21-Jul-2015 09:09 AM
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इटारसी रेल मंडल की रेलों की लेट लतीफी और निरस्त होने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। रेलवे की डेड लाईन निकल चुकी है, लेकिन अव्यवस्था अभी भी फैली हुई है। आरआर प्रणाली को दुरुस्त तो

कर लिया गया है किंतु रेल के संचालन में पहले की तरह मुस्तैदी आने में समय लगेगा। इस बीच असंख्य यात्रियों ने जो परेशानी झेली है। वह अवर्णीय है। जो अपने गंतव्य तक जाने में असमर्थ रहे उनके अलावा भी कई ऐसे हैं, जिनके लिए रेलवे का यह हादसा अभिशाप बन गया है। क्योंकि वे प्रतियोगी परीक्षाएं देने जा रहे थे। लेकिन रेलवे को इससे कोई सरोकार नहीं है। वह अपनी गति से काम कर रहा है और गोलमाल जवाब देकर अधिकारी टरका देते हैं। डेड लाईन बदलती जा रही है। इंजीनियर्स बात करने को राजी नहीं हैं। रेलवे केवल निरस्त होने वाली गाडिय़ों की सूचना जारी करता है। बाकी जानकारी मांगने पर भी नहीं मिलती है। कार्यालय फोन लगाया जाए तो अक्सर फोन व्यस्त ही आते हैं। यह व्यस्तता आकस्मिक है या सुनियोजित लेकिन इससे उन यात्रियों को बेहद परेशानी उठानी पड़ी है, जिन्होंने पिछले 45 दिनों के दौरान अपनी यात्रा की प्लानिंग कर रखी थी।
पाक्षिक अक्स ने पिछले अंक में बताया था कि किस तरह वर्षों पुराने आरआरआई सिस्टम को ढोने के लिए रेलवे विवश है। इसका विकल्प होने के बावजूद इस प्रणाली को बदलने में रेलवे की कोई रुचि नहीं है। इस विषय में मंडल रेल प्रबंधक राजीव चौधरी का कहना है कि आरआरआई प्रणाली को स्थापित होने में तीन-चार वर्ष का समय लगता है। किसी भी जोन में आरआरआई के लिए पहले से ही अनुमति लेकर टेंडर जारी किए जाते हैं। इटारसी में जो प्रणाली लगी है। वह 1980 के दशक में लगी थी। 30 से अधिक वर्षों से यह प्रणाली बेहतर काम कर रही थी। चार वर्ष पहले इसे बदलने और नई प्रणाली लगाने का सुझाव दिया गया उसके उपरांत काम शुरू हुआ। चौधरी का कहना है कि उस वक्त जो सर्वश्रेष्ठ प्रणाली उपलब्ध थी उसे ही स्वीकृत किया गया। संभवत: इसीलिए रूट रिले इंटरलॉकिंग जिसे आरआरआई कहते हैं। लगाने में इतना समय लगा। हालांकि चौधरी का भी मानना है कि आरआरआई से बेहतर और उन्नत प्रणाली दुनिया में मौजूद है। उन्होंने बताया कि 22 जुलाई तक इटारसी सेक्शन पर रेलवे का काम सुचारू रूप से प्रारंभ हो जाएगा। वैसे देखा जाए तो आरआरआई भी अपने लक्ष्य से देरी से चल रहा है। आरआरआई प्रणाली पर पिछले तीन सालों से काम हो रहा है। इसकी टेस्टिंग में ही छह माह लगते हैं। इटारसी में जिस आरआरआई सिस्टम पर काम चल रहा था। वह अंतिम चरण में था लेकिन यार्ड में उसके लिए तैयारी नहीं हो पाई थी। इसलिए टेस्टिंग समय पर प्रारंभ नहीं हो सकी। चौधरी कहते हैं कि यह एक विश्वसनीय प्रणाली है। इसलिए इसकी बैकअप प्रणाली की आवश्यकता आमतौर पर नहीं पड़ती। उन्होंने इस बात को भी खारिज किया कि एसिड के कारण वायरिंग गल गई थी जिसके चलते स्पार्किंग से आग लग गई।
उनका कहना है कि बैट्री ग्राउंड फ्लोर पर रखी है जबकि आरआरआई प्रणाली फस्र्ट फ्लोर पर थी। इसलिए बैट्री लीक होने के कारण एसिड की वजह से नुकसान होने की संभावना नगण्य है। आग फस्र्ट फ्लोर पर लगी थी। आरआरआई प्रणाली को बहुत संवेदनशील माना गया है और इसलिए इसे दो तालों में बंद करके रखा जाता है। किसी कारणवश इस प्रणाली के रूम वाला लॉक खोला जाता है तो सेंसर द्वारा उसके खुलने का समय जबलपुर में दर्ज हो जाता है। इसलिए इसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ की आशंका नहीं है। किंतु इस प्रणाली को इस तरह बंद रखने से कहीं स्पार्क के कारण आग तो नहीं लगी थी? इस सवाल के जवाब में चौधरी का कहना था कि जांच चल रही है। किसी भी प्रकार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। न कोई फिश प्लेट उखड़ी, न तुफान आया न बाढ़ आई न भूकंप आया। फिर भी एक चार सौ वर्गफीट के क्षेत्र में आग लग जाने से हजारों किलोमीटर दौडऩे वाली हजारों ट्रेनों के पहिये क्यों थम गए। इस प्रश्न पर चौधरी का कहना है कि आरआरआई प्रणाली ट्रेनों का ब्रेन है। जिस
प्रकार बे्रेन काम करना बंद कर दे तो शरीर नाकाम हो जाता है। कुछ ऐसा ही इस प्रणाली का हाल है।
चौधरी ने आरआरआई प्रणाली के विषय में खुलकर तो बता दिया, लेकिन एक शंका अभी भी बनी हुई है कि भविष्य में इस तरह के अग्निकांड होने पर क्या फिर से रेलवे पंगू होकर बैठ जाएगा। माना कि यह प्रणाली महंगी है, लेकिन इसके लिए वैकल्पिक और बैकअप व्यवस्था बनाई ही जानी चाहिए। देखना है कि 22 जुलाई के बाद रेलवे कितनी तत्परता से काम करता है।
-इटारसी से अजय धीर