मोदी की विदेश यात्रा का भूगोल
21-Jul-2015 09:30 AM 1234816

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा ताने संभवत: उनकी विदेश यात्राओं के बारे में ही मिले हैं। सत्ता संभालने के बाद एक वर्ष के भीतर मोदी ने 19 देशों की यात्रा कर ली थी और अब यह संख्या 25 तक पहुंच चुकी है। इनमें कुछ ऐसे देश भी हैं जहां जाना भारत के बहुत से प्रधानमंत्रियों ने महत्वपूर्ण नहीं समझा। इस मामले में मोदी इंदिरा गांधी से ज्यादा मिलते-जुलते हैं, इंदिरा ने अपनी विदेेश नीति में छोटे किंतु खनिज और प्राकृतिक संपदा सम्पन्न देशों को ज्यादा महत्व दिया। कई बार इंदिरा की इस बात के लिए हंसी भी उड़ाई गई। तब भारत एक गरीब देश था लेकिन आज विश्व की महाशक्तियों में शुमार है। इसलिए भारत के प्रधानमंत्री का छोटे-मोटे देश जाना महत्वपूर्ण और चर्चित बन जाता है। आक्रामक विदेश नीति के इस दौर में मोदी जितने रिश्ते बनाएंगे, भारत को आगे बढऩे में उतना ही फायदा होगा। लेकिन व्यापमं और ललित लीक्स के कारण मोदी की यह यात्राएं मीडिया की नजरों से प्राय: ओझल ही रहीं। मध्य एशिया के जिन 6 देशों का मोदी ने दौरा किया, उनमें से कुछ को तो भारतीय जानते ही नहीं हैं। उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे देशों को भारतीय लंबे समय तक यूएसएसआर का हिस्सा समझते रहे। रूस में जो सुधारवादी आंदोलन हुआ, उसके बाद यह देश टूटकर अलग हो गए। इन देशों में खनिज संपदा के भंडार हैं। यहां का इस्लाम दुनिया का सबसे उन्नत और तरक्कीपसंद इस्लाम है जिसमें मजहबी कट्टरता, फूहड़पन और आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है। यहां का इस्लाम सच्चे अर्थों में अनेकांतवादी है। यह सारे प्रदेश आर्यों की जन्म भूमि कहे जाते हैं। आर्य यहीं से सारी दुनिया विशेषकर भारत में पहुंचे और अपनी सत्ता स्थापित की। वाल्मीकि रामायण में आर्यों की विजय यात्रा का उल्लेख है। रावण अपनी जिद और हैवानियत के चलते द्रविण संस्कृति को बहुत बड़ा घाव दे गया। फलस्वरूप आर्य संस्कृति भारत के भू-भाग पर छा गई। इन 5 देशों के भू-भाग के निवासियों की संस्कृति में आर्य तत्व की बहुतायत मिलती है। धर्म उनका इस्लाम है, जो निराकार को पूजता है। किंतु वे मूल रूप से सूर्य और सृष्टि के उपासक हैं। निराकार के प्रति उनकी आस्था के मूल में कहीं न कहीं आर्यों की आध्यात्मिक चेतना का योगदान है। विश्व का सबसे खूबसूरत इस्लाम इन देशों में देखने को मिलता है। जो न तो भयाक्रांत करता है और न ही हिंंंसा तथा आतंक की पैरोकारी करता है। रोचक यह है कि यह विश्व के सबसे खूबसूरत लोग दुनिया के इस भूभाग पर रहते हैं। जिनमें से कुछ घुमक्कड़ हैं, तो कुछ अद्भुत कलाबाज हैं। पशुऔं और पक्षियों से किरगीज़ के उन चरबाहों ने संवेदशनशील भाषा में संप्रेषण सीख लिया है। वे घोड़े की पीठ पर खड़े होकर मीलों घास के मैदानों में दूरबीन से देख सकते हैं और अपने पालतू बाज से खरगोश के मुलायम गोश्त की फरमाइश कर सकते हैं। नरेंद्र मोदी ने इन्हीं जाबांज और खूबसूरत लोगों की सुव्यवस्थित राजधानी में अपने कदम रखे हैं। मकसद वही है- इतिहास की कडिय़ों को जोडऩा और सांस्कृतिक अंतरसंबंधों को तलाशना। लेकिन इतिहास ही पर्याप्त नहीं है, वर्तमान भी उतना ही महत्वपूर्ण और निर्दय है। विश्व के इन खूबसूरत लोगों ने जिस खूबसूरत धर्म और संस्कृति को अपनाया है, उसकी आड़ में कुछ आतताइयों ने मानवता को आक्रांत कर रखा है। निराकार को पूजने वाले दिग्भ्रमित होकर रक्त की नदियां बहा रहे हैं। इसलिए मोदी का इस धरती पर अवतरण उभयपक्षीय व्यापार की दृष्टि से नहीं बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह बड़े दुख की बात है कि इन समृद्ध और दिलों से उदार देशों के साथ भारत का उभयपक्षीय व्यापार मात्र डेढ़ अरब डॉलर के आंकड़े तक ही पहुंच सका है। नरेंद्र मोदी ने इस आंकड़े को उच्चतम स्तर तक ले जाने का प्रयास किया है। पशुपालन, दूरसंचार, औषधि उत्पादन, तकनीकी शिक्षा एवं योग के प्रति सम्मोहन की हद तक आकर्षित इन देशों में व्यापार की अनंत संभावनाएं छुपी हुई हैं। साधन संपन्न और तकनीकी रूप से उन्नत किंतु सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारत इन देशों के साथ उभयपक्षीय व्यापार को एक नई दिशा और गति प्रदान कर सकता है। इसीलिए भारत ने इन देशों में रुचि दिखाई है। पाकिस्तान और चीन भी इन देशों से व्यापार तथा द्विपक्षीय संबंध बनाने के लिए लालायित है। चीन का यहां प्रवेश इन देशों में पूंजीवाद के प्रति अनावश्यक और अघोर स्तर तक पहुंची लालसा को बढ़ावा देगा। साम्यवाद की आड़ में नकली और नैतिकता से परे पूंजीवाद को पालने-पोषने वाले हमारे पड़ोसी देश चीन की इन देशों की सीमा में दस्तक यहां की राजनीति के लिए भी और व्यापार के लिए हानिकारक है। वहीं कट्टर इस्लामी परंपराओं के पैरोकार पाकिस्तान की इन देशों के साथ संधि विश्व को भयाक्रांत ही करेगी क्योंकि पाकिस्तान के मार्फत आईएस और हिंसक सिद्धांत इन देशों की सीमाओं को लांघ जाएंगे। इस दृष्टि से नरेंद्र मोदी की एशिया के मर्म स्थल कहे जाने वाले इन देशों की यात्रा महत्वपूर्ण और सामरिक दृष्टि से उपयोगी भी है। इन देशों के राष्ट्राध्यक्ष और आवाम लंबे समय से भारत की तरफ लालायित दृष्टि से देखते रहे हैं। किंतु भारत की विदेेश नीति के नियंताओं ने दो दशक तक अपनी नजर ए इनायत से इन देशों को ओझल ही रखा। मोदी की विदेश नीति जिन लागों ने तय की है, उनके दिमाग की तारीफ इस दृष्टिकोण से करनी चाहिए कि उन्होंने मोदी की विदेश यात्राओं को संतुलित तरीके से और रणनीति को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया है। विश्व में नरेंद्र मोदी एक ऐसे राजनेता के रूप में सुपरिचित होते जा रहे हैं, जो बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक दुनिया के हर कोने में जाने को इच्छुक और तत्पर हैं। यदि इन रणनीतिकारों ने ईस्ट अफ्रीका तथा यूरोप के कुछ देशों में मोदी की यात्रा प्लान की, तो भारत की विदेश नीति को निश्चित रूप से नया आयाम मिलेेगा। पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय वार्ता या शरीफ के आमंत्रण पर पाकिस्तान की यात्रा को स्वीकारोक्ति के अतिरिक्त भी ऐसे कई महत्वपूर्ण पड़ाव हैं, जो मोदी की यात्रा में तय किए गए हैं। मध्य एशिया के देशों में बहुत कम निवेश से भारत अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के अलावा अपनी तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन भी कर सकता है। यदि हम ऐसा करने से चूकते हैं, तो इसका लाभ पाकिस्तान और चीन को होगा। समग्र दृष्टि ही सही नीति निर्धारण और सार्थक राजनय को संभव बना सकती है। प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा भी इसी का प्रमाण है कि वह सुचिंतित कार्यक्रम के अनुसार विदेश यात्राएं कर रहे हैं। न तो वह किसी एक महाशक्ति से अभिभूत हैं और न भारत के सभी राजनयिक विकल्प एक टोकरी में डाल देने को मजबूर।
वह पाकिस्तान को सीधे ललकारे बिना अन्य मुस्लिम बहुल जनसंख्या वाले देशों में भारत के प्रति सद्भाव बढ़ाने में जुटे रहे हैं। अमेरिका हमें अफगानिस्तान में फंसाने को व्याकुल है, पर भारत बड़े कौशल से मध्य एशिया में पेशकदमी कर कहीं अधिक सामरिक गहराई हासिल कर सकता है। हालांकि अब तक चीन के मुस्लिम बहुल आबादी वाले शिंजियांग प्रांत को छोड़ उन्मादी जेहादी तेवर फिलहाल कहीं और देखने को नहीं मिले हैं। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हिंसक दहशतगर्दी का संक्रमण यहां नहीं हो सकता। हाल के दिनों में यह चिंताजनक समाचार मिले हैं कि बगदादी की खिलाफत के खूंखार समर्थक आईएस ने यहां से कुछ हजार रंगरूट भर्ती किए हैं! दूसरे छोर पर दागिस्तान एवं चेचेन्या का धधकता ज्वालामुखी है, जिसका विस्फोट कभी भी हो सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में कुछ विश्लेषकों का मानना है कि नरेंद्र मोदी का मध्य एशिया दौरा प्रमुखत: कट्टरपंथी इस्लामी चुनौती की रोकथाम की दिशा में उठाया गया कदम है।
हाल के दिनों में चीन ने ऐतिहासिक रेशम राजमार्ग के पुनर्निर्माण की बेहद महत्वाकांक्षी योजना का अनावरण किया है। इसको लेकर सभी मध्य एशियाई देश उत्साहित हैं। अगर भारत इसे अपनी घेरेबंदी की साजिश का ही हिस्सा समझता है, तो बदलती स्थिति का लाभ नहीं उठा सकता। चीन निर्मित नए रेशम राजमार्ग के जरिये ही वह ईरान और ओमान के मार्फत अफगानिस्तान या पाकिस्तान के उपद्रवग्रस्त इलाके के सदाबहार सिरदर्द से मुक्त अपनी जरूरत की सामग्री हासिल कर सकता है। मोदी इस संभावना के प्रति लापरवाह नहीं। मजेदार बात यह है कि यूपीए की सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके एम के नारायणन मोदी को सलाह दे रहे हैं कि उन्हें मध्य एशिया नहीं, वरन पश्चिम एशिया यानी सीरिया, इराक, यमन, लेबनान की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए! पर यह सार्थक राजनय का दलगत पक्षधरताग्रस्त अवमूल्यन है।
इसी यात्रा में मोदी रूस भी गए हैं, जहां उनकी मुलाकात शी जिनपिंग तथा नवाज शरीफ से हुई है। शंघाई सहयोग संगठन में शिरकत के साथ साथ यह अवसर इस काम भी लाया जा सका कि बिना कड़वाहट बढ़ाए चीन के साथ शिकवे-शिकायत दर्ज किए जाएं। पाकिस्तान के साथ भी परोक्ष या प्रत्यक्ष वार्तालाप हुआ। ब्रिक्स के तत्वावधान में जिस एशिया विकास बैंक की स्थापना की गई है, उसको गतिशील बनाने के लिए भी भारत की सक्रियता परमावश्यक है। इन सबके मद्देनजर हफ्ते भर के इस दौरे को मोदी की पहले की बहुचर्चित विदेश यात्राओं से कम महत्वपूर्ण नहीं समझना चाहिए। यूरेशिया की तेजी से बदलती भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य एशिया और रूस की यात्रा पर हैं। ये वे क्षेत्र हैं, जहां भारत की सीधी जमीनी पहुंच नहीं है, लेकिन इन क्षेत्रों की अनदेखी नहीं की जा सकती, क्योंकि व्यापक एशियाई शक्ति संतुलन की दृष्टि से इनका काफी महत्व है। लंबे समय से अपेक्षित प्रधानमंत्री का दौरा ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के मौके पर हुआ। भारत और पाकिस्तान, दोनों एससीओ के सदस्य बनने जा रहे हैं, क्योंकि अफगानिस्तान में संघर्ष को खत्म करने और ऐसा वातावरण बनाने में दोनों देशों की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसमें दक्षिण व मध्य एशियाई देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत कर सकते हैं।
जहां तक ब्रिक्स की बात है, तो कई लोग इसे पश्चिम विरोधी समूह के रूप में देखते हैं। लेकिन भारत के लिए इसका सीधा-सा मतलब है, वैश्विक शासन संरचनाओं में पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए बड़े विकासशील देशों को एकजुट करना। चीन के प्रयास से ब्रिक्स बैंक (जिसे अब न्यू डेवलपमेंट बैंक के नाम से जाना जा रहा है) और एशिया इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेंस्टमेंट बैंक की स्थापना की गई है, जिसे वैश्विक वित्तीय संरचना में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी पश्चिम के प्रभुत्ववाली संस्थाओं के लिए चुनौती माना जा सकता है। जहां तक मध्य एशिया की बात है, तो भारत के लिए वहां स्थिति बहुत अनुकूल नहीं है। हालांकि उस क्षेत्र के साथ हमारा ऐतिहासिक रिश्ता रहा है, जो ब्रिटिश शासन के साथ खत्म हो गया और बाद में देश विभाजन के कारण भारत की पहुंच वहां प्रभावी ढंग से खत्म हो गई, क्योंकि पाकिस्तान हमारे प्रति दुश्मनी का भाव रखता है और उत्तरी कश्मीर पर उसका नियंत्रण है। उस क्षेत्र में चीन के लिए स्थिति अनुकूल है, क्योंकि शिंजियांग प्रांत के जरिये चीन की उस क्षेत्र में सीधी जमीनी पहुंच है। सितंबर, 2013 में पांच मध्य एशियाई गणराज्य की यात्रा के दौरान शी जिनपिंग ने न्यू सिल्क रोड की अपनी परिकल्पना की घोषणा की थी। चीन उस क्षेत्र में पहले ही 31 अरब डॉलर का निवेश कर चुका है और चीन की कंपनियां तुर्केमेनिस्तान, उजबेकिस्तान एवं कजाकिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा क्षेत्र और विशाल काशागन तेल क्षेत्र में हिस्सेदारी खरीदने के लिए अतिरिक्त 51 अरब डॉलर के निवेश पर सहमत हैं।
-धर्मेंद्र सिंह कस्तूरिया

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