क्या व्यापमं की भेंट चढ़ेगा विस सत्र?
21-Jul-2015 09:06 AM 1234767

व्यापमं घोटाला मध्यप्रदेश में मृतप्राय कांगे्रस के लिए सदैव संजीवनी का काम करता रहा है। इस बार भी सदन में व्यापमं घोटाले को लक्ष्य करके कांग्रेस सरकार को घेरने की कोशिश करेगी।  कांग्रेस के निशाने पर प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान तो हैं ही, भाजपा के कुछ मंत्रियों पर भी कांग्रेस की गाज गिर सकती है। वैसे देखा जाए तो व्यापमं के अलावा भी कई मुद्दे हैं, जिन पर सरकार की जवाबदेही बनती है। कांग्रेस ने व्यापमं मुद्दे पर जनता के बीच जाने का फैसला किया हैैै। व्यापमं मुद्दा सीधे जन सरोकारों से जुड़ा हुआ है इसलिए कांग्रेस को इसमें हर विधानसभा सत्र से पहले कुछ  ज्यादा ही मसाला दिखाई देता है।
इस बार मुख्यमंत्री के साथ-साथ राज्यपाल को भी लपेटा जा सकता है। जिस तरह से राज्यपाल और व्यापमं के खिलाफ देश की सर्वोच्च अदालत ने रुख तय किया है, उसे देखते हुए कांग्रेस सदन में मुख्यमंत्री और राज्यपाल को घेरने का प्रयास करेगी। राज्य में सत्तासीन भाजपा ने कांग्रेस के इन प्रयासों को भांपते हुए रणनीति तैयार की है। यदि कांग्रेस मुख्यमंत्री का बहिष्कार करती है, तो भाजपा के विधायक किसी भी कांग्रेसी नेता को सदन में बोलने नहीं देंगे। पिछली बार ऐसा ही हुआ था। इसी से कांग्रेस की रणनीति को काफी धक्का पहुंचा था, जिसकी आलोचना ऑफ द रिकॉर्ड कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं ने भी की थी। इस बार मुख्यमंत्री का स्पष्टीकरण सुनने के बाद ही कांग्रेस कोई निर्णय लेगी। नेता प्रतिपक्ष का कहना है कि इस मामले को लेकर कांग्रेस प्रदेश व्यापी बंद और प्रदर्शनों की योजना बना रही है। जिसके खिलाफ हाई कोर्ट ने चेतावनी भी दी है। मानसून सत्र में कुल मिलाकर 1964 तारंकित और 1335 अतारंकित प्रश्न सामने आने वाले हैं। इनमें सैडमेप के ईडी पद पर कब्जा जमाए तिवारी के बारे में भी सवाल पूछा जा सकता है। प्रश्न यह है कि विपक्ष का सारा फोकस व्यापमं पर रहेगा या फिर उसके अलावा भी कुछ प्रश्न पूछे जाएंगे? कुल मिलाकर 3299 प्रश्न पूछे जाने हैं। इसके अतिरिक्त 36 अशासकीय संकल्प 97 ध्यानाकार्षण प्रस्ताव भी हैं। स्थगन के 6 आदेश जारी हो सकते हैं। 18 अधिसूचनाएं और कुल 3 जमा 139 की सूचनाएं हैं। 18 याचिकाएं लगी हुई हैं। फिलहाल कोई अध्यादेश नहीं है। इसका मतलब यह है कि हंगामा तो होगा, लेकिन केवल व्यापमं पर।
24 मार्च को 14वीं विधानसभा के छठवें सत्र के दौरान केवल एक दिन के काम-काज में वित्त विधेयक को मंजूरी प्रदान की गई थी, व्यापमं के कारण यह एक-दिवसीय सत्र भी हल्ला-गुल्ला और हंगामें की भेंट चढ़ गया। विपक्ष कोई भी मुद्दा नहीं उठा सका। 20 जुलाई से लेकर 31 जुलाई तक सातवें सत्र में 25 और 26 जुलाई को अवकाश रहेगा। मार्च के सत्र में 49 विभागों के कई प्रश्न लंबित थे। हंगामे के चलते सदन की कार्रवाई सुचारू रूप से नहीं हो पा रही है। कई प्रश्नों के अपूर्ण उत्तर मिलते हैं और बहुत से प्रश्नों के उत्तर ही नहीं मिल पाते हैं। लंबित प्रश्नों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। इस बार भी नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने व्यापमं की निष्पक्ष जांच के लिए मुख्यमंत्री के इस्तीफे  की मांग करते हुए सदन में हंगामा करने के संकेत दिए हैं। हालांकि राज्यपाल के इस्तीफे पर कांग्रेस का कहना है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। कांग्रेस का फोकस व्यापमं पर ज्यादा होने के कारण बाकी महत्वपूर्ण विधेयकों पर ज्यादा चर्चा की संभावना नहीं है। हालांकि इस 12 दिवसीय सत्र में कुल 10 बैठकें होंगी, जिनमें शासकीय विधि विषेयक एवं वित्तीय कार्य सम्पादित किए जाएंगे। लेकिन प्रदेश कांग्रेस ने जिस तरह की रणनीति बनाई है उसको देखते हुए 12 दिवस में ज्यादा काम होने की संभावना नहीं है। नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने कृषि महोत्सव पर धन की बर्बादी और किसानों को लाभ न मिल पाने पर भी कड़ा रुख अपनाया है। इससे पहले बजट सत्र को भी हंगामे के कारण समय से पहले खत्म कर दिया गया था। कांग्रेस विधायक दल व्यापमं के अलावा डीमेट और किसानों के मुद्दे पर भी हंगामा करने की कोशिश में है। मुद्दों को धारदार बनाने के लिए विधायकों को मैदानी ब्योरा जुटाने में लगाया गया है। विधायक दल सत्र को लेकर अंतिम रणनीति 20 जुलाई को बैठक कर बनाएगा। कांग्रेस विधायक दल के सूत्रों ने बताया कि सत्र में पूरा फोकस व्यापमं और डीमेट घोटाले पर सरकार से जवाब लेने पर रहेगा। सत्र पूरी अवधि तक चलाया जाएगा, लेकिन इस बात का दवाब सरकार पर जरूर बनाया जाएगा कि वो हर मुद्दे पर सदन में सफाई दे। यही वजह है कि तीन-तीन विधायकों को व्यापमं के आरोपियों की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत की वस्तुस्थिति जानने के काम पर लगाया गया है।
जीतू पटवारी को मृतकों के परिजनों से मिलकर रिपोर्ट बनाने का काम सौंपा गया है। छतरपुर में बलात्कार, बालाघाट में पत्रकार की हत्या, किसान को मुआवजा नहीं मिलना, फसल बीमा में डेढ़ रुपए से लेकर 300 रुपए तक मुआवजा मिलना, गेहूं खरीदी में मनमानी, लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया नहीं करना जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाएगा।


हंगामें को रोकने के लिए संवैधानिक प्रावधान है। कुछ कठोर कदम उठाए जा सकते हैं। जैसे मार्शल का उपयोग हो या सदन से बाहर जाने का कहा जाए। लेकिन ऐसा होना नहीं चाहिए। सदस्य माननीय होते हैं उन्हें माननीयों की तरह आचरण करना चाहिए। सदन के भीतर और बाहर का आचरण एक सा नहीं हो सकता।

-डॉ. सीतासरण शर्मा, विस अध्यक्ष, म.प्र.

-श्याम सिंह सिकरवार

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