04-Jul-2015 07:45 AM
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न कोई विस्फोट हुआ, न कोई दुर्घटना घटी, न कहीं फिश प्लेट उखड़ी, न बाढ़ आई, न तूफान आया न भूकंप आया और न ही आतंकवादी हमला हुआ। लेकिन फिर भी इस देश की 1 हजार से अधिक
टे्रनों के पहिए या तो थम गए या उनके रूट बदलने पड़़े। कारण यह था कि पश्चिम-मध्य रेलवे के इटारसी स्थित सेंट्रल कैबिन के आरआरआई (रुटीन रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम) में 16 जून को सुबह 5 बजकर 45 मिनट पर भयंकर आग लग गई। शॉट सर्किट से लगी इस आग से पूरा सिस्टम जलकर नष्ट हो गया। कई रेलगाडिय़ों को स्टेशन पर ही रोकना पड़ा। बहुत सी देर से रवाना हुईं और बहुत सी रद्द हो गईं। आम जनता को लगा कि एक-आध दिन में सब ठीक हो जाएगा। इससे पहले बड़ी से बड़ी दुर्घटना घटने पर भी रेलवे चौबीस घंटे के भीतर सब कुछ दुरुस्त कर लेता था, लेकिन वायरों में लगी यह आग मामूली नहीं थी। बल्कि इसने पूरी रेलवे संचालन प्रणाली की पोल खोल दी। इस प्रणााली को पूरी तरह स्थापित होने में कम से कम 45 दिन लगेंगे। इस दौरान सैकड़ों टे्रन या तो रद्द होंगी या उनके मार्ग में परिवर्तन होगा, या उनमें से कुछ को मैनुअली चलाया जाएगा।
आग क्यों लगी? जानबूझकर लगाई गई? लापरवाही से लगी? इत्यादि सवालों का जवाब शायद देर से मिले या न मिले। लेकिन भारतीय रेलवे के आरआरआई सिस्टम को ध्वस्त कर सारी रेलों को पल भर में पटरियों पर खड़े होने को विवश किया जा सकता है। क्योंकि हमारे पास वह आपात व्यवस्था नहीं है, जो इन प्रणालियों के खराब होने या जलकर खाक होने की स्थिति में 4-5 घंटे के भीतर फिर से सुचारू कर दे। दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक भारतीय रेलवे की यह सबसे दयनीय और चिंतनीय स्थिति कही जा सकती है। प्राकृतिक आपदाएं अलग बात है, लेकिन सब कुछ ठीक-ठाक होते हुए महज 20 गुणा 30 फिट के एक कमरे में लगे यंत्र एक-दो दिन के लिए नहीं बल्कि डेढ़ माह के लिए अनेक टे्रनों की गति रोक सकते हैं, तो चिंता का विषय है। रेलवे इस चिंता से कितना अवगत है, कहा नहीं जा सकता। इस प्रणाली को दुरुस्त होने में जो समय लग रहा है, उससे तो यही झलकता है कि आज भी हमारा रेलवे बाबा आदम के जमाने की तकनीक और यंत्रों के सहारे है।
ज्यादा दिन नहीं बीते जब सेमी बुलेट टे्रन की बात सामने आई थी, उसी समय चीन ने भी भारत को सलाह दी थी कि विकास के लिए बुलेट टे्रन चलाना जरूरी है। लेकिन यहां तो पेसेंजर टे्रन भी अपनी पूरी गति से नहीं चल पा रही है। रेलवे की यह बेबसी रेलवे अधिकारियों के चेहरे पर साफ झलकती है। वर्तमान में रेलवे सिग्नलिंग अपने सर्वोत्कृष्ट दौर में है। रेलवे सिग्नलिंग का अर्थ है स्टेशन मास्टर द्वारा लोको ड्राइवर को गाड़ी रोकने अथवा चलाने का संकेत देना। सुनने में यह बहुत आसान लगता है, लेकिन जब एक ही पटरी पर सैंकड़ों गाडिय़ां 100-150 की रफ्तार से एक ही दिशा में भागती हैं, तो रेलवे सिग्नलिंग इतनी महत्वपूर्ण हो जाती है कि इसमें बाल बराबर खराबी जानलेवा साबित हो सकती है। रेलवे में दो तरह की सिग्नलिंग प्रणाली है। पहली जिसे टाइम इंटरवल मैथड कहते हैं, दूसरी स्पेस इंटरवल मैथड कहलाती है। टाइम इंटरवल मैथड अब प्रचलन में नहीं है। पहले कभी हुआ करती थी, जब शहरों में ट्राम चलते थे। यह वहीं उपयोगी है जहां टे्रनें हलकी और टे्रफिक कम होता है। लेकिन पेसेंजर, गुड्स टे्रन के लिए स्पेस इंटरवल मैथड का ही उपयोग किया जा रहा है। जिसमें टे्रक को कुछ सेक्शन में बांट दिया जाता है जिन्हें ब्लॉक्स कहते हैं। किसी एक ब्लॉक में एक टे्रन के होते दूसरी टे्रन नहीं घुस सकती। जब तक पहली टे्रन ब्लॉक से न निकले, दूसरी टे्रन को ब्लॉक के बाहर रोक दिया जाता है। इससे दो टे्रनों के बीच में सुरक्षित दूरी बनी रहती है और हादसे की संभावना न के बराबर होती है। यह प्रणाली विजुअल और ऑडिबल सिग्नल्स में विभाजित है। विजुअल सिग्नल्स वे होते हैं, जो दिखते हैं। जैसे मूवेबल फ्लेग, फिक्सड सिग्नल, फ्लेयर सिग्नल जबकि ऑडिबल सिग्नल सुने जा सकते हैं, जिनमें डेटोनेटर्स, वॉइस, व्हिसल आदि शामिल हैं। इन सिग्नलों के भी अलग-अलग प्रकार हैं और इन्हीं पर टे्रन चलती है। आम भाषा में लाल-हरी-पीली लाइट को जनता टे्रन के चलने और रुकने से जोड़कर देखती है। आजकल लगभग सभी प्वाइंट इलेक्ट्रिक मोटर से ऑपरेट हो रहे हैं। इतना विशाल रेलवे है इसलिए बहुत से स्टेशनों पर इलेक्ट्रिक मोटर फेल होती रहती है ऐसी स्थिति में स्टेशन मास्टर फील्ड स्टॉफ और सिग्नलिंग डिपार्टमेंट को अनुमति देता है कि प्वाइंट को मैनुअली ऑपरेट किया जाए। आम तौर पर ऐसा एक कें्रक हैंडल द्वारा किया जाता है ताकि टे्रफिक न रुके। लेकिन रेलवे में इंटरलॉकिंग प्रणाली कई रेलवे स्टशनों के बीच टे्रफिक कंट्रोल करती है। इसमें टे्रन रूट्स, शंटिंग मूव्स तय करना तथा अन्य रेलवे वाहनों को रेलवे के नियमानुसार तकनीकी प्रक्रिया द्वारा संचालित करना शामिल है। इसे इंटरलॉकिंग प्रणाली इसलिए कहते हैं क्योंकि यह प्वाइंट सिग्नल्स टे्रक सर्किट्स और अन्य के बीच सेतु का कार्य करती है। इसलिए आज के दौर में इंटरलॉकिंग प्रणाली अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारत में आरआरआई रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम का प्रयोग हो रहा है। जिसमें इलेक्ट्रो मैकेनिकल रिलेस का उपयोग किया जाता है, जिसे आरआरआई रिले सर्किट्स भी कहते हैं। इस पूरी प्रणाली में बहुत खामियां हैं। इसमें बड़ी भारी वायरिंग लगती है, बड़ा स्थान घेरती है और रख-रखाव महंगा है। दुनिया के बहुत से देशों ने एसएसआई सॉलिड स्टेट इंटरलॉकिंग सिस्टम अपनाया हुआ है। जिसमें परंपरागत मैकेनिकल लीवर्स और इलेक्ट्रो मैकेनिकल रिलेस के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक्स के द्वारा पूरी प्रणाली को संचालित किया जाता है। आज आरआरआई के स्थान पर एसएसआई की मांग की जा रही है। टे्र्रनों की संख्या बढ़ी है, टे्रक्स भी बढ़ रहे हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में रिलेस (क्रश्वरु्रङ्घस्) और लीवर्स का उपयोग करना पड़ता है। एसएसआई की कीमत आरआरआई के मुकाबले एक चौथाई है, मैंटेनेंस का खर्च न के बराबर है और आपात स्थिति में इस प्रणाली को 24 घंटे के अंदर स्थापित किया जा सकता है क्योंकि इसमें आरआरआई के मुकाबले एक चौथाई रिलेस लगते हैं और इसकी टे्रवलिंग कॉस्ट भी बहुत कम है। यह सेंट्रलाइज्ड और डिस्ट्रीब्यूटेड प्रणाली में उपलब्ध है।
यह कुछ तकनीकी बात है, इसमें रेलवे के सिग्नलिंग मैकेनिजम को समझने की कोशिश की गई है। यह ज्ञान रेलवे के ही इंजीनियरों ने दिया है। लेकिन भारतीय आधुनिकीकरण की बात अवश्य करता है पर बदलाव के लिए तैयार नहीं है। यदि इटारसी में वह प्रणाली जलकर ध्वस्त हो गई थी, तो उसके स्थान पर आधुनिक मैकेनिजम लाया जा सकता था। समय भी कम लगता और पैसा भी। लेकिन रेलवे के सलाहकार कतिपय कारणों से सरकार को सही सलाह नहीं देते। इसके पीछे किसका स्वार्थ है और क्यों? यह समझना जरूरी है। जहां तक इटारसी का प्रश्न है, अकेले इटारसी ही नहीं कई जगह यह समस्या आती है और यात्रियों का कीमती समय बर्बाद होता है। वर्ष 2012 में जब पूर्वी-मध्य रेलवे के पटना जंक्शन में आरआरआई का प्रस्ताव 4 साल पहले आया, तो किसी अनुभवी इंजीनियर ने इस महंगी प्रणाली का विरोध किया था। लेकिन रेलवे के कुछ अफसर आरआरआई पर ही अड़े रहे। 4 साल तक काम अटका रहा। बाद में 10 करोड़ रुपए की लागत से फिर से वही प्रणाली स्थापित की गई, जो पहले नाकाम हो चुकी थी। रेलवे के काम करने के यही तरीके हैं। सभी 9 जोन में यही सब देखने को मिलता है, आधुनिकीकरण का साहस कोई नहीं जुटाना चाहता। कहा जाता है कि भारत में रेलवे पर ज्यादा दबाव है, यात्रियों की संख्या ज्यादा है, आदि-इत्यादि। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेल भाषण में रेल के आधुनिकीकरण पर लंबा-चौड़ा व्याख्यान दिया था। लेकिन इटारसी में आरआरआई के ध्वस्त होने की घटना ने रेलवे के आधुनिकीकरण की पोल खोल दी। इससे सिद्ध होता है कि युद्ध या ऐसी ही आपात स्थिति में रेलवे को सुचारू रूप से चलाए रखने की दक्षता हमारे देश में नहीं है। रेल दुर्घटनाएं और रेल सेवाओं की दुर्दशा अलग विषय है, लेकिन बुनियादी तकनीकी लापरवाहियां जनता को महंगी पड़ती हैं। इटारसी की घटना ने लाखों यात्रियों को परेशान किया। बहुत से अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाए। बहुत से ऐसे भी थे जो स्टेशनों पर फंस गए।
रेलवे ने टिकट का पैसा वापस लौटाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। किंतु क्या इतना पर्याप्त है? भारतीय रेलवे एयरलाइन्स की तरह काम क्यों नहीं कर सकता, जो अपने यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए हर संभव कोशिश करती हैं। जो हजारों लोग छोटे-मोटे स्टेशनों पर फंस गए। 72-72 घंटे मासूम बच्चों और बूढ़े यात्रियों को लेकर बैठे रहे वैकल्पिक साधन तलाशते रहे, उनकी सुध रेलवे ने क्यों नहीं ली। क्या उन लोगों के लिए बसों-टैक्सियों की व्यवस्था नहीं की जा सकती थी। क्या रेलवे का कर्तव्य रेलवे स्टेशन तक ही सीमित है, उसके बाहर उसके कोई सरोकार नहीं हैं? इटारसी की तकनीकी गड़बड़ी ने सैंकड़ों किलोमीटर तक यात्रियों को परेशानी में डाला। रेलवे के पास इन यात्रियों की परेशानी का क्या समाधान है?
लापरवाही की पराकाष्ठा
इटारसी में तबाह हुआ आरआरआई सिस्टम एक दिन में नहीं बिगड़ा, बल्कि लगातार उपेक्षा से यह तबाही मची है। नए अपग्रेडेड सिस्टम को तो ट्रायल की मंजूरी दी ही नहीं गई, जो पुराना सिस्टम था उस पर भी ध्यान नहीं दिया गया। बैटरियों से एसिड रिस रहा था, जिससे वायर गलने लगे थे। 220 वोल्ट की सप्लाई के लिए वायरिंग पुराने पैटर्न पर की गई, जिसमें शॉर्ट सर्किट होने पर आग लग गई। इस प्रणाली को ठंंंडा रखने वाले ज्यादातर ए.सी. खराब हो चुके थे। जलने के बाद जब आपात व्यवस्था की गई, तो ऐसा लगा मानो मुंबई से थाणे को पहली ट्रेन चल रही हो। देश के 17 जोन में ऐसे 350 केंद्र हैं जिनमें से कुछ जल जाएं, तो देश थम सकता है। इतनी महत्वपूर्ण प्रणाली का बैकअप सिस्टम मजबूत क्यों नहीं है? यह अहम सवाल है।
-इटारसी से अजयधीर