तिवारी के लिए सदन को किया गुमराह?
05-Aug-2015 07:20 AM 1234787

डमैप के भूतपूर्वÓ ईडी जीतेन्द्र तिवारी की अभूतपूर्व गाथा के कई अध्याय अभी भी अनखुले हंै। जिन पर गौर करना बाकी है। जो यह समझते हैं कि तिवारी रुखसत हो गए हैं। वे भारी गलत फहमी के शिकार हैं। दरअसल तिवारी अपने आकाओं की दहलीज पर मत्था टेककर पुनर्वास की कोशिश में तो जुटा हुआ ही है, उसकी ढाल बने तमाम अफसरों के लिए भी अब वह परेशानी का सबब बनता जा रहा है। लोकायुक्त छापे के बाद तिवारी की रहनुमाई करने वाले वे तमाम आला अफसर अब भयभीत हैं। क्योंकि तिवारी रूपी जिस शख्स को उन्होंने वर्षों तक पाला-पोषा अब वही भस्मासुर बन बैठा है। तिवारी से भय का आलम यह है कि जो कभी तिवारी के साथ लंबी-लंबी बैठकें जमाते थे वे अब उससे उसी तरह दूर भागने लगे हैं जैसे किसी संक्रामक व्यक्ति से दूरी बनाई जाती है। तिवारी की महफिलें सूनी हैं और उसके कार्यालय में नियमित बैठकर चाय-पानी उड़ाने वाले कुछ छुटभैये भाजपाई नेता भी अब उससे किनारा कर चुके हैं। लेकिन इसके बाद भी तिवारी में इतनी काबलियत तो है कि वह कुछ लोगों की नाक में दम करके अपने उचित पुनर्वास का मार्ग तलाश ले। बहरहाल तिवारी का यह दुस्साहस किस सीमा तक पहुंचेगा इसका आंकलन तो तब हो सकेगा जब सेडमैप के नए मुखिया की तलाश पूरी होगी, लेकिन तिवारी की करतूतों और उसके रहस्यमय अतीत के विषय में जो कुछ उजागर हो रहा है वह भी कम रोचक और भयानक नहीं है। पाक्षिक अक्स ने कुछ ऐसे ही दस्तावेज की पड़ताल की है। जिससे पता चलता है कि तिवारी और उनकी पैरवी करने वाले इस सीमा तक दुस्साहसी हो चुके थे कि वे मध्यप्रदेश की विधानसभा को भी गुमराह करने का हौंसला रखते थे। सदन के पटल पर तिवारी के संबंध में दी गई भ्रामक जानकारी की शिकायत एक नहीं कई बार हुई है। लेकिन अपने आकाओं के दम पर तिवारी तब भी बचने में कामयाब रहा था। ताजा मामला चितरंजी की विधायक सरस्वती सिंह का है। जिन्होंने 11 मई 2015 को मध्यप्रदेश की वाणिज्य उद्योग एवं रोजगार मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को एक पत्र लिखकर फरवरी-मार्च माह में तारंकित प्रश्न क्रमांक 98 के उत्तर में गलत जानकारी के बावत शिकायत की थी। लेकिन उस शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। क्योंकि उसके बाद भी सेडमैप के ईडी जीतेन्द्र तिवारी अपने आकाओं की मेहरबानी से तीन माह का एक्सटेंशन पाने में सफल रहे। लेकिन सबसे गंभीर मामला विधान सभा को गुमराह करने का है एक नहीं कई मौकों पर- ताजा उदाहरण 11 दिसम्बर 2014 को विधायक सरस्वती सिंह द्वारा पूछे गये प्रश्न का है। तारांकित प्रश्न क्रमांक 86 के उत्तर में वाणिज्य उद्योग एवं रोजगार विभाग ने अपूर्ण एवं भ्रामक जानकारी दी है।
प्रश्न के कÓ के उत्तर में विभाग द्वारा जिन कर्मचारियों को वेतनमान नहीं दिया गया उसके संंबंध में कोई जानकारी न देते हुए संचालक मंडल के निर्णय का हवाला देते हुए उद्योग आयुक्त की अध्यक्षता की कमेटी द्वारा अनुशंषित कर्मचारियों को वेतनमान देने का उल्लेख किया है जबकि गठित कमेटी ने किसी भी कर्मचारी को वेतनमान न दिये जाने की अनुशंसा नहीं की ओर न ही संचालक मंडल द्वारा ही वेतनमान न दिये जाने के संबंध में कोई नीति निर्धारित की थी।
प्रश्न के खÓ के उत्तर में (उद्योग) विभाग ने जाच प्रक्रियाधीन है का हवाला देकर दोषी व्यक्ति को बचाने का प्रयास किया है जबकि विधायक द्वारा साक्ष्य सहित शिकायत पर संबंधित के विरूद्ध कई वर्षों से हर प्रश्न एवं शिकायत पर जाच प्रक्रियाधीन का हवाला दिया जाता रहा है।
प्रश्न के गÓ में उत्तर में विभाग द्वारा सेडमैप को एक स्वशासी संस्था एवं स्व-वित्तपोषित संस्था होना बताया है जबकि सेडमैप एक पूर्ण शासन नियंत्रित संस्था है। शासन द्वारा इसे आज दिनांक तक स्वशासी संस्था का दर्जा देने हेतु कोई आदेश जारी नहीं किया है फिर किस आधार पर इस तरह की भ्रामक व असत्य जानकारी प्रदान की गई यह भी बड़ा सवाल है।
प्रश्न घÓ के उत्तर में विभाग ने सेडमैप 56 व 91 के अनुसार शासकीय विभागों से अप्राप्त प्रायोजन राशि के आधार पर वेतन कटौती के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है फिर किस आधार पर विभाग द्वारा उक्त भ्रामक व असत्य जानकारी प्रदान की गई?
यह तो केवल एक उदाहरण है विधानसभा में पूछे गए ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर में तिवारी की ढाल बने उद्योग विभाग सहित तमाम विभागों ने तिवारी की नियुक्ति आदि के संबंध में भ्रामक जानकारी देकर सदन को गुमराह किया है। इसी वर्ष फरवरी-मार्च माह में विधानसभा सत्र के दौरान तारंकित प्रश्न 109 के उत्तर में गृह विभाग से भी अपूर्ण एवं भ्रामक जानकारी दी गई। इसमें मई 2012 में तिवारी द्वारा लोगो, लेटर हेड एवं विजिटिंग कार्ड के दुरुपयोग संबंधी प्रश्न पूछा गया था। संबंधित विभागों के मंत्रियों ने तिवारी से जुड़े प्रश्नों के उत्तर दिए। इसका अर्थ यह है कि अधिकारियों ने मंत्रियों तक से सदन में झूठ बुलवा दिया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रशासन में पारदर्शिता की बात करते हैं, लेकिन सदन के भीतर ही सही जानकारी नहीं दी जाती।
भारी पड़ा लोकायुक्त से उलझना
एक तो चोरी, उस पर सीनाजोरी की तर्ज पर तिवारी ने जिस तरह लोकायुक्त की कार्रवाई को गलत करार देते हुए उन आरोप लगाया है कि लोकायुक्त अधीनियम में कोई भी ऐसा प्रावधान नहीं है जिसके तहत सोसायटी के अंतर्गत आने वाले संस्थान के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। जबकि पीसी एक्स 1988 में साफ तौर पर कहां गया है कि कोई भी व्यक्ति जो केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा मिलने वाले अनुदान से लाभ प्राप्त करता है वह लोकसेवक की श्रेणी में आता है। अगर वह उक्त अनुदान में किसी प्रकार की अनियमितता करता है तो वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(ई) और 13(2) के तहत दोषी माना जाता है।  ऐसे ही एक बार पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवणी पर भी इसी एक्ट के तहत कार्रवाई की गई थी। इस पर उन्होंने कहा था कि मैं लोकसेवक की श्रेणी में नहीं आता हूं। उस पर देश के प्रतिष्ठित वकील और तात्कालीन केन्द्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने इस मामले को उठाया था जिसको सपु्रीम कोर्ट ने सही ठहराया बाद में सांसद और विधायकों के खिलाफ भी पीसी एक्ट के तहत कार्रवाई हो सकती है। उनकी अनुमति अध्यक्षों द्वारा देने के बाद मामला दर्ज किया जा सकता है। क्योंकि वे भी सरकारी पैसे का ही इस्तेेमाल करते हैं।
पीसी एक्ट 1988 को कमजोर करने की तैयारी
इस एक्ट दायरे में वह सभी अधिकारी और कर्मचारी आते हैं जो सेवा में हो या सेवा निवृत्त हो चुके हों, लेकिन अब इस एक्ट को कमजोर करने के लिए इसके दायरे से सेवानिवृत्त अफसरों को बाहर करने का प्रस्ताव लाया गया है। यह साजिश भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अफसरों के द्वारा की जा रही है। क्योंकि अगर देखा जाए तो भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे हुए अफसर नौकरी में रहते हुए अपने रसूख से अपने ऊपर मामला दर्ज नहीं होने देते हैं। रिटायरमेंट के बाद उनका कोई माइबाप नहीं होता है इसलिए वह चाहते थे कि इस एक्ट को सेवानिवृत्त अफसरों को बाहर रखा जाए। इस बिल को राज्यसभा में तो पेश कर दिया गया है। परंतु देश के सांसद भी यह जानते हैं कि अगर इस बिल को कमजोर करेंगे तो आखिर करके उन भ्रष्टाचारियों से वसूली कैसे होगी। इसलिए इन मामलों में कई अदालतों के अलग-अलग फैसले आ चुके हैं। आईपीसी की धारा 409 के तहत भी यह प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति या संस्था सरकार द्वारा मिले वित्तीय अनुदान से पोषित है और अगर वह उसमें अनियमितता करता है तो उसके खिलाफ पुलिस कार्रवाई की जा सकती है।
लोकायुक्त के अफसरों का कहना है कि छापे की कार्रवाई पूरी तरह नियमानुसार है और छापे के अगले दिन ही इस संदर्भ में
सरकार को अवगत करा दिया गया है।
लोकायुक्त ने तिवारी के खिलाफ अपराध क्रमांक 303/15 के तहत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(ई) और 13(2) के तहत मामला दर्ज किया है।

तो मेरा नाम जितेंद्र तिवारी नहीं
लोकायुक्त की कार्रवाई में करोड़ों की अघोषित कमाई सामने आने के बाद सेडमैप के पूर्व ईडी जितेंद्र तिवारी का कहना है कि उनके खिलाफ जो कार्रवाई हुई है वह पूरी तरह अवैधानिक है। वह कहते हैं कि लोकायुक्त की टीम जब मेरे घर पर छापा मारने आई तो मैंने उन्हें लिखकर दिया कि आप लोग गलत कर रहे हैं। मेरे खिलाफ यह कार्रवाई द्वेष वश की गई है। मैंने कानून पढ़ा है। जिन लोगों की सह पर ये कार्रवाई हुई है अगर उन्हें कानून न पढ़ा दिया तो मेरा नाम जितेंद्र तिवारी नहीं। नौकरी ढ़ूढ़ रहा हूं और मुझे इतना वेतन तो मिल ही जाएगा कि जिन लोगों ने मेरे खिलाफ षड्यंत्र किया है और मेरे पद को भरने के लिए विज्ञापन निकाला है उन्हें कानूनी तरीके से सबक सिखा सकूं। मेरे खिलाफ लोकायुक्त की कार्रवाई लोकायुक्त अधिनियम के खिलाफ हुई है। सबसे पहले मैं इस संदर्भ में लोकायुक्त से निवेदन करूंगा। अगर उनने नहीं सुनी तो सरकार के पास जाऊंगा, अगर वहां भी न्याय नहीं मिला तो मैं कोर्ट का दरवाजा खटखटाऊंगा।
सरकार तय करे, सेडमैप सरकारी है या प्राइवेट
तिवारी कहते हैं कि सेडमैप का गठन सोसायटी एक्ट के तहत हुआ है, इसलिए इसके कर्मियों के खिलाफ लोकायुक्त कार्रवाई नहीं कर सकता। लेकिन जब लोकायुक्त ने कार्रवाई की है तो अब सरकार तय करे कि सेडमैप सरकारी है या प्राइवेट। अगर सेडमैप सरकारी है तो सरकार मेरे पद के समकक्ष किसी दूसरे विभाग में नौकरी दे। मुझे पेंशन दी जाए। अगर सरकारी नहीं हूं तो मेरी जब्त संपत्ति और सोना वापस किया जाए। लोकायुक्त ने मेरी जो भी संपत्ति जब्त की है वह मैंने सेडमैप में आने से पहले कमाया है। सामान्य प्रशासन विभाग बताए कि वह मुझे सरकारी कर्मचारी मानती है या नहीं। मुझे मालूम है इस संदर्भ में सरकार के पास कोई जवाब नहीं होगा।
ईडी भी दर्ज करेगा ईसीआर
बताया जाता है कि तिवारी के पास जिस तरह अनुपातहीन संपत्ति मिली है उससे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी सक्रिय हो गया है। ईडी फिलहाल अपने स्तर पर सर्वे करा रहा है। संभावना जताई जा रही है कि तिवारी के कारोबार के सहयोगी हनीफ मेवाती, जॉन सी अप्पन और योगेश पिल्लई के हवाले से तिवारी की और जो नामी-बेनामी संपत्ति सामने आ रही है, उसको देखते हुए ईडी शीघ्र ही ईसीआर दर्ज कर सकता है। तिवारी के तीनों राजदार अब सरकारी गवाह बन गए हैं। हनीफ ने बताया है कि उसने तिवारी के साथ मिलकर कोलार में एक कॉलोनी भी काटी है। खबर है कि लोकायुक्त द्वारा की गई कार्रवाई के दौरान जब्त की गई संपत्ति और तिवारी के सहयोगियों के हवाले से मिली जानकारी के बाद उनकी अन्य संपत्ति की पड़ताल भी की जा रही है।
-भोपाल से सुनील सिंह

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