सेडमैप में बनते थे भ्रष्टाचार के रोडमैप
21-Jul-2015 08:04 AM 1235195

सेडमैप का मूल मकसद युवाओं को प्रशिक्षण देना था, लेकिन तिवारी ने इसे मुनाफे का जरिया बना लिया था। सेडमैप के अफसर कहते हैं कि हमारा काम था पढ़े-लिखे युवाओं को उद्यम स्थापित करने के लिए ट्रेनिंग देेना। उन्हें उद्योग विभाग और बैंकों से रूबरू कराना। सफल होने तक फॉलो-अप करना। पूर्व ईडी पंचनारायण मिश्रा के रहते यह काम व्यापक पैमाने पर हुआ। देश भर में सेडमैप की चर्चा हुई। उनके बाद असल जमीनी काम खत्म ही हो गया। उनके समय के सारे विशेषज्ञ संस्था छोड़कर जाते रहे। बाद में यह संस्था तिवारी के इशारों पर चली, जिन्हें उद्यमिता जैसे तकनीकी विषय का कोई अनुभव ही नहीं था। करोड़ों रुपयों के बजट की बंदरबांट में रीजनल कार्यालयों के प्रभारियों ने भी वही किया, जो उन्हें कहा गया।
अंतत: तिवारी की तानाशाही, भ्रष्टाचार और  ज्यादतियों पर लोकायुक्त की नजर पड़ ही गई। उनके आलीशान घर में जब लोकायुक्त पुलिस पहुंची तो बड़े-बड़े अफसरों को अपनी जेब में रखने वाले तिवारी ने आधे घंटे तक पुुलिस को परेशान किया। वही तिवारी जो सरकार के सरकारी मोनो का अपने लेटर हेड और विजिटिंग कार्ड में उपयोग करते थे उन्हें शर्म नहीं आयी यह कहते हुए कि मैं लोकसेवक नहीं हूँ।  वह पुलिस को गिड़गिड़ाते रहे कि मेरे घर में छापा नहीं डल सकता है। इस बीच तिवारी ने जितने भी सबूत हो सकते थे वे निश्चित ही नष्ट कर डाले होंगे। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। बहरहाल जब लोकायुक्त पुलिस ने उंगली टेढ़ी की तो तिवारी दुबक गया और लोकायुक्त पुलिस को घर में घुसने दिया। उसके बाद वह मुस्कुराते हुए एक सोफे पर बैठा रहा और लोकायुक्त पुलिस घर की तलाशी लेती रही। सूत्र बताते हैं कि कथित रूप से छापे की भनक लगने के बाद सबूतों और बेनामी संपत्तियों के कागजातों को ठिकाने लगाने में जुटे तिवारी के यहां इसके बाद भी करोड़ों की संपत्ती मिली। सवाल यह है कि 2006 से औसतन 70-80 हजार रुपए कमाने वाले मुलाजिम ने इतनी दौलत कैसे इकट्ठी कर ली कि उसके पास  लोकायुक्त छापे के दौरान लगभग 2 किलो सोना है और इतनी ही चांदी मिली है, आईएसबीटी में 3 दुकानें हैं, अंसल अपार्टमेंट में फ्लेट है, इन्दौर में मकान, गुना में प्लाट, भोपाल में अरेरा कॉलोनी में बंगला, 2 लगजरी कार, 12 बैंक खाते, पत्नी के नाम पर टीटी नगर में डिपार्टमेंटल स्टोर है और इन सब से बढ़कर अरबों-खरबों के बराबर तो वह रुतबा और रौब है जिसकी दम पर तिवारी जैसा मामूली व्यक्ति लोकायुक्त पुलिस को अपनी दहलीज पर पूरे 30 मिनट असहाय सा खड़े रखने की औकात रखता है। तिवारी ने मध्यप्रदेश की प्रशासनिक शक्ति से सम्पन्न अधिकारियों की नब्ज किस हद तक दबा रखी है इसका प्रमाण उस छापे में स्पष्ट मिलता है। बहरहाल पाक्षिक अक्स के लगातार छापने के बाद भी सरकार ने तिवारी की जाँच को आँच भी नहीं आने दी। अब जब सब कुछ हो गया तो सरकार में बैठे जवाबदार अफसर अवसाद में चले गये। तिवारी की कुण्डली भी अक्स के पास थी और उसने उन गरीब और असहाय कर्मचारियों का बराबर से साथ दिया। सत्य की लड़ाई में। अक्स ने पिछले माह के अंक में ही घोषणा कर दी थी कि अब तिवारी की होगी छुट्टी। मोहम्मद आसिम हुसैन की याचिका में 27 करोड़़ रुपए के गबन के आरोपी तिवारी के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस की कार्रवाई में जो कुछ खुलासा हुआ था। वह भी कम चौंकाने वाला नहीं है। कथित रूप से कागजों को दबा लेने के बावजूद वर्ष 2002 तक प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने वाला एक मामूली सा चार्टेड अकाउंटेंट आर्थिक रूप से कितना सशक्तÓ हो सकता है यह तिवारी से प्राप्त दौलत के ब्यौरों से ही खुलासा हो रहा है। पिछले 9 वर्ष में तिवारी ने विलासिता पूर्ण जिंदगी जी है। वह कहता है कि सेडमैप को उसने करोड़़ों के लाभ में ला दिया है। मानो यह अकेले उसी की मेहनत हो और बाकी सब कर्मचारी तो केवल रोटी तोड़ रहे हों। तिवारी की इस गर्वोक्ति के पीछे उसे मिला संरक्षण भी है। जिसके चलते वह वर्ष दर वर्ष दौलत कमाता रहा और बिना पर्याप्त योग्यता के, नियुक्ति पत्र पाए बगैर एक ऐसे पद पर जमा रहा जहां फाइनेंशियल एडवाइजर की योग्यता रखने वाला व्यक्ति पदासीन हो ही नहीं सकता। कभी कौडिय़ों के दाम नौकरी करने वाला तिवारी ने अपने मकडज़ाल में उच्च अधिकारियों को इस कदर उलझा लिया था कि 31 मई 2015 को कार्यकाल खत्म होने के बावजूद भी वह पद पर बना रहा और अब पूछे जाने पर कह रहा है कि अधिकारियों ने उसे कथित रूप से तीन माह का एक्सटेंशन दिया था। सवाल यह है कि जो तिवारी स्वयं को लोकसेवक ही नहीं मानता है वह किस आधार पर उच्चाधिकारियों से मिले एक्सटेंशन के बूते उस पद पर बना हुआ था जिसकी योग्यता के काबिल ही वह नहीं था। सेडमैप को अपनी निजी मिल्कीयत बनाने वाले तिवारी ने जब जरूरत पड़ी तब सरकार की दहलीज पर नाक रगड़ दी और जब काम निकल गया तो कहने लगा कि वह लोकसेवक नहीं है। सेडमैप सरकारी संस्था नहीं है लिहाजा उस पर सरकार का हुक्म नहीं चलता है। हुक्म उदूली का यह सिलसिला 2006 से बदस्तूर जारी है। इन 9 वर्षों में तिवारी ने कई कर्मचारियों को ठिकाने लगाया। मनमाने बिल लगाए। जो उसके खिलाफ खड़़ा होता था उन्हें नौकरी से हटाया। खुद पर गबन के आरोप लगे रहे, लेकिन कई कर्मचारियों को फर्जी आरोपों में रुखसत कर दिया। यहां तक कि 31 मई 2015 को पद मुक्त हो जाने के बावजूद उसका यह दमन चक्र चलता रहा और वह बड़ी ढिठाई से अखबारों में कहता रहा कि जिन अधिकारियों-कर्मचारियों को उसने हटाया वे काम चोर थे, कुछ और कर्मचारियों की (31 मई 2015 के बाद भी)  अभी भी छुट्टी की जानी है। पल भर के लिए मान लिया जाए कि तिवारी के आकाओं ने उसे तीन माह का एक्सटेंशन दिलवा दिया था तो उस दौरान क्या उसके पास वह पावर भी दे दिये गये हैं कि वह किसी को भी टर्मिनेट कर सकता है? जिस व्यक्ति के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट से लेकर राज्य सरकार लोकायुक्त और प्रदेश की आर्थिक अपराध शाखा में अनियमितता के 22 से अधिक मामले दर्ज हो, जिससे कई बार जवाब-तलब किया गया हो वह किसी दूसरे की नौकरी का फैसला कैसे कर सकता है। जो खुद ही आरोपों से घिरा हुआ हो वह दूसरे को न्याय कैसे दे सकता है। लेकिन सेडमैप में यह धांधली बदस्तूर चल रही है। तिवारी की करतूतों से उन अधिकारियों ने भी आंखें मूंद ली है।
तिवारी के निर्देशन में स्वरोजगार के लिए युवाओं को ट्रेनिंग कागजों पर होती रही। और दस सालों के दौरान केंद्र व राज्य सरकार से ट्रेनिंग के नाम पर मिले करोड़ो रुपए कागजों पर प्रोग्राम बनाकर स्वाहा कर दिए गए। 
यही नहीं उनके खास सखा सुनील मानधन्या के साथ भी उन्होंने बेईमानी की और उनके खिलाफ थाना एमपी नगर में अपराध पंजीबद्ध करा दिया। बाद में वे जमानत पर छूटे हैं। मामला हेराफेरी का था जबकि यह हेराफेरी खुद जितेन्द्र तिवारी ने की थी ऐसा सुनील मानधन्या ने अपने बचाव में कहा है। सुनील मानधन्या खुद सीए हैं उनके मार्फत तिवारी ने कई प्रोजेक्ट रिर्पोट बनवाकर अच्छी खासी रकम लूटी है। उन्होंने अपनी पत्नि ज्योति के नाम पर कई शेयर खरीदें है और उसका भी समायोजन सुनील मानधन्या और कल्पतरू नाम की एजेंसी के साथ कराया है। अभी तो लोकायुक्त को तिवारी के निवेशों की जानकारी के लिए बहुत गहराई में जाना पड़ेगा क्योंकि तिवारी स्वयं चार्टड एकाउन्टेंट है उसे अच्छी तरह पता है कि निवेशों के कैसे ठिकाने लगाया जाता है। तिवारी की कहानी तो अब सेडमैप के साथ खतम हो गई पर तिवारी भी किसी से कम नहीं है वह कुछ राज अपने पास रखा हुआ है जिससे सरकारी मिशनरी में काफी हलचल है।
-भोपाल से सुनील सिंह

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^