05-Aug-2015 08:02 AM
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केंद्र में पिछले साल नरेंद्र मोदी सरकार बनाने के साथ ही सवाल उठने लगे थे कि क्या सरकार के कामकाज में अब आरएसएस का दखल बढ़ जाएगा? पूर्व प्रचारक मोदी आरएसएस को अब कितनी

तवज्जो देंगे या सरकार उसके एजेंडे को कितना फॉलो करेगी? इन तमाम सवालों के बीच संघ में मोदी को फ्री-हैंडÓ दे दिया कि वह जैसे चाहें वैसे सत्ता का संचालन करें। साथ ही भाजपा शासित राज्यों की निगरानी की भी जिम्मेदारी भी दी गई। संघ इनता चाहता था कि बस इस दौरान कोई ऐसी घटना न हो जिससे भाजपा या संघ की छवि पर ऊंगली उठे। क्योंकि न खाएंगे और न खाने देंगे और अच्छे दिन जैसे जुमलों और नारों के दम पर ही भाजपा सत्ता में आ सकी है। लेकिन संघ का विश्वास अधिक दिन तक कायम नहीं रह सका और केंद्र से लेकर राज्यों तक भाजपा कलंकित हो गई। माना तो यहां तक जा रहा है कि यूपीए के 10 साल के भ्रष्टाचार पर जितना बवाल खड़ा नहीं हुआ है उससे कहीं अधिक मोदी सरकार के 14 माह के कार्यकाल में हो गया है। दरअसल, मोदी की महिमा पर अपने मंत्रियों की कारगुजारियों के अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों के दाग भी लगे हैं। इसके लिए संघ मोदी के प्रति अपने अतिविश्वास का दोष मान रहा है। इसलिए संघ ने मोदी और अमित शाह को इससे निपटने का निर्देश दिया है।
भाजपा को केंद्र की सत्ता तक लाने में नरेंद्र मोदी की शख्सियत और मेहनत के अलावा आरएसएस की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसा पहली बार हुआ कि सर संघचालक ने 2013 में संघ के स्थापना दिवस विजयादशमी पर स्वयंसेवकों को सौ फीसदी वोटिंग कराने के निर्देश दिए। स्वयंसेवकों ने ऐसा किया भी। जाहिर है, ऐसा मोदी सरकार बनवाने के लिए किया गया। सर संघचालक मोहन भागवत और उनके सहयोगियों ने लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे कद्दावर नेताओं को मार्गदर्शकÓ की भूमिका देने और मोदी को भाजपा के टॉप तक पहुंचाने की कोशिशें शुरू कर दीं और उसमें कामयाब भी रहे। केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद मोदी सरकार को आरएसएस की तरफ से फ्री-हैंड काम करने का वक्त भी दिया गया। शायद संघ नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री और सरकार के प्रमुख के तौर पर सांस लेने का वक्त देना चाहता था। यही वजह है कि अपने प्रमुख मसलों पर भी संघ ने नरमी बरती है। लेकिन इस दौरान जिस तरह केंद सरकार की दो मंत्राणियों सुषमा स्वराज और स्मृति ईरानी, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और महाराष्ट्र की मंत्री पंकजा मुंडे पर पक्षपात, भ्रष्टाचार, जालसाजी आदि के आरोप लगाए गए हैं उससे न केवल भाजपा बल्कि संघ की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। देशभर में इनको लेकर बवाल मचा हुआ है और मोदी मौन हैं। इसलिए संघ भी अब मोदी से खफा है। मन मुटाव की बस यही वजह नहीं हैं। और भी कारण हैं।
संघ बड़ा या मोदी?
इस बीच, मोदी की कार्यशैली को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं कि मोदी का कद क्या आरएसएस से बड़ा हो गया है? गुजरात में गोधरा कांडÓ के बाद से मोदी ने खुद को बेहद मजबूत शख्सियत में तब्दील किया। कुछ जानकारों का मानना है कि उनका कद संगठन और पार्टी से बड़ा हो गया है। संघ और भाजपा को मोदी की जरूरत है, मोदी को उनकी नहीं। हालांकि संघ को समझने वाले जानते हैं कि भाजपा के लिए गली गली, मोहल्ले-मोहल्ले और परिवारों तक पैठ बनाने वाला कार्यकर्ता आरएसएस से ही आता है। ऐसे में मोदी शायद संघ की अहमियत अच्छी तरह समझते हैं।
स्वदेशी के पैरोकार संघ ने मोदी के मेक इन इंडियाÓ का समर्थन किया है। स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक अश्विनी महाजन का कहना है कि मेक इन इंडियाÓ के तहत भारत के लोगों को रोजगार मिलेगा। सरकार की आर्थिक नीतियां किसानों, मजदूरों और आम आदमी के हित में होनी चाहिए। हम जिन मुद्दों को बरसों से उठा रहे हैं, उन पर सरकार को सोचना चाहिए। सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म करने पर भी फिलहाल चुप्पी लगा रखी है। हालांकि आरएसएस के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने साफ किया है कि इस पर हमारा रुख नहीं बदलता है। इसी तरह, विश्व हिंदू परिषद अपने स्वर्ण जयंती वर्ष के कार्यक्रमों में राम मंदिर बनाने के मुद्दे को नहीं उठा पाई। अशोक सिंघल भले ही अब भी यदा-कदा राम मंदिर बनाए जाने की बात कह देते हों, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इस मुद्दे पर आरएसएस अब कोई आंदोलन की शुरुआत करेगा। वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय कहते हैं कि राम मंदिर का मुद्दा सिर्फ वीएचपी का मुद्दा नहीं है। यह सभी हिंदुओं का मुद्दा है। मोदी सरकार समाज के प्रति समर्पित है। मोदी सरकार देश के नागरिकों के हित में अच्छा काम कर रही है।
फिर भी सजग है संघ
ऐसा नहीं है कि मोदी को फ्री हैंड देने के फेर में संघ दुबक कर बैठ गया है। संघ परोक्ष और प्रकट रूप में अपने कार्यक्रम पर चल रहा हे। प्रकट में उसने धर्म जागरण अभियान के जरिये घर वापसी जैसे कार्यक्रम चलाए जिन पर जमकर हंगामा हुआ तो परोक्ष रूप से उसने पाठ्य पुस्तकों में बदलाव और वामपंथियों से भरी संस्थाओं में अपने पक्ष के लोगों की नियुक्ति करवाकर अपने एजेंडे को मूर्त रूप देने का प्रयास किया। हालांकि कहीं-कहीं इस पर विचार भी हुआ जैसे गजेन्द्र का प्रकरण या स्कूलों में योग की अनिवार्यता पर बहस आदि। इसीलिए संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों की प्रकट नाराजगी के बावजूद संघ की भीतरी ताकतों का विश्वास है कि यदि मोदी सैद्धांतिक रूप से संघ की जमीन तैयार करने में बाधक नहीं बन रहे हैं तो उनके द्वारा किए जा रहे कॉस्मेटिकÓ परिवर्तनों अथवा नीतिगत बदलावों पर ज्यादा हल्ला मचाने की आवश्यकता नहीं है। प्रकट में भले ही मतांतर दिखें किंतु वृहद रूप से देखें तो मोदी द्वारा पिछले दिनों उठाए गए कदमों में संघ की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ रही है।
विस्तार का एजेंडा भी
आरएसएस को उम्मीद है कि भविष्य में सब ठीक हो जाएगा। सरकार के साथ तालमेल के अलावा वह अपने विस्तार पर भी काम कर रहा है। आरएसएस के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य मानते हैं कि हर साल आरएसएस की दो हजार शाखाएं बढ़ रही हैं। इस समय 33,222 स्थानों पर 51,330 शाखाएं रोजाना लगती हैं। साप्ताहिक शाखाओं का आयोजन भी बढ़ रहा है। आरएसएस को गांवों में अपना असर बढ़ाने की चिंता है। सर कार्यवाह भैयाजी जोशी ने देश के 6.50 लाख गांवों में से 54 हजार गांवों में संपर्क होने की बात कही है। बाकी गांवों में भी आरएसएस संपर्क की योजना बना रहा है।
इंतजार बुलावे का
आरएसएस की नाराजगी के साथ यह सवाल भी उठ रहा है कि बरसों से अपने-अपने मुद्दों और नीतियों को लेकर संघर्ष कर रहे संगठन क्या मोदी सरकार के फैसलों पर चुप रहेंगे? क्या संगठन अपने वर्करों की हितों की बलि चढ़ा देंगे? संगठनों के नेता इसके लिए तैयार नहीं है। आरएसएस की तरफ से भाजपा और केंद्र सरकार को टकराव की स्थिति टालने के लिए तालमेल का जिम्मा सौंपा गया है। यह काम सरकार को ही करना है। संगठनों को भी इंतजार है कि सरकार की तरफ से मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कब बुलावा आता है। संघ के एक नेता कहते हैं कि सरकार को ऐसे फैसले करने होंगे, जिससे स्वयंसेवकों और वर्करों को लगे कि यह उनकी सरकार है। अभी तो यही सुनाई दे रहा है कि सरकार में कोई काम नहीं हो रहा है। हालांकि ईमानदारी से काम करने के लिए सरकार की तारीफ भी हो रही है।
विस्तार का एजेंडा भी
आरएसएस को उम्मीद है कि भविष्य में सब ठीक हो जाएगा। सरकार के साथ तालमेल के अलावा वह अपने विस्तार पर भी काम कर रहा है। आरएसएस के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य मानते हैं कि हर साल आरएसएस की दो हजार शाखाएं बढ़ रही हैं। इस समय 33,222 स्थानों पर 51,330 शाखाएं रोजाना लगती हैं। साप्ताहिक शाखाओं का आयोजन भी बढ़ रहा है। आरएसएस को गांवों में अपना असर बढ़ाने की चिंता है। सर कार्यवाह भैयाजी जोशी ने देश के 6.50 लाख गांवों में से 54 हजार गांवों में संपर्क होने की बात कही है। बाकी गांवों में भी आरएसएस संपर्क की योजना बना रहा है।
इंतजार बुलावे का
आरएसएस की नाराजगी के साथ यह सवाल भी उठ रहा है कि बरसों से अपने-अपने मुद्दों और नीतियों को लेकर संघर्ष कर रहे संगठन क्या मोदी सरकार के फैसलों पर चुप रहेंगे? क्या संगठन अपने वर्करों की हितों की बलि चढ़ा देंगे? संगठनों के नेता इसके लिए तैयार नहीं है। आरएसएस की तरफ से भाजपा और केंद्र सरकार को टकराव की स्थिति टालने के लिए तालमेल का जिम्मा सौंपा गया है। यह काम सरकार को ही करना है। संगठनों को भी इंतजार है कि सरकार की तरफ से मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कब बुलावा आता है। संघ के एक नेता कहते हैं कि सरकार को ऐसे फैसले करने होंगे, जिससे स्वयंसेवकों और वर्करों को लगे कि यह उनकी सरकार है। अभी तो यही सुनाई दे रहा है कि सरकार में कोई काम नहीं हो रहा है। हालांकि ईमानदारी से काम करने के लिए सरकार की तारीफ भी हो रही है।
कैलाश विजयवर्गीय का बड़ा प्रमोशन
कैलाश विजयवर्गीय का बड़ा प्रमोशन हुआ है। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी और सरकार के बीच तालमेल की बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। संसद से सड़क तक हो रहे संग्राम के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सरकार और पार्टी के बीच तालमेल के लिए कैलाश विजयवर्गीय को जिम्मेदारी दी है। मोदी सरकार में पहली बार कैलाश विजयवर्गीय को ये भूमिका मिली है। मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रहे कैलाश विजयवर्गीय को पिछले साल चुनाव में हरियाणा की जिम्मेदारी दी गई थी। हरियाणा में भाजपा को जीत मिली जिसके बाद उन्हें महासचिव बनाया गया और पश्चिम बंगाल भाजपा का प्रभारी बनाया गया। और अब पार्टी ने उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है।
सरकार और पार्टी में तालमेल का मतलब क्या है?
पीएम मोदी, अमित शाह और अरुण जेटली के बाद कैलाश विजयवर्गीय सरकार और पार्टी का चौथा बड़ा चेहरा होंगे। सरकार से लेकर पार्टी के फैसलों में कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका होगी। बुधवार को संसदीय समिति की बैठक में भी कैलाश विजयवर्गीय मौजूद होंगे। अमित शाह के अलावा कैलाश विजयवर्गीय दूसरे ऐसे नेता होंगे जो कि सांसद न होने के बावजूद पार्टी की बैटक में हिस्सा लेंगे। संसद में विपक्ष का मुकाबला करने के लिए राज्यों के जो मुद्दे उठाए जाने की रणनीति कैलाश विजयवर्गीय ने तय की है। पार्टी की तरफ से सरकार को मुश्किल से उबारने की रणनीति भी कैलाश विजयवर्गीय बनाएंगे। इसके अलावा संगठन में अहम फैसलों में भागीदारी होगी।
मोदी के गले की फांस बने रामनरेश
व्यापमं घोटाले में मप्र के राज्यपाल रामनरेश यादव और उनके बेटे का भी नाम शामिल है। लेकिन न तो राज्य सरकार और न ही केन्द्र सरकार राज्यपाल के खिलाफ कोई कदम उठा रही है। राज्यपाल के पुत्र के निधन के बाद से उनके साथ सहानुभूति बरती जा रही है। सरकार के एक मंत्री के मुताबिक पीएम मोदी मध्यप्रदेश के राज्यपाल को चलता किए जाने के पक्ष में हैं। फिलहाल सरकार राज्यपाल के खिलाफ कोई निर्णय लेने के मूड में नहीं हैं। जानकारों का कहना है कि अगर केन्द्र सरकार राज्यपाल के खिलाफ कदम उठाती है तो कांग्रेस मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग तेज कर देगी। इसलिए अभी सरकार वेट एंड वाच की तर्ज पर काम कर रही है। उधर, पचमढ़ी में संघ और भाजपा की बैठक में यह मुद्दा चर्चा में रहेगा। हालांकि अभी न तो संघ और न ही भाजपा कोई ऐसा कदम उठाना चाहती है जिससे कांग्रेस को कोई मुद्दा मिल सके।
फिलहाल बच गए राज्यपाल रामनरेश यादव
व्यापमं घोटाले के घेरे में आए मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव को तत्काल राहत मिल गई है। केंद्र सरकार ने उन्हें पद से हटाने का फैसला फिलहाल टाल दिया है। गृह मंत्रालय का मानना है कि राज्यपाल को हटाने के लिए अभी पर्याप्त सबूत नहीं हैं। वहीं भाजपा भी इस मामले में सीधे कार्रवाई के बजाय सारी जिम्मेदारी अदालत पर डालने के पक्ष में है।
मोदी सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री के विदेश दौरे से लौटने के बाद राज्यपाल राम नरेश यादव के मुद्दे पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया। जिनमें उन्हें हटाने के लिए पर्याप्त आधार की कमी पाई गई। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्यपाल के खिलाफ व्यापम मामले में कोई जांच नहीं चल रही है। उनके खिलाफ एफआईआर हाईकोर्ट पहले ही निरस्त कर चुका है।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्यपाल पर सीधे टिप्पणी करने के बजाय एफआईआर निरस्त किए जाने को लेकर नोटिस जारी किया है। ऐसे में राज्यपाल को व्यापमं घोटाले के आरोप में हटाने का उचित आधार नहीं बनता है। उन्होंने कहा कि यदि नए राज्यपालों की नियुक्ति या फिर पुराने को हटाने या स्थानांतरण का फैसला होता है और उस क्रम में रामनरेश यादव की कुर्सी जाती है, तो अलग बात होगी।
वहीं भाजपा भी व्यापमं घोटाले में किसी के खिलाफ सीधी कार्रवाई के पक्ष में नहीं है। भाजपा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले को देख रही है और उसके रुख को देखते हुए ही कार्रवाई की दिशा होनी चाहिए। वैसे कहा तो यहां तक जा रहा है कि राज्यपाल को हटाने से बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विपक्ष के सीधे निशाने पर आ जाएंगे। ऐसे में जल्दबाजी में कोई फैसला करना उचित नहीं होगा।
राज्यपाल के खिलाफ कार्रवाई पर उलझी सरकार
शिवराज पर आंच की संभावना से बढ़ी सरकार की बेचैनी
व्यापम घोटाला मामले में बुरी तरह उलझे मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव को पद से हटाने के मामले में खुद केंद्र सरकार बुरी तरह उलझ गई है।
सरकार के रणनीतिकारों को डर है कि यादव को पद से हटाने की स्थिति में राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी पद से हटाने का सियासी दबाव बढ़ सकता है।
यही कारण है कि यादव के खिलाफ कार्रवाई का खाका तैयार होने के बावजूद इस पर अब तक अमल नहीं हो पाया है। हालांकि सरकार में एक वर्ग राज्यपाल पर तत्काल कार्रवाई के पक्ष में है।
इनका तर्क है कि चूंकि इस मामले की जांच करने वाले एसटीएफ ने इस घोटाले में यादव की भूमिका को संदिग्ध मानते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था, इसलिए सरकार यादव को हटा कर इस मामले में किसी को नहीं बख्शने का सियासी संदेश दे सकती है।
-दिल्ली से रेणु आगाल