21-Jul-2015 08:42 AM
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कभी नरेंद्र मोदी के भारी-भरकम प्रचार पर उंगली उठाने वाले अरविंद केजरीवाल ने अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करने के लिए विज्ञापन बजट कई गुना बढ़ाकर 526 करोड़ रुपए कर

दिया है। दिलचस्प यह है कि आम आदमी पार्टी से बाहर फेंक दिए गए प्रशांत भूषण अब इस विज्ञापन बजट को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि दिल्ली में अब विज्ञापन युद्ध अखबारों या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के पूर्व और वर्तमान घटकों के बीच न्यायालय में चलेगा। केजरीवाल चुनाव के वक्त बड़े दयनीय अंदाज में कहते थे कि वे छोटे से आदमी हैं। उनके पीछे अडानी से लेेकर अंबानी तक व्यावसायिक घरानों की आर्थिक शक्ति नहीं हंै और न ही किसी राज्य या देश में उनकी पार्टी की सत्ता है। लेकिन अब तो केजरीवाल ने भी मोदी का अनुसरण करते हुए सरकारी विज्ञापन के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं। सवाल यह है कि फरवरी से लेकर अब तक केजरीवाल ने ऐसा क्या कर दिखाया है कि वे इतना भारी-भरकम बजट विज्ञापन पर खर्च कर रहे हैं। रेडियो पर 76 सेकंड का जो कहा सो कियाÓ टैगलाइन के साथ विज्ञापन दिन में 40 बार सुनाया जा रहा है। यदि केजरीवाल ने काम किया है, तो बखान करने की क्या आवश्यकता है? जनता को काम दिख जाएगा और दिल्ली की जनता इतनी समझदार तो है कि वह काम हो रहा है अथवा नहीं, इसका अनुमान लगा ले। जो जनता कांग्रेस और भाजपा जैसे दशकों पुराने दलों को उखाड़कर फेंक सकती है, वह केजरीवाल की सदाशयता और काम करने की लगन को समझने की ताकत भी रखती है। इसलिए केजरीवाल विज्ञापन के रहमोकरम पर क्यों हैं? यह एक अहम सवाल है। इस सवाल का जवाब केेजरीवाल के समर्थकों ने गोल-मोल दिया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि शीला दीक्षित के कार्यकाल में होर्डिंग विवाद ने तूल पकडा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए है कि सरकारी विज्ञापनों में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस की तस्वीर के अलावा अन्य किसी की तस्वीर का उपयोग नहीं हो सकता। इसलिए केजरीवाल ब्रांडिंग करेंगे भी, तो किस चेहरे की? हालांकि उन्होंने इसका तोड़ निकालते हुए टीवी एड में अपनी तस्वीर तो नहीं दिखाई लेकिन 11 बार नाम का उच्चारण कर दिया। विरोधी कहते हैं कि यह सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का उल्लंघन है लेकिन ऐसा उल्लंघन तो सभी सरकारें कर रही हैं। यूपी ने भी जो विज्ञापन अभियान चलाया है उसमें अखिलेश यादव का महिमामंडन किया जा रहा है। कांग्रेस का आरोप है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने पिछली बार के मुकाबले विज्ञापन का बजट 2 हजार 19 गुना बढ़ा दिया है। उधर आम आदमी पार्टी के नेता दिलीप पांडे का कहना है कि यह काल्पनिक आंकड़ा है। प्रशांत भूषण कह रहे हैं कि रेडियो पर कोई भी विज्ञापन दिया जाता है तो योजना के विषय में बताया जा सकता है, आत्म प्रशंसा नहीं की जा सकती। केजरीवाल की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को बाहर निकालने के बाद देश भर में उनके थिंक टैंकÓ में भयानक रिसाव हुआ है। उनके पास जो टीम है, उसमें कुछ दक्षिणपंथी और पूंजीवादी मनोवृत्ति के जल्दबाजों की संख्या अच्छी-खासी है। जो स्वयं को तीसमारखां समझते हुए केजरीवाल के घटिया से घटियाफैसले को भी तारीफों से सुसज्जित कर डालते हैं। आशुतोष जैसे कुछ अंग्रेजी ज्ञाता पत्रकार उनके विज्ञापन बजट की पैरवी करते हुए लेख भी लिख डालते हैं। दूरदृष्टाओं का केजरीवाल की टीम में अभाव है और यहीं से उनका भटकाव भी शुरू हो सकता है। चुनाव के समय योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे अनुभवी और मंझे हुए बुद्धिजीवियों ने लगभग 24 टिकटों का विरोध किया था। उनका कहना था कि यह आपराधिक पृष्ठभूमि के फर्जी लोग हैं। आज उन्हीं 24 लोगों पर आरोप लग रहे हैं। विधायक और कानून मंत्री जीतेन्द्र सिंह तोमर के बाद विधायक मनोज कुमार पर फर्जी कागजात के आधार पर जमीन लेने का आरोप लगा है। उन्हें आईपीसी की धारा 420, 467, 471 और 120 बी के तहत गिरफ्तार करके कड़कडड़ूमा न्यायालय में प्रस्तुत किया जा चुका है। न्यायालय ने उन्हें पूछताछ के लिए पुलिस को रिमांड पर सौंप दिया है। मनोज ने किसी से 6 लाख रुपए एडवांस भी ले लिए थे। दुलारी देवी नामक महिला उन पर बदसलूकी का आरोप भी लगा चुकी है। कुछ और विधायकों पर भी कार्यवाही की तलवार लटक रही है। सोमनाथ भारती की पत्नी लिपिका मित्रा इंसाफ की मांग करते हुए जंतर-मंतर पर पहले ही धरने पर बैठ गईं थीं। उनके साथ महिला आयोग की अध्यक्ष बरखा सिंह भी थीं। कभी महिला आयोग के सामने कुमार विश्वास ने पेश होने से मना कर दिया था। कुमार विश्वास पर एक महिला के यौन शोषण का अविश्वसनीय आरोप लग चुका है। हालांकि उस महिला और उसके पति ने इस आरोप को गलत बताया था।
इस बीच केजरीवाल और लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग के बीच चल रहा शीतयुद्ध कुछ थमने सा लगा है। दोनों की सहमति से वरिष्ठ आईएएस एसएन सहाय को दिल्ली सरकार का नया गृहसचिव नियुक्त किया गया है। केजरीवाल ने 3 नामों का पैनल भेजा था, जिसमें से सहाय जंग को भा गए। केजरीवाल की इफ्तार दावत में भी जंग खिलखिलाते नजर आए और शीला दीक्षित नीतिश कुमार जैसे नेताओं ने शिरकत कर इस दावत को दिलचस्प बना दिया। लेकिन दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए केजरीवाल द्वारा जनमत की
पहल पर केंद्र सरकार की नजरें टेड़ी हो गई। कांग्रेस इसे पहले ही असंवैधानिक करार दे चुकी है, भाजापा के लिए यह गले की हड्डी है। भाजपा ने कभी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए आश्वासन दिया था। अब इनकार करने पर भाजपा बेनकाब हो जाएगी। दिल्ली की सियासत अहम मोड़ पर है। केजरीवाल की पार्टी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केजरीवाल विज्ञापन बजट बढ़ाकर खुला खेल खेल रहे हैं। उनका मकसद साफ है, जो भी देंगे सबके सामने और खजाना खोलकर देंगे। इससे पहले सत्तासीन पार्टियों पर मीडिया को खरीदने और मैनेज करने के आरोप लगते रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने अपने सांसदों के काम का ऑडिट करने का नया पैंतरा फेंका है। पार्टी ने सभी सांसदों से गत एक वर्ष के दौरान किए गए कामों की रिपोर्ट मांगी है। इस रिपोर्ट तलबी से 3 सांसद नाराज हैं। उनका कहना है कि रिपोर्ट सौंपने के लिए कुल 5 दिन का समय दिया गया और आलाकमान ने पर्यवेक्षकों की नियुक्ति के बारे में उन्हें विश्वास में नहीं लिया। इसके बाद सांसद धर्मवीर गांधी ने कहा कि स्वराज की बात करने वाली आम आदमी पार्टी के भीतर स्वराज कहां है। साधू सिंह व हरिंदर सिंह खालसा भी खासे नाराज बताए जाते हैं। हरिंदर सिंह ने तो एक मेल भेजकर यह आरोप लगाया है कि पंजाब के प्रदेश पर्यवेक्षक संजय सिंह और संयोजक सुच्चे सिंह पार्टी को बर्बाद कर रहे हैं। यह दोनों नेता पार्टी के संविधान और पंजाब इकाई की पूरी तरह उपेक्षा कर रहे हैं। पंजाब इकाई में बगावत आम आदमी पार्टी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। दिल्ली के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी का जनाधार बहुत मजबूत है। लोकसभा चुनावों में यहां से आम आदमी पार्टी को 4 सीटें मिली थीं। जनता में भाजपा और अकाली दल सरकार के प्रति बहुत आक्रोश है। कांग्रेस पंजाब में मृतप्राय हो चुकी है। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि कांगे्रेस ने भीतर ही भीतर आम आदमी पार्टी को समर्थन दे दिया है।
पंजाब के विधानसभा चुनाव के नतीजे अवश्य ही चौंकाने वाले आएंगे। कुछ विश्लेषकों का तो मानना है कि चुनाव बाद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर सरकार बना सकते हैं। या फिर आम आदमी पार्टी अन्य घटकों के साथ मिलकर सत्ता पर काबिज हो सकती है। लेकिन सांसदों और पंजाब में आम आदमी पार्टी की राज्य इकाई के बीच चल रहा शीतयुद्ध नुकसानदेह हो सकता है। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा, जो प्रारंभ से ही आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की सांठ-गांठ तथा सत्ता के लिए आप पर लोलुपता का आरोप लगाती रही है। पंजाब में यह बदलाव का दौर है। ऐसी स्थिति में आम आदमी पार्टी नाजुक गलतियां न करे, तो ही बेहतर है।
नीतिश की मुलाकात कितनी महत्वपूर्ण?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने हाल के दिनों में अरविंद केजरीवाल से चौथी बार मुलाकात की है। बिहार में विधानसभा चुनाव है चुनाव अक्टूबर में होने वाले हैं। इस लिहाज से नीतिश और केजरीवाल की मुलाकात नए समीकरणों की शुरुआत हो सकती है। नीतिश के प्रति कांग्रेस का साफ्ट कार्नर जगत विख्यात है। इसीलिए सोनिया गांधी की इफ्तार पार्टी से लेकर केजरीवाल की इफ्तार पार्टी तक धर्मनिरपेक्ष ताकतों का जमावड़ा भविष्य में नई राजनीतिक बनावटों का संकेत दे रहा है। मुसलमानों के बीच कांग्रेस एक विश्वसनीय पार्टी नहीं रह गई। बिहार में नीतिश ने पहले भाजपा और अब लालू से हाथ मिलाया। इस मौका परस्ती को भी वहां का अल्पसंख्यक भांप चुका है। ऐसी स्थिति में केजरीवाल ही एक विश्वसनीय नेता है जिन्हें इस देश का अल्पसंख्यक भाजपा को पराजित करने में समर्थ मानता है। केजरीवाल का साथ और कांग्रेस का हाथ नीतिश के लिए चुनाव से पहले और चुनाव के बाद महफूज साबित होगा। क्योंकि लालू के साथ गठबंधन न केवल अस्थायी है बल्कि नीतिश की तासीर के खिलाफ भी है। इसलिए वे अपने विकल्प खुले रखे हुए हैं।
-प. रजनीकांत