परेशानी में डालती दुलत की किताब
21-Jul-2015 09:43 AM 1234775

एस. दुलत। कंधार कांड के एक अहम किरदार। राजनेताओं के करीबी और देश की खूफिया गतिविधियों के सूत्रधार। कभी एनडीए की सरकार में सबसे पॉवरफुल अधिकारी के रूप में विख्यात रहे। इन्हीं दुलत ने अब एक किताब लिखी है। किताब का शीर्षक है- कश्मीर द वाजपेयी ईयर्स। बी.एन. मलिक ने भी एक किताब लिखी थी, माई डेज विथ नेहरू। 1971 में प्रकाशित इस किताब ने भी विवाद पैदा किया और अब दुलत की किताब यह खुलासा कर रही है कि कश्मीरी अलगाववादियों और आतंकवादियों को भारत आर्थिक सहयोग देता आया है। सीधे शब्दों में कहा जाए, तो वाजपेयी सरकार आस्तीन के सांपों को दूध पिला रही थी। दुलत ने किताब में कई उद्धरण दिए हैं।
शीतयुद्ध के बाद अनेक देशों के रिटायर्ड खुफिया अधिकारियों ने चौकाने वाले रहस्योद्घाटन किए थे। उस वक्त यह आरोप लगाया गया कि आतंकवाद को धन और ताकत मुहैया कराने वाले देशों में अमेेरिका भी शामिल था। अमेरिका ने आतंकवाद को राजनीतिक कारणों से पोषित किया लेकिन भारत में दुलत जो कह रहे हैं, उससे यह आभास होता है कि आतंकवादियों को हफ्ता दिया जा रहा था या यों कहें कि वे प्रोटेक्शन मनी प्राप्त कर रहे थे। अब भी प्राप्त कर रहे हैं या नहीं, कह नहीं सकते। यहां यह उल्लेखनीय है कि पाक्षिक अक्स ने कुछ समय पहले कश्मीर पर एक विशेष स्टोरी प्रकाशित की थी जिसमें बताया गया था कि किस तरह कश्मीर में व्यापार करने वाले हिंदू प्रोटेक्शन मनी देते हैं। लेकिन यहां तो सरकारें ही पैसा बांट रही हैं। इसके पीछे क्या रणनीति है, यह दुलत ने नहीं बताया। फिर भी उनकी किताब धड़ल्ले से बिक रही है। कश्मीर में इस किताब के खरीदार बहुत हैं। श्रीनगर में हाथों-हाथ 100 प्रतियां बिक गईं और 100 की एडवांस बुकिंग हो गई।
दुलत ने कुछ बातें ऐसी बताई हैं, जो उस वक्त भी सभी को पता थीं। जैसे आईसी-814 विमान के अपहरण के समय विमान की अमृतसर में लैंडिंग के वक्त सरकार का ढुलमुल रवैया। उस वक्त तो वाजपेयी को भी खबर देने में देरी की गई, जिस पर वाजपेयी ने क्रोध प्रकट किया था। यदि अमृतसर में विमान के टायर बस्ट कर दिए जाते, तो कहानी कुछ और होती। एक देश का मस्तक इस तरह आतंकवादियों के चरणों में नहीं झुकता। जिस तरह जसवंत सिंह विमान में हत्यारे आतंकियों को खुद बिठाकर कंधार में सौंप आए, वह भारत के इतिहास का सबसे शर्मनाक दिन था। एक देश का स्वाभिमान तार-तार हो गया था। बंधक हमने भले ही छुड़ा लिए लेकिन देश पराजित हो गया। उसके बाद दुनिया के आतंकवादियों को यह लग गया कि हम आतंक के सामने घुटने टेक सकते हैं और हमें कभी भी ब्लैकमेल किया जा सकता है। भाजपा और वाजपेयी इजराइल के बहुत प्रशंसक रहे हैं लेकिन उस वक्त वाजपेयी सरकार इजराइल के ऑपरेशन एंतेबे को याद कर लेती, तो शायद भारत भी एक सशक्त और स्वाभिमानी देश के रूप में दुनिया के सामने खड़ा होता। जब बच्चा-बच्चा राम का हो सकता है, तो देश का क्यों नहीं हो सकता? वे आतंकवादी दो-तीन नागरिकों की हत्या ही तो करते, इससे पहले हमारे कमांडो उन्हें दबोचने में सक्षम थे। लेकिन भारत सरकार की कायरता और आतंकियों की सौदेबाजी पराकाष्ठा पर पहुंच गई थी। दुलत ने यही दर्द बयां किया है। कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी को बचाने के लिए जब उग्रवादी छोड़ दिए गए, तो आईसी-814 में बैठे यात्रियों को बचाने के लिए भी सरकार को झुकना पड़ा। यदि मुफ्ती के मामले में सरकार नहीं झुकती, तो शायद आईसी-814 के समय भी यही रुख बना रहता। दुलत ने इसके अलावा भी बहुत कुछ लिखा है । उन्होंने बतलाया है कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने तो आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के प्रमुख सैयद सल्लाहुद्दीन के बेटे को कश्मीर के मेडिकल कॉलेज में दाखिला तक दिलवाया। दुलत की बात को कोई नहीं काट सकता। उन्होंने रॉ का प्रमुख बनने से पहले आईबी में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। वे वाजपेयी सरकार में पीएमओ में कश्मीर मसले के सलाहकार भी रहे। इतने जिम्मेदार पदों पर रहने वाला अधिकारी अपनी किताब में झूठ नहीं लिख सकता। यही कारण है कि भाजपा डिफेंसिव है। भाजपा ने दुलत की बात खारिज करने की बजाए यह कहा है कि आईसी-814 के फैसले में सभी दलों से बातचीत की गई थी और सबने सहमति जताई थी। भाजपा इससे ज्यादा कुछ कह भी नहीं सकती। विमान अपहरण कांड में आईएसआई ने दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति को कठपुतली की तरह नचा दिया था। दुलत की किताब में बताया गया है कि जिस तरह आईएसआई आतंकवादियों को धन मुहैया कराकर अपना उल्लू सीधा करती है उसी तरह भारत की खुफिया एजेंसियां भी अपना खेल खेल सकती हैं। दुनिया भर में सभी देशों की खुफिया एजेंसियां ऐसा ही करती हैं। दुलत राजस्थान कॉडर के 1965 के आईपीएस अधिकारी हैं। खूफिया मामलों के एक्सपर्ट हैं। काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास में रहे हैं। कंधार विमान अपहरण के समय संयोग से वे नेपाल में थे। वहां उन्होंने कुकरमुत्तों की तरह आस-पास पनप रहे मदरसों को देखा और उन्हें साजिश की बू आ गई। लेकिन वे देश को सतर्क कर पाते, उससे पहले ही विमान का अपहरण हो गया। अपहरण के बाद जो कुछ हुआ, वह हर भारतीय जानता है। हम भारतीयों की भी एक खराबी है कि हम अपनी जान से ज्यादा किसी को प्यार नहीं करते। उस वक्त सारे देश में उन लोगों को हर कीमत पर मुक्त कराने की बात की जा रही थी। अपहृत लोगों के परिजन चीख रहे थे कि उन्हें इस बात से मतलब नहीं है कि किन्हें छोड़ा जा रहा है। उन्हें तो अपने परिजन प्यारे थे देश की स्वाभिमान की किसी को फिक्र नहीं थी। यदि उस समय वे परिजन थोड़ी हिम्मत और देश भक्ति का परिचय देते, तो शायद सरकार की कमर नहीं टूटती। सरकार को भी हौंसला मिलता। लेकिन पाकिस्तान की साजिश सफल हो जाने दी गई।
दुलत की किताब पर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस ने जहां एनडीए को घेरते हुए उससे स्पष्टीकरण मांगा है, वहीं भाजपा ने कहा हैै कि आतंकवादियों को छोडऩे और उसके बदले में यात्रियों को मुक्त कराने का निर्णय सामूहिक था। इसके लिए सभी दलों से राय ली गई थी। भाजपा के इस तरह से पल्ला झाडऩे से यह साफ हो चुका है कि दुलत ने जो कुछ लिखा, वह शब्दश: सही है उसमें कोई लाग-लपेट नहीं है। दुलत का लिखा हुआ इसलिए भी विश्वसनीय लगता है क्योंकि वे एक खुफिया विभाग से जुड़े हुए थे जिसे सत्ता के भीतर चल रही गतिविधियों की पल-पल की जानकारी रहती थी। हाल के दिनों मेंं एनडीए के सत्तासीन होने के बाद जो भी किताबें आईं, उनमेंं यूपीए को निशाना बनाया गया। दुलत की किताब में पहली बार एनडीए पर सीधा निशाना साधा गया है। इसमें भाजपा के पितृ-पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी पर निशाना साधा गया है, जो अब प्रतिक्रिया देने की स्थिति में नहीं हैं। इस किताब में यह भी लिखा है कि लालकृष्ण आडवाणी आतंकियों को किसी भी प्रकार की रियायत देने के पक्ष में नहीं थे।
-आर.के. बिन्नानी

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