विवादित गुजकोकÓ पारित
03-Apr-2015 03:30 PM 1234805

 

गुजरात सरकार ने 12 वर्ष पुराने गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध नियंत्रक विधेयक (गुचकोक) को संशोधित मसोदे के साथ विधानसभा में पारित करा लिया है। कांग्रेस शुरू से ही इस विधेयक का विरोध कर रही थी और पूर्व राष्ट्रपतियों एपीजे अब्दुल कलाम तथा प्रतिभा पाटिल ने इस पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था। यह विधेयक पिछले 12 वर्ष में 3 बार विधानसभा से पारित हो चुका है, लेकिन केंद्र इसमें अडंगा डालता रहा है। वर्ष 2009 में जब गुजरात विधानसभा ने इसे पारित करके केेंद्र में भेजा था उस वक्त तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजने से इनकार कर दिया था। इसमें कुछ संशोधन किए गए हैं, लेकिन इसके आलोचकों का कहना है कि इस विधेयक के बाद गुजरात की पुलिस निरंकुश हो सकती है। मजे की बात यह है कि गुजरात सरकार ने अभी तक लोकपाल के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया है। लेकिन इस विधेयक के लिए जोर-शोर से प्रयास किए जा रहे हैं। अब केंद्र में भाजपा है लेकिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का रुख क्या रहेगा कहना मुश्किल है।
इसमें प्रावधान है कि आरोपी को 30 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है, जबकि वर्तमान में यही सीमा 15 दिनों की है। एक और प्रस्ताव जिस पर बिल के विरोधियों को सबसे ज्यादा ऐतराज है, अगर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (सरकारी वकील) सिफारिश करता है तो पुलिस चार्जशीट करने के लिए 180 दिनों का समय ले सकती है। यह भी वर्तमान समय सीमा से दोगुनी है। विरोधी सबसे ज्यादा इन दोनों प्रावधानों का ही विरोध कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि इससे पुलिस के पास आरोपियों का उत्पीडऩ करने के लिए पर्याप्त मौका होगा।
पहली बार इस बिल को केंद्र के पास 2004 में भेजा गया था, तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। वाजपेयी सरकार ने इसमें संशोधन करने के सुझाव दिए थे। 2009 में भी केंद्र सरकार ने गुजरात सरकार के आतंकवाद निरोधक कानून के तीन प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए उसे वापस भेज दिया था और कहा था कि जब तक राज्य सरकार उसमें केंद्रीय कानून के अनुरूप संशोधन नहीं करती, वह इसे मंजूर करने की सिफारिश राष्ट्रपति को नहीं करेगी। तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने तब कहा था कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस विधेयक पर फिर से विचार किया गया और इसके तीन प्रावधानों को गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून के अनुरूप नहीं पाया गया, जिसे देखते हुए केंद्र ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से इसे गुजरात सरकार को वापस करने की सिफारिश करने का फैसला किया।

मोदी मंत्रिमंडल में महबूबा?

लगाववादी मसर्रत आलम की रिहाई की पक्षधर महबूबा मुफ्ती नरेंद्र मोदी के मंत्रीमंडल में मंत्री बनाई जा सकती हैं। मोदी ने अप्रैल माह के पहले पखवाड़े में मंत्रिमंडल विस्तार का संकेत दिया है। महबूबा नजमा हेपतुल्ला की जगह लेंगी जिन्हें राज्यपाल बनाए जाने की चर्चा है। नजमा हेपतुल्ला 74 वर्ष की हो चुकी हैं और मोदी सरकार में मंत्री बनने की अधिकतम उम्र 75 वर्ष ही है। राज्यसभा में अधिक से अधिक सहयोगी जोडऩे के लिए मोदी सरकार साथी दलों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में ज्यादा हिस्सेदारी देने की योजना बना रही है। तेदेपा, अकाली दल, शिवसेना, पीडीपी जैसे सहयोगी सरकार को ज्यादा मजबूती प्रदान करेंगे। बेंग्लूर में 3 अप्रैल से राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 2 दिवसीय बैठक में केंद्रीय मंत्रिमंडल को लेकर आला नेताओं के बीच विचार विमर्श हो सकता है, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार के लिए खरमास की समाप्ति का इंतजार किया जाएगा। फिलहाल यह साफ नहीं हो पाया है कि नजमा के साथ-साथ अन्य मंंत्रियों की छुट्टी होगी या नहीं।  मंत्रियों के कामकाज का आडिट भी किया जा रहा है। कुछ और लोग भी मंत्रिमंडल से रुखसत हो सकते हैं।
महबूबा मुफ्ती की केंद्रीय मंत्रिमंडल में मौजूदगी पर अभी से सवाल उठाए जा रहे हैं। कश्मीर में अलगाववादियों और पाकिस्तान को लेकर मुफ्ती सरकार का जो रुख रहा है। उससे भाजपा सदैव परेशानी में पड़ी है। अब यदि महबूबा मुफ्ती केंद्र सरकार में आती हैं तो जम्मू कश्मीर सरकार के कामकाज का तरीका क्या रहेगा यह देखना दिलचस्प होगा। कश्मीर में हाल में आई बाढ़ के बाद केंद्र सरकार ने 200 करोड़ रुपए की सहायता तत्काल देते हुए सेना के मार्फत राहत और बचाव कार्य तेज किए थे। मुफ्ती सरकार ने केंद्र से कुछ अतिरिक्त मांग भी रखी है। मसर्रत आलम की रिहाई के वक्त जो हालात बने थे फिलहाल उनमें सुधार आया है, लेकिन भाजपा के भीतर बहुत से नेता पीडीपी से गठबंधन को उचित नहीं मानते हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और शिवसेना जैसे राजनीतिक दल कश्मीर पर भाजपा की नीति की खुलकर आलोचना कर चुके हैं। कश्मीर में हाल के दिनों में बढ़़ी आतंकवादी घटनाएं भी केंद्र के लिए चिंता का विषय है। सईद सशस्त्र सेना विशेष सुरक्षा अधिनियम आफ्सा खत्म करने के लिए केंद्र पर दबाव बनाते रहे हैं। दोनों दलों ने जो साझा कार्यक्रम बनाया है उसमें भी इस कानून को शांति होने की स्थिति में कुछ इलाकों से खत्म करने की बात कही गई है।

  • सुमित भंडारी

 

 

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