04-Jul-2015 08:01 AM
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इस सृष्टि में केवले शिव ही एक मात्र ऐसे ईश्वर हैं जिनके आदि और अंत का कोई ज्ञान नहीं है। किसी भी धर्म ग्रंथ में न तो शिव की बाल लीलाओंं का वर्णन है और न ही उनकी मृत्यु की घोषणा की

गई है। अनंत काल से इस सृष्टि के प्रादुर्भाव से भी पहले शिव अस्तित्व में आ चुके थे और उनका अस्तित्व आज भी बरकरार है। वे अनादि हैं, अनंत हैं, निराकार हैं, úकार हैं। ऐसे शिव का धाम धरा पर हर जगह है। पृथ्वी का कौन सा कोना ऐसा है जहां शिव न हों। किंतु मानसरोवर और अमरनाथ में जाने पर शिव के जिस अद्भुत रूप के दर्शन होते हैं, उसकी बस कल्पना ही की जा सकती है। कड़कड़ाती ठंड में जहां शरीर की धमनियां भी सिकुडऩे लगती हैं, हड्डी के भीतर मज्जा जमने को आतुर हो जाती है, ऐसी स्थिति में शिव के दर्शन आत्मा और देह को परम शांति प्रदान करते हैं। कहते हैं शिव तत्व को पा जाना इस संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह असाधारण सिद्धी है, जो सभी को प्राप्त नहीं होती। इसीलिए शिव दुर्गम से दुर्गमतम स्थानों पर अपना धाम बनाए हुए हैं। अमरनाथ में वे हिमांक तक घनीभूत हुए अपने ठोस रूप में प्रकट होते हैं, तो मानसरोवर के जल में उनकी मृदुता के दर्शन किए जा सकते हैं। उनका ठोस और मृदुल रूप उतना ही मनभावन है, जितने स्वयं शिव हैं। सूर्य की रश्मियों से आच्छादित स्वर्ण के समान चमकते उस कैलाश पर्वत के दर्शन करते ही मन एक गहन शांति का अनुभव करता है। वह शांति दुर्लभ है, सांसारिकता से परे है, भौतिकता से बहुत ऊपर है। इसीलिए प्रतिवर्ष जब अमरनाथ और मानसरोवर की यात्राएं आयोजित की जाती हैं, तो हर धर्म को मानने वाला भारतवासी शिव के धाम जाने को लालायित हो उठता है। इस बार अमरनाथ यात्रा थोड़ी देर से प्रारंभ हो सकी, क्योंकि वर्षा और भूस्खलन ने विघ्न डाला था। लेकिन मानसरोवर यात्रा चीन के साथ समझौते के बाद ज्यादा सहूलियत भरी और कम दिनों की हो गई है। अब श्रद्धालु सिक्किम होकर नाथुला दर्रे के द्वारा भी तिब्बत स्थित मानसरोवर झील तक जा रहे हैं। यह यात्रा अत्यंत सुगम है। इस पर यात्रियों को ज्यादा पैदल नहीं चलना पड़ता।
वर्तमान में कैलास मानसरोवर यात्रा उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ी रास्तों से होकर लिपुलेख दर्रे के जरिये चीन की सीमा में प्रवेश करती है। यात्रियों को इस रास्ते पर दुर्गम पर्वतीय चढ़ाई, फिसलन भरे रास्ते और बर्फीली हवाओं के थपेड़े सहते हुए जाना पड़ता है। इस मार्ग पर यात्रियों को करीब एक हजार किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। इसमें लगभग 700 किलोमीटर की दूरी भारतीय क्षेत्र जबकि 300 किलोमीटर चीन की सीमा में है। मानसरोवर झील समुद्र तल से 4,590 मीटर (15,600 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। विदेश मंत्रालय प्रत्येक वर्ष जून से सितंबर के बीच कैलास मानसरोवर यात्रा का आयोजन करता है। इसमें अधिकतम 1080 यात्री भाग ले सकते हैं। यात्रियों को 18 जत्थों में रवाना किया जाता है। हर जत्थे में 60 यात्री होते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात में कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए एक और रास्ता खोलने का आग्रह किया था। जिनपिंग ने इस पर विचार करने का आश्वासन दिया था। इससे पहले भी भारत चीन से अतिरिक्त रूट खोलने की मांग करता रहा था, लेकिन चीन इसके लिए तैयार नहीं था। लेकिन, ब्रिक्स सम्मेलन में मोदी-जिनपिंग मुलाकात के बाद यात्रा के लिए अतिरिक्त मार्ग खुलने की संभावनाओं को बल मिला था।
मानसरोवर वही पवित्र जगह है, जिसे शिव का धाम माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभू का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहाँ शिव-शंभू विराजते हैं। कैलाश पर्वत, 22,028 फीट ऊंचा एक पत्थर का पिरामिड, जिस पर सालभर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है। हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने, शिव-शंभू की आराधना करने, हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहां एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महत्ता काफी बढ़ जाती है।
मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो úÓ की प्रतिध्वनि करता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है। कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। यह स्थान बौद्ध धर्मावलंबियों के सभी तीर्थ स्थानों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। कैलाश पर स्थित बुद्ध भगवान के अलौकिक रूप डेमचौकÓ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूजनीय है। वह बुद्ध के इस रूप को धर्मपालÓ की संज्ञा भी देते हैं। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इस स्थान पर आकर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है। वहीं जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ने भी यहीं निर्वाण लिया। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि गुरु नानक ने भी यहां ध्यान किया था।
मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है। प्राचीनकाल से विभिन्न धर्मों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोककथाएँ केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं, जो है सभी धर्मों की एकता।
ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं।
-बृजेश साहू