19-Mar-2013 10:12 AM
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मध्यप्रदेश में मिशन 2013 के तहत शिवराज सिंह ने किला फतह करने के लिए विधानसभा के बजट सत्र के चलते एक बड़ी सर्जरी कर डाली। इससे विपक्ष चिंतन को विवश हो गया है। सत्ता में बैठी
पार्टी यह मानती है कि कलेक्टर चुनाव जिता देते हैं इसी के मद्देनजर जिलों में सत्तापक्ष के प्रति वफादार रहने वाले सैनिकों को तैनात किया जा रहा है। हर जिले में सरकार का प्रतिनिधित्व कलेक्टर ही करता है। एक तरीके से वह जनता-जनार्दन का रहनुमा भी है। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि ताश के वही 52 पत्ते हैं जिन्हें कहीं न कहीं की तो कमान सौंपी जाएगी। इसीलिए प्रशासनिक सर्जरी में मुख्य रूप से यह ध्यान रखा गया है कि वे अधिकारी जिलों में तैनात किए जाए जिन्हें जनता के बीच कार्य करने का विशेष अनुभव हो और वो जनता के प्रति उदार हो। इस दृष्टि से ज्यादातर प्रमोटी आईएएस और आईपीएस को विशेष तवज्जो दी गई है। उसके पीछे तर्क यह है कि उनका मैदानी अनुभव ज्यादा रहता है और वे चुनावी गणित को बेहतरी से समझते हैं। अभी हाल में कुछ दिनों में ही कुछ संभाग के कमिश्नर, कलेक्टर, सीओ, अपर कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर बदले जाएंगे। एक-दो संभाग के कमिश्नर और करीब आधा दर्जन कलेक्टर, दो दर्जन सीओ और थोक में डिप्टी कलेक्टर बदलने की कवायद जोरों पर चल रही है। कुछ जिलों में अतिरिक्त रूप से अतिरिक्त कलेक्टर की पोस्टिंग की जाएगी। वहीं उज्जैन में सिंहस्थ को देखते हुए मेला अधिकारी से लेकर पूरा सेटअप बनाया जाएगा। प्रदेश के मुख्य सचिव आर परशुराम इस सर्जरी में इस बात का भी ख्याल नहीं रखा कि जूनियर आईएएस अफसर तो मंत्रालय में पीएस बनकर बैठे हैं और उनसे वरिष्ठ अधिकारी वि.क.अ.-सह-आयुक्त-सह-संचालक, 1988 प्रवीण गर्ग और 1989 के आशीष उपाध्याय को मंत्रालय से बाहर रखने के पीछे मंत्रालय के ही कुछ दिलजले अफसरों की आपसी खुन्नस के चलते उन्हें विभागाध्यक्ष तक ही सीमित कर दिया है। मंत्रालय के गलियारों में यह भी खबर है कि आर परशुराम को इंदौर संभाग में काम कर चुके कुछ अफसरों ने अपने कॉकस में घेर लिया है। आईएएस बिरादरी का फस्ट कजन (डिप्टी कलेक्टर) प्रमोटी प्रभात कुमार पाराशर ने आज तक मंत्रालय के कोई भी कक्ष में कभी काम नहीं किया है। उन्हें पहली बार मंत्रालय में सामान्य प्रशासन विभाग का सचिव बनाया गया है। क्योंकि उनका दिसंबर 2013 में रिटायरमेंट है। वहीं 1991 बैच के विश्व मोहन उपाध्याय जो कि पहली बार किसी विभाग में दो साल टिक पाए हैं। उन्हें उनकी अपर मुख्य सचिव की तनातनी के कारण से चलता कर पिछड़ा वर्ग कल्याण में आयुक्त बनाया गया है। उधर संजय दुबे के खाली स्थान को भरने के लिए केसी गुप्ता को इंदौर पदस्थ किया है। वे वैसे भी इंदौर जाने के लिए पहले से प्रयासरत थे। वे मध्यप्रदेश वित्त निगम इंदौर के प्रबंध संचालक का अतिरिक्त प्रभार भी संभालेंगे। संजय दुबे पारिवारिक कारणों से इंदौर में ही रहना चाहते थे। एसबी सिंह भाजपा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के निकटस्थ माने जाते हैं इसी वजह से वे भोपाल संभाग के कमिश्नर बनाए गए। रमाकांत उमराव मध्यप्रदेश कैडर के ऐसे आईएएस अफसर हैं जिन्हें पिछले दो साल में आधा दर्जन से ज्यादा जगहों पर स्थानांतरित किया गया है। 1997 बैच के गुलशन बामरा सचिव हो गए हैं और तीन वर्ष भी हो चुका है लिहाजा उन्हें आयुक्त-सह-संचालक नगर एवं ग्राम निवेश बनाया गया है। ग्वालियर संभाग में चुनावी समीकरण के चलते केके खरे को ग्वालियर का कमिश्नर नियुक्त किया गया है। पुष्पलता सिंह वैसे भी लंबे समय तक कहीं नहीं टिक पाई हैं उन्हें गैप को भरने के लिए माध्यमिक शिक्षामंडल मध्यप्रदेश में सचिव बनाया गया है। जीपी कबीर पंथी ने दतिया में रहते हुए नरोत्तम मिश्रा को चुनाव आयोग की कठोर दृष्टि से बचने में मदद नहीं की इसीलिए वे सागर संभाग के अपर आयुक्त (राजस्व) बनाए गया है। राजेश प्रसाद मिश्रा कैश बुक चोरी कांड के मुख्य आरोपी होने के कारण मंत्रालय से कहीं और जाना नहीं चाहते थे। क्योंकि उनकी इसी मामले में डीई लंबित है। इसी को खत्म कराने के लिए वे मंत्रालय के इर्द-गिर्द बने रहना चाहते हैं। संतोष कुमार मिश्रा ने बड़वानी में रहते हुए अच्छा काम किया उन्हें बहुत दिनों से कलेक्टरी की तलाश थी और वे माध्यमिक शिक्षा मंडल के सचिव बनने के बाद अटपटा सा महसूस कर रहे थे इस बारे में उन्होंने अपनी नाराजगी का बखान चारों तरफ किया। मुख्यसचिव की गुड लिस्ट में होने के कारण उन्हें कुछ दिनों के वनवास के बाद अशोक नगर का कलेक्टर बनाया गया है। तीन वर्ष की अवधि पूरी करने वाले रायसेन कलेक्टर मोहनलाल मीणा को हटाकर सतना कलेक्टर बनाया गया वहीं विवेक पोरवाल बालाघाट में रहने के बाद अब जबलपुर के कलेक्टर बनाए गए हैं। अजीत कुमार लूपलाइन में चले गए हैं उन्हें ग्वालियर का अपर आबकारी आयुक्त बनाया गया है। प्रशासनिक अधिकारी रमेश थेटे, शशि कर्णावत और विनोद कटेला के विरुद्ध मामले लंबित हैं। 1998 बैच की उर्मिला मिश्रा को आज तक कलेक्टर नहीं बनाया गया है। जबकि उनके नीचे वाले एक दर्जन से ज्यादा आईएएस अफसरों को कलेक्टरी मिली चुकी है।
पुलिस अधिकारियों की रणनीतिक नियुक्ति
पुलिस अधिकारियों की प्रदेश में नई पदस्थापना को देखा जाए तो प्रतीत होता है कि इस बार मुख्यमंत्री ने चुनावी बिसात बिछाते हुए डीजीपी नंदन दुबे के ऊपर पूरा भरोसा जताकर उन्हीं के अनुसार पदस्थापनाएं कर डालीं। विजय यादव को चुनावी आचार संहिता लगने के समय तक लगभग तीन वर्ष पूरे हो जाते। इसी को देखते हुए उन्हें ईओडब्ल्यु में स्थानांतरित किया गया है। 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी यूसी षडंगी भोपाल में आना चाहते हैं और उन्हें उनके अनुकूल पदस्थानपना मिल गई है। भोपाल में रहकर वह ग्वालियर का भी काम देख सकेंगे। क्योंकि उन्हें डकैत विरोधी अभियान ग्वालियर का अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक बनाया गया है। इंदौर रैंज की पुलिस महानिरीक्षक अनुराधा शंकर, कैलाश विजयवर्गीय से पटरी न बैठ पाने के कारण पुलिस मुख्यालय में महानिरीक्षक (प्रशासन) बनाई गई हैं। बताया जाता है कि कैलाश विजयवर्गीय ने स्पष्ट शब्दों में चुनौती दी थी कि यदि अनुराधा शंकर को नहीं हटाया गया तो वे विधानसभा नहीं आएंगे। बजट सत्र के दौरान वे कई बार विधानसभा में नहीं दिखे। अब विपिन माहेश्वरी को समझाइश देकर इंदौर भेजा गया है कि वे कैलाश विजयवर्गीय एंड कंपनी से दूरी बनाकर चलें। वी. मधुकुमार जबलपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक हैं वे इंदौर में डीआईजी रह चुके हैं और इंदौर जाने के प्रयास में थे, किंतु उनके जाने से वे कैलाश विजयवर्गीय के खासमखास हो जाते इसीलिए 50 किलोमीटर दूर उज्जैन का पुलिस महानिरीक्षक बनाया गया है। ताकि बात भी बनी रहे और काम भी हो जाए। उपेंद्र कुमार जैन इंदौर जाना चाहते थे पर चुनावी समीकरण को देखते हुए उन्हें पुलिस महानिरीक्षक भोपाल रेंज बनाया गया है। 1992 बैच के आईपीएस आदर्श कटियार ग्वालियर में ही प्रोफेशनल के रूप में डीएसपी और बाद में एसपी और डीआईजी रहे हैं उन्हें अब उसी जिले रेंज में आईजी बनाकर भेजा गया है। सचिन अतुलकर बालाघाट में ही रहेंगे। कारण स्पष्ट है कि पिछले 18 साल से बालाघाट में कभी भी प्रमोटी आईपीएस नहीं रहा। जिस अधिकारी मनीष कपूरिया का वहां स्थानांतरण किया गया था वे राज्य पुलिस सेवा से हैं। उन्हें अब नरसिंहपुर में पदस्थ किया गया है। कपूरिया किसी समय दिग्विजय सिंह के सुरक्षा अधिकारी थे और जिस तेजी से उन्होंने अपना तबादला बदलवाया है उससे अहसास होता है कि भाजपा की सरकार में कांग्रेसियों के काम बहुत तत्परता से होते हैं।
मंत्रालयीन साख सहकारी समिति का बंटाधार
मंत्रालयीन कर्मचारियों द्वारा मध्यप्रदेश में साख सहकारी समिति के माध्यम से इस सोसाइटी में प्रतिमाह उनकी तनख्वाह से रकम काटी जाती है जिससे कर्मचारियों के आने वाले समय में कर्ज की जरूरत पडऩे पर उन्हें कर्ज दिया जा सके। परंतु इस सोसाइटी के कुछ पदाधिकारियों द्वारा सोसाइटी में गबन करने के पश्चात यह सोसाइटी डूब गई है। इसी सोसाइटी में कई आईएएस अफसरों ने अपनी कुछ रकम लगा रखी है क्योंकि सोसाइटी द्वारा मार्केट दर से उन्हें एक प्रतिशत अधिक की राशि से ब्याज दिया जाता है। इस मामले में शिकायत दर्ज होने के बाद मामला लंबित है वहीं रजिस्टार फर्म सोसाइटी द्वारा अपना एक ओआईसी बिठाकर कर्मचारियों की तनख्वाह से कटने वाली रकम से आईएएस अफसरों के द्वारा सोसाइटी में जो एफडी की गई है वह रकम उन्हें लौटायी जा रही है। सोसाइटी की नैया डूबने के बाद मंत्रालयीन सेवा के कर्मचारियों द्वारा लिखकर देने के बावजूद उनकी तनख्वाह से पैसा काटा जा रहा है। इस बारे में कोई सुनने को तैयार नहीं है। वहीं कर्मचारी लामबंद होकर संबंधित सोसाइटी के पदाधिकारियों के खिलाफ शिकायत करके तंग आ चुके हैं। परंतु ओआईसी महोदय द्वारा कर्मचारियों के पैसे से एक प्रतिशत ज्यादा पर आईएएस अफसरों की एफडी ली गई है अब सोसाइटी की नैया डूबने के कारण आईएएस अफसर दबाव बनाकर सोसाइटी से अपना पैसा वसूल कर रहे हैं।
कुमार राजेंद्र