदस्यता समाप्त की गई है। उल्लेखनीय है कि क्लब में स्पोर्ट्स, रेस्टोरेंट के साथ बार की भी सुविधा है। यहां आने वाले कुछ ही लोग स्पोट्स में रूचि लेते हैं। अधिकांश यहां बार में जाम छलकाने आते हैं। बताया जाता है कि यहां आने वाले आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों के बीच अपने-आप को रसूखदार बताने के लिए उन्होंने इसकी सदस्यता ली थी। तिवारी अरेरा क्लब में केवल इसलिए आते थे कि वे यहां आने वाले अफसरों से नजदीकी बढ़ा सकें, जिसका आगे चल कर वे फायदा उठाते रहें। हुआ भी यही, तिवारी ने कुछ ही दिन में अरेरा क्लब आने वाले अफसरों के बीच अच्छी  पैठ बना ली। जिसका फायदा उठाकर उन्होंने सेडमैप के लिए कई योजनाओं को पाया था। सेडमैप के अधिकारी बताते हैं कि एक तेजतर्रार सीए होने के साथ ही तिवारी शातिर व्यक्ति भी थे, इसलिए केंद्र और राज्य सरकार से प्रोजेक्ट के लिए मिलने वाली राशि को इतने बेहतर ढ़ंग से खर्च होना दिखाते थे कि कोई उन पर शक नहीं कर पाता था।
तो बघेल कैसे गए प्रतिनियुक्ति पर
उद्योग विभाग सेडमैप को सरकारी मानने को तैयार नहीं है। ऐसे में सवाल एठ रहा है कि आखिरकार, उद्योग विभाग के कमिश्नर वीएल कांताराव ने डॉ. एसएस बघेल को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग में 3 वर्ष के लिये उप संचालक के पद पर प्रतिनियुक्ति पर कैसे पदस्थ कर दिया है। डॉ. बघेल उद्यमिता विकास केन्द्र में पदस्थ हैं। डॉ. बघेल को उनके पैतृक विभाग में प्राप्त होने वाला वेतनमान और भत्ते राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग में देय होंगे। विभाग की इस दोहरी नीति पर सवाल उठने लगा है। उधर, उद्योग विभाग के आयुक्त वीएल कांताराव कहते हैं कि सेडमैप की गवर्निंग बॉडी की बैठक में ईडी जितेंद्र तिवारी का इस्तीफा ले लिया गया है। नए ईडी की नियुक्ति तक मुझे प्रभार दिया गया है। नए ईडी के लिए अब तक 12 आवेदन आए हैं। कमेटी ही तय करेगी कि योग्य उम्मीदवार कौन है।
उधर, तिवारी के घर लोकायुक्त के छापे के बाद यहां की दूसरी गड़बडिय़ां भी उजागर हो रही हैं। सेडमैप के रीजनल कोऑर्डिनेटर अपने बच्चों और रिश्तेदारों के अकाउंट में कमीशन की रकम बुलाकर फिर यह अकाउंट बंद कर देते थे। कमीशन के लिए हर साल नया अकाउंट नंबर दिया जाता था।
जबलपुर के रीजनल कोआर्डिनेटर एसएल कोरी ने अपने बेटे के अकाउंट में सेडमैप के 8 जिला कार्यालयों से साढ़े पांच लाख रुपए का कमीशन लिया था। कोरी के दो अन्य रिश्तेदारों के अकाउंट में भी 17 लाख रुपए जमा किए गए थे। सेडमैप से ही जुड़े अधिकारियों का कहना है कि इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, बिलासपुर सहित अन्य रीजनल ऑफिसों से ऐसे ही कमीशन मंगाया जाता था।

दो महीने में बंद हो गया अभिषेक का अकाउंट
दस्तावेजों के मुताबिक कोरी के बेटे अभिषेक के नाम पर जबलपुर कृषि उपज मंडी एसबीआई शाखा में 16 अप्रैल 2013 से 10 जून 2013 तक 8 मर्तबा कमीशन की रकम आई थी। उमरिया, जबलपुर, कटनी, रीवा, मंडला, अनूपपुर के जिला कार्यालयों से यह राशि भेजी गई थी। अभिषेक के अकाउंट में दो माह में ही 5 लाख 52 हजार रु. भेजे गए थे। फिर यह अकाउंट बंद हो गया। इसके अलावा सियाबाई कोरी के नाम इसी बैंक शाखा में 9 अप्रैल 2012 से 27 अगस्त 2013 तक 14 बार में 9 लाख 55 हजार रु. भेजे गए। इसके बाद कमीशन की रकम मनोज कोरी के अकाउंट में बुलवाई जाने लगी। मनोज के अकाउंट में भी सेडमैप के अलग-अलग जिलों से 7 लाख रु. भेजे गए।  रीजनल कोआर्डिनेटर, जबलपुर एसएल कोरी का इस संदर्भ में कहना है कि यह साल भर पहले की शिकायत है। इसकी विभागीय जांच चल रही है। जहां तक कमीशन की बात है तो मैं बेवकूफ थोड़े ही हूं जो कमीशन की रकम अकाउंट में बुलाऊंगा। सेडमैप से ही जुड़े लोग मेरे खिलाफ  साजिश कर रहे हैं।

अब नौकरी ढंूढते फिर रहे
सेडमैप से हटाए जाने के बाद तिवारी अब नौकरी ढूंढ रहे हैं। इसके लिए वे दिल्ली की कई कम्पनियों के चक्कर भी लगा चुके हैं। मूलत: गुना के रहने वाले जितेंद्र तिवारी पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। 2002 तक वह प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाते थे। वर्ष 2002 में सेडमैप में तिवारी की एंट्री फाइनेंशियल एडवाइजर के तौर पर हुई और अपने तिकड़म के कारण वे धीरे-धीरे सेडमैप के कार्यकारी निदेशक बन बैठे। लेकिन अब बेरोजगार हो चुके तिवारी दर-दर भटक रहे हैं।
-भोपाल से सुनील सिंह

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