बांग्लादेश में विद्रोह की आहट
19-Mar-2013 10:21 AM 1234779

बांग्लादेश में जिस वक्त भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी दौरे पर थे उस वक्त सारे देश में आग लगी हुई थी। यह आग जमात-ए-इस्लामी के उन समर्थकों ने लगाई थी जो कभी पाकिस्तान के वफादार समझे जाते थे। इन पाकिस्तान परस्तो को बांग्लादेश की सरकार युद्ध अपराधी घोषित करते हुए अब सजा दे रही है। बहुत से नेताओं को सजा-ए-मौत दी गई है क्योंकि उन्होंने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान न केवल हिंदू अल्पसंख्यकों पर जुल्म ढाए बल्कि अपने साथियों को भी चुन-चुनकर मौत के घाट उतारा। आज बांग्लादेश का इतिहास नए मोड़ पर है। वह उन दुखद यादों को पूरी तरह समाप्त करना चाहता है जिनके चलते इस छोटे से देश में 30 लाख जानें गईं थी। मानव अधिकार उल्लंघन के असंख्य मामले सामने आए थे। लाखों स्त्रियों से बलात्कार किया गया और बच्चों से लेकर वृद्धों तक सबने अमानवीय अत्याचार झेले। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम इस विश्व के नक्शे पर सर्वाधिक रक्त रंजित त्रासदियों में से एक है। भारत विभाजन से पहले 1941 में बनी जमात-ए-इस्लामी नामक पार्टी ने बांग्लादेश में सत्ता का यह खूनी खेल खेला था। इसके संस्थापक थे सैय्यद अबुल अला मौदूदी जो बांग्लादेश में विभाजन के वक्त पहुंचे थे और पूर्वी पाकिस्तान में जमात-ए-इस्लामी को संगठित करने में लगे हुए थे। जमात-ए-इस्लामी का अब भी बांग्लादेश में व्यापक जनाधार है। यह देश की सबसे बड़ी इस्लामिक राजनीतिक पार्टी है। इसने प्रारंभ में पृथक बांग्लादेश का विरोध किया था, लेकिन बाद में अयूब खान के शासनकाल में राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होना शुरू किया। 1978 में जब मुक्तिवाहिनी प्रचंड बहुमत से जीतकर सत्ता में आई तो जमात-ए-इस्लामी  को प्रतिबंधित कर दिया गया। इस पार्टी के नेता गुलाम आजम की नागरिकता रद्द कर दी गई लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद उन्हें बांग्लादेश आने की अनुमति मिल गई। आज यह संगठन बांग्लादेश इस्लामी छात्र शिविर एक बहुत प्रभावशाली राजनीतिक संगठन है और हिंसा तथा चरमपंथ को बढ़ावा देने के लिए कुख्यात है। जमात-ए-इस्लामी कई सरकारों में भी शामिल रही है और उस पर पृथकतावादी आंदोलन के भी आरोप लगे हैं। 1990 में जब सैन्य शासन की समाप्ति हुई उस वक्त इस पार्टी और इसके नेताओं के खिलाफ युद्ध अपराध में शामिल होने के आरोप लगे और मुकदमे चले। मई 2008 में बांग्लादेश पुलिस ने जमात-ए-इस्लामी के नेता और पूर्व मंत्री मतीउर रहमान को अन्य मंत्रियों के साथ गिरफ्तार किया था। वर्ष 2010 में अंतर्राष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने जमात-ए-इस्लामी के 8 नेताओं को युद्ध अपराध का दोषी पाया। इसके बाद से ही बांग्लादेश में उथल-पुथल शुरू हुई इससे पहले वर्ष 2009 में लगभग 6 हजार सैनिकों की अगुवाई में बांग्लादेश में विद्रोह का प्रयास भी हुआ था। जिसे चंद घंटों में ही दबा दिया गया था। समझा जाता है कि इस विद्रोह में कहीं न कहीं जमात-ए-इस्लामी का हाथ था। जमात-ए-इस्लामी पर भारत में बाबरी विध्वंस के बाद दंगे भड़काने और हिंदुओं का कत्लेआम करने का आरोप भी है। बौद्ध धर्मावलंबियों को तंग करने उनके मंदिर ध्वस्त करने से लेकर अल्पसंख्यकों पर कहर ढाने के लिए यह पार्टी कुख्यात है। यह पहले अल्लाह के शासन की बात करती थी लेकिन बाद में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए पार्टी ने अपने इस नारे को बदल दिया, लेकिन फिर भी चरमपंथी इस पार्टी की मुख्यधारा में शामिल रहे। समझा जाता है कि बांग्लादेश को मुस्लिम राष्ट्र बनाने में भी इसी पार्टी का हाथ था।
बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के नेता दिलावर हुसैन सईदी को मौत की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद से जमात-ए-इस्लामी के इशारे पर बांग्लादेश में दंगे भड़क उठे हैं जिनमें 100 से अधिक मौतें हो गई हैं। जमात-ए-इस्लामी के कुछ नेता तथा धार्मिक नेताओं का कहना है कि 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान कत्ल, बलात्कार और यातना के आरोपों की जांच कर रही ट्रिब्यूनल का गठन राजनीतिक कारणों से हुआ है। हालांकि बांग्लादेश सरकार ने इस आरोप को सरासर गलत बताया है। ये तीसरा मौका है जब ट्रिब्यूनल ने अपना फैसला सुनाया है। ट्रिब्यूनल में जमात-ए-इस्लामी के 9 नेताओं और बांग्लादेश नेशनल पार्टी के दो नेताओं पर मुकदमा चल रहा है। यह मुकदमा ही विवाद ही कारण है। बांग्लादेश की अधिकतर जनसंख्या युद्ध अपराधियों को सजा-ए-मौत दिए जाने की मांग कर रही है। कुछ समय पहले जमात-ए-इस्लामी के नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को भी मौत की सजा दिए जाने की मांग की गई थी, इसके बाद बांग्लादेश की संसद ने एक कानून में संशोधन किया था। अब्दुल कादिर मुल्ला मुक्ति संग्राम के दौरान कथित युद्ध अपराधों के लिए आजीवन सजा काट रहे थे। अब यह भी खबर है कि सरकार जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा सकती है। लेकिन जिस तरह जमात-ए-इस्लामी ने आम जनता के बीच में अपना जनाधार बढ़ा लिया है और कट्टरपंथियों को साथ मिलाकर बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरवाद का प्रचार कर रही है उसके चलते इस बात की संभावना कम ही है कि इस राजनीतिक दल को लंबे समय तक प्रतिबंधित करके रखा जा सकेगा। कट्टरपंथ बांग्लादेश की विशाल समस्या बनता जा रहा है और कट्टरपंथी ताकतें वहां पर आतंकवादी गतिविधियों में भी लिप्त हैं। समझा जाता है कि भारत में कुछ आतंकवादी घटनाओं के लिए भी बांग्लादेश के कट्टरपंथियों का समर्थन पाने वाले आतंकवादी जिम्मेदार थे। वहां आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर की बात भी बीच में उठी थी। इन्हीं हालातों के मद्देनजर अब बांग्लादेश में विद्रोह की आशंका भी जताई जा रही है।
ज्योत्सना अनूप यादव

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