04-Jul-2015 08:13 AM
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कभी दुनिया को जीतने निकले महान योद्धा सिकंदर की भूमि ग्रीस विश्व का ऐसा पहला विकसित देश बन सकता है, जो दिवालिया हो गया हो। जिम्बांबे दिवालिया हो चुका है। वहां की करंसी का मूल्य

नगण्य है। लेकिन ग्रीस का दिवालियापन आश्चर्य का विषय है। महज 1.7 अरब डॉलर का कर्ज न चुकाने के कारण ग्रीस यूरो जोन से बाहर होकर डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाएगा। लेकिन इससे अकेले ग्रीस की नहीं यूरोप की प्रमुख मुद्रा यूरो की विश्वसनीयता भी खतरे में पड़ जाएगी। जाहिर है डॉलर का दाम बढ़ेगा और भारत में रुपए की कीमत गिर जाएगी। इससे भारत में महंगाई बढ़ सकती है। यूरोप चाहे तो ग्रीस को इस संकट से उबार सकता है। लेकिन यूरोप में तुर्की को छोड़कर किसी भी देश ने मदद का हाथ नहीं बढ़ाया है। ग्रीस के बैंकों में 60 यूरो से ज्यादा निकालने पर रोक लगा दी गई है। इसी कारण लोगों में घबराहट है। उन्हें लगता है कि उनका पैसा डूब जाएगा। हालांकि घबराहट के बावजूद ग्रीस की जनता ने सरकार और राष्ट्रपति पर भरोसा दिखाया है। लेकिन ग्रीस की हालत देखकर दुनिया भर के बाजार गिर गए हैं। भारत में भी बाजारों की गिरावट लगातार जारी है। यूरोपियन यूनियन में ग्रीस की अर्थव्यवस्था 13वें नंबर पर है। यह एक विकसित देश है। जहां 80 फीसदी से ज्यादा सेवा क्षेत्र व करीब 16 प्रतिशत उद्योग हैं, ग्रीस के पास दुनिया की सबसे बड़ी मर्चेंट नेवी है, हर वर्ष यहां 1 करोड़ 79 लाख पर्यटक पहुंचते हैं। लेकिन इसके बाद भी ग्रीस दिवालिया क्यों हो रहा है? यह एक यक्ष प्रश्न है। ज्यादातर लोग कहते हैं कि 1999 के भूकंप से ग्रीस उबर नहीं पाया। बाद में यूरो जोन से जुड़ते वक्त ग्रीस ने अपनी अर्थव्यवस्था को नहीं देखा। 2004 में ग्रीस के ओलंपिक सफल तो रहे लेकिन सरकार को 12 अरब डॉलर खर्च करने पड़े, इससे राजकोषीय घाटा अत्यधिक बढ़ गया और कर्ज जीडीपी की तुलना में 113 प्रतिशत हो गया। यहीं से ग्रीस का पतन शुरू हुआ। आज हालात दयनीय हैं। एक विकसित देश दिवालिया होने की कगार पर खड़ा है। दुनिया के कुछ दयावान देश आगे बढ़कर ग्रीस को इस संकट से बचा तो सकते हैं, लेकिन कब तक? ग्रीस को अपनी अर्थव्यवस्था में आर्थिक सुधार करना है। माना जाता है कि राष्ट्रीय और अतंर्राष्ट्रीय संस्थाएं ग्रीस में सब्सिडी ढांचे को स्वीकार नहीं कर रही हैं। मई 2010 में अतंर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ग्रीस को 10 अरब यूरो का राहत पैकेज दिया था, लेकिन इस पैकेज को लागू करने में देरी की गई। वामपंथी सरकार होने के कारण ग्रीस के सामने आर्थिक रूप से भी चुनौतियां हैं। वाम विचारधारा में सामाजिक सुरक्षा को कुछ ज्यादा ही महत्व दिया जाता है। पूर्वी यूरोप के देशों में सामाजिक सुरक्षा का दायरा बहुत विस्तृत है जिसके कारण सरकार का खर्चा बहुत बढ़ जाता है। ग्रीस में यह खर्च आमदनी के मुकाबले कई गुना बढ़ चुका है।
राजनैतिक दल भी सत्ता में आने के लिए जनता से झूठे वादे और प्रलोभन का सहारा लेते हैं, जिसका भार खजाने पर पड़ता है। ग्रीस का संकट खत्म हो या न हो, लेकिन भारत को ग्रीस से सीखने की आवश्यकता है। भारत के पास ग्रीस से कई गुना बड़ी अर्थव्यवस्था भले ही हो, पर गलत नीतियां अच्छी-अच्छी अर्थव्यवस्था को तबाह कर देती हैं।