पुरुषोत्तम मास में उपासना का महत्व
04-Jul-2015 08:04 AM 1235038

हर तीन वर्ष के दौरान आने वाला अधिकमास जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहते है, इस वर्ष है। इस साल दो आषाढ़ होंगे। जून जुलाई के मध्य अधिकमास की स्थिति बनेगी। अधिकमास को भगवान

नारायण ने स्वयं का नाम पुरुषोत्तम प्रदान किया है। इस वर्ष आषाढ़ के दौरान संयोग बन रहा है। हिंदी पंचांग के अनुसार विक्रम संवत का प्रथम माह चैत्र 21 मार्च 2015 से शुरू होगा। इस साल किलक नाम के विक्रम संवत 2072 में आषाढ़ 3 जून को शुरू होकर 31 जुलाई तक चलेगा। इसमें पुरुषोत्तम मास की अवधि 17 जून से 16 जुलाई तक रहेगी।
शास्त्रों के अनुसार हर तीसरे साल सर्वोत्तम यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास के दौरान जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रीकृष्ण, श्रीमद् भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है। पुरुषोत्तम मास में कथा पढऩे, सुनने से भी बहुत लाभ प्राप्त होता है। इस मास में जमीन पर शयन, एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं। सूर्य की बारह संक्रांति के आधार पर ही वर्ष में 12 माह होते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष के बाद पुरुषोत्तम माह आता है। पंचांग के अनुसार सारे तिथि-वार, योग-करण, नक्षत्र के अलावा सभी मास के कोई न कोई देवता स्वामी है, किंतु पुरुषोत्तम मास का कोई स्वामी न होने के कारण सभी मंगल कार्य, शुभ और पितृ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
दान, धर्म, पूजन का महत्व : पुराणे शास्त्रों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह आपके द्वारा दान दिया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है।  इसलिए अधिक मास के महत्व को ध्यान में रखकर इस माह दान-पुण्य देने का बहुत महत्व है।

इस माह भागवत कथा, श्रीराम कथा श्रवण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति और अनंत पुण्यों की प्राप्ति मिलती है।
कैसे समझें अधिक मास को?
पुरुषोत्तम मास का अर्थ जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता होता है। इनमें खास तौर पर सर्व मांगलिक कार्य वर्जित माने गए है, लेकिन यह माह धर्म-कर्म के कार्य करने में बहुत फलदायी है। इस मास में किए गए धार्मिक आयोजन पुण्य फलदायी होने के साथ ही ये आपको दूसरे माहों की अपेक्षा करोड़ गुना अधिक फल देने वाले माने गए हैं।
पुरुषोत्तम मास में दीपदान, वस्त्र एवं श्रीमद् भागवत कथा ग्रंथ दान का विशेष महत्व है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव में वृद्घि होने के साथ आपको पुण्?य लाभ भी प्राप्त होता है।
पुरुषोत्तम मास में किन चीजों के करें दान
-    प्रतिपदा के दिन घी चांदी के पात्र में रखकर दान करें।
-     द्वितीया के दिन कांसे के पात्र में सोना दान करें।
-    तृतीया के दिन चना या चने की दाल का दान करें।
-    चतुर्थी के दिन खारक का दान करना लाभदायी होता है।
-    पंचमी के दिन गुड एवं तुवर की दाल दान में दें।
-    षष्टी के दिन अष्ट गंध का दान करें।
-    सप्तमी-अष्टमी के दिन रक्त चंदन का दान करना उचित होता है।
-    नवमी के दिन केसर का दान करें।
-    दशमी के दिन कस्तुरी का दान दें।
-    एकादशी के दिन गोरोचन या गौलोचन का दान करें।
-    द्वादशी के दिन शंख का दान फलदाई है।
-    त्रयोदशी के दिन घंटाल या घंटी का दान करें।
-    चतुर्दशी के दिन मोती या मोती की माला दान में दें।
-    पूर्णिमा के दिन माणिक तथा रत्नों का दान करें।

 

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