05-Aug-2015 06:52 AM
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सपने वे होते हैं जो सोने नहीं देते।Ó भाग्य पर निर्भर होने वालों को उतना ही मिलता है जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं।Ó अगर आप सूर्य की तरह चमकना चाहते हैं तो उसकी तरह

जलिएÓ- एक-एक वाक्य एक-एक शब्द स्वर्ण सा कीमती। जीवन के संघर्ष की कहानी कहता हुआ। अनुभव और पीड़ाओं को व्यक्त करता हुआ। इन शब्दों के रचियता और प्रेरक डॉ. अबुल पाकिर जैनुल आवेदीन अब्दुल कलाम 27 जुलाई की शाम शिलांंग में एक कार्यक्रम में बोलते हुए अचानक गिर गए और फिर कभी नहीं उठे। ऐसी ही मौत की कल्पना की थी अब्दुल कलाम ने जो राष्ट्रपति भवन से जब मात्र दो सूटकेस लेकर निकले तो जनता ने उन्हें पीपुल्स पे्रसिडेंट की उपाधि दे दी। देश के सर्वोच्च पद से भले ही सेवानिवृत्त हुए किंतु जनता के दिलों में सर्वोच्च पद पर विराज गए। बिरले ही लोग ऐसे होते हैं। जिनकी सादगी दिल की गहराइयों में उतर जाया करती है। एक छोटे कद का व्यक्ति किंतु उतने ही ऊंचे विचार और अनंत महत्वाकांक्षाएं। सचमुच कलाम ने इस सूत्र वाक्य को जीवनभर जिया कि छोटे सपने देखना अपराध है। वे संकीर्णता से ऊपर उठ चुके भारत के सर्वाधिक प्रखर राष्ट्राध्यक्ष थे।
स्वतंत्रता के बाद जिन महान विभूतियों को भारत की जनता ने सर आंखों पर रखा। उनमें कलाम का नाम सर्वोच्च है। उनके निधन पर सैकड़ों एकड़ पन्ने लिखे गए। जीवन के हर पहलू और हर घटना पर मीडिया ने नजर डाली। रामेश्वरम के निकट एक छोटे से गांव का बालक जो अपनी मां के लिए भूखा रहता था ताकि मां को भी खाने को मिले-देश का राष्ट्रपति बनेगा किसने सोचा था। किंतु नियति कभी अन्याय नहीं करती वह जिसे जलाती है उसे उतना तेजोमय भी बना देती है। अपने स्कूल के दिनों से लेकर कॉलेज के दिनों तक अभावों और कठिनाईयों के दौर में समस्त बाधाओं को पार करते हुए कलाम किसी कुंदन के समान निखरते रहे। उनकी महत्वाकांक्षा पायलट बनने की थी। किंतु उन्हें सफलता न मिली। लेकिन मंजिल की तलाश जारी थी। जुनून उन्हें इसरो में ले आया। जहां दिन-रात मेहनत के बाद जब उन्होंने पृथ्वी और अग्नि मिसाइल लांच की तो विश्व ने भारत की शक्ति का लोहा मान लिया। चार गुना कम लागत में उतनी ही क्षमतावान और मारक मिसाइल तैयार करके कलाम विश्व के सर्वश्रेष्ठ रक्षा वैज्ञानिकों में शामिल हो गए। वे भारत को वैसा बनाना चाहते थे कि जिसकी तरफ कोई नजर उठाकर न देख सके। शत्रु जिसके भय से थर-थर कांपें। पोखरण परमाणु विस्फोट के समय जब बुद्ध मुस्कुराए थे तो उस मुस्कुराहट में एक विजयी मुस्कान भी शामिल थी। यह मुुस्कान एपीजे अब्दुल कलाम की थी।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को वे सदैव प्रिय रहे। कभी वाजपेयी उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहते थे। किंतु व्यस्तताओं के चलते कलाम ने मंत्रीमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया। लेकिन वाजपेयी के जेहन में कलाम अंकित हो चुके थे। वाजपेयी चाहते थे कि इस प्रखर मस्तिष्क को उसका उचित प्रतिदान मिलना ही चाहिए। इसीलिए 2002 में जब मुलायम सिंह यादव ने देश के राष्ट्रपति पद के लिए एपीजे का नाम सुझाया तो वाजपेयी ने सहज ही स्वीकृृति दे दी। रात को 12 बजे एक कमरे में किसी साधारण व्यक्ति की तरह अपना काम निपटाकर आराम फरमा रहे कलाम को यह सूचना स्टाफ द्वारा दी गई थी। उनके पास न तो मोबाइल था और न ही उनके कमरे में कोई फोन था। कलाम ने विचार करने का वक्त मांगा और अपनी अंतर्रात्मा की आवाज पर राष्ट्रपति बनने के लिए स्वीकृति दे दी। सामने थी कैप्टन लक्ष्मी सहगल जिन्हें वामपंथियों ने राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तुत किया था। दोनों ही प्रत्याशी जनता और देश की आंखों के तारे। देश को लगा कि काश दोनों को कोई न कोई महत्वपूर्ण भूमिका मिले किंतु जीतना तो किसी एक को था। एनडीए के अलावा कांग्र्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दलों का समर्थन कलाम साहब को था। वे विजयी हुए और लगातार पांच वर्षों तक राष्ट्रपति भवन में रहकर देश की जनता के दिल में स्थाई बन गए। देश का कोई भी कोना ऐसा नहीं था जो कलाम को न बुलाना चाहता हो। देश भर के शिक्षण संस्थानों में असंख्य व्याख्यान और लाखों छात्र-छात्राओं, बच्चों से सीधा संवाद। राष्ट्रपति रहते हुए और उसके बाद राष्ट्रपति पद से निवृत्त होने से लेकर अपनी मृत्यु के कुछ क्षण पहले तक कलाम देश की जनता से जुुड़े रहे। ऐसा अद्भुत जुड़ाव और संवाद आज से पहले किसी राष्ट्रपति ने स्थापित नहीं किया। यही कारण है कि उनकी मृत्यु पर देश स्तब्ध रह गया। जिन बच्चों ने उनकी वाणी सुनी थी और जिन लोगों ने उनके सान्निध्य में समय बिताया था उन सब की स्मृतियों में कलाम अमर हो चुके हैं। बेहद साधारण जीवन किंतु उतना ही विलक्षण संदेश उन्होंने अपनी जीवन शैली से दिया।
चेन्नई के उस विशाल समुद्र से कुछ सौ किलोमीटर दूर रामेश्वरम में अंतिम निद्रा में सो रहे कलाम आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके स्वप्न और उनकी कल्पनाएं भारत का मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जो सह्स्राब्दी लक्ष्य तय किए हैं। उससे पहले ही कलाम ने भारत को 2020 तक विकसित राष्ट्र बनाने का स्वप्न देखा था। वे अपने स्वप्न को साकार करने के लिए अनथक प्रयासरत रहे। उन्होंने भारत को विकसित राष्ट्र में तब्दील करने के कुछ सूत्र सुझाए थे। आज कलाम के द्वारा सुझाए गए कदमों का अनुसरण करने की आवश्यकता है। ज्ञान, विज्ञान और शोध के क्षेत्र में उन्होंने बहुत कुछ नवोन्मेषी दिया है। जिस पर अमल करके भारत मेक-इन-इंडिया का स्वप्न भी साकार कर सकता है और अपनी तमाम समस्याओं से निजात भी पा सकता है। कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि तो यही होगी कि हम उनके स्वप्न को साकार करने के लिए दिन रात मेहनत करें।
-आर के बिन्नानी