योग के साथ-साथ राजयोग
04-Jul-2015 08:07 AM 1234951

भारत सहित दुनिया में योग दिवस मनाया गया। पाकिस्तान में आतंकवादियों की धमकी के चलते योग आयोजन रद्द किए गए। दूसरे देशों में बड़ी तादात में लोगों ने योग आसनों के द्वारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ लिया। लेकिन भारत में योग के साथ-साथ राजयोग भी चलता रहा। योग दिवस से पहले सूर्य नमस्कार और ओम के उच्चारण को लेकर मुस्लिम समुदाय को आपत्ति थी, जिसे यह कहते हुए दरकिनार किया गया कि 21 जून को सूर्य नमस्कार या ओम का उच्चारण नहीं किया जाएगा। इसीलिए कुछ अपवादों को छोड़कर प्राय: सभी संप्रदाय को लोगों ने योग में हिस्सा लिया। वैसे भारतीय राजनीति में राजयोग के साथ-साथ योग चलता रहा। इंदिरा गांधी के योग शिक्षक धीरेंद्र ब्रह्मचारी का आनंद भवन आना-जाना था। पंडित नेहरू ने उन्हें इंदिरा गांधी को योग सिखाने के लिए नियुक्त किया था ताकि इंदिरा जी का स्वास्थ्य उत्तम रहे। पंडित नेहरू भी शीर्षासन किया करते थे। योग राजनीतिज्ञों को स्वस्थ रहने का आदर्श व्यायाम है क्योंकि वे अपनी व्यस्तताओं के चलते थकाने वाले और लंबे व्यायाम नहीं कर पाते। महर्षि पतंजलि ने योग के 195 सूत्रों की रचना भी इसी को ध्यान में रखते हुए की है कि सभी के लिए लगातार कठिन व्यायाम संभव नहीं है इसलिए वे सब योग से शारीरिक और मानसिक रूप से स्वास्थ्य लाभ कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि भारत या विश्व ने मोदी के सत्तासीन होने अथवा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 जून को विश्व योग दिवस घोषित करने के बाद ही योग को अपनाया। भारत की इस पद्दति को पूरा विश्व हजारों वर्ष पहले ही अपना चुका था। मंगोल आक्रमणकारी चंगेज खान जिसने बाद में बौद्ध धर्म अपना लिया, भारत के योग सूत्रों से बहुत प्रभावित था। सिकंदर के सलाहकार सेलुकस ने सिकंदर को कई योगियों से मिलवाया, जिनकी आयु और जीवट देखकर सिकंदर दंग रह गया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने तो बकायादा योग का प्रशिक्षण लिया और उस विद्या का प्रचार पूरे चीन में किया। चीन में भगवान बुद्ध की पद्मासन प्रतिमा अत्यंत शुभ मानी जाती है। वहां लॉफिंग बुद्धा हास्य योग का ही एक रूप है। जापान में अवलोकितेश्वर बोधिसत्व के पीछे योग की ही प्रेरणा है। विश्व के लगभग सभी देशों में योग किसी न किसी रूप में मौजूद रहा है। आधुनिक काल में महर्षि पतंजलि के योग सिद्धांत को बी.के.एस. अयंगर ने पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाया। अयंगर जैसे योगगुरू विरले ही होते हैं। अयंगर ने सिर से लेकर पैर तक लकवाग्रस्त कई रोगियों को योग के बल पर चलने-फिरने में सक्षम बनाते हुए चंगा कर दिया। कई विख्यात व्यक्तियों ने शारीरिक अक्षमता या दुर्घटना के बाद बेकार हो चुके अंगों और स्लिप डिस्क जैसी परेशानियों में अयंगर के मार्गदर्शन में योग करते हुए स्वस्थ तन-मन पाया। बाबा रामदेव तो योग के भूमंंडलीकरण के दौर में प्रकट हुए, जब योग सुव्यवस्थित व्यवसाय बन चुका था और अब योग के माध्यम से राजयोग हो रहा है। महर्षि अरविंद ने कहा था जो भी काम किया जाए, उसमें पूर्ण कौशल तथा पारंगतता प्राप्त करना ही संपूर्ण योग है। अरविंदो के आश्रम में पिछले 80 वर्षों से नियमित योग साधना होती है। एक अन्य योगी लाहिरी महाराज ने भी कई अद्भुत योगासनों का प्रदर्शन किया। उनकी प्रेरणा से ही महर्षि महेश योगी ने देश-विदेश में योग और भारत के वैदिक ज्ञान का प्रचार किया। स्वामी विवेकानंद युवावस्था में अपने स्वास्थ्य के प्रति उतने सचेत नहीं थे। उनके गुरु ने उन्हें योग की दीक्षा दी जिसके चलते स्वामी जी ने राजयोग, कर्मयोग और भक्तियोग को पूरी दुनिया में पहुंचाया। किवदंती यह है कि विवेकानंद को एक बार जहर दिया गया था, जिसे उन्होंने अपनी योग शक्ति से पचाकर शरीर से बाहर कर दिया। लेकिन दूसरी बार जब शत्रुओं ने उन्हें विष दिया, तो वे उसका प्रभाव समय पर नहीं भांप पाए। योग में आधुनिकता का समावेश तिरुमलाई कृष्णमचार्य ने किया। उनकी योगासाईज को पश्चिम में बहुत मान्यता मिली। वहां इसे ब्रीदिंग एक्सरसाइज कहा गया। स्वामी शिवानंद ने भी अपना डॉक्टरी पेशा छोड़कर दुनिया को त्रिमूर्ति योग दिया। ऐेसे ही एक अन्य योगी हैं के. पट्टावी जोईस जिनसे मेडोना, स्टिंग, पैल्ट्रो, स्प्रिंग्सटीन जैसी विदेशी हस्तियों ने योग सीखा। आज के समय में भी कई योगी बिना किसी प्रचार के शांत भाव से विश्व को योग की सौगात दे रहे हैं। इनमें परमहंस योगानंद, जग्गी वासुदेव, भारत ठाकुर, सुनील सिंह, ए.आर. नागेन्द्र- जो कि प्रधानमंत्री के योग सलाहकार भी हैं, स्वामी आत्माप्रियनंदा, हंसाजी जयदेव, विक्रम चौधरी और पाकिस्तान के गुरु हैदर का नाम विख्यात है।
राम माधव की ट्वीट से विवाद
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सामाजिक समरसता की बात करता है लेकिन संघ के प्रवक्ता रहे राम माधव ने योग के कार्यक्रम में राजपथ पर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की गैर मौजूदगी पर नाराजगी प्रकट करते हुए ट्वीट किया। बाद में जब उन्हें अपनी नासमझी का अहसास हुआ, तो उन्होंने क्षमा-याचना सहित ट्वीट हटा लिया। राम माधव ने राज्यसभा टेलीविजन द्वारा योगा कार्यक्रम को कवरेज न देने का मुद्दा भी उठाया। माधव को शायद गलत जानकारी दी गई। माधव तथ्यों को जानने के बाद यह मुद्दा उठाते, तो शायद बेहतर रहता। लेकिन उन्होंने तथ्यों की पड़ताल करना उचित नहीं समझा। शायद किसी ने उन्हें उकसाया होगा। माधव की इस नासमझी के कारण भाजपा और सरकार को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। उपराष्ट्रपति कार्यालय में राजपथ कार्यक्रम का आमंत्रण ही नहीं पहुंचा था। ऐसी स्थिति में उपराष्ट्रपति भला क्यों आते? राम माधव ने क्षमा-याचना के साथ लिखा कि उपराष्ट्रपति अस्वस्थ थे। लेकिन सच्चाई यह नहीं थी। दरअसल राज्यसभा टीवी उपराष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में है इसलिए यह विवाद मीडिया में अलग शक्ल अख्तियार कर गया। कांग्रेस ने भाजपा और संघ पर राजनीतिकरण का आरोप लगाया, तो बाकी दलों ने भी भाजपा को लपेटा। बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय से सफाई दी गई कि जिस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित हों, वहां उपराष्ट्रपति को प्रोटोकॉल के तहत नहीं बुलाया जा सकता। किसी ने कहा कि सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे के विवाद को ढांकने के लिए राम माधव ने यह नया विवाद शुरू किया है।
-कुमार अंकित

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