04-Jul-2015 07:27 AM
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देशभर से इक_ी की गई मैगी को कर्नाटक के एक सीमेंट कारखाने में भट्टी में झोंक दिया जाएगा। मैगी ब्रांड भारत के बाजार से खत्म हो चुकी है। 320 करोड़ रुपए की मैगी सीमेंट कारखाने की

भट्टी के लिए महंगा ईंधन हो सकती है, लेकिन यह ईंधन मुफ्त मिलेगा। नेस्ले अमेरिकन कंपनी है। अमेरिका में भारतीय कंपनियों के उत्पादों पर प्रतिबंध आम बात है। अकेले हल्दीराम के 100 उत्पादों पर अमेरिका में प्रतिबंध लग चुका है। लगभग हर घरेलू उत्पाद जहरीला है। मैगी के बाद मदर डेयरी के दूध, डिटॉल साबुन और कोलगेट में भी कमियां पाई गई हैं। इन सभी कंपनियों को नोटिस जारी किया गया है। कोलगेट में एक्सपायरी डेट के स्थान पर लिखा था कि निर्माण के बाद इतने समय तक प्रयुक्त किया जा सकता है। वहीं डिटॉल साबुन का वजन कम निकला। ये तो छोटी-मोटी शिकायतें हैं। मदर डेयरी के दूध मेंं डिटर्जेंट मिलने से हड़कंप मच गया है। सेरेलेक के बेबी फूड में कीड़ा मिला है। ग्लूकॉन-डी, स्टारबक्स की कॉफी, हल्दीराम के स्नेक्स, ब्रिटेनिया, हेेज व एमटीआर के उत्पादों में कीटनाशक से लेकर कीड़े और अन्य गंदगी मिलने के बाद अब यह तय नहीं हो पा रहा है कि कौन सा उत्पाद खाने योग्य है और कौन सा जहरीला है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि कीटनाशक और उर्वरक खाद्य पदार्थों के माध्यम से दूध देने वाले जानवरों के शरीर में पहुंच रहे हैं जहां से वे उनके दूध में घुलकर दुग्ध उत्पादों में आ जाते हैं। लेकिन प्राय: हर खाद्य सामग्री सैंपल में गड़बड़ी मिली है। मध्यप्रदेश में थम्सअप के सैंपल में गड़बड़ी पाई गई। ये कोल्ड्रिंक राजगढ़ जिले के पीलूखेड़ी प्लांट में बनी थी। इससे पहले प्रियागोल्ड-पार्ले-ब्रिटेनिया-सनफीस्ट बिस्किट, हल्दीराम सोनपपड़ी, दीनदयाल शरबत, सफोला नमक सब में गड़बड़ी मिली थी। जुर्माना भी किया गया था लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। न ही उन फेमस चेहरों के विरुद्ध कोई एक्शन लिया गया जो इन उत्पादों के विज्ञापनों मेें दिखाई दिए थे। सरकार कार्रवाई की बात तो बहुत करती है, कार्रवाई केवल कागजों पर होती है। सफोला, हल्दीराम, प्रियागोल्ड जैसी कंपनियों पर महज 54 लाख का जुर्माना लगाकर इतिश्री कर ली। ऐसे कई मामले हुए।
मशहूर कंपनी कैडबरी के डेयरी मिल्क को लेकर 2003 में काफी विवाद हुआ था, जब महाराष्ट्र में चॉकलेट में कीड़े पाए जाने का मामला सामने आया था, तब कंपनी को ग्राहकों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। इस मामले पर कैडबरी ने सफाई देते हुए कहा था कि उत्पादन के समय चॉक्लेट में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं थी, लेकिन खुदरा व्यापारी के सही से स्टोर न करने के कारण उसमें कीड़े पैदा हुए। बीते कुछ सालों में मैकडोनल्ड भी विवादों के घेरे में नजर आता रहा है। कनाडा में एक व्यक्ति की कोल्ड कॉफी से मरा हुआ चूहा मिलने के एक मामले ने मैकडोनल्ड की उत्पादन प्रक्रिया पर भी कई सवाल खड़े कर दिए। सिर्फ चूहा ही नहीं, इंसान के दांत और कई चीजें मैकडोनल्ड के हैप्पी मील में भी पाई जा चुकी हैं। चीन में मैकडोनल्ड की बिक्री दर एकदम नीचे गिर गई, जब मैकडोनल्ड के एक कर्मचारी ने पुराना चिकन दोबारा से पैक करके बेच दिया। कंपनी को अपना शंघाई प्लांट बंद करना पड़ा। इसके अलावा तमाम आउटलेट्स में कई आइटम बेचने बंद कर दिए गए। जापान में भी मीट में प्लास्टिक के टुकड़े पाए जाने का मामला सामने आया था। दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित सिंधिया हाउस के केएफसी में दिखावटी रंगों के इस्तेमाल करने का मामला सामने आया था। भारतीय खाद्य और मानक सुरक्षा प्राधिकरण की जांच के दौरान चावल के नमूनों से दिखावटी रंग पाए गए।
1977 में जब सरकार ने कोला कंपनी से इसकी रेसिपी और सामग्री के बारे में पूछा, तो कोला को इंडिया से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। पीटर मोस ने अपनी किताब (घोस्ट ऑफ द डार्क स्काइ बॉग एंड बैरेंस) में लिखा है कि एक लंबे समय के अभाव के बाद 1993 में कोकाकोला ने भारत में फिर से अपने पैर जमाने शुरू किए। 2006 में न्यूयॉर्क टाइम्स में आई रिपोर्ट के अनुसार, कोला में कीटनाशक होने की खबर सबसे पहले 2003 में मिली थी। यह 2006 में फिर से उठी, जब पर्यावरण संबंधी समूह विज्ञान और पर्यावरण केंद्र ने यह दावा किया कि पेप्सी और कोकाकोला कंपनियों की ओर से बिकने वाले सोडे में कीटनाशक हैं। मध्य प्रदेश और गुजरात दोनों राज्यों में स्कूल और सरकारी दफ्तरों में कोल्ड ड्रिंक परोसने पर बैन लगा दिया गया। यहां से 11 नमूनों की जांच की गई, जिसमें तय सीमा से 24 गुना ज्यादा कीटनाशक होने की बात सामने आई थी।
इसी तरह का बैन राजस्थान और पंजाब में भी लगा दिया गया। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी ने भारत में पानी में कीटनाशक की मौजूदगी को स्वीकार किया और खाद्य पदार्थों में अपना रास्ता ढूंढ लिया। नेस्ले मैगी नूडल्स, मैकडोनल्ड, केएफसी, हल्दीराम-आलू भुजिया, पेप्सीको लेस पोटैटो चिप्स और इस तरह की अधिकांश जंक फूड में ट्रांस फैट, नमक, शुगर काफी ज्यादा मात्रा में पाया जाता है, जो कि मोटापा और डायबिटीज जैसी परेशानियां
बढ़ाता है। 2011 में मुंबई की चर्चित कंपनी सबवे के चिकन टिक्का में भी कीड़े मिले थे। सबवे के मैनेजर ने यह कहते हुए कि यह उनका नहीं सब्जी सप्लाई करने वाले की गलती की वजह से हुआ है, अपना पल्ला झाड़ लिया था। ऐसा ही केस पिछले साल हैदराबाद में सामने आया, जब वहां नॉन-वेजिटेरीयन सबवे में
कीड़े निकले।
-अक्स ब्यूरो