सोना हुआ धड़ाम, कितनों का काम तमाम
05-Aug-2015 06:57 AM 1234787

सोने का भाव पांच साल में सबसे निचले स्तर तक गिर गया है। भारतीय बाजारों में प्रति दस ग्राम सोने की कीमत 25,000 रुपए से नीचे जा चुकी है। दुनियाभर के निवेशकों में रुझान सोना बेचकर (अमेरिकी) डॉलर खरीदने का है। नतीजतन, सोना सस्ता हो रहा है। भारत में महिलाओं के लिए यह खुशी की बात हो सकती है किन्तु वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए यह खतरे की घंटी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमत का सीधा असर भारत के घरेलू बाजार पर होता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अब तक चार बार (1975, 1982, 1991 और 2009) आई महामंदी में भी सोने के भाव पर असर नहीं पड़ा था। लेकिन धीरे-धीरे आसमान पर पहुंचा सोना इस तरह धड़ाम से गिरेगा, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। सोने के भाव गिरने से बैंक, फाइनेंस कंपनियां और कारोबारियों को धक्का लगा है।
दरअसल, यह रुझान दुनियाभर में है कि लोग खासकर आर्थिक संकट के दिनों में सोने में निवेश करना सुरक्षित विकल्प समझते हैं। यह बड़ा कारण है, जिससे 1980 के बाद से सोने का भाव लगातार चढ़ता गया। 2008 में अमेरिका में आई मंदी के बाद इसकी कीमत तेजी से चढ़ी। सितंबर 2011 में यह सर्वोच्च स्तर पर पहुंची, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रति औंस इसका भाव 1,895 डॉलर हो गया। आर्थिक मंदी से निकलने की कोशिश में गुजरे वर्षों में अमेरिका के केंद्रीय बैंक (फेडरल रिजर्व) ने ब्याज दर को लगभग शून्य प्रतिशत पर बनाए रखा। अत: मुनाफे के लिहाज से डॉलर में निवेश वाजिब विकल्प नहीं माना जाता था।
मगर अब सूरत बदली है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने स्वस्थ वृद्धि दर हासिल कर ली है। अनुमान है कि जल्द ही वहां ब्याज दरें बढ़ेंगी। तो निवेशकों ने डॉलरों की खरीद तेज कर दी है। इसके लिए वे सोना बेच रहे हैं, जिससे सोने का भाव गिर रहा है। भारत में यह 24,820 रुपए हो गया। इस ट्रेंड में निकट भविष्य में बदलाव की संभावना नहीं है, क्योंकि यूरो, येन इत्यादि प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर के मजबूत होने की ठोस स्थितियां हैं। फिर अमेरिका में ब्याज दरें देर सबेर बढ़ेंगी, यह मानकर चला जा रहा है।
घरेलू बाजार में हाल तक माना जा रहा था कि मॉनसून को लेकर जाहिर की जा रही तरह-तरह की आशंकाओं ने सोने में बिकवाली को हवा दी है। लेकिन इधर कुछ दिनों से लगी मॉनसून की झडिय़ां भी सोने के गिरते भाव को रोक नहीं पाई हैं। हकीकत यह है कि रियल एस्टेट में सुस्ती और विश्व अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता को देखते हुए पिछले दो-तीन सालों में काले पैसे की तहबाजारी के लिए इतना सारा सोना बाहर से मंगा लिया गया है कि घरेलू बाजार में इसका उतार-चढ़ाव पर्व-त्योहार और शादी-ब्याह जैसे मामलों से स्वतंत्र हो गया है। ऐसे में सस्ते सोने का ट्रेंड अगले कई महीनों तक जारी रहे तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं।

चीन और ग्रीस संकट है असली वजह
सोने की कीमतों में सबसे गिरावट की प्रमुख वजह सोने के सबसे बड़े खरीदार चीन का सोना बेचना रहा। चीन साने की कीमतें कम होने के बावजूद बड़े पैमाने पर सोना बेच रहा है। अमेरिका में दरें बढऩे का डर और चीन में बिकवाली की गतिविधियों की वजह से सोने की कीमतें गिर कर लगभग छह वर्ष के निचले स्तर पर आ गईं। इस ट्रेंड के लिए प्रमुख कारण यह है कि अन्य दूसरी कमोडिटी की तरह सोने की कीमत डॉलर में आंकी जाती है। जब अमेरिकी डॉलर मजबूत होता है तो आपको समान मात्रा में सोना खरीदने के लिए कम डॉलर खर्च करना पड़ता है। मई की शुरुआत में अमेरिकी डॉलर पाउंड की तुलना में 1.6 फीसदी मजबूत हुआ है और इसे हाल में सोने की कीमतों में गिरावट के रुझान का सबसे अहम कारण बताया जा रहा है। सोने की कीमतों में गिरावट एक और कारण ग्रीस संकट का निकट भविष्य में समाधान है। ग्रीस कम से कम कुछ समय के लिए अपने कर्ज चुकाने में सक्षम हो गया है। इसका मतलब है कि निवेश के लिए जोखिम रहित विकल्प के रूप में सोने की साख कमजोर हुई है।
अर्थशास्त्र में सोना, चाँदी और कच्चे तेल की कीमतों को वैश्विक अर्थव्यवस्था के सेहत का सूचकांक माना जाता है। जब से मानव ने व्यापार की पद्धत्ति का विकास किया है, तभी से सोना और चाँदी को निवेश और धन संग्रह का सबसे सुरक्षित वास्तु माना जाता रहा है। आधुनिक युग में यह देखा गया है की बड़ी वैश्विक महामंदी से पहले सोने और चाँदी पर से निवेशकों का विश्वास हिलने लगता है और इनकी कीमतों में अकस्मात रूप से तेज गिरावट दर्ज की जाती है, जो की बाद में शेयर बाजार में हड़कंप ला देती है।
-बिंदु माथुर

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