गतिरोध से व्यथित हैं स्पीकर डॉ. शर्मा
05-Aug-2015 08:13 AM 1234765

मध्यप्रदेश विधान के विद्वान, मृदुभाषी और अध्ययनशील अध्यक्ष डॉ. सीताशरण शर्मा सदन की कार्यवाही में विधायकों द्वारा किये जा रहे हंगामें से व्यथित हैं और इस व्यवस्था को हर हाल में सुधारना चाहते हैं। राजेन्द्र आगाल से उनकी गुफतगु के मुख्य अंश प्रस्तुत हैं।
14वीं विधान सभा में आपके पदभार सम्हालने के बाद से ही हंगामा होता रहा है। कई मौके ऐसे भी आये जब सदन को बीच में ही स्थगित करना पड़ा। व्यापमं मुद्दा और उसमें मुख्यमंत्री के स्तीफे को लेकर गतिरोध बना रहा। इसका प्रभाव उन 100 विधायकों पर कैसा पड़ेगा जो नये चुनकर आये हैं।
बहुत खराब असर होगा उन पर। यह मेरे द्वारा उठाये जाने वाले विषय नहीं हंै। सदन में विधायकों को खुद सोचना चाहिए कि यदि उनका अधिकार किसी विषय को उठाने का है तो दूसरे विधायकों को भी उतना ही अधिकार है। एक बात और यह हमारे सामाजिक जीवन का सामान्य सिद्धांत है कि जो अधिकार हम समाज या व्यवस्था से चाहते हैं वही अधिकार हमको उस समाज या व्यवस्था को देना पड़ता है। हल्ला मचाने वाले एक दूसरे को लेकर ही पीछे पड़े हुए है। जबकि अनेक विषय हैं। कल (21 जुलाई) ही 139 पर चर्चा थी वर्षा हो रही है, कई जगह फसलें बह गयी हैं लोग परेशान हैं पर उसका क्या किया जा सकता है। कोई बात ही नहीं हुई। सदन में जो गतिरोध है उसका रास्ता हम तलाशेगें। मैं विधान सभा  उपाध्यक्ष जो कि स्वयं वरिष्ठ विधायक हैं के साथ साथ सदन के सदस्यों से भी चर्चा करूंगा कि इसका क्या हल खोजा जा सकता है। जिससे लोकतांत्रिक अधिकार का हनन न हो और लोकतांत्रिक मूल बचे रहें।
गंभीर विषयों को लेकर विधान सभा में एक भी बार चर्चा नहीं हो पाई है। तो क्या इस संदर्भ में कोई कानून या व्यवस्था ऐसी बनाई जा सकती है जिससे हल्ला मचाने वालों को अलग करते हुए सदन सुचारू रूप से चलने दिया जाये।
अभी हिमाचल प्रदेश विधानसभा देखने गया था वहां यही बात मेरे मन में थी मैंने स्पीकर से चर्चा की। वहाँ स्पीकर ने यह व्यवस्था कर रखी है कि वहाँ वे जब चाहते हैं तब माईक बंद हो जाते हैं और मुख्यमंत्री, स्पीकर तथा नेता प्रतिपक्ष के माईक भर चालू रहते हैं। लेकिन वहाँ एक व्यवस्था और है जिसके तहत ऐसी तकनीक अपनाई गयी है कि विधायक प्रश्न पूछता रहता है और संबंधित मंत्री जवाब देते हैं। इससे व्यवधान की स्थिति में भी विधायक के प्रश्न पूंछने के अधिकार की रक्षा भी होती है और उसे उत्तर भी मिलता है। इस प्रकार प्रश्न, पूरक प्रश्न और उत्तर चलते रहते हैं। किंतु मध्यप्रदेश में इसे लागू करने से पहले माननीय विधायकों और डिप्टी स्पीकर साहब से चर्चा की गई।
जो नये विधायक आये हैं उनमें से ज्यादातर सत्ता पक्ष से हैं जिन्हें सदन की कार्यप्रणाली का एबीसीडी ज्ञान नहीं है। वे राष्ट्रगीत बजने पर खड़े हो जाते हैं क्योंकि आसंदी खड़ी है और हंगामा मचने पर चिल्लाने लगते हैं। किसी भी विषय की उन्हें रत्तीभर जानकारी नहीं है। ऐसी स्थिति में जो विधायक माननीय कहलाते हैं और अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं वे आखिर सीखेंगे कब।
मुट्टी भर लोगों ने विधानसभा को बंधक बना लिया है यह चिंता का विषय है। नये विधायक बड़े उत्साह से आते हैं। उनमें कम उम्र के नौजवान भी शामिल हैं उनके मन में अपने क्षेत्र के मुद्दे उठाने की इच्छा है। किंतु जैसा मैंने आपसे कहा कि मुट्टी भर लोगों ने विधानसभा को बंधक बना लिया है तो इस पर बड़ी गंभीरता से बात करने की आवश्यकता है। मुझे आशा थी कि पिछले बजट सत्र से जो बहुत जल्दी समाप्त हो गया इस सत्र में विधायक कुछ शिक्षा ग्रहण करेंगे किंतु मुझे बहुत अफसोस है कि उससे भी कोई पाठ नहीं सीखा गया। उससे भी कोई शिक्षा नहीं ली गई। तो अब इसके लिए कुछ ना कुछ हम जरूर करेंगे।
क्यों न नए विधायकों के लिए कोई प्रशिक्षण आयोजित करें जिसमें सभी लोगों को और उन मुट्टीभर विधायकों को भी सीख मिले।
इसमें एक संशोधन हो सकता है कि जो पहली बार चुन कर आये हैं जो नौजवान हैं उनको अलग से बुलाया जा सकता है, उनकी बात सुनी जा सकती है क्योंकि एक वर्ष हो गया है। तीन-चार सत्र हो गये हैं। इसलिए उन विधायकों से सुझाव लिये जा सकते हैं कि सदन को ठीक से चलाने के लिए उनके क्या विचार हैं और वे क्या कहना चाहते हैं।
अभी यह प्रचलन बनता जा रहा है कि विधान सभा में आसंदी को घेर लिया जाता है। पहले भी रोहाणी जी के समय ऐसा होता रहा। आप बहुत शांत भाव से सबको समझाते रहे हैं। इस बार भी सदन में कल (21 जुलाई) और आज (22 जुलाई) बहुत कुछ अप्रिय घटा इस पर रोक लगाने की क्या व्यवस्था है।
विधानसभा में अंतिम दो दिन जो दुर्घटना घटी वो दुर्भाग्यपूर्ण थी और मैं यह जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूँ कि उसमें इनटेंशन किसी भी पक्ष को कुछ भी नहीं थी। वो एक स्वाभाविक उत्तेजना सी थी जहाँ दोनों पक्ष नारे लगाते हुए बाहर निकले।  और धक्का मुक्की हो गयी। यह भी दुर्घटना है।
एक बात और है कि मीडिया की भूमिका काफी नाकारात्मक रही है। कैमरे लगे होने के कारण, कैमरे के सामने आते ही कुछ विधायक और मंत्री ज्यादा हंगामा करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अपनी बात वे मीडिया के माध्यम से सारे देश तक पहुँचा देगें इस लिए ज्यादा हंगामा करते हैं। इस पर रोक के लिए कुछ व्यवस्था की जायेगी?
अगली बार से इसे व्यवस्थित कर लिया जायेगा।
पावस सत्र की भ्रूण हत्या जिम्मेदार कौन?
मध्यप्रदेश की विधानसभा और देश की संसद में एक ही सीन है-कोई किसी को सुनना नहीं चाहता। न कोई दलील, न कोई बहस, न कोई तथ्य, और न ही कोई आवाज। मांग केवल एक है कि जो आरोपी हैं वे पहले अपना पद छोड़े। उसके बाद बात की जाएगी।  आरोपी और अपराधी में बुनियादी अंतर है। आरोप किसी पर भी लग सकता है। अपराध बहुत कम पर सिद्ध हो पाता है। सार्वजनिक जीवन में हर दिन अनेक आरोप लगते हैं और कोई इस्तीफा नहीं देता। कांग्रेस के तमाम मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक आरोपों से घिरे रहे, लेकिन अपराध सिद्ध होने तक पार्टी ने उनसे इस्तीफा नहीं लिया। मध्यप्रदेश में विधानसभा में कांग्रेस के हंगामें के कारण स्पीकर ने बीच में ही विधानसभा को अननिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया और इसके साथ ही यह अनिश्चितता अब लंबी खिंच गई है। 10 दिन तक चलने वाली विधानसभा बीच में ही स्थगित होने के बाद अब विपक्ष के पास सदन के बाहर धरना-प्रदर्शन के अलावा कोई चारा नहीं है। यदि सदन के भीतर बहस होती तो जनता को सच पता लग सकता था। लेकिन अब जनता भ्रमित है। कुल तीन दिन का सत्र खानापूर्ति ही रहा है। 2015 के वित्त वर्ष 2015-16 के पहले अनुपूरक अनुमान से संबंधित विनियोग विधेयक, मप्र निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, मप्र श्रम विधियां (संशोधन) और प्रकीर्ण उपबंध विधेयक, मप्र अधोसंरचना विनिधान निधि बोर्ड (संशोधन) विधेयक, मप्र तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक, मप्र औद्योगिक सुरक्षा बल विधेयक और मप्र वैट संशोधन विधेयक बगैर चर्चा के ही ध्वनिमत से पारित कराए गए- जिन विधेयकों पर चर्चा जरूरी थी वे बिना किसी बातचीत के अंजाम तक पहुंच गए। यह गैर जिम्मेदाराना रवैया नहीं तो क्या है और इसका जिम्मेदार कौन है? क्या व्यापमं को छोड़कर कोई दूसरा मुद्दा नहीं है। क्या अन्य विषयों पर चर्चा जरूरी नहीं है। व्यापमं की जांच तो अब सीबीआई करेगी।  कांग्रेस की यह मांग पूरी हो चुकी है। इसलिए तीन दिन की बजाय पूरे 31 जुलाई तक कामकाज होता तो बेहतर होता। 85 अरब 91 करोड़ रुपए के अनुपूरक बजट को बगैर प्रश्नकाल के पारित करना समझ से परे है। जिस दिन दिवंगतों को श्रद्धांजलि दी जा रही थी उस दिन भी टकराव देखने को मिला। यह अशिष्टता की पराकाष्ठा ही कहीं जाएगी। नेता प्रतिपक्ष दिवंगत पत्रकार अक्षय सिंह को भी श्रद्धांजलि देना चाह रहे थे। लेकिन संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मान्य परंपराओं का हवाला देते हुए उनसे कहा कि सिर्फ कार्यसूची में शामिल लोगों को ही श्रद्धांजलि देने का नियम है। इसके बाद हंगामा शुरू हो गया। इससे पहले सत्यदेव कटारे के साथ कथित मारपीट और विधायकों की सुरक्षा का मामला सदन में गहरा गया था।
सदन न चलने से विधायक भी दुखी
विधानसभा जो नीति निर्धारण का स्थल होता है। वहां अब हंगामा ही हंंगामा नजर आता है। अगर कांग्रेस के पिछले 10 साल और भाजपा के वर्तमान 12 साल के कार्यकाल को देखें तो हम यह पाते हैं कि जहां कांग्रेस के शासनकाल में यानी 10वीं और 11वीं विधानसभा में सदन की कार्यवाही पूरे समय चली है। ऐसा नहीं कि हंगामा न हुआ हो, लेकिन कभी भी सत्र अधूरा नहीं रहा है। जबकि भाजपा शासनकाल में 12वीं, 13वीं और 14वीं विधानसभा के सत्र के दौरान कई बैठकें आधी अधूरी ही रह गई। इसके लिए जहां सत्ता पक्ष विपक्ष को दोषी मानता है वहीं विपक्ष सरकार पर आरोप लगाता है कि वह चर्चा करने के डर से सदन की कार्यवाही पूरे समय नहीं चलने दे रही है। अभी हाल ही में 14वीं विधानसभा का मानसून सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। 14वीं विधानसभा में अभी तक 7 सत्र हुए हैं जिसमें से द्वितीय सत्र जो तीन दिन का था, चतुर्थ सत्र जो पांच दिन का था और छठवा सत्र जो एक दिन का था पूरा चल सका है। जबकि अन्य सत्र बीच में ही हंगामे के कारण समाप्त करने पड़े। जन समस्याओं से संबंधित मुद्दों पर चर्चा न हो पाने से भाजपा और कांग्रेस के कई विधायक दुखी हुए। उन्होंने कहा कि नूरा कुश्ती के चलते जनहित के मुद्दे पीछे छूट रहे हैं। इससे ब्यूरोक्रेसी हॉवी हो रही है। भाजपा के अनेक विधायकों ने कहा कि सदन न चलने से उनकी मेहनत पर पानी फिर गया। भाजपा विधायक ओमप्रकाश सखलेचा कहते हैं कि कुछ लोग दिखावटी नाटक और नूरा कुश्ती कर कार्यवाही बाधित करते हैं। प्रश्नोत्तर काल और ध्यानाकर्षण की कार्यवाही न चलने से जनहित के मुद्दों की अनदेखी हो रही है। पौने दो साल से समस्याओं पर चर्चा-बहस नहीं हो पा रही। बजट सत्र में भी जन समस्याओं से जुड़े मामलों पर चर्चा नहीं हो पाई थी। वहीं हितेन्द्र सिंह सोलंकी कहते हैं कि मेरे 3 सवाल और 2 ध्यानाकर्षण लगे थे, लेकिन कांग्रेस की हठधर्मी के चलते सदन की मर्यादा तार-तार हो रही है। जनहित के मुद्दों पर सदन में चर्चा जरूरी है। विधायक विश्वास सारंग कहते हैं कि भाजपा हर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार थी। लेकिन कांग्रेस हर बार की तरह इस बार भी हंगामें पर तुली रही। नियम 139 और किसानों से संबंधित चर्चा भी कांग्रेस के हंगामे के कारण नहीं हो पाई। पूर्व मंत्री और विधायक अर्चना चिटनीस कहती हैं कि जो मुद्दे हैं उनका समाधान होना चाहिए। प्रश्नकाल न चलने देना गलत है।
वहीं  नेता-प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे कहते हैं कि सरकार सदन नहीं चलाना चाहती। जिस सरकार के मुखिया घोटाले में लिप्त हो, उससे क्या उम्मीद करेंगे। सरकार किसी प्रश्न का जवाब नहीं देना चाहती। सदन नहीं चलता है तो विधायक और जनता का नुकसान होता है। जनता के लिए जो मुद्दे महत्वपूर्ण है, उन पर चर्चा नहीं हो पाती, जिससे सत्ता पक्ष मनमाने फैसले बिना किसी बहस के कर लेता है। विधायक जयवर्धन सिंह सिंह कहते हैं कि सत्र चलना चाहिए। सवालों पर बहस हो। व्यापमं घोटाले के कारण सरकार सदन नहीं चलाना चाहती। रणनीति पहले से सदन को स्थगित कर देने की थी। सदन नहीं चलने से जनता के मुद्दे नहीं उठ पाते।

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