05-Aug-2015 07:30 AM
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म.प्र. में पिछले 12 साल में जितने भी चुनाव हुए हैं कांग्रेस को भाजपा के हाथों पटखनी खानी पड़ी है। इसका मतलब यह नहीं की भाजपा इतनी मजबूत हो गई है कि उसका मुकाबला करने की

ताकत कांग्रेस में नहीं है। प्रदेश में कांग्रेस की इस दुर्दशा में पीछे कांग्रेस के नेताओं की निष्क्रियता और गुटबाजी है। पार्टी में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है, लेकिन पिछले एक दशक से पदाधिकारी जिस तरह मैदानी मोर्चों पर निष्क्रिय हैं उससे कांग्रेस की जनता पर पकड़ कमजोर होती जा रही है। आलम यह है कि करीब 166 सदस्यों वाली प्रदेश कार्यकारिणी में मात्र 3 पदाधिकारी ही सक्रिय नजर आ रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव, नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे और मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ज्यादा मुखर हैं। अजय सिंह के बयान भी आ जाते हैं। इसलिए आलाकमान भाजपा को घेरने और प्रदेश में अपना कदम जमाने में असफल रही मप्र कांग्रेस कमेटी में बदलाव की तैयारी में है। कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी कमेटी में वर्तमान में करीब 29 उपाध्यक्ष, 28 महासचिव, 90 सचिव, एक कोषाध्यक्ष, एक मुख्य प्रवक्ता, 5 प्रवक्ता, 4 मीडिया पैनालिस्ट और सात संभागीय प्रवक्ता हैं।
निष्क्रिय को न पद, न टिकट
प्रदेश संगठन में बदलाव की तैयारी कई बार की गई, लेकिन आलाकमान ने ही झंडी नहीं दी। इस कारण पदाधिकारियों की निष्क्रियता लगातार बढ़ती गई। आलाकमान ने अब संकेत दे दिया है कि टिकट और पद पाना है तो सक्रिय होना होगा, फील्ड में उतरना होगा। इसके बाद हलचल तेज हो गई है। लंबे समय से निष्क्रिय बैठे पदाधिकारियों में सक्रिय दिखने की छटपटाहट सामने आ रही है।
आलाकमान ने प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश को कह दिया गया है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी में निष्क्रिय पदाधिकारियों की सूची तैयार कर लें। लंबी कार्यकारिणी रखने का कोई मतलब नहीं, जब तक कि पदाधिकारी सक्रिय नहीं रहें। ऐसेे में मोहन प्रकाश ने पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव से मिलकर इस ओर ध्यान देना शुरू कर दिया है।
कटारे बीमार दावेदार तैयार : मप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के गंभीर रूप से बीमार होते ही उनकी कुर्सी पाने के लिए दावेदार सक्रिय हो गए हैं। विपक्ष के नेता के चयन के लिए दिल्ली में जबर्दस्त लॉबिंग चल रही है। नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में तीन विधायक अजय सिंह, रामनिवास रावत और महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा का नाम शामिल हैं। हाल ही में युवक कांग्रेस के मुख्यमंत्री निवास का घेराव करने के लिए कांग्रेस विधायकों की सक्रियता देखने को मिली थी। जिसमें पूर्व नेता प्रतिपक्ष एवं विधायक अजय सिंह ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था, उनकी सक्रियता को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। रामनिवास रावत और महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे में गिने जाते हैं। इस बार कांग्रेस हाईकमान मप्र में नेता प्रतिपक्ष के चयन में ओबीसी कार्ड खेल सकती है। क्योंकि मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भाजपा का सबसे बड़े ओबीसी चेहरा हैं। जिसका कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में हाईकमान रामनिवास रावत को नेता प्रतिपक्ष बना सकता है। रावत के नाम पर सिंधिया और दिग्विजय भी सहमत हो सकते हैं। पीसीसी अध्यक्ष अरुण यादव भी ओबीसी हैं। सूत्र बताते हैं कि व्यापमं घोटाले को लेकर सदन में सरकार की नाक में दम कर देने वाले नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे को निपटाने में अब उनके विरोधी पूरी तरह जुट गए हैं। विरोधी विधायकों ने भाजपा के जरिए कटारे की पोल खोलना शुरू कर दिया है। कांग्रेस का एक गुट कटारे से जुड़े दस्तावेज, भाजपा कार्यालय तक पहुंचाने में लगा है।
साहस कब जुटाएंगे यादव?
13 जनवरी 2014 को जब स्वामी विवेकानंद जयंती के दौरे-दौरां अरुण यादव को पीसीसी की कमान सौंपी गई थी। उस वक्त उम्मीद थी कि वे शीघ्र ही अपनी टीम का पुनर्गठन कर लेंगे। लेकिन गुटीय संतुलन बिठाने में यादव ने सारा समय निकाल दिया। अब फिर पुनर्गठन की बात उठी तो 40-45 चेहरों को बदलने का कहा जा रहा है किंतु कब? यादव नए लोगों को जोडऩे में असफल रहे हैं। इसीलिए उनकी टीम में न तो उत्साह है न ही सक्रियता।
तैयार होंगे रिपोर्ट कार्ड, अब तक क्यों नहीं किया काम
आलाकमान ने आला नेताओं को यह भी संकेत दिए हैं कि सभी पीसीसी पदाधिकारियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार किए जाएं। आज तक उन्होंने क्या-क्या काम किए, कितने आंदोलनों में नेतृत्व किया, कितनों में भागीदारी की, भाजपा सरकार को कब-कब घेरा, कांग्रेस के सदस्यता अभियान में कितने सक्रिय रहे, कितने सदस्य बनाए, कांग्रेस के आयोजनों में कितने कार्यकर्ताओं को लेकर पहुंचे- इन सब क्राइटेरिया के आधार पर रिपोर्ट कार्ड तैयार किए जाएंगे और मैरिट के आधार पर सक्रिय नेता पीसीबी में बने रहेंगे बाकी को बाहर कर दिया जाएगा। दरअसल,कांग्रेस सार्वजनिक तौर पर हमेशा सरकार को घेरने की रणनीति बनाने की बात कहती रहे, लेकिन अभी तक विपक्ष की कभी रणनीति बनी ही नहीं। कांगे्रस विधायक दल की एक भी बैठक ऐसी नहीं हुई, जिसमें 75 प्रतिशत से ज्यादा विधायक पहुंचे हों। कांग्रेस की आपसी गुटबाजी का ही नतीजा हंै कि भाजपा में शामिल हो चुके दो विधायक दिनेश अहिरवार और नारायण त्रिपाठी पर पार्टी ने कोई एक्शन नहीं लिया था।
-अरविन्द नारद