क्या भाजपा के विजय रथ को रोक पाएगा व्यापमं
05-Aug-2015 07:14 AM 1234854

मप्र में उज्जैन और मुरैना सहित 9 नगरीय निकाय के आम चुनाव और 2 निकाय के उप चुनाव का बिगुल बज गया है। यहां 12 अगस्त को मतदान होंगे। भाजपा ने हर चुनावों की तरह इस बार भी कांग्रेस से पहले चुनावी तैयारी शुरू कर दी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आचार संहिता लगने से पहले ही उज्जैन में विकास की सौगात देकर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। यानी भाजपा चुनावी मैदान में कांग्रेस से कहीं आगे है। इसके बावजुद भाजपा कार्यकर्ताओं में यह डर बैठा है कि प्रदेश में व्यापमं फर्जीवाड़े को लेकर जिस तरह बवाल मचा हुआ है उसका असर कहीं चुनाव पर तो नहीं पड़ेगा। यह डर पार्टी के पदाधिकारियों के भी मन में है। यही कारण है कि 25 जुलाई को प्रदेश चुनाव समिति की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान की उपस्थिति में पार्टी पदाधिकारियों इस पर चिंता व्यक्त की। लेकिन मुख्यमंत्री ने कहा कि आप लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। ये चुनाव भी भाजपा ही जीतेगी।
भाजपा ने चुनाव समिति की बैठक में उज्जैन से मीना जूनवाल को और मुरैना से अशोक अर्गल को महापौर पद का टिकट दिया है। मीना जूनवाल पिछली बार पार्षद थीं। वे शिक्षा समिति सदस्य भी थीं। इस बार महापौर का पद अनुसचित जाति के लिए सुरक्षित है। पिछली बार उज्जैन नगर निगम में भाजपा की परिषद थी। महापौर रामेश्वर अखंड थे। वहीं अशोक अर्गल चार बार मुरैना से और एक बार भिंड से सांसद रहे हैं। पिछली मर्तबा मुरैना नगर पालिका थी और यहां कांग्रेस के राजेश कसूरिया महापौर थे। इस बार यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई है। दरअसल, व्यापमं घोटाला शिवराज सरकार के लिए गले की फांस बना हुआ है, रह-रह कर इसमें नए खुलासे हो रहे हैं। हालांकि सीबीआई अब इस मामले की जांच कर रही है। लेकिन कांग्रेस मुख्यमंत्री के इस्तीफे पर अड़ी है। व्यापमं घोटाले के बाद अब शिवराज सरकार मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (पीएससी) में हुई धांधलियों के आरोप में घिरती नजर आई। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग में हुई गड़बडिय़ां भी अब उजागर होने लगी हैं। साथ ही डी-मैट फर्जीवाड़ा भी सरकार के माथे पर आ गया है। ऐसे में प्रदेश सरकार की प्रतिष्ठा गिरी है। हालांकि जानकारों का कहना है कि निकाय के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। इस पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार की नीतियों का ज्यादा असर नहीं पड़ता है। स्थानीय चुनाव को गली, मोहल्ले, बाजारों, शहर से जुड़ी समस्याएं और विकास कार्य ही प्रभावित करते हैं। राज्य में नगरीय निकाय चुनाव हों या उपचुनाव हों सत्तारूढ़ दल को आशाजनक परिणाम नहीं मिलते हैं तो उसके मुख्यमंत्री की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़े होंगे और साथ ही उनकी लोकप्रियता पर भी आंच आएगी। इसलिए शिवराज इन चुनावों में जीत हासिल करने के लिए पूरा दम लगाएंगे।
विरोध पर लगाम लगाने में माहिर
शिवराज को एक तरफ जहां विरोधी दल कांग्रेस घेरने में नाकाम रही, वहीं चौहान आम जनता के बीच अपनी पैठ बनाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया। नगर पालिक निगम बुरहानपुर से महापौर का चुनाव जीते अनिल भोंसले कहते हैं कि उन्होंने लाडली लक्ष्मी योजना, कन्याधन योजना, अन्नपूर्णा योजना, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना जैसी योजनाओं को अमली जामा पहनाया, जिसके बल पर वे हर वर्ग में लोकप्रिय बने रहे। इतना ही नहीं, उन्होंने खुद की साम्प्रदायिक सद्भाव वाले नेता की छवि बनाने में कसर नहीं छोड़ी। राजनीतिक विश£ेषक भी कहते हैं कि इसी का नतीजा रहा कि भाजपा ने राज्य में उनकी अगुवाई में दो विधानसभा व लोकसभा चुनाव के साथ नगरीय निकाय व पंचायतों के चुनाव में सफलता हासिल की। वे किसी विषय को अपनी प्रतिष्ठा से नहीं जोड़ते और टकराव में भरोसा नहीं रखते।
शिवराज की उदारता सबको भायी
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक बड़ी विशेषता उनकी वह उदार छवि है जो जनता के मन को खुब भायी है। उदार राजनेता के रूप में पहचाने जाने वाले मुख्यमंत्री ने मध्य प्रदेश के अपने दस साल के कार्यकाल में राज्य के हर वर्ग को अपने से जोडऩे का पूरा प्रयास किया है। चाहे वह दलित, आदिवासी हों या फिर मुस्लिम एवं अन्य अल्पसंख्यक। यही कारण है कि लगभग सभी चुनावों में भाजपा को अप्रत्याशित जीत मिल रही है। राजनीतिक विश£ेषक भी शिवराज की इस छवि के कायल हैं। उनका मानना है कि ऐसे दृश्य बहुत कम देखने को मिलते हैं जहां भाजपा का कोई नेता अल्पसंख्यकों के कार्यक्रमों में शामिल होता हो। अल्पसंख्यकों का सम्मेलन करने, हज यात्रा के लिए छोडऩे जाने, नमाज़ी टोपी पहनकर मुस्लिम समुदाय के लोगों से मिलने-जुलने, ईद पर उन्हें बधाई देने जैसी चीजें भाजपा के नेताओं में आम नहीं हैं। लेकिन शिवराज ये सब कुछ करते हैं। इसके चलते अल्पसंख्यकों के बीच शिवराज अन्य भाजपा नेताओं से कहीं ज्यादा लोकप्रिय और स्वीकार्य हैं। या यह कहें कि राज्य के अल्पसंख्यक उनकी तरफ संदेह की नजरों से नहीं देखते हैं।
-श्यामसिंह सिकरवार

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